निवेशकों की सहभागिता खोलेगी विकास के द्वार

डॉ. मोहन यादव

-जबलपुर रीजनल इंडस्ट्री कॉन्क्लेव

मप्र में एक समान औद्योगिक विकास के लिए मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने रीजनल इंडस्ट्री कॉन्क्लेव का जो फॉर्मूला बनाया है उसकी अगली कड़ी में 20 जुलाई को जबलपुर में रीजनल इंडस्ट्री कॉन्क्लेव का आयोजन किया गया है। इस कॉन्क्लेव से केवल जबलपुर ही नहीं बल्कि पूरे महाकौशल क्षेत्र में निवेशकों की सहभागिता से विकास के द्वार खुलेंगे।

गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम
भोपाल (डीएनएन)।
करीब दो दशक के दौरान औद्योगिक निवेश के क्षेत्र में जितनी चर्चा मप्र की हो रही है, उतनी शायद ही किसी राज्य की हो। इसका असर यह देखने को मिल रहा है कि प्रदेश में तेजी से औद्योगिक विकास भी हुआ है। लेकिन यह औद्योगिक विकास कुछ क्षेत्रों तक ही सीमित रहा। ऐसे में प्रदेश में औद्योगिक विकास की असंतुलित तस्वीर देखने को मिल रही है। लेकिन अब मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने प्रदेशभर में एक समान औद्योगिक विकास के लिए रीजनल इंडस्ट्री कॉन्क्लेव का फॉर्मूला बनाया है। पहला रीजनल इंडस्ट्री कॉन्क्लेव उज्जैन में आयोजित हो चुका है। अब दूसरा रीजनल इंडस्ट्री कॉन्क्लेव 20 जुलाई को जबलपुर में आयोजित होने जा रहा है। रीजनल इंडस्ट्री कॉन्क्लेव की तैयारियां जोर-शोर से जारी हैं। कॉन्क्लेव में अधिक से अधिक निवेशक आएं ताकि जबलपुर संभाग और आसपास के क्षेत्रों का विकास तेज गति से हो इसके लिए हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं। एमपीआईडीसी की कार्यकारी संचालक सृष्टि प्रजापति ने कहा कि एमपीआईडीसी द्वारा 20 जुलाई को नेताजी सुभाषचन्द्र बोस कल्चरल एंड इनफॉर्मेशन सेंटर में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की अध्यक्षता में रीजनल इंडस्ट्री कॉन्क्लेव का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें डिफेंस, मिनरल्स, एग्रीकल्चर, टेक्सटाइल, एग्रोफूड सहित विभिन्न उद्योगों को बढ़ावा देने एवं उनके उत्थान के लिए महत्वपूर्ण प्रयास किए जाएंगे। औद्योगिक विकास होने से क्षेत्र के आर्थिक विकास में गति परिलक्षित होने लगेगी।
जबलपुर में होने वाले क्षेत्रीय उद्योग सम्मेलन के लिए राज्य सरकार बड़े उद्योगों को सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों से जोडऩे का लक्ष्य लेकर चल रही है, ताकि सहायक इकाइयों को बढ़ावा दिया जा सके और क्षेत्र में विभिन्न क्षेत्रों के लिए विक्रेता आधार का विस्तार किया जा सके। रक्षा, खाद्य प्रसंस्करण, कपड़ा और खनिजों सहित अन्य प्रमुख फोकस क्षेत्रों में निवेश को आकर्षित करने के उद्देश्य से उद्योग विभाग सम्मेलन के लिए शीर्ष उद्योगों को जोडऩे की कोशिश कर रहा है। उद्योग विभाग के अधिकारियों ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि सरकार का ध्यान अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधियों को आमंत्रित करने पर नहीं बल्कि महाकौशल क्षेत्र में निवेशकों को आकर्षित करने और एमएसएमई के लिए एक मंच तैयार करने पर है। नोडल मध्य प्रदेश औद्योगिक विकास निगम (एमपीआईडीसी) ने उद्योगपतियों और संभावित निवेशकों को निमंत्रण देना शुरू कर दिया है। एमपीआईडीसी के अधिकारियों ने बताया कि क्षेत्रीय उद्योग सम्मेलन का दूसरा संस्करण 20 जुलाई को जबलपुर में आयोजित किया जाएगा। हमने सम्मेलन के लिए उद्योगों और संभावित निवेशकों को आमंत्रित करना शुरू कर दिया है। चूंकि यह एक क्षेत्रीय सम्मेलन है, इसलिए इसका उद्देश्य स्थानीय उद्योगों को सहायता प्रदान करना और उनके और बड़े खिलाडिय़ों के बीच संबंध स्थापित करना है। स्थानीय उद्योगों को मजबूत करने से क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा और रोजगार के अवसर पैदा होंगे। रक्षा, कृषि आधारित उद्योग, कपड़ा, खनिज और कृषि जबलपुर में उद्योग सम्मेलन के मुख्य फोकस क्षेत्र हैं। एमपीआईडीसी के पास जबलपुर में 15 औद्योगिक क्षेत्र हैं, जिनमें पंधुरना जिले का बोरगांव, फूड पार्कऔर मनेरी औद्योगिक क्षेत्र शामिल हैं। एमपीआईडीसी जबलपुर की कार्यकारी निदेशक सृष्टि प्रजापति ने कहा कि हमारा लक्ष्य देश भर से जबलपुर क्षेत्र में निवेश आकर्षित करना है। हमारे पास 15 औद्योगिक क्षेत्र और प्रचुर मात्रा में भूमि बैंक है। हम जबलपुर में निवेश के अवसरों के बारे में निवेशकों को सूचित करने के लिए प्रस्तुतियां दे रहे हैं।

जबलपुर में मिलेगा उद्योगों को बढ़ावा
रीजनल इंडस्ट्री कॉन्क्लेव को लेकर जबलपुर उमरिया डूंगरिया इंडस्ट्रियल एरिया के कारोबारी के संगठन के अध्यक्ष मुनीष मिश्रा का कहना है कि जबलपुर में होने वाली यह इंडस्ट्रियल मीट बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि जबलपुर उद्योग के विकास के नजरिए से बहुत पीछे रह गया है। इसलिए इस इंडस्ट्रियल मीट की वजह से भारत के कई इलाकों से उद्योगपति जबलपुर आएंगे और जबलपुर में उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा। एमएसएमई योजना के तहत 10 करोड़ से लेकर 50 करोड़ रुपए तक का निवेश करके उद्योग स्थापित किया जा सकते हैं। इन उद्योगों की स्थापना के लिए सरकार की ओर से 40 प्रतिशत तक का अनुदान मिलता है। इसके साथ ही सरकार विकसित औद्योगिक इलाकों में जमीन भी उपलब्ध करवाती है। मप्र एमएसएमई विकास नीति 2021 में बनाई गई थी। इसमें समय-समय पर परिवर्तन किए जाते रहे हैं और ऐसी उम्मीद है कि जबलपुर में होने वाली इन्वेस्टर मीट में नई पॉलिसी में जो बदलाव किए गए हैं, उनके बारे में भी जानकारी दी जाएगी। एमएसएमई पॉलिसी में कई बदलाव की भी संभावना है। इनमें खासतौर पर राज्य सरकार बीमारू इकाइयों को पुनर्जीवित करने के लिए नई घोषणाएं कर सकती है। जबलपुर में कंप्यूटर और सॉफ्टवेयर आधारित उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए विशेष छूट देने की संभावना है, क्योंकि जबलपुर में एक बहुत बड़ा आईटी पार्क बनाया गया है। इस आईटी पार्क में अभी भी सैकड़ों उद्योगों को खोलने की जगह खाली पड़ी हुई है। इस इन्वेस्टर मीट में एमएसएमई के जरिए रेडीमेड गारमेंट मैन्युफैक्चरर्स को भी विशेष सुविधाओं की घोषणा हो सकती है। जिसमें जबलपुर में बनने वाले रेडीमेड गारमेंट्स को और विकसित कैसे किया जाए। इस पर भी चर्चा हो सकती है। इस मीट में देश के कई बड़े उद्योगपतियों को बुलाया जा सकता है।
महाकौशल में औद्योगिक निवेश के साथ युवाओं के लिए रोजगार के अवसर तलाशने में रीजनल इंडस्ट्री कान्क्लेव का अहम योगदन रहेगा। जबलपुर में एक दशक बाद हो रहे इस वृहद आयोजन में देशभर से उद्योगपतियों के शामिल होने की संभावना है। इसका आयोजन नेताजी सुभाषचंद्र बोस सांस्कृतिक एवं सूचना केंद्र घंटाघर में होगा। नवनिर्मित कॉन्क्लेव में यह पहला आयोजन होगा। मप्र इंडस्ट्रीयल डेवपलमेंट कारपोरेशन (एमपीआइडीसी) ने आयोजन की तैयारियां तेज कर दी हैं। इससे पहले वर्ष 2014 में संभागीय इन्वेस्टर्स समिट रखी गई थी। कॉन्क्लेव में जबलपुर संभाग में स्थापित, स्थापनाधीन एवं प्रस्तावित उद्योगों से संबंधित प्रमुख उद्योगपतियों, विभिन्न उद्योग संगठनों सहित 12 सौ निवेशकों की सहभागिता होगी। औद्योगिक दृष्टि से जबलपुर संभाग अब भी पिछड़ेपन का शिकार है। प्रदेश के सबसे पुराने शहरों में एक होने के बाद भी यह इंदौर और भोपाल से पिछड़ गया। इसी को ध्यान में रखकर जबलपुर में कॉन्क्लेव का आयोजन हो रहा है। महाकौशल में निवेश के लिए जबलपुर में होने जा रहे रीजनल इंडस्ट्री कान्क्लेव में 100 से अधिक वृहद एवं मध्यम स्तर के उद्योगों के उद्योगपतियों को आमंत्रित किया गया है। इसमें कृषि, खाद्य प्रसंस्करण, डेयरी उद्योग, पर्यटन, टैक्सटाइल्स एंड गारमेंट, कैमिकल, लॉजिस्टिक्स और रक्षा उत्पादन क्षेत्र पर विशेष फोकस किया जाएगा।

निवेशक सम्मेलन का बदला कलेवर
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की परिकल्पना पर निवेशक सम्मेलन का कलेवर अब बदल गया है। इसकी झलक उज्जैन में आयोजित पहले रीजनल इंडस्ट्री कॉन्क्लेव में भी देखने को मिली। मुख्यमंत्री ने उज्जैन में आयोजित दो दिवसीय इन्वेस्ट मप्र: रीजनल इंडस्ट्री कॉन्क्लेव के समापन समारोह के मौके पर कहा था कि वह बात कम करने, काम ज्यादा करने में विश्वास करते हैं। राज्य में उद्योग का यह प्रमुख कार्यक्रम 2007 में शुरू होने के बाद पहली बार औद्योगिक राजधानी इंदौर से बाहर हुआ। लेकिन यह एकमात्र बदलाव नहीं है। कई अन्य परिवर्तन भी किए गए हैं। संभवत: पहली बाद मुख्य सम्मेलन के साथ साथ शिलान्यास कार्यक्रम और फैक्टरियों के उद्घाटन भी किए गए हैं। इससे यह संदेश देने की कवायद की गई है कि उद्योग सम्मेलन केवल समझौतों पर हस्ताक्षर करने का कार्यक्रम नहीं है। मुख्यमंत्री ने राज्य में 283 उद्योग समूहों के लिए 508 हेक्टेयर भूमि के आवंटन पत्र भी जारी किए। इस कदम से 12,000 करोड़ रुपये से अधिक निवेश आने और 26,000 से ज्यादा लोगों को रोजगार मिलने का अनुमान है। यादव ने रिमोट से 61 इकाइयों का उद्घाटन किया, जिनमें 10,064 करोड़ रुपये निवेश हुए हैं और इनसे 17,000 से ज्यादा नई नौकरियों का सृजन हुआ है। इतना ही नहीं, सभी उद्घाटन और भूमि पूजन में स्थानीय विधायक भी वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से शामिल हुए, जो 20 से अधिक अलग-अलग स्थलों पर आयोजित कार्यक्रमों में मौजूद थे। यह उनके विधानसभा क्षेत्रों में लघु-उद्योग बैठकों को प्रतिबिंबित करता है। उनकी भागीदारी का उद्देश्य न केवल उन्हें स्वामित्व की भावना देना है बल्कि आगामी आम चुनावों के लिए तैयारी करना भी है। ऐसा इसलिए है क्योंकि जिला सम्मेलनों में स्थानीय भागीदारी होती है। राज्य के वित्त मंत्री और उप मुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा भी इस तरह की एक बैठक में राज्य के नीमच जिले में आयोजित बैठक में उपस्थित थे। वहीं जल संसाधन मंत्री तुलसी सिलावट एक अन्य जिले से इस कार्यक्रम में शामिल थे।
अगर आकार के हिसाब से देखें तो क्षेत्रीय निवेशक सम्मेलन बहुत छोटा था। दिसंबर 2022 में इंदौर में आयोजित सम्मेलन में तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने दावा किया था कि 2 दिन के आयोजन में राज्य में 15.42 लाख करोड़ रुपये का निवेश आया है, जिससे 29 लाख नौकरियों का सृजन होगा। इस बार मुख्यमंत्री ने कहा कि सम्मेलन ने राज्य में 1 लाख करोड़ रुपये का निवेश आकर्षित किया है। इसमें से सिर्फ अदाणी समूह ने 75,000 करोड़ रुपये निवेश का वादा किया है। क्षेत्रीय कॉन्क्लेव में हिस्सेदारों की संख्या भी पहले के वैश्विक निवेशक सम्मेलन की तुलना में कम रही। इसकी एक वजह यह भी हो सकती है कि यह क्षेत्रीय सम्मेलन था। यादव ने घोषणा की कि जबलपुर, ग्वालियर और रीवा जैसे शहरों में इसी तरह के अन्य क्षेत्रीय सम्मेलन कराए जाएंगे। एक और उल्लेखनीय बदलाव निवेश आकर्षित करने के अभियान में सामाजिक क्षेत्र की पहल को जोडऩा है। यादव ने दूर-दराज के गरीब मरीजों के लिए एयर एंबुलेंस सेवा की भी शुरुआत की, जिससे मरीजों को बड़े अस्पतालों में पहुंचाया जा सकेगा। उन्होंने जोर दिया कि उद्योग को सभी की बेहतरी के लिए काम करने की जरूरत है।

निवेश आकर्षित करने में मप्र अव्वल
अब पिछले डेढ दशक की औद्योगिक गतिविधियों का आकलन करें तो हम पाते हैं कि देश में निवेश को आकर्षित करने में मप्र अव्वल है। दरअसल, यह नए दौर का मप्र है। बीते 15 वर्षों में औद्योगिक निवेश के क्षेत्र में जितनी चर्चा मप्र की हो रही है, उतनी शायद ही किसी राज्य की हो। यही कारण है कि महाकाल की नगरी उज्जैन में हाल ही में हुए दो दिवसीय क्षेत्रीय उद्योग सम्मेलन में 10 हजार करोड़ रुपए के निवेश प्रस्ताव प्रदेश को प्राप्त हुए। यहां 12 देशों से आए उद्यमियों के साथ ही 3700 से अधिक उद्योगपति शामिल हुए। इस सम्मेलन के माध्यम से 17 हजार से ज्यादा रोजगार के अवसर उपलब्ध होने की राह भी आसान हुई। किसी भी राज्य में होने वाला निजी निवेश उसकी आर्थिक नीतियों का आईना माना जाता है। इसमें भी कोई संदेह नहीं है कि बीते पांच वर्षों में प्रदेश सरकार निवेशकों को अपने यहां आकर्षित करने में अन्य राज्यों की तुलना में आगे ही रही है। वित्त वर्ष 2018-19 में प्रदेशों में होने वाले विदेशी निवेश में मप्र की भागीदारी 1.6 प्रतिशत ही थी, लेकिन वित्त वर्ष 2022-23 में यह बढक़र पांच प्रतिशत से अधिक हो चुकी है। पर्याप्त लैंड बैंक और उद्योग हितैषी नीतियों के प्रचार का लाभ भी प्रदेश को मिल रहा है। अब आवश्यकता है नीतियों को उद्योगों के लिए और अधिक कारगर बनाने की। दो दशक पहले मध्य प्रदेश में निवेश का परिदृश्य अच्छा नहीं था। अधोसंरचनात्मक स्थिति खराब होने की वजह से औद्योगिक इकाइयां यहां आने के बजाय दूसरे राज्यों का रुख करती थीं। बीते वर्षों में प्रदेश को बीमारू राज्य की छवि से बाहर निकालने की दिशा में चरणबद्ध तरीके से कार्य हुआ। अच्छी सडक़ें, बेहतर लैंडबैंक, बिजली और पानी की उपलब्धता ने निवेशकों का ध्यान मध्य प्रदेश की ओर दोबारा आकर्षित किया। यहां होने वाले ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट जैसे आयोजनों में देश-दुनिया के बड़े उद्योगपतियों ने पहुंचकर प्रदेश के औद्योगिक वातावरण और अधोसंरचना का गहराई से अध्ययन किया। निश्चित ही ये प्रयास प्रदेश के विकास की तस्वीर में बदलाव लाने में सफल साबित हुए और प्रदेश का औद्योगिक चेहरा बदलने लगा। इन सबके बावजूद तंत्र की असली परीक्षा निवेश करार के धरातल पर उतरने के बाद ही शुरू होती है। उद्योगों के लिए तीन वर्ष तक अनुमति की आवश्यकता नहीं, पोर्टल पर ही अपनी समस्याओं का समाधान और सिंगल विंडो जैसी सुविधाएं व्यवहार में पूरी तरह लागू नहीं हो पाईं। एक के बाद एक कई विंडो से गुजरने के बाद ही उद्योगपति लक्षित स्थल तक पहुंच पाते हैं।
मप्र के औद्योगिक परिदृश्य की बड़ी चुनौती नए औद्योगिक क्षेत्र विकसित करना भी है। प्रदेश की बड़ी आबादी ग्रामीण इलाकों में रहती है। यहां अधोसंरचनात्मक ढांचे की स्थिति उतनी बेहतर नहीं है, जितनी उद्योगों को चाहिए। यही कारण है कि स्थापित औद्योगिक क्षेत्रों में ही उद्योगपति जाना चाहते हैं, लेकिन इन क्षेत्रों की अपनी सीमा है। चाहे इंदौर के पास पीथमपुर हो या देवास का औद्योगिक क्षेत्र हो या फिर भोपाल का गोविंदपुरा। इन औद्योगिक क्षेत्रों के आसपास आवासीय क्षेत्र तेजी से विकसित होते चले गए। फलस्वरूप औद्योगिक क्षेत्रों के विस्तार की गुंजाइश यहां नहीं बची। उधर पहले से स्थापित इन क्षेत्रों में बेहतर संपर्क और संसाधन होने से बाहर से आने वाले उद्योग इसी क्षेत्र को प्राथमिकता देते हैं। हालांकि सरकार ने इस समस्या को देखते हुए नए औद्योगिक क्षेत्र और क्लस्टर विकसित करना शुरू तो किए हैं, लेकिन इनकी गति धीमी होने से ये प्रभावी नहीं हो पाए हैं। प्रदेश की औद्योगिक तस्वीर का एक पहलू सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) भी हैं। अकेले एमएसएमई के तहत ही प्रदेश में पौने दस लाख से अधिक उद्योग पंजीकृत हैं। इनकी पीड़ा यही है कि समिट जैसे आयोजनों के माध्यम से बड़े उद्योगों के लिए तो रेड कारपेट बिछा दिया जाता है, लेकिन छोटे उद्योगों की समस्याओं पर ध्यान नहीं जाता है। शहरी क्षेत्रों के पास की औद्योगिक जमीनें बड़े उद्योग ले लेते हैं और छोटे उद्योगों के लिए दूरदराज के क्षेत्रों में जमीन मुहैया करवा दी जाती हैं। वहां आवागमन और अधोसंरचना विकसित करने का खर्च ही इतना अधिक होता है कि छोटे उद्योगों के लिए प्रतिस्पर्धा में बने रहना कठिन हो जाता है। सरकार की अनुदान योजनाएं भी छोटे उद्योग और एमएसएमई के लिए कड़ी हैं। इसे अधिक लचीला बनाने की मांग इस क्षेत्र के उद्योगपति लंबे समय से कर रहे हैं। प्रदेश में निवेश कर चुके उद्योगपतियों के अलावा स्थानीय उद्योगपतियों की यह पीड़ा भी है कि उन्हें अन्य राज्यों की तुलना में यहां महंगी बिजली मिलती है। औद्योगिक इकाई के लिए नया बिजली संयोजन लेने की प्रक्रिया भी काफी जटिल है। इसी तरह प्रदेश में एयर क्वालिटी इंडेक्स बेहतर करने के लिए उद्योगों में जीवाश्म ईंधन के उपयोग पर तो रोक लगा दी गई, लेकिन इसके बदले में दी जा रही पीएनजी पर टैक्स की दर मध्य प्रदेश में सबसे अधिक है। पीएनजी पर महाराष्ट्र में चार प्रतिशत वैट (टैक्स) लगता है तो मध्य प्रदेश में पीएनजी पर सरकार 13 प्रतिशत वैट वसूल रही है।

बदला मप्र औद्योगिक परिदृश्य
उद्योगों के लिए आवश्यक सडक़, बिजली, पानी, और अधोसंरचना सहित सुशासन के हर पैमाने में मप्र निवेशकों के लिए पहली पसंद बन रहा है। किसी समय बीमारू के नाम से बदनाम मप्र अब विकासशील राज्य की तरफ बढ़ गया है। यहां के उद्योग मित्र माहौल का ही परिणाम है कि पिछले 10 वर्षों में यहां तीन लाख करोड़ के उद्योग धंधे लगे और दो लाख युवाओं को रोजगार मिला। औद्योगिक घरानों का भरोसा जीतने के लिए राज्य सरकार के प्रयासों को लगातार सफलता मिल रही है। सरकार ने सिंगल विंडो सिस्टम, बिना अनुमति उद्योग की स्थापना सहित जो वादे उद्योग जगत से किए हैं, उन्हें धरातल पर उतारा जा रहा है। हालांकि, अब भी कुछ कमियां हैं, जैसे उद्योगों की स्थापना से जुड़े विभागों के अधिकारियों की कार्य संस्कृति में सुधार लाना पड़ेगा। ऐसा हुआ तो मप्र देश के उन अग्रणी राज्यों में शामिल हो जाएगा, जहां सर्वाधिक निवेश होता है। कम लागत और बड़ा काम। यही वो तरीका है जो अर्थव्यवस्था को गति देकर मप्र की तस्वीर बदल सकता है। सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) का विस्तार सर्वाधिक रोजगार उपलब्ध कराने का माध्यम बन सकता है। इसके लिए आवश्यक है कि सरकार इसे प्राथमिकता में ले और वो सभी सुविधाएं उपलब्ध कराए जो छोटे उद्योगों के लिए वातावरण बनाने का काम करें। सरकार भी इसी दिशा में आगे बढ़ रही है। 194 औद्योगिक क्षेत्र केवल एमएसएमई के लिए बनाए गए हैं और प्रदेश के एमएसएमई सेक्टर में क्लस्टर बनाए गए हैं। सरकार के अनुसार तीन लाख 54 हजार एमएसएमई इकाइयों को पंजीकृत किया है। इनमें 18।33 लाख नौकरियां उत्पन्न करने की क्षमता है। इसके साथ-साथ ग्रामीण कुटीर उद्योग पर भी फोकस करना होगा। स्थानीय स्तर पर इसको लेकर काफी संभावनाएं भी हैं। मप्र में 10 साल में 30 लाख 13 हजार 41।607 करोड़ रुपये के 13 हजार 388 निवेश प्रस्ताव आए। इनमें तीन लाख 47 हजार 891 करोड़ रुपये के 762 पूंजी निवेश हुए हैं। इन पूंजी निवेश से प्रदेश में दो लाख सात हजार 49 बेरोजगार को रोजगार मिला है। इसी तरह वर्ष 2007 से अक्टूबर 2016 तक आयोजित इन्वेस्टर्स समिट के आयोजन पर 50।84 करोड़ रुपये व्यय किए गए और 366 औद्योगिक इकाइयों को 1224 करोड़ रुपये की अनुदान राशि दी गई। मप्र से अधिकांश उत्पादों को जीआई टैग दिलाने के भी प्रयास किए जा रहे हैं। इसमें आदिवासियों की पारंपरिक औषधियों, खाद्यान्न और उनकी कलात्मक वस्तुओं को प्राथमिकता दी जाएगी। जीआई टैग सबसे अधिक दक्षिण भारत के हैं। मप्र सरकार का प्रयास है कि प्रदेश के छोटे से छोटे उत्पाद को जीआई टैग मिले। वर्तमान में मप्र में 21 उत्पादों को जीआई टैग मिला है। मप्र के एक जिला एक उत्पाद (ओडीओपी) की ब्रांडिंग की जा रही है। इसके लिए अलग से एक सेल गठित किया गया है।
अगर बात जबलपुर की करें तो जबलपुर जिले के औद्योगिक क्षेत्रों में अब निवेशकों का रुझान बढ़ा है। औद्योगिक क्षेत्रों में स्थापित होने वाले ज्यादातर उद्योग फूड प्रोसेसिंग से जुड़े हैं। निवेश के मामले में जबलपुर उद्यमियों के लिए पसंदीदा जगह बनता जा रहा है। उद्योगों के लिए जो सुविधाएं हैं, आमतौर पर वे दूसरी जगह कम मिलती हैं। यहां बिजली और पानी भरपूर मात्रा में उपलब्ध है। वहीं सस्ता श्रम और औद्योगिक शांति भी है। इसलिए पहले की तुलना में ज्यादा निवेशक यहां आए हैं। अभी औद्योगिक क्षेत्र उमरिया-डुंगरिया और मनेरी में बड़ा निवेश हो रहा है। स्थापित होने वाले सभी छोटे एवं बड़े उद्योगों में बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार भी मिलेगा। खाद्य पदार्थ बनाने वाले उद्यमियों की संख्या ज्यादा है। इसमें राइस मिल, जूस, कोल्ड ड्रिंक जैसी इकाइयां स्थापित होंगी। इसी प्रकार खनिज, पाइप जैसी इकाइयों में भी लोगों को रोजगार मिलेगा। खास बात यह है कि बीते दो साल में निवेश की जो गति थी, उसमें बड़ा सुधार आया है। निवेशक औद्योगिक क्षेत्रों में भूखंडों की बुकिंग कर रहे हैं। इसी प्रकार औद्योगिक क्षेत्र के बाहर भी निवेश बढ़ा है। उद्योगपति निजी जमीन खरीदकर उन जगहों पर अपनी इंडस्ट्री लगाने की तैयारी कर रहे हैं। मप्र इंडस्ट्रीयल डेवलपमेंट कारपोरेशन के अंतर्गत उमरिया-डुंगरिया औद्योगिक क्षेत्र में इस साल ज्यादा निवेश आया है। यहां 13 हेक्टेयर क्षेत्रफल में 19 उद्यमियों ने निवेश किया है। इन उद्योगों में 271 करोड़ रुपए का निवेश प्रस्तावित है। वहीं 450 लोगों को प्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिल सकेगा। मनेरी औद्योगिक क्षेत्र में 12 उद्यमियों ने हाल में निवेश किया है। वे 11 हेक्टेयर क्षेत्र में उद्योग लगा रहे हैं। इनमें 500 लोगों को प्रत्यक्ष रोजगार मिल सकता है। वहीं हरगढ़ औद्योगिक क्षेत्र में भी 25 हेक्टेयर से ज्यादा जगह पर एथनॉल बनाने वाली कंपनियां निवेश कर रही हैं। इधर शहर में स्थित औद्योगिक क्षेत्रों में नए उद्योगों के लिए जगह नहीं है। वे पूरे भरे हुए हैं। अधारताल और रिछाई औद्योगिक क्षेत्र में 450 से अधिक इंडस्ट्री स्थापित हैं, अब यहां जगह खाली नहीं है। इसलिए जितने नए निवेशक हैं, वे उमरिया-डुंगरिया, हरगढ़ और मनेरी औद्योगिक क्षेत्रों में जा रहे हैं। जबलपुर. शहर के चारों तरफ बन रही 112 किमी लंबी रिंग रोड के किनारे नए औद्योगिक क्षेत्र विकसित किए जाएंगे। जिला प्रशासन ने उद्योग विभाग को जगह चिह्नित करने की जिम्मेदारी दी है। इसका लाभ शहर और ग्रामीण क्षेत्र में नए औद्योगिक निवेश के साथ रोजगार के रूप में मिलेगा। ज्यादा जोर उन क्षेत्रों में दिया जाएगा, जहां अभी तक एक भी औद्योगिक क्षेत्र नहीं हैं। प्रदेश की सबसे बड़ी रिंग रोड शहर के चारों तरफ बनाई जा रही है। यह जिले से गुजरने वाले राष्ट्रीय राजमार्गों को इंटर कनेक्ट करेगी। इससे शहर के अंदर भारी वाहनों का दबाव कम होगा। इसके लिए भू-अर्जन का काम तेज हो गया है। इसे और उपयोगी बनाने के लिए जिला व्यापार एवं उद्योग केंद्र इसके किनारे औद्योगिक क्षेत्र विकसित करेगा। इसके लिए विभाग को ऐसी सरकारी भूमि तलाशना है, जिसका रकबा 30 से 50 एकड़ तक रहेगा।

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