4 जून के बाद माफिया पर मार!

  • सरकार के निर्देश पर बन रही कुंडली

मप्र में सुशासन के लिए प्रतिबद्ध मोहन सरकार खनन माफिया के खिलाफ आचार संहिता समाप्त होते ही प्रदेशभर में अभियान चलाएगी। इसके लिए जिला कलेक्टरों को निर्देश दिया गया है कि वे अवैध खनन और इससे जुड़े लोगों की सूची बनाकर तैयार रखें। 4 जून के बाद जब सरकार फ्रीहैंड काम में जुटेगी और पहला प्रहार माफिया पर होगा।

विनोद कुमार उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम
भोपाल (डीएनएन)।
मप्र में नर्मदा, चंबल, सोन, केन, तवा सहित लगभग सभी नदियों में रेत का अवैध खनन माफिया, मनी, मसल, सफेदपोश और अफसरों के सिंडिकेट की सांठ गांठ से चल रहा है। सरकार अवैध खनन रोकने के लिए जो भी कदम उठाती है, उसका तोड़ निकालकर नदियों की कोख खोदी जा रही है। लेकिन प्रदेश में प्रशासनिक अमले पर माफिया के लगातार बढ़ रहे हमलों की घटनाओं को मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की राज्य सरकार ने बेहद गंभीरता से लिया है। शहडोल में पटवारी और पुलिस अधिकारी की हत्या के बाद प्रशासन ने माफिया पर हाल ही में बड़ी कार्रवाई की है। मुख्यमंत्री के निर्देश पर खनिज, पुलिस, वन, राजस्व विभाग के आला अधिकारी शहडोल पहुंचे और कार्रवाई को अंजाम दिया। इसी तर्ज पर अब अवैध उत्खनन के लिए बदनाम दूसरे जिलों में भी कार्रवाई की तैयारी है। खनिज विभाग ने माफिया पर कार्रवाई का पूरा प्लान तैयार कर लिया है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव से हरी झंडी मिलते ही प्रशासनिक टीम माफिया पर टूट पड़ेगी। खनिज विभाग ने प्रदेश में अवैध उत्खनन को लेकर बदनाम जिलों की सूची तैयार की है। जिलों में जिन विशेष स्थान, रूट से अवैध उत्खनन होता है। उसका पूरा ब्यौरा तैयार किया है। इसके अलावा प्रमुख नदियों के अलावा स्थानीय नदियों से हो रहे अवैध उत्खनन को रोकने का भी प्लान बनाया है।
खनिज विभाग बेहद गोपनीय तौर पर माफिया के खिलाफ इस कार्रवाई को अंजाम देने की तैयारी में है। इसके लिए बाकायदा माफिया का नाम भी सामने लाया जाएगा। प्रदेश में अवैध उत्खनन के लिए कई जिले बदनाम हैं। रेत के लिए अवैध उत्खनन के लिए नर्मदा नदी के किनारे वाले सभी जिले, जिनमें प्रमुख रूप से होशंगाबाद, सीहोर, नरसिंहपुर, जबलपुर, हरदा, डिंडौरी, मंडला और धार शामिल है। दूसरी नदियों से हो रहे अवैध उत्खनन को लेकर भी कार्रवाई का प्रस्ताव है। इसके अलावा ग्वालियर, शिवपुरी, मुरैना, भिंड, छतरपुर, शहडोल, उमरिया भी शामिल हैं। शिवपुरी, मुरैना, विदिशा में पत्थर फर्जी का अवैध उत्खनन भी हो रहा है। खनिज विभाग ने माफिया पर कार्रवाई का खाका तैयार कर लिया है। चूंकि माफिया के राजनीतिक संबंध भी हैं। ऐेसे में विभाग सीधे हाथ डालने से बच रहा है। मुख्यमंत्री की हरी झंडी मिलते ही प्रशासन माफिया पर टूट पड़ेगा। गौरतलब है कि गतदिनों शहडोल जिले में रेत माफियाओं ने ट्रैक्टर से कुचलकर एएसआई की हत्या कर दी। इससे पहले हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव से पहले भी रेत माफियाओं ने शहडोल में ही पटवारी की भी हत्या की थी। यह वारदात पांच महीने पहले 26 नवंबर 2023 की रात को अंजाम दी गई थी। इस दौरान रेत माफिया ने एक पटवारी को ट्रैक्टर से कुचल दिया था। यह पटवारी भी ब्यौहारी में ही पदस्थ थे। तत्कालीन कलेक्टर के आदेश पर पटवारी प्रशांत सिंह अवैध खनन और रेत परिवहन के खिलाफ कार्रवाई कर रहे थे। वे रात करीब 11 बजे सोन नदी के किनारे स्थित गोपालपुर गांव में कार्रवाई के लिए गए हुए थे। हाल ही में, पिछले महीने ग्वालियर में रेत और पत्थर माफियाओं ने ट्रेनी आईपीएस अफसर का मोबाइल ट्रैक किया था। माफियाओं की इस हरकत से पुलिस महकमे में खलबली मच गई थी। दरअसल, ग्वालियर में पदस्थ ट्रेनी आईपीएस लगातार खनन माफियाओं के खिलाफ कार्रवाई कर रही थीं। जिसके बाद इन खनन माफियाओं ने उनका मोबाइल ट्रैक किया और अफसर की लगातार लोकेशन का पता लगाया जा रहा था। बता दें कि मप्र में बीते कई वर्षों से रेत माफियाओं द्वारा यह खूनी खेल खेला जा रहा है। वारदात के बाद कुछ दिनों तक शासन और प्रशासन इन माफियाओं के खिलाफ छोटी-बड़ी कार्रवाई भी की जाती है। इसके साथ ही नेतागण तमाम तरह के दावे और बयानबाजी करते हैं, लेकिन इसके बाद फिर रेत माफिया एक्टिव हो जाते हैं और बड़ी वारतादों को अंजाम देते हैं। शासन और प्रशासन के के इस रवैये के बाद अब कई तरह के सवाल उठने लगे हैं।

रेत का खेल वर्षों से
मप्र में रेत का खेल वर्षों से चल रहा है और जब भी किसी अफसर या कर्मचारी ने इस खेल पर रोक लगाने की कोशिश की, उसकी जिंदगी तक पर शामत आ गई। कई अफसर ने तो रेत के अवैध खनन पर रोक लगाने के लिए जान तक को दांव पर लगाया है। राज्य का बड़ा इलाका खासकर जहां से नदियां होकर गुजरी हैं, वह रेत माफियाओं के लिए दुधारू गाय साबित हुई हैं। सरकार भले ही रेत के जरिए रॉयल्टी में होने वाली बढ़ोतरी का जिक्र कर अपनी पीठ थपथपाए। मगर माफिया ने नदियों को खोखला करने का काम किया है। नर्मदा नदी से लेकर बेतवा नदी, सिंध नदी सहित अनेक नदियां ऐसी हैं, जिन पर पोकलेन मशीन नजर आना आम बात है। कई माफिया तो ऐसे हैं, जो पनडुब्बी तक का रेत खनन के लिए सहारा लेते हैं। ऐसा नहीं है कि शासन-प्रशासन इन माफियाओं पर नकेल कसने की कोशिश न करता हो, मगर उनके आड़े राजनेता आ जाते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि यह खनन का काम या तो राजनेता से जुड़ा परिवार करता है या फिर उनके करीबी। ऐसे में छोटे कर्मचारियों से लेकर बड़े अफसर तक के लिए माफियाओं के खिलाफ कार्रवाई आसान नहीं होती। ऐसा इसलिए क्योंकि अफसरों की पोस्टिंग भी तो यही नेता कराते हैं।
राज्य में खनन माफियाओं के दुस्साहस का हम जिक्र करें तो अभी हाल ही में शहडोल जिले में खनन रोकने गए पटवारी प्रसन्न सिंह बघेल को अपनी जान तक देनी पड़ गई। ऐसा नहीं है कि यह पहली बार हो, मार्च 2012 में तो मुरैना में आईपीएस अधिकारी नरेंद्र कुमार सिंह की भी माफियाओं ने हत्या कर दी थी। बात जून 2015 की करें तो बालाघाट में रेत खनन माफियाओं ने एक पत्रकार का अपहरण किया था और उसे जिंदा तक जला दिया था। इसी साल जून में शाजापुर में भी माइनिंग इंस्पेक्टर उसकी टीम के साथ मारपीट की गई थी। सितंबर 2018 में मुरैना के देवरी गांव में खनन माफिया ने वन विभाग के डिप्टी रेंजर पर ट्रैक्टर चढ़ाकर हत्या कर दी थी। मई 2022 में भी अशोक नगर में खनन माफिया ने अवैध खनन रोकने वाले वन कर्मियों पर डंडों से हमला किया था। यह तो गिनती की घटनाएं हैं जो चर्चाओं में रहीं, लेकिन ग्रामीण इलाकों में इस तरह की वारदातें होते रहना आम बात हो गई है। यह बात अलग है कि सत्ताधारी दल पर विपक्षी दल हमला करता है और जब सत्ताधारी दल बदल जाता है तो दूसरा दल उस पर हमला करने लगता है। मगर दोनों ही दलों से जुड़े लोगों का संरक्षण ऐसे माफियाओं को मिलता रहा है। उसी का नतीजा है कि वह दुस्साहसी हो गए हैं और सरकारी मशीनरी को कुचलने तक में हिचक नहीं दिखाते। मप्र प्रदेश के कई इलाके रेत माफियाओं के आतंक से प्रभावित हैं। इन इलाकों में सोन नदी से सटे शहडोल, रीवा, सीधी और सिंगरौली शामिल हैं। वहीं नर्मदा नदी के तट पर बसे जबलपुर, बैतूल, होशंगाबाद, खरगोन, खंडवा समेत कई जिलों में अवैध रेत उत्खनन का काम धड़ल्ले से चल रहा है। इन इलाकों के अलावा मप्र का उत्तरी क्षेत्र (ग्वालियर-चंबल क्षेत्र) भी अवैध रेत उत्खनन से प्रभावित है। यहां चंबल नदी से भारी मात्रा में रेत का अवैध परिवहन किया जाता है। इन जिलों में खुलेआम-धड़ल्ले से चल रहे अवैध रेत परिवहन को रोकने में नाकाम प्रशासन पर कई तरह के गंभीर आरोप लगते रहे हैं। खुले तौर पर चल रहे इस अवैध व्यापार में प्रशासन की सांठगांठ के आरोप भी लगे हैं। इन सब के बीच सवाल यह उठते हैं कि आखिर प्रशासन की शह के बिना इन इलाकों में कैसे अवैध रेत उत्खनन को अंजाम दिया जा सकता है?

खूनी-खेल की खुलेगी पोले
मप्र में रेत के अवैध खनन में बाधा डालने वालों पर जानलेवा हमला करने में माफिया देरी नहीं करता है। शहडोल में 4 मई की रात को रेत माफिया ने एएसआई महेंद्र बागरी की ट्रैक्टर से कुचलकर हत्या कर दी। इससे 6 महीने पहले पटवारी प्रसन्न सिंह को कुचलकर मार दिया था। खनन माफिया के खिलाफ प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करने वाले केवल ये दो मामले ही नहीं हैं, पिछले एक साल में माफिया और सरकारी महकमे के बीच मारपीट, धमकाने के 10 बड़े केस सामने आ चुके हैं। माफिया ने अवैध खनन रोकने गए एक तहसीलदार का हाथ तोड़ दिया था, जबकि वन अमले को दौड़ा-दौड़ा कर पीटा था। इसे लेकर पुलिस और प्रशासन के अधिकारी कहते हैं कि माफिया के खिलाफ लगातार कार्रवाई की जाती है। जब ऐसी घटनाएं होती हैं तो सख्त एक्शन भी लिया जाता है। इधर, स्थानीय लोगों का कहना है कि माफिया के खिलाफ पुलिस और प्रशासन की कार्रवाई प्रभावी नहीं है। जिसका नतीजा ये है कि शहडोल की सोन, बनास नदियों से रेत का अवैध खनन धड़ल्ले से जारी है। सोन नदी से निकलने वाली रेत की क्वालिटी और इसकी बाजार कीमत की वजह से भी यहां रेत के अवैध खनन का कारोबार फल-फूल रहा है। ऐसे में जब प्रशासन बाधा डालता है तो माफिया खूनी खेल खेलने में देरी नहीं करता है। लेकिन अब माफिया के खूनी खेल की पोल खुलेगी।
प्रशासनिक सूत्रों का कहना है कि सरकार के दिशा निर्देश पर जिला प्रशासन, खनिज और राजस्व विभाग अवैध खनन की कुंडली तैयार करेगा। साथ ही कुछ प्रमुख घटनाओं का आकलन भी किया जाएगा। ताकी पुलिस और प्रशासन की नाकामी की पोल खुल सके। गौरतलब है कि एएसआई महेंद्र बागरी की हत्या से दो दिन पहले ब्योहारी थाने से आठ किमी दूर रात में पुलिस और माइनिंग विभाग के अधिकारी जांच में जुटे थे। उसी वक्त अवैध रेत से भरी एक ट्रैक्टर ट्रॉली वहां से गुजरी। पुलिस और माइनिंग अधिकारियों ने ड्राइवर को रोका। ड्राइवर ने अपने मालिक को फोन कर बुलाया। वह जैसे ही मोटरसाइकिल लेकर पहुंचा, उसने अधिकारियों से पहले कोई कार्रवाई न करने की मिन्नतें कीं। जब अधिकारी नहीं माने तो गुस्से में उसने अपने ड्राइवर को कहा कि ट्रॉली खाली कर दे। सडक़ पर ही रेत फेंककर जाते-जाते ट्रैक्टर ट्रॉली के मालिक ने ड्राइवर से कहा- आगे से कोई ट्रैक्टर रोके तो उसे कुचलते हुए निकल जाना। इतना कहकर मालिक और ड्राइवर दोनों चले गए। हैरानी की बात ये है कि पुलिस ने ट्रैक्टर को जब्त नहीं किया जबकि ऐसे मामले में उसे ट्रैक्टर जब्त करना चाहिए था। साथ ही इस मामले की 24 घंटे तक एफआईआर ही दर्ज नहीं की। 24 घंटे बाद एफआईआर लिखी भी तो उसमें छोटी-मोटी धाराएं लगाईं। ट्रैक्टर मालिक ने जान से मारने की धमकी दी थी। एफआईआर में लिखित में तो इसका जिक्र था, लेकिन ऐसी किसी धारा के तहत अपराध दर्ज नहीं किया गया। एफआईआर लिखने के बाद पुलिस चुपचाप बैठ गई। दो दिन बाद जब एएसआई महेंद्र बागरी की कुचलकर हत्या कर दी गई, तब पुलिस जागी और उसने ट्रैक्टर मालिक को गिरफ्तार किया।

माफिया-प्रशासन के बीच टकराव
रेत के अवैध खनन को लेकर माफिया और प्रशासन के बीच लगातार टकराव होते रहते हैं। कुछ घटनाएं ऐसी हो जाती हैं जो चर्चा में आ जाती है। ऐसी ही एक घटना 2018 में सामने आई थी। वन विभाग के अमले को सूचना मिली थी कि संजय गांधी टाइगर रिजर्व क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले गोपालपुरा घाट से रेत का अवैध उत्खनन हो रहा था। जानकारी लगते ही टाइगर रिजर्व के कर्मचारी अवैध खनन को रोकने और माफिया के गुर्गों पर दबिश देने गोपालपुरा घाट पहुंचे। जैसे ही माफिया के गुर्गों को इस बात की जानकारी लगी, उन्होंने टीम पर लाठी-डंडों से हमला कर दिया। इस हमले में 6 कर्मचारी घायल हो गए थे। कुछ ने भागकर अपनी जान बचाई थी। वहीं 2019 में ब्योहारी के तहसीलदार, दो नायब तहसीलदार और 5 पटवारी सुखाड़ गांव में अवैध खनन रोकने गए थे। यहां खनन माफिया ने तहसीलदार और एक नायब तहसीलदार को कुचलने की कोशिश की। दोनों इस घटना में घायल हो गए थे। इसके बाद खनन माफिया ने सरिया, डंडा समेत तमाम उपलब्ध हथियारों से प्रशासन के पूरे अमले को दौड़ा-दौड़ा कर पीटा था। इतना ही नहीं, खनन माफिया ने सरकारी वाहनों में भी जमकर तोडफ़ोड़ की और राजस्व अमले द्वारा जब्त किए गए वाहनों को छुड़ा कर ले गए। इस दौरान तहसीलदार का हाथ भी टूट गया था। 2022 में संजय गांधी टाइगर रिजर्व की टीम को ब्योहारी के झिरियाघाट में रेत के अवैध खनन की जानकारी लगी। टीम ने खनन रोकने के लिए वहां एक अस्थाई कैंप लगा लिया। खनन माफिया के लोगों से ये बर्दाश्त नहीं हुआ। अप्रैल 2022 में उन्होंने कांच की बोतल में पेट्रोल भरकर कैंप में कई पेट्रोल बम फेंके। इससे कैंप में आग भडक़ गई। अधिकारी-कर्मचारी वहां से अपनी जान बचाकर भागे थे। कैंप पूरी तरह ध्वस्त हो गया था। अप्रैल में हुई इस घटना के कुछ महीने बाद संजय गांधी टाइगर रिजर्व के अधिकारियों ने झिरिया घाट पर रेत के अवैध खनन को रोकने के लिए एक बार फिर अस्थाई कैंप बनाया। जून के महीने में खनन माफियाओं ने फिर कैंप में आग लगा दी। इसके साथ ही टीम के वाहनों में तोडफ़ोड़ भी की थी। आगे से कर्मचारी ये कैंप न लगाए, इसके लिए उनके साथ मारपीट भी की गई थी। इस हमले में कई कर्मचारी घायल भी हुए थे।
अक्टूबर 2023 में रेत माफिया के लोगों ने ब्योहारी के सुखाड़ गांव में सेना के एक जवान के साथ मारपीट की थी। उसका मोबाइल भी तोड़ दिया था। पीडि़त जवान राजभान तिवारी ने मारपीट के अगले दिन पुलिस में शिकायत दर्ज की थी। दरअसल, जवान राजभान तिवारी छुट्टियां मनाने घर आए थे। वे गांव में अपनी जमीन को देखने गए। इसी दौरान उन्होंने देखा कि खनन माफिया उनके जमीन की मिट्टी हटाकर वहां से अवैध तरीके से रेत निकाल रहे हैं। इसका उन्होंने विरोध किया था। नवंबर 2023 में खनन माफिया के ड्राइवर ने रेत से भरे ट्रैक्टर से पटवारी को कुचल दिया था। ये घटना उसी क्षेत्र में हुई थी, जहां एक बार पहले तहसीलदार का हाथ तोड़ा गया था। दरअसल, पटवारी प्रसन्न सिंह अपने तीन साथियों के साथ गोपालपुर में रेत के अवैध खनन को रोकने गए थे। जैसे ही वे वहां पहुंचे तो देखा कि रेत खनन जारी है। पटवारी ने एक ट्रैक्टर को रोकने की कोशिश की लेकिन ड्राइवर उन्हें कुचलते हुए फरार हो गया। शहडोल के गोहपारू थाना क्षेत्र के बरेली गांव में अवैध खनन की सूचना पर जिला खनिज अधिकारी देवेंद्र पटले अपनी टीम के साथ पहुंचे थे। उनके साथ होम गार्ड के 2 सैनिक भी थे। कार्रवाई के दौरान उन्होंने एक ट्रैक्टर को रोका, जिसके बाद माफिया भडक़ उठा। उन्होंने अधिकारियों पर हमला करते हुए सरकारी वाहन में तोडफ़ोड़ की और ट्रैक्टर छुड़ाकर भाग गए। घटना की एफआईआर भी दर्ज हुई थी। 4 मई की रात ब्योहारी थाने में पदस्थ एएसआई महेंद्र बागरी अपने 2 साथियों के साथ एक वारंटी को गिरफ्तार करने बरौली गांव जा रहे थे। इसी बीच उन्हें रेत से लोड अवैध ट्रैक्टर गुजरता दिखाई दिया। उन्होंने उस ट्रैक्टर को रोकने की कोशिश की। ड्राइवर ने ट्रैक्टर को एएसआई के ऊपर ही चढ़ा दिया और कूदकर भाग गया। एएसआई की मौके पर ही मौत हो गई। आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया है।

माफिया ने मोड़ दी नदी की धारा
प्रदेश में रेत का अवैध खनन इतनी दमदारी से हो रहा है कि माफिया नदी की धारा तक को मोड़ दे रहे हैं। शहडोल जिले चौकाने वाला मामला सामने आया है। शहडोल की सबसे बड़ी खदान ब्यौहारी से मानपुर रोड पर लगभग 20 किमी दूर पोड़ी कला गांव में है। इस खदान का ठेका सहकार ग्लोबल कंपनी के पास है। अवैध खनन की वजह से सोन नदी की धारा की दिशा ही बदल चुकी है। एनजीटी का नियम है कि नदी के भीतर से रेत खनन नहीं किया जा सकता, लेकिन यहां इस नियम की धज्जियां उड़ती नजर आई। पोड़ी के अलावा दूसरी खदानों में भी नदी के भीतर से ही रेत निकाली जा रही है। इस मामले में कलेक्टर का कहना है कि जहां अवैध खनन की सूचना मिलती है वहां कार्रवाई की जाती है। शहडोल से ब्यौहारी की दूरी 90 किमी है। इसके बाद पौड़ी गांव आता है। यहां सोन नदी पर एक पुल बना है। पुल से रेत खनन नजर नहीं आता। पुल के नीचे से नदी की तरफ आगे जाने के बाद खदान के पास पहुंचते ही बोर्ड दिखाई देता है, जिसमें ठेकेदार की कंपनी, रकबा, खसरा नंबर और अवधि लिखी हुई है। गूगल अर्थ ऐप के जरिए पूरी खदान की सीमा लगभग 36 हैक्टेयर का बताया जा रहा है जबकि वहां लगे बोर्ड के मुताबिक खदान का खनन क्षेत्र सिर्फ 3.900 हैक्टेयर का है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के नियमों के मुताबिक रेत खदान से गीली रेत नहीं निकाली जा सकती। यानी नदी के भीतर खनन की इजाजत नहीं है। मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी के मुताबिक, नदी की बीच धार से रेत निकालना प्रतिबंधित है। रेत निकालने के लिए ठेका कंपनी को जिन शर्तों के साथ अनुमति दी जाती है, उनमें पहली शर्त यही है कि रेत का खनन पानी के अंदर से नहीं होगा। पानी वाले क्षेत्र में अधिकतम 3 मीटर की गहराई तक ही खनन किया जा सकता है। यदि ठेका कंपनी इसका उल्लंघन करती है तो उसका ठेका निरस्त कर एनजीटी में केस दायर किया जाता है।
ब्यौहारी में 4 मुख्य नदियां हैं- सोन, बनास, समधिन और झांपर। इन चारों नदियों में 35 मुख्य जगहों पर रेत का खनन होता है। हालांकि, स्थानीय लोगों की मानें तो इन नदियों पर वैध और अवैध मिलाकर करीब 80 खदानें हैं। यहां से हर दिन 500 गाडिय़ां निकलती हैं। एक भी ऐसी गाड़ी नहीं होती जो ओवरलोड न हो। सोन नदी की बात करें तो यहां 7 प्रमुख जगह हैं, जहां से रेत का खनन होता है उनमें गोपालपुर, झिरिया, पोड़ी जैसे प्रमुख स्थान हैं। वहीं, बनास नदी में 8 तो झांपर नदी में 6 और समधिन नदी में 10 प्रमुख घाट है जहां से रेत का खनन किया जाता है। ब्यौहारी की रेत खदानों से दो तरह के हाईवा लोड होकर दूसरे जिलों या राज्यों तक पहुंचते हैं। इनमें एक 10 टायर और दूसरा 12 टायर वाला हाईवा होता है। 10 टायर वाले हाईवा में 16 घनमीटर और 12 टायर वाले हाईवा में 20 घनमीटर रेत की रॉयल्टी काटकर रेत ले जाने का नियम है। ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए रेत ठेकेदार 10 टायर वाले हाईवा में 18 या 19 घनमीटर रेत लोड करते हैं। वहीं, 12 टायर वाले हाईवा में 20 घनमीटर की बजाय 25 से 27 घनमीटर रेत लोड की जाती है। इस तरह से 2 से 8 घनमीटर ज्यादा रेत भरी जा रही है। इससे दो नुकसान हैं- एक तरफ सरकार को रॉयल्टी कम मिल रही है तो दूसरी तरफ रेत की खुलेआम चोरी की जा रही है। एक 10 टायर वाले हाईवा में 16 घनमीटर रेत भरने की अनुमति है। खनिज विभाग 200 रु. प्रति घनमीटर के हिसाब से रॉयल्टी वसूल करता है। इस तरह से एक हाईवा के लिए 3200 रुपए रॉयल्टी सरकार को दी जाती है। हाईवा में 16 की बजाय 19 घनमीटर यानी 3 घनमीटर रेत ज्यादा भरी जाती है। इसके बदले खदान संचालक को 1100 रुपए प्रति घनमीटर के हिसाब से करीब 20 हजार रुपए दिए जाते हैं। अब हाईवा संचालक इसमें अपना 10 हजार का मुनाफा जोड़ता है। इस तरह से 19 घनमीटर रेत से भरा एक हाईवा बाजार में करीब 30 हजार रुपए में बिकता है। यानी एक हाईवा में 1100 रुपए प्रति घनमीटर के हिसाब से 3300 से 4000 रुपए की अतिरिक्त रेत होती है। अब खनिज विभाग के मुताबिक रोजाना 100 हाईवा खदानों से निकलते हैं इस तरह से 4 लाख रुपए दिन का और महीने में करीब 1 करोड़ रुपए से ज्यादा की रेत चोरी होती है।

ट्रांजिट पास का इस्तेमाल
मप्र में वैध रेत खदान के लिए ईटीपी यानी इलेक्ट्रॉनिक ट्रांजिट पास जनरेट होता है। जिस वाहन से रेत का परिवहन होता है उसकी पूरी डिटेल इसमें दर्ज होती है। इसमें वाहन का रूट और जिस जगह रेत ले जानी है उसकी दूरी और समय भी लिखा होता है। इस तय समय के भीतर वाहन चालक को रेत पहुंचाना होती है। यदि तय समय में वह रेत नहीं पहुंचा सका तो रेत को अवैध माना जाता है। विशेष परिस्थितियों यानी गाड़ी खराब होने या दुर्घटनाग्रस्त होने पर वाहन मालिक को इसकी सूचना खनिज विभाग को देनी होती है। पड़ताल में ये भी सामने आया कि एक ही ईटीपी का इस्तेमाल कर इस पर दो से तीन वाहनों की रेत को बेच दिया जाता है। मान लीजिए रेत से भरे हाईवा को ब्यौहारी से कटनी भेजना है, तो ईटीपी कटनी की बनाई जाती है। इतनी दूर जाने के बजाय एक हाईवा आसपास के इलाकों में कई चक्कर लगाकर रेत बेच देता है। यदि कोई अधिकारी गाड़ी रोकता है या पर्ची चेक करता है या हाईवा ड्राइवर से देरी की बात पूछता है, तो ड्राइवर ब्रेकडाउन का बहाना बनाकर वहां से निकल जाते हैं। खनन माफिया एक ओर जहां ओवरलोड रेत परिवहन करके राजस्व के साथ प्रधानमंत्री ग्राम सडक़ योजना में बनी सडक़ों को भी नुकसान पहुंचा रहे हैं। नियमों में साफ लिखा है कि उसकी सडक़ों पर 10 टन की क्षमता से ज्यादा वाले वाहन पूरी तरह से प्रतिबंधित है, लेकिन खदान से निकलने वाले हाईवा और डंपर 40 और 50 टन से ज्यादा रेत भरकर सडक़ों पर दिखाई देते हैं। यही वजह है कि सडक़ें कुछ दिनों बाद ही खस्ताहाल हो जाती है।
इन सभी मामलों में पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं की। 9 सितंबर 2023 को सोन नदी से रेत का अवैध खनन कर ले जा रहे एक हाइवा को खनिज विभाग ने पकड़ा था। इसके बाद 2 वाहनों में सवार होकर 10 से 12 लोग आए और हाइवा में लोड रेत को खाली कराया, फिर खनिज विभाग की टीम से वाहन को छुड़ाकर ले गए। खनिज विभाग के पास घटना से संबंधित सभी वीडियो भी थे। ड्राइवर का मोबाइल भी जब्त किया था। बावजूद इसके आज तक पुलिस हाइवा को नहीं पकड़ पाई है। शिकायत के बाद भी मामले में कोई कार्रवाई नहीं की जा सकी।
रेत के अवैध खनन और परिवहन को रोकने के लिए खनिज के साथ पुलिस और राजस्व विभाग की मुख्य जिम्मेदारी है। इनके अलावा वन और परिवहन विभाग भी वाहनों की जांच अपने क्षेत्र में कर सकते हैं। इसके बाद भी अवैध खनन और परिवहन का ये सिलसिला रुक नहीं रहा है। इसकी वजह है कि खनिज, पुलिस और राजस्व विभाग का आपस में तालमेल नहीं है। तीनों विभाग बिना एक-दूसरे को सूचना दिए खदानों पर कार्रवाई करने जाते हैं। जब कोई बड़ी घटना होती है, तब एक-दूसरे को जिम्मेदार बताते हैं। अधिकारी ये भी बयान देते हैं कि संयुक्त टीम बनाकर कार्रवाई की जाएगी। पुलिस और राजस्व विभाग के पास कार्रवाई के लिए बड़ा अमला है। वहीं, खनिज विभाग में मैदानी कार्रवाई के लिए एक जिला खनिज अधिकारी, एक निरीक्षक, एक सर्वेयर और 2 होमगार्ड हैं। होमगार्ड जवानों के पास कोई शस्त्र नहीं हैं।

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