हृदय प्रदेश को शिव ‘राज’ ही पसंद

शिव ‘राज’

मिशन 2023 के सेमीफाइनल में भाजपा अव्वल

2023 में सत्ता के लिए होने वाले विधानसभा चुनाव के पहले हुए सेमीफाइनल में मप्र की जनता ने पंचायत और निकाय चुनाव में भाजपा पर विश्वास जताकर यह संकेत दे दिया है कि देश के हृदय प्रदेश को शिव‘राज’ ही पसंद हैं। पंचायत चुनाव में भाजपा समर्थित प्रत्याशियों को जीत मिली है, वहीं नगरीय निकाय चुनावों में भी भाजपा के 90 प्रतिशत प्रत्याशी जीते हैं। हालांकि भाजपा 16 नगर निगमों में से 9 के ही महापौर पद जीत पाई है, लेकिन हर जगह भाजपा की ही परिषद बनेगी।

विनोद कुमार उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम
भोपाल (डीएनएन)।
इस बार के नगरीय निकाय चुनाव में भाजपा के सामने कांग्रेस के अलावा आम आदमी पार्टी, एआईएमआईएम, निर्दलीय चुनौती के रूप में खड़े थे, लेकिन मप्र के मतदाताओं ने सबको दरकिनार करते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के विकास कार्यों पर मुहर लगाते हुए यह संकेत दे दिया है कि मिशन 2023 में वह भाजपा के साथ है। हालांकि नगरीय निकाय चुनाव में 90 फीसदी जीत के बाद भी भाजपा के सामने यह चुनौती है कि वह चुनाव के दौरान जो खामियां आई हैं, उन्हें दूर किया जाए। वहीं कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती यह है कि उसके अस्तित्व के लिए एआईएमआईएम और आम आदमी पार्टी खतरा बनकर सामने आ रहे हैं। इन दोनों नई नवेली पार्टियों ने निकाय चुनाव में अपने जबर्दस्त धमक दिखाई है।
कांग्रेस ने नगरीय निकाय चुनाव में मतदाताओं का मन मोहने के वे तमाम जतन किए, जो भाजपा कर रही थी। इसके बावजूद चुनाव परिणाम का संदेश साफ है। प्रदेशवासियों को शिव ‘राज’ ही पसंद है। नगरीय निकायों में कार्यकाल खत्म होने से पिछले दो वर्षों से कोई जनप्रतिनिधि नहीं था, इसलिए चुनाव में एंटी इनकम्बेंसी जैसा कोई फैक्टर भी नहीं था। इस परिस्थिति में भाजपा अपनी मौजूदा, जबकि कांग्रेस अपनी पिछली राज्य सरकार केकामकाज पर चुनाव लड़ रही थी। इसी वजह से इसे मिशन-2023 का सेमीफाइनल भी कहा जा रहा था। मतदाताओं ने शिवराज सिंह सरकार के कामकाज पर अपनी पसंद की मुहर लगाकर कांग्रेस को मायूस कर दिया। हालांकि चुनावों में कुछ जगह हार से भाजपा को सबक भी मिला है। इसको लेकर सत्ता, संगठन और संघ सब तत्पर हो गए हैं और समीक्षा के बाद रणनीति बनाकर काम करने की कवायद में लग गए हैं।

मिशन 2023 में जुटेंगे सीएम
पंचायत और नगरीय निकाय चुनाव के बाद अब शिवराज सरकार मिशन 2023 की तैयारियों में जुटेगी। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान 15 अगस्त के बाद विभागीय समीक्षा की शुरुआत करेंगे। इसके लिए सभी विभागों से हितग्राहीमूलक योजनाओं की जानकारी मांगी गई है। साथ ही सितंबर 2023 तक पांच करोड़ रुपये या उससे अधिक राशि के शिलान्यास और लोकार्पण योग्य कामों की सूची भी मांगी गई है। समीक्षा में मंत्रियों के साथ विभागीय अधिकारी उपास्थित रहेंगे। प्रदेश में नवंबर-दिसंबर 2023 में विधानसभा चुनाव प्रस्तावित हैं। अक्टूबर के अंतिम सप्ताह में आचार संहिता प्रभावित हो सकती है। इसे देखते हुए सरकार ने अपने स्तर पर विधानसभा चुनाव की तैयारियां प्रारंभ कर दी हैं। इसके लिए मुख्यमंत्री 15 अगस्त के बाद विभागीय समीक्षा करेंगे। इसमें आत्मनिर्भर मध्य प्रदेश की कार्ययोजना की पूर्ति की स्थिति, हितग्राहीमूलक योजनाओं की प्रगति, लोक सेवा गारंटी कानून के अंतर्गत लाई जाने वाली सेवाओं में वृद्धि के प्रस्ताव, निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए किए जा रहे कार्य और अधोसंरचना विकास के कामों की समीक्षा की जाएगी। विभागों से सितंबर 2023 तक पांच करोड़ रुपये या उससे अधिक लागत के शिलान्यास और लोकार्पण योग्य कामों की सूची मांगी गई है ताकि कार्यक्रम तय किए जा सकें। इसके साथ ही सितंबर 2023 तक सिंगल क्लिक के माध्यम से एक बार में 50 करोड़ रुपये या इससे अधिक राशि के हितग्राहियों को हितलाभ वाली योजनाओं की जानकारी मांगी गई है। सूत्रों का कहना है कि बैठक के बाद प्रतिमाह के कार्यक्रम तय होंगे। यह अलग-अलग जिलों में आयोजित होंगे, जिनमें मुख्यमंत्री हिस्सा लेंगे। मुख्यमंत्री जल्द ही रोजगार से जुड़े कार्यक्रमों की समीक्षा भी करेंगे। मुख्यमंत्री युवा उद्यमी योजना के साथ शहरी और ग्रामीण पथ विक्रेता योजना के क्रियान्वयन पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। शासकीय विभागों में रिक्त पदों पर भर्ती की प्रक्रिया भी इसी वर्ष प्रारंभ हो जाएगी। इसके लिए सामान्य प्रशासन विभाग ने सभी विभागों से स्वीकृत, भरे और रिक्त पदों की जानकारी मांगी है। इसके आधार पर भर्ती के कार्यक्रम तय किए जाएंगे।
भाजपा 90 प्रतिशत तक चुनाव जीती
नगरीय निकाय चुनाव में भाजपा 16 नगर निगमों में से 9 में ही अपने महापौर प्रत्याशी को जिता पाई। लेकिन ओवरऑल भाजपा 90 प्रतिशत तक चुनाव जीती है। जहां कांग्रेस के महापौर है वहां भी भाजपा का बहुमत है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कहते हैं कि नगरीय निकाय और नगर परिषदों में हमने ऐतिहासिक जीत हासिल की है। जिस प्रकार भाजपा के कार्यकर्ताओं ने अथक मेहनत, केन्द्र और राज्य सरकार की योजनाएं नीचे स्तर तक पहुंची है और जनता ने जो विश्वास व्यक्त किया है, नगरीय निकाय में भाजपा की जीत जनता के विश्वास की जीत है। प्रदेश की जनता के हम आभारी है। हम संकल्प व्यक्त करते है कि जनता के विश्वास को टूटने नहीं देंगे। सबके साथ मिलकर बेहतर से बेहतर काम करेंगे और मध्यप्रदेश को और आगे ले जायेंगे। मुख्यमंत्री का कहना है कि निकाय चुनाव में भाजपा ने इतिहास रचा है। मैं वर्ष 1985 से पार्टी में काम कर रहा हूं। इतनी अच्छी सफलता पहले कभी नहीं मिली। उन्होंने जनता का आभार व्यक्त किया और चुनकर आए जनप्रतिनिधियों, भाजपा के पदाधिकारियों, विधायक-सांसद, कार्यकर्ताओं को बधाई दी। उन्होंने भरोसा दिलाया कि जनता के कल्याण और नगरों के विकास में सरकार कोई कसर नहीं छोड़ेगी।
मुख्यमंत्री का कहना है कि नगर निगम के परिणाम भाजपा के लिए संतोषजनक हैं। 16 में से भाजपा के नौ महापौर जीते हैं। एक में हमारी की कार्यकर्ता जीती हैं। जिन नगर निगमों में हमारे महापौर नहीं जीत पाए, वहां भी भाजपा के पार्षद ज्यादा हैं। कांग्रेस की जीत तो अधूरी है। नगर पालिका की बात करें तो 76 में से 65 में भाजपा अपना अध्यक्ष बनाने जा रही है और कांग्रेस ने सिर्फ 11 में सफलता पाई है। नगर परिषद में तो भाजपा ने कांग्रेस को पूरी तरह साफ कर दिया है। 255 परिषद में चुनाव हुआ है। इसमें से 185 में भाजपा को स्पष्ट बहुमत मिला। जबकि 46 में कांग्रेस से काफी आगे हैं। यानी 231 नगर परिषद में भाजपा को सफलता मिली है। वहीं कांग्रेस 24 में जीती है। मुख्यमंत्री ने वर्ष 2014 में संपन्न नगरीय निकाय चुनाव से तुलना करते हुए बताया कि इस बार हमें 30 से 32 प्रतिशत अधिक सफलता मिली है। उन्होंने बताया कि 2014 में 98 नगर पालिकाओं में चुनाव हुआ था। इसमें से 54 में भाजपा जीती थी, जो 55 प्रतिशत होता है। इस बार जीत का प्रतिशत 85 हो गया है। ऐसे ही 264 नगर परिषद के चुनाव में से भाजपा को 154 में सफलता मिली थी, जो 58.3 प्रतिशत होता है और इस बार 90 प्रतिशत में सफल हुए हैं। मुख्यमंत्री ने बताया कि रायसेन, राजगढ़, सागर, जबलपुर, सिवनी, देवास, सीहोर, नरसिंहपुर, रीवा, मुरैना जिलों की नगर परिषदों और विदिशा, सीहोर, सागर, नर्मदापुरम, नरसिंहपुर जिलों की नगर पालिकाओं में भाजपा का प्रदर्शन शतप्रतिशत रहा है।
ओवर ऑल भाजपा को फायदा
मध्य प्रदेश में 16 नगर निगमों के नतीजे आने के बाद भाजपा-कांग्रेस ने अपनी-अपनी जीत का दावे कर जश्न मनाया। देखा जाए, तो अगले साल यानि 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर रिजल्ट एकतरफा नहीं हैं। भाजपा को 7 निगमों में मेयर पद गंवाना पड़ा है, लेकिन एंटी इनकंबेंसी को ध्यान में रखते हुए उसका प्रदर्शन कमतर नहीं आंका जा सकता। उम्मीदवारों के चयन में चूक भाजपा पर भारी पड़ गई। जबलपुर में हारे उम्मीदवार डॉ. जितेंद्र जामदार ने 21 जुलाई को भोपाल में राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री शिवप्रकाश और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से मुलाकात की। ऐसे ही ग्वालियर में महापौर का चुनाव हारी सुमन शर्मा भी भोपाल में संगठन के नेताओं से मुलाकात की। माना जा रहा है कि हारे उम्मीदवारों को फीडबैक लेने के लिए तलब किया गया। नगर निगम में सीटों के आधार पर देखें, तो कांग्रेस का प्रदर्शन बेहतर हुआ है। उसने भाजपा के गढ़ ग्वालियर, जबलपुर और रीवा में सेंध लगा दी है, लेकिन इतना नहीं कि वह सवा साल बाद होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए निश्चिंत बैठ सके। निकाय चुनाव के नतीजों ने राज्य में भाजपा और कांग्रेस को बड़ा संदेश दे दिया है। भाजपा ने 7 नगर निगमों को इस बार खो दिया है। इनमें सबसे अहम ग्वालियर, रीवा और जबलपुर है। जहां कांग्रेस ने आश्चर्यजनक तरीके से भाजपा के गढ़ को ढहा दिया। यही वजह है कि इन नतीजों ने सरकार और संगठन को सोचने पर मजबूर कर दिया है। साथ ही, दो नए दलों आम आदमी पार्टी और ओवैसी की एआईएमआईएम की एंट्री भी दोनों मुख्य दलों लिए विधानसभा चुनाव के लिहाज से खतरे की घंटी है। जानकार कहते हैं कि निकाय चुनाव के नतीजों का सीधा असर 2023 के विधानसभा चुनाव में देखने को मिलेगा। आपको बताते हैं कि आने वाले मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में कितनी सीटों पर निकाय चुनाव का असर होगा। वहीं, कांग्रेस भाजपा के बड़े गढ़ में सेंधमारी कर 2023 की तैयारी में जुट गई है, लेकिन चुनाव नतीजों ने कांग्रेस को बड़ा मैसेज दिया है कि उसके तीनों विधायक मेयर का चुनाव हार गए हैं, जबकि पार्टी को 5 शहरों पर कब्जा दिलाने वाले महापौर साधारण कार्यकर्ता हैं।
16 में से केवल 5 नगर निगमों में कांग्रेस के मेयर प्रत्याशी जीते हैं। ये कांग्रेस के लिए अच्छे संकेत है कि पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ के गढ़ छिंदवाड़ा में कांग्रेस जीती है, लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के लोकसभा क्षेत्र भोपाल में पार्टी को हार मिली है। दिग्विजय के प्रभाव वाले राजगढ़ और ब्यावरा नगरपालिका के अलावा सुठालिया, माचलपुर, छापीहेड़ा, जीरापुर, खिलचीपुर नगर परिषद में कांग्रेस को हार का समाना करना पड़ा। इसके बाद भी कांग्रेस के लिए ये नतीजे पिछले चुनाव के मुकाबले कहीं बेहतर हैं। 5 नगर निगम में मेयर पद पर कब्जा करने के साथ उज्जैन और बुरहानपुर में भी उसने भाजपा को कड़ी चुनौती दी। सतना में की मामूली अंतर से हार हुई है क्योंकि बसपा से चुनावी मैदान में कांग्रेस का बागी उतर गया था। इसकी वजह सतना में भाजपा को फायदा हो गया। ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में दो केंद्रीय मंत्रियों के अलावा चंबल क्षेत्र से शिवराज कैबिनेट में 9 मंत्री हैं। इस लिहाज से भाजपा को नुकसान है। खासकर इसलिए भी कि करीब सवा दो साल पहले जब ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ कर भाजपा का दामन थामा था, तब कहा गया कि कांग्रेस के पास इस क्षेत्र में अब कोई चेहरा नहीं बचा। भाजपा अपने लिए चंबल क्षेत्र में वॉकओवर की उम्मीद कर रही थी, लेकिन कांग्रेस ने ग्वालियर- मुरैना जीत कर झटका दे दिया।
भाजपा को घर दुरुस्त करना होगा
ऐसा पहली बार होगा, जब निकाय चुनाव के ठीक एक बाद विधानसभा के चुनाव होंगे। निकाय चुनाव के नतीजे बताते हैं कि भले ही कांग्रेस की तुलना में भाजपा ने ज्यादा निकायों पर कब्जा किया है। बाबजूद इसके भाजपा को अपने घर को दुरुस्त करना होगा। ग्वालियर और रीवा जैसी जगहों पर पार्टी के पिछडऩे का बड़ा कारण नेताओं के बीच मतभेद रहा। कटनी और रीवा में उम्मीवारों के चयन में स्थानीय कार्यकर्ताओं व नेताओं की अनदेखी कर फैसला महंगा पड़ा गया। ग्वालियर में अंतिम समय तक उम्मीदवार को लेकर असमंजस की स्थिति रही। इस दौरान केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और स्थानीय भाजपा नेताओं के बीच टकराव देखने को मिला। नतीजे बताते हैं कि मालवा-निमाड़ और बुंदेलखंड में भाजपा का प्रभाव बरकरार है। सागर, रतलाम, उज्जैन, देवास और उज्जैन नगर निगम के अलावा नगर परिषद और नगर पालिकाओं में भाजपा का बहुमत है। यानी अभी ये इलाके भाजपा का गढ़ बने हुए हैं। यदि 2015 के चुनाव से तुलना करें तो ऑवर ऑल भाजपा को फायदा हुआ है। पिछले चुनाव में नगर निगम, नगर पालिका और नगर परिषदों में भाजपा के कुल 158 महापौर/ अध्यक्ष जीते थे। जबकि कांग्रेस के खाते में 75 निकाय आए थे। लेकिन 2022 के चुनाव में भाजपा 256 में कब्जा कर लिया है। यानी भाजपा को 98 सीटों का फायदा हुआ। इसी तरह 2015 में कांग्रेस को 75 सीटें मिली थी, लेकिन इस बार उसे 58 सीटों से ही संतोष करना पड़ा। यानी 17 सीटों का नुकसान।
उज्जैन और बुरहानपुर की जीत भाजपा के लिए जश्न से ज्यादा चिंतन देती दिखाई दे रही है। उज्जैन में जीत हाथ से फिसलते-फिसलते बची, तो बुरहानपुर में आंकड़ें बयां कर रहे हैं कि असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी की मौजूदगी बड़ी वजह है कमल खिलने की। इन सीटों सहित अपने गढ़ में हार को लेकर भाजपा को चिंतन करना होगा कि प्रत्याशी तय करने में चूक हुई या सांसद, विधायक, मंत्री सहित स्थानीय प्रतिनिधियों के प्रति जनता के आक्रोश ने अपेक्षित परिणाम नहीं दिए? इसे जबलपुर से समझा जा सकता है कि यहां कांग्रेस की जीत के पीछे पार्टी के राज्य सभा सदस्य विवेक तन्खा की स्वच्छ छवि ने भी भूमिका निभाई। लोगों की मदद करने के चलते कांग्रेस के लिए संघर्ष थोड़ा आसान हो गया। नगरीय निकायों के परिणामों ने भाजपा और कांग्रेस को जीत के जश्न के बजाय चिंतन के अवसर कहीं ज्यादा दिए हैं। आने वाले सियासी महासंग्राम के लिए समय कम बचा है। मतदाता चुनाव प्रचार का शोर थमने तक नहीं बोलता, बल्कि उसकी नाराजगी और खुशी परिणाम के रूप में सामने आते हैं। इसे समय रहते समझना जरूरी है। नए टिकट वितरण फार्मूले से भाजपा को नुकसान हुआ है। चंबल में कांग्रेस ने खुद को मजबूत साबित किया है। सिंधिया के बगैर कांग्रेस ने खुद को स्थापित किया है। भाजपा के मेयर कैंडिडेट हारे, लेकिन पार्षदों का बहुमत मिला है। कई मंत्रियों के इलाके में भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा है। इस तरह कुल मिलाकर भाजपा को पिछली बार के मुकाबले नुकसान हुआ है।

मतदाता के संकेतों के मायने
नगरीय निकाय चुनाव के पहले चरण के परिणाम जीत-हार से परे मतदाताओं के संदेश हैं या कहें भाजपा और कांग्रेस के लिए सबक। दोनों दल न नजरअंदाज कर सकते हैं, न हल्के में लेने की भूल करना चाहेंगे। विधानसभा चुनाव सवा साल, तो लोकसभा चुनाव दो साल से पहले ही होने हैं। पिछले कई चुनावों की तरह मतदाता इस बार भी खामोश रहा और परिणाम में उसने नाराजगी और सहमति दोनों जताए हैं। कमल नाथ के गढ़ छिंदवाड़ा में वर्षों बाद महापौर की कुर्सी पर कब्जे को कांग्रेस करिश्मा नहीं मान सकती, लेकिन भाजपा के गढ़ ग्वालियर और जबलपुर में उसकी सफलता ने जरूर चौंकाया है। ग्वालियर-चंबल का केंद्र ग्वालियर और महाकौशल क्षेत्र का केंद्र जबलपुर है, जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का स्थापना काल से ही ऐसा गढ़ रहा है, जिसने भाजपा को न केवल कई दिग्गज चेहरे दिए, बल्कि वर्षों तक इसे अभेद्य किला बनाए रखा। करीब 57 वर्षों में ग्वालियर में भाजपा की पराजय यदि चौंकाने वाली है, तो बड़ी वजह है यहां राजमाता विजया राजे सिंधिया के समय से अब तक पार्टी की गहरी जड़ें होने पर भी हार का सामना, वहीं क्षेत्र से नरेन्द्र सिंह तोमर और ज्योतिरादित्य सिंधिया के रूप में दो-दो केंद्रीय मंत्री भी हैं। ऐसे में ग्वालियर में हार महज आंकड़ों का खेल नहीं माना जा सकता।
जबलपुर से पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह चार बार के सांसद हैं। वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष सांसद विष्णु दत्त शर्मा का कर्म क्षेत्र रहा है, तो पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की शादी जबलपुर में ही हुई है। वर्षों से भाजपा का यहां खासा दबदबा रहा है, लेकिन पार्टी महापौर की सीट नहीं बचा पाई। इंदौर और भोपाल भाजपा के मजबूत गढ़ हैं। ऐसे में यहां जीत को बड़ी सफलता मानना शायद लाजमी न हो। इंदौर में मराठी वर्ग के बीच मजबूत पैठ इसे पार्टी के लिए सुरक्षित बनाती है, वहीं भोपाल में मतदान से ठीक पहले धार्मिक ध्रुवीकरण से भाजपा की राह आसान होती रही है। 11 नगर निगम के घोषित परिणामों में तीन कांग्रेस के खाते में जाना भाजपा के लिए चिंताजनक है, लेकिन कांग्रेस के लिए भी खुशनुमा नहीं माना जा सकता। कांग्रेस ने तीन विधायकों को मेयर की कुर्सी सौंपने इंदौर, सतना और उज्जैन में मतदाताओं के सामने भेजा था, लेकिन तीनों को खाली हाथ ही लौटना पड़ा है। या तो नागरिकों ने इन्हें महापौर के लिए उपयुक्त नहीं समझा या दूसरा अर्थ यह भी निकलता है कि यह चेहरे बतौर विधायक ही पसंद नहीं रहे। यह परिणाम कांग्रेस के लिए 2023 के विधानसभा चुनाव की चिंता बढ़ाते हैं, खासतौर पर जब सिंगरौली से आम आदमी पार्टी मध्य प्रदेश में दखल देती है। यहां मतदाताओं ने आप को मेयर की कुर्सी सौंपकर कांग्रेस और भाजपा के लिए संकेत दे दिए हैं।
नतीजों में छिपे हैं अहम संदेश
आंकड़ों के बजाय राजनैतिक महत्व को परिभाषित यदि करें तो कांग्रेस और भाजपा दोनों को बहुत कुछ सोचने, विचारने की ज़रूरत है। पहले भाजपा का जिक्र करें तो एमपी को सिर्फ 4 महानगरों में बांट कर ही देखा और समझा जाता है। इंदौर, भोपाल, ग्वालियर और जबलपुर। यहां भाजपा को सिर्फ दो में ही जीत मिली है। इंदौर और भोपाल। जबकि ग्वालियर और जबलपुर कांग्रेस के पास चली गई। ग्वालियर में कांग्रेस के पास एक भी बड़ा नेता ऐसा नहीं है, जिसकी राष्ट्रव्यापी तो छोडिय़े, प्रदेशव्यापी भी पहचान हो। उधर भाजपा के पास बहुतेरे देशव्यापी पहचान वाले नेता हैं। केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया, नरेंद्र सिंह तोमर, नरोत्तम मिश्रा, जयभान सिंह पवैया, प्रभात झा ये वो नाम हैं जो देश भर में पहचाने जाते हैं। इसके अलावा पांच मंत्री शिवराज सरकार के इसी इलाक़े से आते हैं। इसके बाद कांग्रेस का वहां से जीतकर आना बहुत कुछ सन्देश देता है। इसी तरह से जबलपुर से हालांकि शिवराज कैबिनेट में कोई मंत्री नहीं है लेकिन यह पूर्व प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह का इलाका है। राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा की ससुराल जबलपुर में ही है, फिर भी यहां कांग्रेस के उमीदवार का मेयर बनना भाजपा के लिए फिक्र की वजह हो सकती है। छिंदवाड़ा कमलनाथ का गढ़ कहा जाता है। लोकसभा चुनाव में प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी की लहर में भी एमपी की 29 में से सिर्फ यही एक सीट कांग्रेस जीत पाई थी। तो जाहिर है कि छिंदवाड़ा में कांग्रेस की जीत पर ज्यादा चर्चा लाजिम नहीं है।
अब बात कांग्रेस के लिहाज से करें तो ग्वालियर की जीत जिस व्यक्ति ने दिलाई वो यानी सतीश सिकरवार इतने लोकप्रिय है कि ख़ुद अपने पास हजारों वोटर लेके चलते है। वहां कांग्रेस संगठन की कोई बहुत बड़ी भूमिका नहीं थी। सतीश की पत्नी ही वहां से मेयर पद की दावेदार थीं। दूसरा, जहां भी लोगों का गुस्सा भाजपा से है, कांग्रेस उसका विकल्प क्यों नहीं बन पा रही है। सिंगरौली से आम आदमी पार्टी की उम्मीदवार रानी अग्रवाल सिर्फ इसी वज़ह से जीतीं कि जनता ने भाजपा का विकल्प कांग्रेस को नहीं समझा। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल भी उनके समर्थन में चुनाव प्रचार करने आए थे और ये काम कर गया। बुरहानपुर और जबलपुर में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी के कुछ पार्षद भी चुनाव जीते। ये साफ बता रहा है कि मुसलमानों को भी कांग्रेस में संभावना कम नजर आ रही है, वरना ये कांग्रेस का वोट बैंक थे मप्र में। बुरहानपुर यदि ओवैसी के कैंडिडेट नहीं जीतते तो शायद कांग्रेस वहां जीत जाती। एमपी में तकरीबन एक साल बाद विधानसभा चुनाव होने हैं। कांग्रेस और भाजपा दोनों को ही ये सोचना होगा कि जनता उनके विकल्प के तौर पर आप या ओवैसी की पार्टी की तरफ न खिंच जाए। वरना सूबे की सियासत का गणित ही बिगड़ जाएगा। पिछले विधानसभा चुनावों में भी किसी को स्पष्ट बहुमत नहीं था ऐसे में यदि दोनों प्रमुख दलों ने अभी से बहुत मेहनत नहीं की तो विकल्प के तौर पर कुछ दल स्थानीय स्तर पर तैयार हो रहे हैं। ये तय है कि इन दलों का प्रदेशव्यापी असर नहीं होगा लेकिन ये दोनों प्रमुख दलों का खेल जरूर बिगाड़ सकते हैं।

भाजपा की जीत का विवरण

  • 16 नगर निगम में से 9 नगर निगम भाजपा की विजयी हुई है। 5 नगर निगम में कांग्रेस, शेष में अन्य।
  • कांग्रेस 5 नगर निगमों में महापौर भले ही जीती हो लेकिन पार्षद हमारे ज्यादा जीते है। रीवा में 18 पार्षद भाजपा और 16 कांग्रेस, 11 अन्य। मुरैना में नगर निगम परिषद में बहुमत न भाजपा का है, न कांग्रेस का है। 14 भाजपा, 19 कांग्रेस एवं 14 सपा, बसपा, अन्य।
  • ग्वालियर में 66 में से 36 भाजपा और कांग्रेस के केवल 19 पार्षद जीते है।
  • जबलपुर में 79 में से 39 भाजपा और कांग्रेस के केवल 30 पार्षद जीते है।
  • सिंगरौली में 45 में से 23 भाजपा और कांग्रेस के केवल 13 पार्षद है।
  • कटनी नगर निगम के 45 वार्डों में से भाजपा के 27 व कांग्रेस, 15 व 3 अन्य पार्षद जीते है।
  • 76 नगर पालिका में 50 में भाजपा को स्पष्ट बहुमत, 15 में स्थिति अच्छी है। (कुल 65), कांग्रेस 76 नगर पालिका में से कुल 11 सीट जीत पायी है।
  • 255 नगर परिषद में से 185 में भाजपा को स्पष्ट बहुमत मिला है, 46 में हमारी स्थिति अच्छी है। कुल (231), कांग्रेस को 24 में जीत मिली है।
  • वर्ष 2014 में 98 नगर पालिकाओं के चुनाव में भाजपा 54 सीटों पर विजयी हुई थी, कुल 55 प्रतिशत, इस वर्ष 76 नगर पालिकाओं के चुनाव में भाजपा 65 सीटों पर अपना अध्यक्ष बनाने जा रही है, जीत का प्रतिशत 85 प्रतिशत रहा है।
  • वर्ष 2014 में 264 नगर परिषद के चुनाव में भाजपा 154 सीटों पर विजयी हुई थी। कुल 58 प्रतिशत, इस वर्ष 255 नगर परिषद के चुनाव में भाजपा 231 सीटों पर अपना अध्यक्ष बनाने जा रही है। जीत का प्रतिशत 90.58 प्रतिशत रहा है।
  • कटनी, रायसेन, राजगढ, सागर, जबलपुर, सिवनी, देवास, सीहोर, नरसिंहपुर, रीवा, मुरैना इन जिलों की नगर परिषदों में भाजपा का प्रदर्शन लगभग शत प्रतिशत रहा है।
  • विदिशा, छिंदवाडा, सीहोर, सागर, नर्मदापुरम, नरसिंहपुर इन पांच जिलों की नगर पालिकाओं में हम शत प्रतिशत जीते है।
  • छिंदवाडा जिले की तीनों नगर पालिकाओं (अमरवाडा, चौरई और परासिया) में भाजपा जीती है।
  • जबलपुर में 8 में से 6 नगर परिषद में भाजपा विजयी हुई है।
  • मुरैना में 5 में से 4 नगर परिषद में भाजपा विजयी हुई है।
  • रीवा में 12 में से 11 नगर परिषद में भाजपा विजयी हुई है।
  • ग्वालियर में सभी 5 नगर परिषदों में कांग्रेस की अपेक्षा भाजपा का प्रदर्शन बेहतर है।
  • कटनी में 3 नगर परिषद में से 3 में भाजपा विजयी हुई है।
  • 16 नगर निगम के 884 वार्डों में से 491 वार्डो में भाजपा विजयी रही। सिर्फ 274 स्थानों पर कांग्रेस और अन्य पर 109 पार्षद विजयी रहे।
  • 76 नगरपालिकाओं के 1795 वार्डों में से 975 वार्डों में भाजपा विजयी रही। 571 स्थानों पर कांग्रेस और 249 पर अन्य पार्षद विजयी रहे।
  • 255 नगर परिषदों के 3828 वार्डों में 2002 वार्डो में भाजपा विजयी रही। 1087 स्थानों पर कांग्रेस और 739 पर अन्य पार्षद विजयी रहे।

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