प्रदेश के 16 विभाग कैग की आपत्तियों पर लापरवाह, प्रतिवेदन में जताई गंभीर चिंता

कैग की आपत्तियों
  • कैग द्वारा जताई जाने वली चिंता, आपत्तियों और सुझावों तक को गंभीरता से नहीं लेते हैं…

भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। मध्यप्रदेश की अफसरशाही से न केवल आम आदमी और जनप्रतिनिधि ही परेशान है, बल्कि उनकी कार्यप्रणाली इतनी स्वछंद हो चुकी है कि वे अब तो भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक (कैग) द्वारा जताई जाने वाली चिंता, आपत्तियों और सुझावों तक को गंभीरता से नहीं लेते हैं। यही वजह है कि ए क बार फिर कैग को अपने प्रतिवेदन में इस पर गंभीरता से चिंता जतानी पड़ गई है।
इस प्रतिवेदन में बताया गया है कि प्रदेश सरकार के 16 विभाग तो ऐसे हैं जिनके मामले में कैग के नए प्रतिवेदन में एक बार फिर गंभीर चिंता जताई गई है। इसमें कहा गया है कि यह विभाग उसके प्रतिवेदनों को गंभीरता से ही नहीं ले रहे हैं। यह प्रतिवेदन बीते विधानसभा सत्र में सदन के पटल पर रखा गया है। इन विभागों के बारे में प्रतिवेदन में कहा गया है कि उनके द्वारा न तो कंडिकाओं को गंभीरता से लिया जाता है और न ही उसमें दी गई समय सीमा का ही उत्तर देने में पालन किया जाता है। इस प्रतिवेदन में साफ कहा गया है कि लेखा परीक्षा कडिंकाओं पर कार्रवाई के अभाव में गंभीर वित्तीय अनियमितताएं होने का खतरा बढ़ गया है। वर्ष 2021 के भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक का प्रतिवेदन में कहा गया है कि 16 विभागों से संबंधित 1492 निरीक्षण प्रतिवेदन और 10457 कंडिकाओं पर कार्रवाई ही नहीं की जा रही है। इसकी वजह से गंभीर वित्तीय अनियमितताओं के जारी रहने का खतरे की वजह से शासकीय प्रक्रिया में अतिरिक्त नियंत्रणों का कमजोर होना, सार्वजनिक वस्तुओं एवं सेवाओं का कुशल एवं प्रभारी वितरण न होने, धोखाधड़ी, भ्रष्टाचार और राजकोष को नुकसान होने की पूरी संभावना बनी हुई है। इस प्रतिवेदन के बाद शासन ने सभी विभागों से अपेक्षा की है कि कैग कि कंडिकाओं का उत्तर 6 सप्ताह के अंदर जरुर भेज दिए जाएं। इसके लिए सभी विभागों के प्रमुखों के अलावा उनके अधीनस्थ अफसरों को भी ताकीद किया गया था। इसके बाद भी इस प्रतिवेदन को अंतिम रूप देने की तिथि तक जल संसाधन विभाग की चार प्रारूप कडिंकाओं के उत्तर कैग को नहीं मिले।  
आर्थिक गतिविधियों पर रखता है पूरी नजर  
 नियंत्रक महालेखा परीक्षक शासकीय विभागों की आर्थिक गतिविधियों पर पूरी तरह से नजर रखने का काम करता है। उसके द्वारा विभागों की आर्थिक अनिमितताओं पर प्रतिवेदन तैयार कर शासन को भेजा जाता है। इसके लिए कैग फील्ड में जाकर ऑडिट करने के बाद  प्रतिवेदन तैयार करता है। इस रिपोर्ट को अंतिम रूप देने से पहले कैग द्वारा विभाग प्रमुखों से खंडन और स्पष्टीकरण मांग कर उनका पक्ष सुना जाता है। जब विभागीय उत्तर प्राप्त नहीं होते हैं या फिर वे स्वीकार करने योग्य नहीं होते हैं, तभी लेखा परीक्षा टिप्पणियों को निरीक्षण प्रतिवेदन या लेखा परीक्षा प्रतिवेदन में शामिल करता है।  कैग ने अपने प्रतिवेदन में यह भी कहा है कि ज्यादातर प्रकरणों में विभाग द्वारा संतोषजनक उत्तर नहीं दिए जाते हैं।
31 मार्च 2020 की यह है स्थिति
कैग के प्रतिवेदन में उल्लेख कंडिकाओं के मामलों में शासकीय विभाग कितनी गंभीरता दिखाते हैं इससे ही पता चल जाता है कि कई कंडिकाएं बीते पांच  सालों से अधिक समय से लंबित बनी हुई हैं। खास बात यह है कि इनकी संख्या भी हजारों में हैं। इसमें 5 वर्ष से अधिक समय से लंबित कंडिकाओं की संख्या ही 9612 है। इसी तरह से 3 से 5 वर्ष के बीच की 3909, 1 से 3 वर्ष के बीच की 8063 कंडिकांए लंबित बनी हुई हैं। अगर इन्हें वर्ष वार देख जाए तो इनमें 2016-17 की 3020, 17-18 की 3539,18-19 की 2582 एवं 19-20 की 1890 कंडीकाएं लंबित बनी हुई हैं।
यह हैं बेहद लापरवाह विभाग  
कैग की रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश सरकार के जो विभाग गंभीर लापरवाह पाए गए हैं, उनमें लोक निर्माण , जल संसाधन, किसान कल्याण एवं कृषि, वन, नर्मदा घाटी विकास, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकीय, महिला एवं बाल विकास,लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, आदिम जाति कल्याण विभाग, नगरीय विकास एवं आवास , स्कूल शिक्षा , परिवहन , पंचायत एवं ग्रामीण विकास, खनिज साधन एवं वाणिज्य कर विभाग शामिल हैं।

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