एफओबी के चक्रव्यूह में फंसे नक्सली

नक्सली
  • सरेंडर करो या मुठभेड़ में खाओ गोली

दंडकारण्य को नक्सलवाद से मुक्त कराने के लिए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने जो संकल्प लिया है उसको अमलीजामा पहनाने के लिए मप्र, छग, झारखंड, ओडिशा, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र की सरकारें संगठित होकर का कर रही हैं। इसके लिए सुरक्षा बलों ने फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस(एफओबी)का ऐसा जाल बिछाया है कि जिसमें नक्सलियों के पास दो ही विकल्प बचते हैं। एक, वे सरेंडर कर दें और दूसरा, सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में गोली खाने के लिए तैयार रहें।

विनोद कुमार उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम
भोपाल (डीएनएन)।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भरोसा दिलाया है कि मार्च 2026 से पहले यानी लगभग 400 दिन में देश के सभी हिस्सों से नक्सलवाद पूरी तरह खत्म हो जाएगा। सीआरपीएफ और इसकी विशेष इकाई कोबरा, डीआरजी व राज्यों की पुलिस, केंद्रीय गृह मंत्री के इस भरोसे को पूरा करने में जुटी हैं। आगामी 400 दिनों में नक्सलवाद खत्म हो जाएगा, गृह मंत्री की इस मुहिम का असर दिखने लगा है। घने जंगल में और नक्सलियों के गढ़ में पहुंचकर सीआरपीएफ व दूसरे बलों के जवान 48 घंटे में फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस स्थापित कर रहे हैं। अब इसी एफओबी के चक्रव्यूह में फंसकर नक्सली मारे जा रहे हैं। सुरक्षा बलों ने ऐसा जाल बिछाया है कि जिसमें नक्सलियों के पास दो ही विकल्प बचते हैं। एक, वे सरेंडर कर दें और दूसरा, सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में गोली खाने के लिए तैयार रहें।
दंडक वन अथवा दंडकारण्य रामायण में वर्णित एक वन का नाम है। कथा के अनुसार दंडकारण्य विंध्याचल पर्वत से गोदावरी तक फैला हुआ प्रसिद्ध वन है और यहां वनवास के समय श्रीरामचंद्र बहुत दिनों तक रहे थे। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में दंडकारण्य पूर्वी मध्य भारत का एक भौतिक क्षेत्र है। करीब 92,300 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैले इस इलाके के पश्चिम में अबूझमाड़ पहाडिय़ां तथा पूर्व में इसकी सीमा पर पूर्वी घाट शामिल हैं। दंडकारण्य में छत्तीसगढ़, ओडिशा, आंध्र प्रदेश और मप्र राज्यों के हिस्से शामिल हैं। इसका विस्तार उत्तर से दक्षिण तक करीब 320 किमी तथा पूर्व से पश्चिम तक लगभग 480 किलोमीटर है। वर्तमान समय में यह क्षेत्र नक्सलियों का गढ़ बन गया है। सुरक्षा एजेंसियों ने एक्सचलूसिव जानकारी दी है कि नक्सली टीसीओसी यानी टैक्टिकल काउंटर ऑफेंसिव कैम्पेन इन महीनों (अप्रैल से जून) में चला रहे हैं। जिसमें उनका मकसद होता है कि ज्यादा से ज्यादा सुरक्षा बलों पर हमला कर इस दौरान नुकसान पहुंचाए। सूत्रों ने ये बताया है कि नक्सली केवल छत्तीसगढ़ गढ़ के साउथ बस्तर में ही टीसीओसी चलाने का प्लान नही बनाया है, बल्कि उन्होंने काफी सालों बाद नए ट्राई जंक्शन के नज़दीक सुरक्षा बलों पर हमला करने का प्लान तैयार किया है।

290 नक्सलियों को मौत
केंद्रीय गृह मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक, नक्सलियों का अंत अब कितना निकट है, यह अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 2023 में 50 नक्सली मारे गए थे तो वहीं 2024 में मुठभेड़ के दौरान 290 नक्सलियों को मौत के घाट उतारा गया। 2025 में 21 जनवरी तक 48 नक्सली मारे गए हैं। 2019 से लेकर अभी तक 290 कैंप स्थापित किए गए हैं। 2024 में 58 कैंप स्थापित हुए थे। इस वर्ष 88 कैंप स्थापित किए जाने के प्रस्ताव पर काम शुरु हो चुका है। ये कैंप नक्सल के किले को ढहाने में आखिरी किल साबित हो रहे हैं। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में तैनात केंद्रीय बल के एक अधिकारी बताते हैं, जिस तेजी से फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस स्थापित हो रहे हैं, उससे यह बात साफ है कि तय अवधि में नक्सलवाद को खत्म कर दिया जाएगा। सुरक्षा बल, नक्सलियों के गढ़ में जाकर उन्हें ललकार रहे हैं। 21 जनवरी को ओडिशा और छत्तीसगढ़ के बॉर्डर क्षेत्र गरियाबंद ऑपरेशन ग्रुप ई30, सीआरपीएफ कोबरा 207, सीआरपीएफ 65 एवं 211 बटालियन और एसओजी (स्पेशल ऑपरेशंस ग्रुप) की संयुक्त पार्टी के साथ हुई बड़ी मुठभेड़ में 14 से अधिक नक्सली मारे गए। गरियाबंद क्षेत्र में अभी तक गोलीबारी जारी है। लगभग दो दर्जन नक्सलियों को नुकसान पहुंचने का अंदेशा है।भारी संख्या में हथियार और गोला बारूद बरामद हुआ है। कुल्हाड़ी घाट पर भालू डिगी जंगल में सर्च ऑपरेशन चल रहा है। इस ऑपरेशन में एक करोड़ रुपये का इनामी नक्सली जयराम चलपती भी ढेर हुआ है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इस मुठभेड़ के बाद कहा, नक्सल मुक्त भारत के संकल्प और सुरक्षा बलों के संयुक्त प्रयासों से नक्सलवाद आज अंतिम सांस ले रहा है। पिछले साल और अब जनवरी माह के दौरान अभी तक कई बड़े नक्सली सरेंडर कर चुके हैं। अधिकारी के मुताबिक, अब नक्सलियों के सामने दो ही रास्ते बचे हैं। वे सरेंडर कर दें या मरने के लिए तैयार रहें। सुरक्षा बलों ने नक्सलियों का हर वो ठिकाना ढूंढ निकाला है, जो अभी तक एक पहेली बना हुआ था। उनके स्मारक गिराए जा रहे हैं। फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस या कैंप स्थापित होने के कारण एक चक्रव्यूह बनता जा रहा है। इसी में नक्सली फंसते जा रहे हैं।

मप्र में हो रही लगातार मुठभेड़
गतदिनों बालाघाट जिले में हॉक फोर्स और नक्सलियों के बीच मुठभेड़ हुई। इस दौरान नक्सली अपना सामान छोडक़र भाग निकले। हॉक फोर्स ने मौके से नक्सलियों का राशन और दैनिक उपयोगी सामान बरामद किया है। वहीं अब क्षेत्र में सर्चिंग बढ़ा दी गई है। बता दें कि सूलसूली पुलिस चौकी क्षेत्र के माताघाट और धारमारा के जंगलों में हॉक फोर्स और नक्सलियों का आमना-सामना हुआ। दरअसल, हॉक फोर्स की टीम सर्च ऑपरेशन पर निकली थी। तभी जवानों और नक्सलियों की ओर से एक्सचेंज ऑफ फायर किया गया। हालांकि, नक्सली भागने में सफल रहे। बताया जा रहा है कि 10 से 12 की संख्या में सशस्त्र नक्सली थे। वहीं इस वारदात के बाद पेट्रोलिंग की कार्रवाई जारी है। गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ और मप्र में नक्सलियों के खिलाफ लगातार अभियान चलाया जा रहा है। दरअसल, छत्तीसगढ़ में नक्सलियों पर लगातार हो रहे प्रहार से उनकी कमर टूटती हुई नजर आ रही है। ऐसे में अब कार्रवाई से बचने के लिए नक्सली मप्र के जंगलों में अपना नया ठिकाना तलाश रहे हैं। नक्सलियों के नए ठिकानों को लेकर आईबी की गोपनीय रिपोर्ट में बड़ा खुलासा हुआ है। नक्सलियों के मूवमेंट को लेकर मप्र सरकार सतर्क हो गई है। प्रदेश सरकार ने केंद्र सरकार से सीआरपीएफ की 2 बटालियन की मांग की है। इंटेलिजेंस की रिपोर्ट के अनुसार नक्सली मप्र के बालाघाट, डिंडौरी, मंडला में नक्सलियों का नया कैडर तैयार किया जा रहा है। 20 से 25 नक्सलियों का मूवमेंट सीधी-सिंगरौली से लगे माड़ा जंगल और मंडला के कान्हा नेशनल पार्क के कोर एरिया में देखा जा रहा है। आईबी के एक अधिकारी ने इसकी पुष्टि की है। आईबी की रिपोर्ट में बताया गया है कि आसपास के ग्रामीणों ने कुछ संदिग्धों को देखा है। गांव वालों का कहना है ये नए चेहरे हैं इन्हें पहले इस इलाके में कभी नहीं देखा है। छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के खिलाफ चलाए जा रहे ऑपरेशन के बाद माओवादियों की कमर टूट गई। लगातार चलाए जा रहे ऑपरेशन के बाद उन्हें बड़ा नुकसान हुआ है। कई नक्सलियों के मारे जाने के बाद अब नक्सली बड़ी संख्या में मप्र को अपने छिपने का ठिकाना बना रहे हैं। इंटेलिजेंस की रिपोर्ट मिलने के बाद मप्र सरकार सतर्क हो गई है। दरअसल, जब भी नक्सलियों के साथ सुरक्षाबलों की मुठभेड़ होती है वे अपने लिए सुरक्षित ठिकाने की तलाश करते हैं। नक्सली छत्तीसगढ़ में होने वाली कार्रवाईयों के बाद सेफ जोन के तौर पर मप्र के इन इलाकों का इस्तेमाल करते हैं। नक्सलियों ने साल 2015-16 में महाराष्ट्र, मप्र और छत्तीसगढ़ (एमएमसी) क्षेत्र बनाया था।
तीन राज्यों का सीमावर्ती इलाका होने से बालाघाट, मंडला, डिंडौरी, अनूपपुर और सिंगरौली जिले नक्सलियों के लिए न केवल बड़ा गलियारा बने, बल्कि इनका घना जंगल नक्सलियों के लिए मुफीद भी साबित हुआ है। हालांकि बालाघाट के अलावा इन जिलों में कभी कोई बड़ी नक्सली वारदात सामने नहीं आई। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक बालाघाट में नक्सलियों ने अलग-अलग स्थानों में वारदात कर 29 सालों में 87 लोगों को मौत के घाट उतारा है। वहीं पुलिस मुठभेड़ में अब तक 17 नक्सली मारे गए हैं, जबकि 170 गिरफ्तार हुए हैं। पिछले 10 साल में यहां नक्सली गतिविधियां कम जरूर हुईं, लेकिन थमी नहीं। 2013 के बाद नक्सलियों की सेंट्रल कमेटी ने एक बार फिर बालाघाट पर फोकस किया और महाराष्ट्र- छत्तीसगढ़ व मप्र के सीमावर्ती इलाके में अपनी ताकत बढ़ाने के लिए एमएमसी जोन तैयार किया। बालाघाट में नक्सली राजनांदगांव (अब छत्तीसगढ़ में) व महाराष्ट्र के भंडारा से घुसे थे। आज भी नक्सली बालाघाट आने के लिए इन्हीं सीमावर्ती इलाकों का रास्ता पकड़ते हैं। छत्तीसगढ़ में वारदात के बाद नक्सली बालाघाट के घने जंगलों और यहां की बसाहट के बीच अपने छिपने के ठिकाने तलाशते हैं। इतना ही नहीं इसके लिए वे उन क्षेत्रों का चयन करते हैं। जहां पुलिस आसानी से न पहुंच सके। सूचना और संपर्क से दूर बसे गांवों में नक्सलियों की दहशत उनके लिए सुरक्षित ठिकाना बनती है। पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक 5 जनवरी 1990 को नक्सलियों ने जिले में पहली दस्तक दी थी। नक्सली महाराष्ट्र के सालेकसा थाना अंतर्गत अदारी गांव से जिले के सीमावर्ती गांव मुरकुटा में पहुंचे थे। आजाद उइके के नेतृत्व में नौ नक्सलियों ने जिले की सीमा में प्रवेश किया था। इसके बाद से बालाघाट में शुरू हुई नक्सली गतिविधियां थम नहीं पाई हैं। महाराष्ट्र व छत्तीसगढ़ सीमा से लगे इलाकों में सक्रिय मलाजखंड दलम, तांडा दलम व गढ़चिरौली में सेंट्रल कमेटी ने नक्सलियों की संख्या बढाई है। देवरी दलम से कुछ सदस्य शामिल हुए हैं। बड़े नक्सली नाम गुहा, संपत, जमुना, पहाड़ सिंह, दीपक के दलम में शामिल होने और दलम की कमान संभालने के बाद से महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ ही नहीं झारखंड, ओडिशा व आंध्रप्रदेश में भी वारदात की योजना में बालाघाट कहीं न कहीं शामिल रहा। नक्सली नेता गुहा व रसूल की गिरफ्तारी के बाद मप्र, महाराष्ट्र व छत्तीसगढ़ में कमजोर पड़ी अपनी पकड़ को मजबूत करने नक्सली लगातार अपनी पैठ बढ़ा रहे हैं। एमसीसी (माओवादी कम्युनिस्ट कमेटी) व पीडब्ल्यूजी (पीपुल्स वार ग्रुप) अपना ढांचा मजबूत करने फिर जंगलों में बसे लोगों में नक्सली विचारधारा का बीज बोने की कवायद कर रहे हैं। वहीं मप्र के अन्य जिलों में भी दलम का विस्तार कर रहे हैं।

टारगेट पर हिडमा
मप्र, छग, झारखंड, ओडिशा, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र में नक्सलवाद को बढ़ावा देने वाला खूंखार नक्सली मांडवी हिडमा सुरक्षा बलों के टारगेट पर है। पांच राज्यों के सुरक्षा बलों के बीच खतरे का पर्याय बने मांडवी हिडमा का सफाया करने के लिए विशेष प्लान बनाया गया है। सुरक्षा बलों के सूत्रों ने जानकारी दी है कि छग के सुकमा में मांडवी हिडमा के गांव के नजदीक सुरक्षा बलों ने अपना बड़ा कैंप बना लिया है। यह कैंप गृह मंत्रालय के आदेश पर फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस योजना के तहत बनाया गया है। वहीं मप्र के बालाघाट, मंडला आदि क्षेत्रों में सतर्कता बढ़ा दी गई है। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक सुकमा जिले के माड़ इलाके में मोस्टवांटेड नक्सली हिडमा का गांव है। यहां पर सुरक्षाबलों का जाना एक तरीके से अबूझ पहेली जैसा है। लेकिन एरिया डोमिनेशन की रणनीति पर काम करते हुए सुरक्षाबलों ने हिडमा के गांव पुरवर्ती में जाकर कैम्प बना दिया है। अब ये कैम्प यानी फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस बनने से इस पूरे इलाके में जल्द ही पक्की सडक़ों का जाल बिछेगा। सुरक्षा महकमे के सूत्रों ने बताया है कि पीएलजीए-1 के कमांडरों ने हिडमा को भी ढेर करने का प्लान तैयार कर लिया है। बता दें कि छत्तीसगढ़ के कुछ जिले हैं, जहां पर मु_ीभर नक्सली बचे हैं। सूत्रों के अनुसार गृह मंत्रालय का प्लान ये है कि अगले 3 साल के भीतर पूरे बस्तर को नक्सल मुक्त कर दिया जाए। घने जंगल जो कि छत्तीसगढ़ का दंडकारण्य का इलाका कहलाता है। इस इलाके तक पहुंचना काफी मुश्किल है। ऐसे में यहां सुरक्षा बलों की धमक कामय रखना जरूरी है। इस बात को ध्यान में रखते हुए गृह मंत्रालय के आदेश पर लगातार फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस इन इलाकों में बनाए जा रहे है। इसका मकसद साफ है कि यहां पर सुरक्षा बलों की मौजूदगी रहे और नक्सली यहां से भाग खड़े हों। वहीं आशंका जताई जा रही है कि छग में सुरक्षा बलों के बढ़ते दबाव के चलते हिडमा सहित अन्य नक्सली मप्र के बालाघाट, मंडला का रूख कर सकते हैं। इसलिए इन जिलों में सुरक्षा बलों के साथ ही गुप्तचरों को सतर्क कर दिया गया है।
छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाकों में आए दिन फॉरवर्ड ऑपरेशन बेस एफओबी स्थापित किए जा रहे हैं। नतीजा ये हो रहा है कि नक्सली अपने पुराने ठिकाने छोडक़र घने जंगल की तरफ भागने लगे हैं। छत्तीसगढ़ में कुल 25 से ज्यादा एफओबी यानी फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस बनाये गयें है। एफओबी आसपास के क्षेत्रों में अभियान चला कर नक्सलियों का सफाया कर रही है एफओबी नक्सलियों के खिलाफ उनके ठिकानों के करीब आक्रामक अभियानों को अंजाम देने के लिए ‘लॉन्च पैड’ के रूप में काम कर रही है। इसी रणनीति के तहत बस्तर में लगातर बड़ी कार्यवाही को अंजाम दिया जा रहा है। पिछले कुछ सालों में दंडकारण्य के इलाके में जो भी बड़े नक्सली हमले हुए हैं, उसमें ज्यादातर जगहों पर एनआईए और दूसरी एजेंसियों का 25 लाख के वांछित हिडमा का ही नाम सामने आता रहा है। साउथ सुकमा के पुरवर्ती गांव में जन्में हिडमा को हिडमालू और संतोष के नाम से भी जाना जाता है। साल 2001 में वो नक्सलियों से जुड़ा था। हिडमा को ऐसा नक्सल कमांडर मानते हैं, जिसने पूरे क्षेत्र में अपना सूचना तंत्र फैला रखा है। हिडमा, बस्तर क्षेत्र के मुरिया जनजाति से आता है। उसके गांव में आज तक पुलिस नहीं पहुंच सकी है। लेकिन अब सुरक्षा बलों ने हिडमा के गांव मे अपना कैम्प खोल लिया है। हिडमा के बारे में जानकर ये भी कहते है कि हिडमा को गोरिल्ला युद्ध की ट्रेनिंग विदेश में मिली है और वो एके-47 का सबसे पुराना जानकर है। जो इसके कुछ ही मिनटों में फायरिंग कर सकता है। हिडमा ने पहले ही खुद को एक ऐसे कमांडर के तौर पर कायम कर लिया है, जिसके पास रणनीति की कमी नहीं है। एनआईए के दस्तावेजों के मुताबिक हिडमा की उम्र इस समय 51 साल की है। एनआईए जिसकी गहन तलाश कर रही है। सुरक्षा बलों की रिपोर्ट को मानें तो नक्सली पीएलजीए बीएन-1 का कमांडर मांडवी उर्फ हिडमा सुरक्षा बलों के छीने हथियार और बीजीएल/रॉकेट लॉन्चर से हमले की फिराक में है। उधर सूत्रों की माने तो हिडमा को पकडऩे और मारने का पूरा प्लान तैयार है। सुरक्षा बलों के इसी डर की वजह से नक्सली कमांडर हिडमा डीप फॉरेस्ट एरिया में छिपता फिर रहा है। पर अब नक्सलियों के खिलाफ सुरक्षा बलों ने पिन पॉइंटेड ऑपरेशन के बड़ा प्लान तैयार किया है, जिसमें आने वाले दिनों में हिडमा मारा जाएगा। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक सिक्योरिटी फोर्स छत्तीसगढ़, मप्र, झारखंड, ओडिशा, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश के बॉर्डर पर स्थित करीब गांवों का थर्मल इमेजिंग करवा रही है। यह इलाके नक्सलियों से प्रभावित हैं, जहां हिडमा के छिपे होने की आशंका है। इसके साथ ही इन इलाकों में नक्सलियों के बेस बने हुए हैं, सिक्योरिटी फोर्स इस इस काम में एनटीआरओ की मदद ले सकती हैं, जिससे इन इलाकों की मैपिंग की जा सके इसका सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि जब भी सिक्योरिटी फोर्सेज इन इलाकों में ऑपरेशन के लिए निकलेंगे तो उन्हें सारे रास्तों की जानकारी भी होगी साथ में ही नक्सलियों के खिलाफ बेहतर ऑपरेशन कोऑर्डिनेट करने में मदद मिलेगी।

खुंखार आतंकियों तलाश
सूत्रों के मुताबिक इस लिस्ट में सिर्फ हिडमा ही नहीं कई दूसरे नक्सली लीडर भी शामिल हैं। लिस्ट में मुप्पला लक्मना राव को सुरक्षा बलों ने टॉप लिस्ट में शामिल किया है। टॉप 17 में जो नक्सली शामिल किए गए हैं उनमें हिडमा ने 90 के दशक में नक्सली हिंसा का रास्ता चुना और तबसे कई निर्दोष लोगों की जान ले चुका है। वह माओवादियों की पीपल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी (पीजीएलए) बटालियन-1 का हेड है और ऐसे घातक हमले करता रहता है। पिछले कुछ सालों में छत्तीसगढ़ के दंडकारण्य के इलाके में जो भी बड़े नक्सली हमले हुये हैं उसमें ज्यादातर जगहों पर एनआईए और दूसरी एजेंसियों का 25 लाख का वांछित हिडमा का ही नाम सामने आता रहा है। साउथ सुकमा के पुरवर्ती गांव में जन्में हिडमा को हिडमालू उर्फ संतोष के नाम से भी जाना जाता है। साल 2001 में वो नक्सलियों से जुड़ा था। हिडमा को ऐसा नक्सल कमांडर मानते हैं जिसने पूरे क्षेत्र में अपना सूचना तंत्र फैला रखा है। हिडमा, बस्तर क्षेत्र के मुरिया जनजाति से आता है। उसके गांव में आज तक पुलिस का पहुंचना नामुमकिन माना जाता था, पर अब सुरक्षा बलों ने हिडमा के गांव मे अपना कैम्प खोल लिया है। हिडमा के बारे में जानकर ये भी कहते है कि हिडमा को गोरिल्ला युद्ध में ट्रेनिंग विदेश में मिली है और वो एके-47 चलाने का सबसे पुराना विशेषज्ञ है जो इसके कुछ ही मिनटों में फायरिंग कर सकता है। हिडमा ने पहले ही खुद को एक ऐसे कमांडर के तौर पर कायम कर लिया है जिसके पास रणनीति की कमी नहीं है। एनआईए के दस्तावेजों के मुताबिक हिडमा की उम्र इस समय 51 साल की है। सुरक्षा एजेंसियां इस समय इसकी गहन तलाश कर रही है। केंद्रीय गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार 2004-14 की तुलना में 2014-23 में देश में वामपंथी उग्रवाद से संबंधित हिंसा में 52 फीसदी की गिरावट आई है। इसके साथ ही मरने वालों की संख्या 6035 से 1868 यानी 69 फीसदी हो गई है। छत्तीसगढ़ में नई सरकार के गठन के साथ ही नक्सलियों के खिलाफ सक्रिय अभियान चलाए गए हैं। पिछले साल नक्सल प्रभावित राज्यों में सुरक्षा स्थिति की समीक्षा के बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने माओवादियों के खिलाफ सक्रिय अभियान चलाने का निर्देश दिया था। एक विशेष समिति का गठन भी किया गया था। इसमें पुलिस महानिदेशक, केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल, बीएसफ, भारत-तिब्बत सीमा पुलिस और खुफिया ब्यूरो के महानिदेशक आदि शामिल किए गए थे। वहीं छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले में सुरक्षाकर्मियों ने राज्य में अब तक की सबसे बड़ी मुठभेड़ में 29 नक्सलियों को मार गिराया। इसमें शंकर राव जैसा कुख्यात नक्सल कमांडर भी शामिल था। नक्सलियों के साथ मुठभेड़ के इतिहास में उनके मारे जाने की ये सबसे बड़ी घटना मानी जा रही है। इस मुठभेड़ में तीन सुरक्षाकर्मी भी घायल हो गए थे। सुरक्षा बलों ने यहां से एके-47, इंसास रायफल और एलएमजी के साथ बड़ी मात्रा में हथियार भी जब्त किए थे। सुरक्षा बलों ने साल 2014 से माओवादी बहुल इलाकों में शिविर लगाना शुरू किया था। साल 2019 के बाद 250 से अधिक शिविर स्थापित किए गए हैं। गृह मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक साल 2014-23 की तुलना में साल 2004-14 में नक्सली हिंसा की घटनाएं 14862 से घटकर 7128 हो गई हैं। इस दौरान सुरक्षाकर्मियों की मौत की संख्या साल 2004-14 के मुकाबले 2014-23 में 72 फीसदी कम हो गया है। ये संख्या 1750 से घटकर 485 हो गई है। वहीं आम लोगों के मौतों की संख्या 68 फीसदी घटकर 4285 से 1383 हो गई है। साल 2010 में हिंसा वाले जिलों की संख्या 96 थी। साल 2022 में यह 53 फीसदी घटकर 45 हो गई। इसके साथ ही हिंसा की रिपोर्ट करने वाले पुलिस स्टेशनों की संख्या साल 2010 में 465 से घटकर साल 2022 में 176 हो गई। पिछले पांच वर्षों में उन 90 जिलों में 5000 से अधिक डाकघर स्थापित किए गए, जहां माओवादी की सक्रियता है। अक्सर उनका मूवमेंट देखा जाता है।

भागते फिर रहे हैं नक्सली
जंगल में सुरक्षा बल चारों तरफ से घेरा डालकर आगे बढ़ रहे हैं। एक एफओबी को स्थापित करने में दो या तीन दिन लगते हैं। भले ही जवानों को टैंट या कच्चे में रहना पड़े, मगर वे आगे बढऩे के लिए तैयार हैं। एक माह बाद ही नए कैंप का ले आउट प्लान तैयार हो जाता है। ऐसे में नक्सली, जंगल में कहां तक पीछे भागेंगे। उनकी हर तरह की सप्लाई चेन, मसलन रसद, दवाएं, राशन और मुखबिरी, सब खत्म होती जा रही हैं। उनके ट्रेनिंग कैंप तबाह किए जा रहे हैं। नतीजा, अब नई भर्ती प्रारंभ नहीं हो पा रही है। ट्रेनिंग के लिए न तो जगह बची है और न ही युवक। ईडी और एनआईए जैसी जांच एजेंसियों ने भी अपना शिकंजा कस दिया है। कोबरा व सीआरपीएफ के सहयोग से सुरक्षा बलों ने विभिन्न राज्यों के नक्सल प्रभावित इलाकों में 290 नए शिविर खोले हैं। महज दस पंद्रह किलोमीटर की दूरी पर दो-दो सुरक्षा कैंप या फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस स्थापित किए जा रहे हैं। इस स्थिति में नक्सलियों की कमर टूट रही है। पहले नक्सलियों द्वारा बटालियन को साथ लेकर सुरक्षा बलों पर हमला बोला जाता था। उसके बाद वे कंपनी पर सिमट गए। अब कंपनी की बजाए नक्सली एक छोटी सी टीम तक सिमटते जा रहे हैं। सीआरपीएफ के सूत्रों का कहना है, जंगल में फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस स्थापित करना आसान काम नहीं होता। इस काम में आईईडी ब्लास्ट, यूबीजीएल (अंडर बैरल ग्रेनेड लांचर) अटैक या नक्सली हमले का जोखिम सदैव बना रहता है। सीआरपीएफ द्वारा जहां पर कैंप स्थापित किया जाता है, उससे पहले वहां कोई नहीं होता। लोकल मशीनरी और पुलिस, सीआरपीएफ के साथ ही कैंप साइट पर पहुंचती है। सबसे पहले जंगल के कुछ हिस्से को साफ कर कैंप के लिए उपयुक्त जगह तैयार की जाती है। कैंप तक पहुंचने वाले रूट को कई किलोमीटर तक सेनेटाइज कर दिया जाता है। इसके बाद ही जेसीबी अपना काम शुरु करती है। कैंप के चारों तरफ कई फुट चौड़ी खाई खोदी जाती है। उसके बाद कंटीली तार लगाते हैं। अगर मौसम खराब है तो भी जवान इस काम को तय समय सीमा में ही पूरा करते हैं। दूसरा चरण टैंट लगाने का होता है। कुछ दिनों बाद पोटा केबिन बनते हैं। नक्सलियों के चलते आसपास की सडक़ें पहले से ही क्षतिग्रस्त रहती हैं, ऐसे में जरुरत का सामान भी सीआरपीएफ जवान ही कैंप तक ले जाते हैं। बरसात में राशन, डीजल या गैस सिलेंडर, कई फुट पानी और दलदल में मैस तक यह सप्लाई जवानों द्वारा ही की जाती है। फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस तैयार होने के दौरान, सीआरपीएफ अधिकारी और जवान, ग्रामीणों का हाल जानने के लिए उनके पास पहुंचते हैं। उन्हें जरुरत का सामान मुहैया कराते हैं। एक अधिकारी के मुताबिक, नक्सलियों द्वारा इन इलाकों में ग्रामीणों को डरा धमका कर रख जाता है। गांव के लोगों तक केंद्र एवं राज्य सरकार की योजनाएं नहीं पहुंचने दी जाती। नक्सलियों के भय के चलते लोकल प्रशासन भी उन तक नहीं पहुंच पाता। सीआरपीएफ जवान, ग्रामीणों का इलाज करते हैं, उन्हें निशुल्क दवाएं मुहैया कराते हैं। बच्चों को कापी किताबें देते हैं। कई जगहों पर टैंटों या गांव के स्कूल में बच्चों को पढ़ाने का काम भी सीआरपीएफ करती है। ग्रामीण कहते हैं कि उनके पास तो आधार कार्ड, राशन कार्ड या आयुष्मान भारत कार्ड भी नहीं है। दूसरी सरकारी योजनाओं का लाभ भी उन्हें नहीं मिलता। इसके बाद जवानों द्वारा उन्हें विस्तार से सरकारी योजनाओं की जानकारी देकर उनके कार्ड तैयार कराए जाते हैं। विशेष आधार शिविर लगाए जाते हैं। अभी तक 14000 से ज्यादा ग्रामीणों का आधार कार्ड बनवाया गया है। इसके लिए 253 विशेष आधार कैंप लगाए गए हैं। 589 लोगों को वन अधिकार पट्टा वितरण प्रदान किया गया है। दस तरह की स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराई गई हैं। 10 हजार से अधिक लोगों के राशन कार्ड बनवाए गए हैं। 19 सौ से ज्यादा लोगों को पेंशन का भुगतान कराया गया है। 40 आंगनवाड़ी केंद्र खोले जा चुके हैं। कुल 113 केंद्र खोले जाने है। इतना ही नहीं, सीआरपीएफ द्वारा छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाकों में 3609 किसान क्रेडिट कार्ड तैयार करने का लक्ष्य रखा गया है। इसमें से 1545 कार्ड लोगों को प्रदान कर दिए गए हैं। बच्चों का जन्म प्रमाण पत्र बनवाया जा रहा है। सीआरपीएफ द्वारा स्थापित किए जा रहे नए कैंपों में ग्रामीणों की सुविधा के लिए चिकित्सा मदद डेस्क स्थापित किए गए हैं। प्रत्येक कैंप में आपातकालीन स्थिति के दौरान नाइट लैंडिंग फेसीलिटी की सुविधा रहती है। इसका मकसद, नक्सली हमले के दौरान घायलों को त्वरित उपचार एवं राहत मुहैया कराना है। आठ नाइट लैंडिंग का काम पूरा हो चुका है, जबकि पांच साइट का कार्य प्रगति पर है। मोबाइल टावर भी कैंप के आसपास लगाए जाते हैं। ऐसा इसलिए किया जाता है, क्योंकि सीआरपीएफ सुरक्षा में नक्सली, इन टावरों को नुकसान नहीं पहुंचा पाते। अब वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित जिलों की संख्या में उत्तरोत्तर गिरावट आई है। लगातार बेहतर हो रही स्थिति को देखते हुए, पिछले छह वर्षों में वामपंथी उग्रवाद प्रभावित जिलों की तीन बार समीक्षा की गई है, जिसमें अप्रैल 2018 में 126 से घटकर 90 जिले, जुलाई 2021 में 70 और फिर अप्रैल 2024 में घटकर 38 जिले रह गए हैं। 2010 के उच्च स्तर की तुलना में 2023 में वामपंथी उग्रवाद से संबंधित हिंसा में 73 प्रतिशत की कमी आई है। इसी अवधि के दौरान परिणामी मौतों (नागरिकों + सुरक्षा बलों) में भी 86त्न की कमी आई है। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षा संबंधी व्यय योजना में 2004 से 2014 तक 1180 करोड़ रूपए खर्च हुए थे, जिसे मोदी सरकार ने लगभग 3 गुना बढ़ाकर बढ़ाकर 2014 से 2024 के बीच 3,006 करोड़ रूपए कर दिया है। एलडब्लूई के प्रबंधन के लिए केन्द्रीय एजेंसियों को सहायता योजना में 1055 करोड़ रूपए दिए गए। विशेष केन्द्रीय सहायता एक नई योजना है, जिसके तहत मोदी सरकार ने पिछले 10 साल में 3590 करोड़ रूपए खर्च किए हैं। अब तक कुल 14367 करोड़ रूपए अनुमोदित किए गए हैं, जिसमें से 12000 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं।

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