कैग की रिपोर्ट में खुली पोल: अफसरों ने सरकार को लगाया अरबों की चपत

मप्र में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का सुशासन पर पूरा फोकस है। लेकिन आंकड़ों के महारथी अफसर सरकार की आंख में धूल झोंककर फर्जीवाड़ा और घोटाला करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं। इसका खुलासा मप्र विधानसभा के शीतकालीन सत्र में भारत के नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट में हुआ है।

विनोद कुमार उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम
भोपाल (डीएनएन)।
मप्र विधानसभा के शीतकालीन सत्र में भारत के नियन्त्रक एवं महालेखापरीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट में मप्र के कई विभागों में हेराफेरी के मामले सामने आए हैं। सरकार ने 18 दिसंबर को बिजली कंपनियों, महिला एवं बाल विकास और स्वास्थ्य विभाग की 2018 से 2022 के वित्तीय वर्ष की रिपोर्ट विधानसभा के पटल पर रखी। कैग की रिपोर्ट में तीनों ही विभागों में वित्तीय अनियमितता और योजनाओं के क्रियान्वयन में गड़बडिय़ां पाई गईं। इसकी वजह से राजकोष पर अतिरिक्त वित्तीय भार पड़ा। सडक़ों के निर्माण में अनियमितता बरती गई। सडक़ निर्माण के दौरान जरुरी स्पेसीफिकेशन और नियमावली का पालन नहीं किया और सडक़ निर्माण की निगरानी तय मानदंडों के मुताबिक नहीं हुई और संबंधित जिम्मेदार लोगों ने कागजों में इसको गलत तरीके लोक निर्माण विभाग के सामने पेश किया। बता दें कि कैग एक संवैधानिक संस्था है, जो केंद्र और राज्य सरकारों के खर्च का लेखा-जोखा रखती है।
सीएजी के अनुसार, मप्र की मध्य क्षेत्र और पश्चिम क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनियों ने साल 2019 में केंद्र सरकार से 200 करोड़ रुपए का नकद पुरस्कार हासिल किया था लेकिन ये गलत आंकड़े पेश कर लिया गया था। प्रदेश के 10 मेडिकल कॉलेज के आईसीयू में भर्ती 16 हजार सांस और ह्रदय रोग से पीडि़त मरीजों में से 3025 की मौत हो गई क्योंकि उन्हें इलाज के लिए दवाएं ही नहीं मिलीं। महिला एवं बाल विकास विभाग ने शाला त्यागी बालिकाओं का सर्वे नहीं किया और 5.08 लाख फर्जी हितग्राहियों को पोषण आहार बांट दिया। इस तरह 110 करोड़ रुपए का घोटाला हुआ।

हर यूनिट पर 11 हजार का नुकसान
सौभाग्य योजना के तहत दूर-दराज के ऐसे गांव, जहां बिजली की पहुंच नहीं है, वहां केंद्र सरकार ने हर परिवार को सोलर एनर्जी से 200 वॉट बिजली देने का फैसला किया था। इसके लिए हर घर में एक यूनिट लगाई जानी थी। प्रति यूनिट 31,348 रुपए हजार खर्च आना था। मप्र सरकार को इस योजना के लिए 1871 करोड़ रुपए मिले थे। राज्य सरकार ने कहा था कि वह योजना पर 10 प्रतिशत राशि व्यय करेगी। कैग की रिपोर्ट कहती है कि पूर्व क्षेत्र कंपनी ने इसके लिए लोन लिया और उसे मार्च 2022 तक ब्याज के तौर पर 24 करोड़ रुपए देने पड़े। कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि मध्यप्रदेश में बिजली कंपनियों ने पहले 50 वॉट के पैनल 17,622 रुपए और फिर 150 वॉट के पैनल 24,774 रुपए में लगाए। इस तरह हर यूनिट पर 11 हजार रुपए एक्स्ट्रा खर्च किया। नया कनेक्शन देने के लिए केबल का खर्च 3 हजार रुपए फिक्स था लेकिन पूर्व क्षेत्र कंपनी ने दो तरह के केबल का इस्तेमाल किया। एक केबल के लिए 3514 रुपए और दूसरे के लिए 4461 रुपए के हिसाब से भुगतान कर दिया। ऐसे में प्रति कनेक्शन 946 रुपए का भुगतान किया गया। कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि इससे कंपनी को 11 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है।
कैग के मुताबिक, सौभाग्य योजना के तहत बिजली कनेक्शन का ठेका ई-टेंडर के माध्यम से दिया जाना था लेकिन पूर्व व पश्चिम विद्युत वितरण कंपनियों ने 1 लाख 38 हजार घरेलू कनेक्शन के लिए टुकड़ों में 4 हजार से ज्यादा वर्क ऑर्डर निकाले। इनके जरिए 50 करोड़ 62 लाख रुपए का भुगतान कर दिया। इसी तरह कनेक्शन के लिए 4 एमएम का तार इस्तेमाल करना था लेकिन कैग ने जांच में पाया कि तीनों कंपनियों ने 3 लाख 36 हजार से ज्यादा घरों में बिजली कनेक्शन के लिए 2.5 एमएम के तार का इस्तेमाल किया। कैग ने कहा है कि सौभाग्य योजना की कार्ययोजना ही गलत बनाई गई। बिजली कंपनियों ने पहले बताया कि 9 लाख घर ऐसे हैं, जहां बिजली नहीं है। जब डीपीआर बनी तो ऐसे घरों की संख्या 9 लाख 77 हजार 056 हो गई। जब इसे संशोधित किया गया तो यह संख्या घटकर 5 लाख 4 हजार 841 रह गई जबकि वास्तविक घरों की संख्या 5 लाख 9 हजार 53 है। केंद्र सरकार ने 24 अक्टूबर 2018 को एक पुरस्कार शुरू किया था। जिसमें कहा गया था कि सौभाग्य योजना का कंपनी स्तर पर 30 नवंबर 2018 तक 100 फीसदी घरेलू कनेक्शन देने का टारगेट था। मप्र की दो कंपनी- पश्चिम व मध्य विद्युत वितरण कंपनी ने इस टारगेट को पूरा करने का प्रमाण पत्र केंद्र सरकार को भेज दिया था। इसके आधार पर केंद्र ने दोनों कंपनियों को 100-100 करोड़ रुपए का पुरस्कार दिया जबकि कैग की रिपोर्ट के मुताबिक यह टारगेट 2019 में पूरा हुआ था। पुरस्कार की अवधि निकल जाने के बाद मध्य क्षेत्र कंपनी ने 4 हजार 725 घरों में कनेक्शन करने के 24 वर्क ऑर्डर दिसंबर 2018 में जारी किए गए थे। यह काम अक्टूबर 2019 में पूरा किया गया था। इसी तरह पश्चिम क्षेत्र कंपनी ने यह टारगेट जून 2019 में पूरा किया था।

कंपनियों की लापरवाही से करोड़ों का घाटा
मप्र में विद्युत वितरण कंपनियों की लापरवाही से करोड़ों का नुकसान हो रहा है। यह खुलासा नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट में हुआ है। गौरतलब है कि गतदिवस विधानसभा में भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट रखी गई। इस रिपोर्ट में विद्युत वितरण कंपनियों द्वारा दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना और प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना को लेकर रिपोर्ट जारी की है। रिपोर्ट में बिजली वितरण कंपनियों और पॉवर जनरेशन कंपनी की लापरवाहियों का खुलासा किया गया है। इससे कंपनियों को करोड़ा का घाटा हुआ है। कैग ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि भारत सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों में सभी गैर-विद्युतीकृत घरों और शहरी क्षेत्रों में सभी गैर-विद्युतीकृत गरीब घरों को अंतिम छोर तक कनेक्टिविटी और विद्युत कनेक्शन के लिए प्रधान मंत्री सहज बिजली हर घर योजना शुरू की थी। जांच में परियोजना के निर्माण, कार्य के आवंटन में कमियां मिलीं। डीपीआर के तहत 97756 घरों के विद्युतीकरण किया जाना था, लेकिन 5,09,053 घरों का विद्युतीकरण हो पाया। इसके चलते 42.74 करोड़ का अतिरिक्त व्यय हुआ।
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट के अनुसार वितरण कम्पनियों ने दिशानिदेर्शों का उल्लंघन करते हुए निविदा के माध्यम से बोलियां आमंत्रित किए बिना 138,054 घरों के विद्युतीकरण के लिए 50.62 करोड़ रुपए के 4080 आदेश जारी कर दिए। मप्रपूक्षेविविकलि ने योजना दिशानिदेर्शों का उलंघन करते हुए 98.93 करोड़ से अधिक का ऋण लिया और उसे 24.65 करोड़ का ब्याज का भुगतान करना पड़ा। वितरण कम्पनियों ने अगरईसी के समक्ष योजनान्तर्गत 100 प्रतिशत घरेलू विद्युतीकरण को जल्दी पूरा करने की असत्य घोषणा कर, अपात्र होते हुए भी नकद पुरस्कार और 250.53 करोड़ का अतिरिक्त अनुदान प्राप्त किया। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट के अनुसार सजय गांधी ताप विद्युत गृह बिरसिंहपुर, विद्युतगृह में वर्ष 2019-20 और 2021-22 में मध्य प्रदेश विद्युत नियामक आयोग द्वारा निर्धारित टारगेट को प्राप्त नहीं कर पाया। इससे 106.57 करोड़ की सीमा तक स्थायी लागत की वसूली कम हुई। संजय गांधी ताप विद्युत केंद्र, बिरसिंहपुर और सतपुड़ा ताप विद्युत केंद्र, साहनी में नियामक आयोग द्वारा 2019-20 से 2021-22 तक निर्धारित उच्च सकल स्टेशन ऊष्मा दर मानदंडों को बनाए रखने में विफल रहे, जिसके परिणामस्वरूप 32.12 करोड़ मूल्य के 116041.76 मीट्रिक टन कोयले की अतिरिक्त खपत हुई। मध्य प्रदेश विद्युत नियामक आयोग ने कंपनी के प्रत्येक विद्युतगृह के लिए सहायक खपत मानदंड तय किए है। संजय गांधी ताप विद्युत केंद्र, बिरसिंहपुर विद्युतगृह, सतपुडा ताप विद्युत केंद्र, सारनी विद्युतगृह और अमरकंटक ताप विद्युत केंद्र, चचाई वर्ष 2019-20 से 2021-22 के दौरान मध्य प्रदेश विद्युत नियामक आयोग द्वारा निर्धारित मानदंडों के अंदर सहायक ऊर्जा की खपत को प्रतिबंधित करने में विफल रहे, जिसके परिणामस्वरूप 14.30 करोड़ मूल्य की 74.78 एमयू विद्युत की अतिरिक्त खपत हुई।

स्वास्थ्य सेवाओं के बुरे हाल
मप्र में स्वास्थ्य सेवाओं के बूरे हाल हैं। कैग की रिपोर्ट के मुताबिक, मप्र सरकार ने स्वीकृत संख्या के मुताबिक विशेषज्ञ डॉक्टरों की नियुक्ति नहीं की। जिला अस्पतालों में 6 से 92 फीसदी, सिविल अस्पतालों में 19 से 86 फीसदी, सामुदायिक, प्राथमिक और उप स्वास्थ्य केंद्रों में 27 से 81 फीसदी डॉक्टरों की कमी देखी गई। मेडिकल कॉलेजों में 27 से 43 फीसदी डॉक्टरों की कमी पाई गई। इसी तरह अस्पतालों में नर्सों की कमी पाई गई। कैग की रिपोर्ट के मुताबिक, प्रदेश के 10 मेडिकल कॉलेज में आईसीयू में भर्ती 34 हजार 643 मरीजों में से 16 हजार 848 (48.64 फीसदी) सांस और हार्ट पेशेंट्स थे। इनमें से 3025 (18 फीसदी) मरीजों की मौत हो गई। इसकी वजह ये रही कि इन मरीजों को इलाज के लिए जरूरी 16 अहम दवाओं में से 11 दवाएं नहीं मिलीं। इसी तरह कार्डियोवैस्कुलर समस्याओं के इलाज के लिए 26 महत्वपूर्ण दवाएं नहीं थीं। कैग ने रिपोर्ट में कहा कि दवाओं की कमी चिंता का विषय है। साथ ही दवाओं के स्टॉक के मिस मैनेजमेंट की वजह से भोपाल, ग्वालियर और छिंदवाड़ा मेडिकल कॉलेज में 1 करोड़ रुपए की 200 से ज्यादा दवाएं एक्सपायर हो गईं। केंद्र सरकार ने 2015 में राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे ट्रॉमा केयर सेंटर बनाने की शुरुआत की थी। इसका मकसद सडक़ दुर्घटनाओं के कारण होने वाली मौतों को 10 फीसदी तक कम करना था। कैग ने सभी जिला अस्पतालों से ट्रॉमा केयर सेंटर के आंकड़े इक_ा किए तो पता चला कि 18 जिला अस्पतालों में ट्रॉमा केयर सेंटर काम ही नहीं कर रहे थे। इसकी अलग-अलग वजहें सामने आईं। अशोकनगर में स्टाफ और उपकरण नहीं थे तो बुरहानपुर में भवन ही नहीं था। कई जिलों में भवन थे मगर उनका इस्तेमाल ट्रॉमा केयर सेंटर के रूप में नहीं किया गया था। कैग ने अपनी रिपोर्ट में बच्चों के टीकाकरण प्रोग्राम में भी मप्र की स्थिति चिंताजनक बताई है। बीसीजी को छोडक़र 100 फीसदी बच्चों को खसरा और डीपीटी का टीका नहीं लगा। साल 2017-22 के बीच 13 फीसदी बच्चों को खसरा और 0.12 फीसदी बच्चों को डीपीटी का टीका लगाया गया। पांच साल से कम उम्र के बच्चों के लिए 100 फीसदी टीकाकरण का टारगेट पूरा नहीं हो सका। जब कैग ने सरकार से इस बारे में पूछा तो अप्रैल 2023 में जवाब दिया गया कि मृत्यु दर में सुधार और टीकाकरण कवरेज के लिए विशेष कैचअप अभियान चलाया जा रहा है।
प्रदेश सरकार भले ही स्वास्थ्य व्यवस्थाओं के बेहतर होने के दावे कर रही हो, लेकिन रिपोर्ट बताती है कि पांच सालों में मध्य प्रदेश में 45,324 करोड़ स्वास्थ्य पर खर्च होने के बावजूद सांस-हृदय की बीमारियों के इलाज के लिए 16 महत्वपूर्ण दवाओं में से 11 मरीजों को नहीं मिलीं। इसी तरह कार्डियोवैस्कुलर समस्याओं के उपचार के लिए 26 महत्वपूर्ण दवाएं नहीं थीं। रिपोर्ट में सामने आया है कि अति महत्वपूर्ण ईडीएल 448 दवाओं का स्टाक नहीं पाया गया। यही नहीं और चिंता की बात तो यह है कि भोपाल के हमीदिया अस्पताल, जेएएच ग्वालियर और सिम्स छिंदवाड़ा में तो 1.11 करोड़ की 263 दवाएं एक्पायर हो गईं। 14 स्वास्थ्य संस्थाओं में सीएमएचओ स्टोर में एक करोड़ 20 लाख रुपए कीमत की 201 मशीनें खराब मिलीं। यह उपकरण 9 महीने से 8 महीने की अवधि में किसी भी वार्ड या स्वास्थ्य संस्थान को जारी नहीं किए गए। 263 टेंडर में से 30 टेंडर निविदा प्रकाशन की तारीख से लेकर निगम पोर्टल पर अनुबंध की तारीख से 6 महीने से एक साल तक की देरी हुई। वहीं कैग रिपोर्ट को लेकर मध्य प्रदेश के स्वास्थ्य चिकित्सा राज्य मंत्री नरेंद्र शिवाजी पटेल का कहना है कि स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को बेहतर करने की दिशा में काम किया जा रहा है। पीएम मोदी के नेतृत्व में देश में ओर मोहन यादव के नेतृत्व ने मध्य प्रदेश में ‘आयुष्मान योजना’ से गरीब मरीजों का उपचार हो रहा है। मध्य प्रदेश में एयर एम्बुलेंस की सुविधा दी जा रही है। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट के अनसार पांच वर्षों में 93,88,000 गर्भवती महिलाओं का पंजीयन हुआ। लेकिन 21,85,000 महिलाओं की प्रसव पूर्व चारों जांचें नहीं हुई। रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में स्वास्थ्य सुविधाओं का आकलन इसी से लगाया जा सकता है कि 20 में से 17 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में सीजेरियन प्रसव की सुविधा ही नहीं है। वहीं एक हजार में से 41 बच्चे अपना पहला जन्मदिन नहीं मना पाते हैं। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार प्रदेश ग्रामीण क्षेत्रों में 48 प्रतिशत तक कम अस्पताल हैं। 2022 की अनुमानित जनसंख्या के मापदंड से सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी), 604 होने चाहिए पर 355 हैं। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र 1257 और उप स्वास्थ्य केंद्र 10 हजार 225 हैं। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट के अनसार देखभाल की खराब गुणवत्ता के चलते 48 प्रतिशत लोग नहीं जाते सरकारी अस्पतालों में। 41 प्रतिशत मानते हैं प्रतीक्षा समय अधिक है। 41 प्रतिशत इसलिए नहीं जाते कि उनके नजदीक कोई अस्पताल नहीं है। एसएनसीयू में भर्ती शिशुओं को भारत सरकार द्वारा निर्धारित दो जोड़ी पोशाक दी जानी थी, पर कई जगह नहीं दी गई।

टेक होम राशन की आपूर्ति में फर्जीवाड़ा
कैग ने टेक होम राशन पर लेखा परीक्षण किया, जिसकी कई गड़बडिय़ों को रेखांकित किया है। प्रदेश में छह माह से तीन वर्ष तक के बच्चों, गर्भवती और धात्री माताएं और 11 से 14 वर्ष शाला त्यागी किशोरी बालिकाओं को पूरक पोषण कार्यक्रम के अंतर्गत टेक होम राशन दिया जाता है। इसे प्रदेश के विभिन्न संयंत्रों में तैयार किया जाता है। रिपोर्ट में बताया गया कि जिन ट्रेकों से टेक होम राशन की परियोजनाओं को आपूर्ति बताई गई वे जांच में मोटर साइकिल, कार, ऑटो और ट्रैक्टर के नंबर निकले। महिला एवं बाल विकास विभाग ने इसे लिपिकीय त्रुटि बताया, जिसे कैग ने अस्वीकार कर दिया। उप मुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा ने सदन में कैग की रिपोर्ट प्रस्तुत की। कैग 2021 में टेक होम राशन का लेखा परीक्षण किया था। इसमें जिन फर्मों ने ट्रकों द्वारा 2.96 करोड़ रुपये का 467 टन टेक होम राशन की आपूर्ति बताई थी, वाहन पोर्टल पर जांच में वे ट्रक के नंबर मोटरसाइकिल, कार, ऑटो, ट्रैक्टर और टैंकर के रूप में पंजीकृत पाए गए। इससे साफ है कि फर्जी आपूर्ति के अभिलेख प्रस्तुत किए गए। यह आपूर्तिकर्ताओं और परियोजना अधिकारियों के बीच संभावित मिलीभगत की ओर इशारा करता है। इसे अलावा इस आपूर्ति के लिए फर्मों ने न्यूनतम समर्थन मूल्य और रियायती दर पर गेहूं और चावल के अंतर के रूप में 35.74 लाख रुपये का अनुचित लाभ उठाया। ढाई करोड़ रुपये के 404 टन टेक होम राशन की आपूर्ति उन ट्रकों के माध्यम से की गई, जिनके अभिलेख वाहन पोर्टल पर नहीं पाए गए। महिला एवं बाल विकास विभाग ने इस आपत्ति पर अपने उत्तर में लिपिकीय त्रुटि बताया पर समर्थन में गेट पास, परिवहनकर्ता बिल्टी, धर्मकांटा पर्ची आदि प्रस्तुत नहीं किए। कैग ने उत्तर को अस्वीकार कर दिया और कहा कि अलग-अलग अधिकारियों ने चालान डिस्पैच और गेट पास तैयार किया, इसलिए दोनों लिपिकीय त्रुटि नहीं कर सकते। रिपोर्ट में उत्तरदायी अधिकारियों के विरुद्ध सतर्कता जांच शुरू करने और जिम्मेदारी तय करने की अनुशंसा की गई। इसके साथ ही कहा गया कि नियमित आधार पर ट्रकों की वास्तविकता की जांच के लिए स्वतंत्र तंत्र विकसित किया जाना चाहिए। जीपीएसयुक्त वाहनों का उपयोग भी सुनिश्चित किया जाए।
कैग ने जांच में पाया कि बाड़ी, धार, मंडला, रीवा, सागर और शिवपुरी संयंत्रों में वर्ष 2018-21 के दौरान टेक होम राशन का स्टाक नहीं होने के बावजूद 277 चालान के माध्यम से 178 परियोजनाओं को 773.21 टन आपूर्ति बताई गई। आठ परियोजनाओं में आपूर्ति किया टेक होम राशन स्टाक पंजी में दर्ज किया गया था। इससे धोखाधड़ी की संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता है। टेक होम राशन बनाने के लिए रियायती दर का गेहूं और चावल भी उठाया, जिससे 60.21 लाख रुपये का अनुचित लाभ लिया गया। महिला एवं बाल विकास विभाग ने इस बिंदु के उत्तर में कहा कि लेखा परीक्षा में विशेष दिन में उत्पादित और आपूर्ति की गई मात्रा पर विचार किया जबकि संयंत्र में उत्पादन निरंतर होता है। कभी स्टाक में आपूर्ति की जाने वाली मात्रा की तुलना में कमी होती है तो उसे निरंतर उत्पादन से पूरा किया जाता है। कैग ने इस उत्तर को अस्वीकार कर अनुशंसा की कि स्टाक और परियोजनाओं को जारी किए गए स्टाक की पुष्टि के लिए आनलाइन तंत्र विकसित किया जाना चाहिए। टेक होम राशन तैयार करने के लिए सात संयंत्र स्थापित किए गए थे। इनका संचालन महिला स्वसहायता समूहों के परिसंघ द्वारा किया जाना था। पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग ने मिशन को संयंत्रों का प्रबंधकीय कार्य इस शर्त पर सौंपा था कि वह समूह के सदस्यों को गतिविधियां सौंपेगा ताकि रोजगार मिल सके। 10 प्रतिशत लाभ भी समूह को दिया जाएगा। जांच में पाया कि ठेकेदार उत्पादन में संलग्न थे और महिलाओं को हाउसकीपिंग में तैनात किया गया था। 2020-21 में 21.28 करोड़ रुपये का लाभ हुआ पर समूहों को 2.18 करोड़ रुपये नहीं दिए गए।

पीएम ग्राम सडक़ योजना में भ्रष्टाचार
कैग की रिपोर्ट के अनुसार प्रधानमंत्री ग्राम सडक़ योजना (पीएमजीएसवाई) में भारी अनियमितताएं और धोखाधड़ी हुई है। अप्रैल 2017 से मार्च 2021 तक के ऑडिट में बिटुमेन की खरीद में फर्जीवाड़ा, योजना बनाने में खामियां और ठेकेदारों को फायदा पहुंचाने जैसे कई मामले उजागर हुए हैं। इससे सरकार को 414.9 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। कैग ने दोषी अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई करने की सिफारिश की है। कैग की रिपोर्ट में एमपी ग्रामीण सडक़ विकास प्राधिकरण (एमपीआरआरडीए) की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए गए हैं। पीएमजीएसवाई के तहत 11,936 किलोमीटर लंबी 1,190 सडक़ें बनाई जानी थीं। लेकिन एमपीआरआरडीए सिर्फ 5,109 किलोमीटर की 666 सडक़ें ही बना पाया। यह कुल काम का सिर्फ 56 प्रतिशत है। इस पर 2,776.31 करोड़ रुपये खर्च हुए। इससे ग्रामीण कनेक्टिविटी पर असर पड़ा है। रिपोर्ट में बिटुमेन खरीद में बड़े पैमाने पर धोखाधड़ी का खुलासा हुआ है। सरकारी रिफाइनरी से बिटुमेन खरीदने के नाम पर फर्जी बिल और दोहरे भुगतान किए गए। बिना मंजूरी वाली निजी रिफाइनरी से भी बिटुमेन खरीदा गया। सरकारी नियमों को ताक पर रख दिया गया। 75 में से 71 प्रोजेक्ट इम्प्लीमेंटेशन यूनिट्स और 51 में से 49 जिलों में यह गड़बड़ी पाई गई। इससे 414.9 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। यह भ्रष्टाचार और लापरवाही का स्पष्ट उदाहरण है। एमपीआरआरडीए के अधिकारियों ने पीएमजीएसवाई के नियमों का उल्लंघन किया। फेज-2 की योजना बनाते समय जनप्रतिनिधियों की राय नहीं ली गई। उनकी भूमिका को नजरअंदाज कर दिया गया। योग्य सडक़ों को छोडक़र, अपात्र सडक़ों का चयन किया गया। इससे 56,706 लोगों को योजना का लाभ नहीं मिल पाया। कंसल्टेंट्स को डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट यानि डीपीआरएस बनाने के लिए 7.1 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया। लेकिन डीपीआरएस और वास्तविक काम में अंतर पाया गया। सर्वे ठीक से नहीं किया गया, डीपीआर देर से जमा किए गए, और मिट्टी की जांच भी अधूरी थी।
डीपीआर कंसल्टेंट्स के लिए ई-टेंडरिंग नहीं कराई गई। इसकी बजाय सामान्य टेंडर का सहारा लिया गया। इससे फेज-2 में लागत 39 प्रतिशत से 58 प्रतिशत तक बढ़ गई। जबकि फेज-3 में ई-टेंडरिंग के जरिए कम दरों पर काम हुआ। लगभग 49 प्रतिशत काम 17 से 887 दिन की देरी से पूरा हुआ। फिर भी, एमपीआरआरडीए ने ठेकेदारों पर जुर्माना नहीं लगाया। कई पूरी हुई सडक़ों पर स्पीड ब्रेकर और रोड साइन जैसे जरूरी सुरक्षा उपाय नहीं थे। रिपोर्ट में वित्तीय गड़बडिय़ों का भी जिक्र है। फंड जारी करने में देरी से 4.2 करोड़ रुपये का ब्याज देना पड़ा। खराब फंड मैनेजमेंट से 11.7 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। 2000 से 350.8 करोड़ रुपये अलग-अलग खातों में जमा हैं, जिनका मिलान नहीं हुआ है। कैग ने मध्य प्रदेश सरकार से इन अनियमितताओं के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने को कहा है। बिटुमेन खरीद में धोखाधड़ी की जांच और ठेकेदारों व अधिकारियों पर कार्रवाई की सिफारिश की गई है। वहीं ऐसी धोखाधड़ी रोकने और पीएमजीएसवाय के नियमों का पालन सुनिश्चित करने के लिए मजबूत निगरानी तंत्र बनाने की सलाह दी गई है। कैग की रिपोर्ट में ये भी खुलासे हुए हैं कि पीएम ग्रामीण सडक़ योजना के दूसरे चरण में मनमर्जी से सडक़ें बनाई। सांसद-विधायक, जनपद प्रतिनिधियों से सहमति नहीं ली। एमपीआरआरडीए ने उन्नयन के लिए प्रात्र सडक़ें होने के बाद भी अपात्र सडक़ों को शामिल किया। 56,706 लोगों को सडक़ों का लाभ नहीं मिला। 10 जिलों में परियोजना रिपोर्ट के लिए सलाहकारों ने 7.15 करोड़ प्रभारित किए। पीएम ग्रामीण सडक़ के वास्तविक काम में अंतर था। भंडार व क्रय नियमों का उल्लंघन, तीसरे चरण की सडक़ों के टेंडर दरों में 39 से 58 प्रतिशत लागत बढ़ी। ई-टेंडर में नियमों के उल्लंघन पर एमपीआरआरडीए सीईओ, मुख्य महाप्रबंधक जिम्मेदार हैं। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी)की रिपोर्ट में कहा गया है कि सडक़ों के निर्माण के लिए ठेकेदार ने तकनीकी कर्मी तैनात नहीं किए। इस ऐवज में उनसे होने वाली 4.46 करोड़ रुपए की वसूली नहीं हुई। बोलीदाता के चूक की स्थिति में शासकीय हित सुरक्षित करने के लिए 41 प्रतिशत मामलों में अतिरिक्त निष्पादन प्रतिभूति नहीं ली। इसके लिए पीआईयू के महाप्रबंधक जिम्मेदार हैं। पीआइयू-1 छिंदवाड़ा में एसक्यूसी कंसल्टेंसी को 40 करोड़ के अनुबंध पर अनुमानित काम के लिए 2021 में 36.50 करोड़ की अतिरिक्त सेवाओं को एमपीआरआरडीए जबलपुर के मुख्य महाप्रबंधक ने टीओआर तोड़ अनियमित अनुमति दी। मार्च 2021 में 5.01 करोड़ वसूली रायल्टी शासकीय खाते में जमा नहीं कराया जिससे सरकार को नुकसान हुआ है। ठेकेदार 49 प्रतिशत काम समय पर पूरे नहीं कर सके। फिर भी मुख्य महाप्रबंधकों ने 33 प्रतिशत मामलों में हर्जाना नहीं लगाया। 43 प्रतिशत मामलों में 0.05 प्रतिशत से 1 प्रतिशत हर्जाना हुआ है। 42 प्रतिशत स्पीड ब्रेकर, 27 प्रतिशत चेतावनी, साइन बोर्ड नहीं लगाए। मप्र ने केंद्र की निधि को देरी से जारी किया। 4.23 करोड़ ब्याज लगा है।

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