सत्र अधूरा…काम पूरा

विधानसभा

-लोकतंत्र के मंदिर में नहीं लगता माननीयों का मन

मप्र का शासन, प्रशासन और यहां की विधानसभा अन्य राज्यों के लिए रोल मॉडल मानी जाती है, लेकिन पिछले दो दशक से मप्र के माननीयों का मन लोकतंत्र के मंदिर यानी विधानसभा में नहीं लग रहा है। शायद यही वजह है कि पिछले दो दशक से मप्र विधानसभा का कोई भी सत्र पूरा नहीं चला। हालांकि सत्र भले ही अधूरे रह गए, लेकिन उनमें काम पूरा हुआ।

विनोद कुमार उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम
भोपाल (डीएनएन)।
वर्ष 2004 से लेकर 2024 के मानसून सत्र तक पिछले 20 साल में मप्र विधानसभा की 105 बैठकें आयोजित की गईं। लेकिन विडंबना यह है कि इनमें से मात्र 65 दिन ही विधानसभा चल सकी। हालांकि इस दौरान विधानसभा के सारे कामकाज निपटते रहे। ऐसा ही हाल ही में संपन्न इसी मप्र विधानसभा के मानसून सत्र में भी देखने को मिला। ये सत्र 1 जुलाई से शुरू होकर 19 जुलाई तक चलने वाला था, लेकिन अपने तय वक्त से 14 दिन पहले ही इसे स्थगित कर दिया गया। इस मानसून सत्र के दौरान मोहन सरकार के पहले पूर्ण कालिक बजट को पेश किया गया। तो वहीं नर्सिंग घोटाले की गूंज भी इस विधानसभा सत्र में सुनाई दी है। आपको बता दें कि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है, जब तय वक्त से पहले सत्र को स्थगित कर दिया गया हो, ऐसा पिछले 20 सालों से चला आ रहा है। इस सत्र में भी कई विधायकों के प्रश्न अधूरे रह गए हैं, जो प्रश्न विधायकों द्वारा अपने क्षेत्र को लेकर लगाए गए थे। इस विधानसभा सत्र में 4 हजार से अधिक प्रश्न लगाए गए थे, जिनमें से आधे भी प्रश्नों पर चर्चा नहीं की गई है।
5 दिन चले मानसून सत्र में सरकार ने कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए। इस विधानसभा सत्र के दौरान विधायकों, मंत्रियों, राज्य मंत्री, उप मंत्री या संसदीय सचिव को अब खुद ही इनकम टैक्स भरना होगा, जिसे पहले सरकार भरा करती थी। विधानसभा में गौ-वंश को की सुरक्षा को लेकर 7 साल की सजा का प्रावधान किया गया है। अब तक गौ-वंश की तस्करी में शामिल वाहन न्यायालय की मदद से छूट जाया करते थे। लेकिन अब उन्हें राजसात करने की कार्रवाई की जाएगी। मध्य प्रदेश में विश्वविद्यालयों में कुलपति का पद कुलगुरु के नाम से पुकारा जाएगा। खुले बोरवेल या नलकूप के खिलाफ शिकायतों के समाधान के लिए किसी सरकारी अधिकारी को कार्रवाई करने के अधिकार दिए गए हैं। पान मसाला की दुकानों का रजिस्ट्रेशन भी अनिवार्य है। ऐसा नहीं करने पर एक लाख रुपए की पेनाल्टी की व्यवस्था तय की गई है।

लगातार घट रही अवधि
पिछले 20 साल में एक बार भी बजट सत्र तय अवधि तक नहीं चल सका है। 19 जुलाई तक प्रस्तावित इस सत्र में 3 जुलाई को बजट पेश हुआ था। 4 जुलाई को बजट प्रस्तावों पर चर्चा शुरू हुई थी, जो देर शाम खत्म हुई। 5 जुलाई को भी बजट चर्चा हुई, जिसके बाद विपक्ष की आपत्तियों के बाद अनुदान मांगों के बाद बजट पारित कर दिया गया। फिर विनियोग प्रस्तावों पर चर्चा शाम तक चली। इसके बाद स्पीकर ने सदन की कार्यवाही अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दी। 1 से 19 जुलाई तक प्रस्तावित इस सत्र में कुल 14 बैठकें होनी थीं। 2004 के बाद से 20 सालों में ये सबसे छोटा बजट था। इससे पहले 2022 और 2023 में 13-13 बैठकों के बजट सत्र रखे गए थे। ये भी तय अवधि तक नहीं चल सके थे। साल 2020 में जब कमलनाथ सरकार संकट में थी, तब मार्च में रखा गया 17 बैठकों का बजट सिर्फ 2 बैठकों में ही खत्म हो गया था। 2011 में कुल प्रस्तावित 40 में से 24 बैठकें हुई थीं। 2004 में लोकसभा चुनाव के बाद जून-जुलाई में हुए बजट सत्र में 37 में से 18 बैठकें हुईं थीं। वहीं 2015 में कुल 24 में से सिर्फ 7 बैठकें हुईं। लगातार सत्रों की अवधि भी घटती रही है। 2004 में 37 बैठकों के सत्र की तुलना में 2024 में जुलाई सत्र महज 14 बैठकों का था। बजट सत्र में विभिन्न प्रस्ताव आने के बाद विधायक अपने सुझाव देते हैं। बीच में ही सत्र खत्म होने से विधायक अपनी बात नहीं रख पाते। संसदीय कार्य मंत्री कैलाश विजयवर्गीय का कहना है कि सत्रों की अवधि घटने का एक कारण ये भी है कि सरकार का बिजनेस अब इतना ज्यादा नहीं रहता और विधायक भी क्षेत्र में ज्यादा रहना चाहते हैं। कई बार इतने विधायक भी नहीं आते कि कोरम पूरा हो सके। वहीं नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार का कहना है कि सरकार बार-बार कहती है कि सत्र लंबा खींचने लायक बिजनेस नहीं होता। ये सही नहीं है। लोकायुक्त की कई रिपोर्ट, विभागों और कमेटियों की रिपोर्ट लंबित है। इन्हें सरकार सदन में क्यों नहीं रखती। प्रश्नकाल भी बिजनेस है, जिसमें जनहित के मुद्दे आते हैं।
लोकतंत्र का मंदिर यानी संसद हो या विधानसभा, जनता के मुद्दों पर चर्चा, सवाल-जवाब और फिर निर्णय पर पहुंचना ही आदर्श संसदीय व्यवस्था है, लेकिन अब स्थितियां बदलती जा रही हैं। विधानसभा सत्रों में चर्चा के नाम पर हंगामा, विरोध और फिर कार्यवाही का स्थगन। बीते कई वर्षों में यही चिंताजनक ट्रेंड मध्य प्रदेश विधानसभा में दिखाई दे रहा है। अगर आंकड़ों को देखें तो मप्र में साल दर साल विधानसभा सत्रों की संख्या भी कम हो रही है। 12वीं विधानसभा में 275 दिन का कुल सत्र 159 दिन सत्र चला था। 13वीं विधानसभा में262 दिन के सत्र में 167 दिन सदन चला था। 14वी विधानसभा में 182 दिन के सत्र में 135 दिन सदन चला था। वहीं 15वीं विधानसभा में 132 दिन के सत्र में 83 दिन ही सदन चला था। मप्र की 16वीं विधानसभा का पहला सत्र दिसंबर 2023 में आयोजित किया गया था। 4 दिन का यह सत्र पूरे दिन चला। लेकिन बजट सत्र अधूरा ही रह गया। जारी अधिसूचना के अनुसार इस बार मध्य प्रदेश विधानसभा का सत्र 7 फरवरी से 19 फरवरी तक का था, लेकिन इसे 14 फरवरी की कार्यवाही के साथ स्थगित कर दिया गया। यह पहला मौका नहीं, जब मप्र विधानसभा का सत्र निर्धारित अवधि से पहले स्थगित किया गया। मप्र में पांच वर्षों से विधानसभा सत्र की अवधि सिमटती जा रही है। 15वीं विधानसभा में कोई भी सत्र पूरे दिन नहीं चला। वहीं 16वीं विधानसभा का पहला सत्र महज शपथ ग्रहण की औपचारिकता के लिए था। जबकि 7 फरवरी से शुरू हुआ बजट सत्र पूरे समय तक नहीं चल पाया। विधानसभा सत्रों में चर्चा के नाम पर हंगामा, विरोध और फिर कार्यवाही का स्थगन। बीते कई वर्षों में यही चिंताजनक ट्रेड मप्र विधानसभा में दिखाई दे रहा है। यह लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत नहीं है। मप्र विधानसभा में हाल में हुए प्रबोधन कार्यक्रम में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने सत्र की अवधि छोटे होने को लेकर चिंता जाहिर करते हुए लंबी अवधि के सत्र आयोजित किए जाने की बात कही थी, लेकिन मप्र विधानसभा में 13 दिन का बजट सत्र निर्धारित अवधि से पांच दिन पहले अनिश्चितकाल के लिए स्थगित हो गया।

सत्र छोटे…काम पूरे
विधानसभा के सत्र भले की आधे-अधूरे हो रहे हैं, लेकिन सरकार इस दौरान अपने सारे काम निपटा लेती है। 16वीं विधानसभा का बजट सत्र कुल 28 घंटे 9 मिनट चला और छह बैठकें हुईं। जिसमें विधायी, वित्तीय तथा लोक महत्व के अनेक कार्य संपन्न हुए। सदन ने अन्य वित्तीय कार्यों के अलावा वर्ष 2024-25 के वार्षिक वित्तीय विवरण पर चर्चा कर लेखानुदान पारित किया, वहीं वर्ष 2023-24 के द्वितीय अनुपूरक मांगों को स्वीकृति प्रदान की गई। सत्र में कुल 2,303 प्रश्न प्राप्त हुए। ध्यानाकर्षण की कुल 541 सूचनाएं प्राप्त हुई, जिनमें 40 सूचनाएं ग्राहय हुई। दरअसल, पक्ष हो या विपक्ष किसी की भी रुचि अब अधिक अवधि तक सत्र चलाने में नहीं रह गई है। सरकार का जोर इस बात पर रहता है कि विधायी कार्य पूरे हो जाएं। वहीं, विपक्ष शुरूआत से ही हंगामा करना प्रारंभ कर देता है। स्थिति अब तो यह बनने लगी है कि प्रश्नकाल तक पूरा नहीं हो पाता और अध्यक्ष को सदन की कार्यवाही बार-बार स्थगित करनी पड़ती है। सदन के सुचारू संचालन में पक्ष और विपक्ष की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। जाहिर है दोनों पक्ष इसके लिए एक-दूसरे को ही जिम्मेदार बताते हैं। पंद्रहवीं विधानसभा की बात करें, तो तीन सत्रों को छोडक़र पांच साल में अन्य कोई भी सत्र (बजट, मानसून और शीतकालीन) अपनी निर्धारित अवधि पूरी नहीं कर सका। यहां तक की बजट सत्र की बैठकें भी समय से पहले ही समाप्त हो गई, जबकि यह सबसे लंबा होने की परंपरा रही है। तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी के समय लंबी अवधि के विधानसभा सत्र होते थे। बजट सत्र एक महीने से ज्यादा अवधि तक चलता था, लेकिन साल-दर-साल सत्रों की अवधि छोटी होती जा रही है। बड़ी तैयारी के साथ विधायक विधानसभा सत्र के लिए प्रश्न लगाते हैं। एक घंटे के प्रश्नकाल में 25 प्रश्नों का चयन लॉटरी के माध्यम से होता है। जिन सदस्यों के प्रश्न इसमें शामिल होते हैं, वे सदन में सरकार का उत्तर चाहते हैं और पूरक प्रश्न भी करते हैं। पर हंगामे के कारण प्रश्नकाल ही पूरा नहीं हो पा रहा है। इससे विधायकों के प्रश्न पूछने के अधिकार का हनन भी हो रहा है। अपनी बात रखने का उन्हें मौका भी कम मिल रहा है। इसे लेकर विधायक आपत्ति भी दर्ज करा चुके हैं। विधेयकों को लेकर भी स्थिति अलग नहीं है। इस दौरान अधिकतर विधेयक हगामे के बीच ध्वनिमत से चंद मिनटों में पारित हो जाते हैं।
दरअसल, सत्तापक्ष हो या विपक्ष किसी की भी रूचि अब अधिक अवधि तक सत्र चलाने में नहीं रह गई है। सरकार का जोर इस बात पर रहता है कि विधायी कार्य पूरे हो जाएं। वहीं, विपक्ष शुरुआत से ही हंगामा करना प्रारंभ कर देता है। स्थिति अब तो यह बनने लगी है कि प्रश्नकाल तक पूरा नहीं हो पाता और अध्यक्ष को सदन की कार्यवाही बार-बार स्थगित करनी पड़ती है। बजट सत्र में यही स्थिति बनी। इससे अध्यक्ष व्यथित भी नजर आए पर सदन के सुचारू संचालन में पक्ष और विपक्ष की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। जाहिर है दोनों पक्ष इसके लिए एक-दूसरे को ही जिम्मेदार बताते हैं। नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार का आरोप है कि सरकार सदन में चर्चा कराने से भागती है। विपक्ष लोक महत्व के विषयों पर चर्चा करना चाहता है पर सत्तापक्ष हंगामा करने लगता है। भाजपा के मंत्री विश्वास सारंग कहते हैं कि कांग्रेस कभी जनहित के मुद्दों पर चर्चा नहीं करती। हंगामा करना ही इनका मकसद रहता है। जबकि, सदन का मंच हमें जनहित पर चर्चा करने के लिए दिया है और सबकी प्रक्रिया निर्धारित है। बड़ी तैयारी के साथ विधायक विधानसभा सत्र के लिए प्रश्न लगाते हैं। एक घंटे के प्रश्नकाल में 25 प्रश्नों का चयन लॉटरी के माध्यम से होता है। जिन सदस्यों के प्रश्न इसमें शामिल होते हैं वे सदन में सरकार का उत्तर चाहते हैं और पूरक प्रश्न भी करते हैं पर हंगामे के कारण प्रश्नकाल ही पूूरा नहीं हो पा रहा है। इससे विधायकों के प्रश्न पूछने के अधिकार का हनन भी हो रहा है। अपनी बात रखने का उन्हें मौका भी कम मिल रहा है। इसे लेकर विधायक आपत्ति भी दर्ज करा चुके हैं। विधेयकों को लेकर भी स्थिति अलग नहीं है। इस दौरान अधिकतर विधेेयक हंगामे के बीच ध्वनिमत से चंद मिनटों में पारित हो जाते हैं।

माननीय भी हालाकान
देश की संसद और राज्यों के विधानमंडलों में अगर जनता से जुड़े मुद्दे पर विचार-विमर्श करने, समस्याओं का हल निकालने और जनहित में नीतियां बनाने के क्रम में जनप्रतिनिधियों के बीच तीखी बहसें भी होती हैं, तो यह स्वाभाविक और जरूरी है। लेकिन मप्र विधानसभा में पिछले कई सत्र से यह देखने को मिल रहा है कि गैर जरूरी मुद्दे को लकीर बनाकर सत्तापक्ष और विपक्ष उसकी को पीटने में लगे रहते हैं और दो-चार दिन में ही सत्र का समापन कर दिया जाता है। जनता से संबंधित मुद्दों और समस्याओं पर कोई चर्चा नहीं हो पाती है। बजट सत्र समाप्त होने के बाद माननीय इस बाद पर चिंता जता रहे हैं कि सदन में वे जनता की आवाज नहीं उठा सके। दरअसल, विधानसभा सत्र के दौरान हर विधायक चाहता है कि उसका सवाल चर्चा में आए। माननीय अपने क्षेत्र में जाएं तो लोगों को बता सकें कि उन्होंने आपकी आवाज सदन में उठाई है। विपक्ष के सदस्यों को ज्यादा उम्मीद रहती है कि सरकार को घेरने से विकास के कार्य संभव होंगे या फिर भ्रष्टाचार के मामले में दोषियों पर कार्रवाई के निर्देश होंगे।

15वीं विधानसभा में बैठकों की स्थिति
सत्र –तय बैठकें- इतने दिन हुईं
जनवरी, 2019– 4–4
फरवरी, 2019– 4– 3
जुलार्ई, 2019– 17–13
दिसंबर, 2019– 4–4
मार्च, 2020– 17–2
मार्च, 2020–3–1
सितंबर, 2020– 3– 1
मार्च, 2021– 23– 13
अगस्त, 2021– 4– 2
दिसंबर, 2021– 5– 5
मार्च, 2022– 13– 8
सितंबर, 2022– 5– 3
दिसंबर, 2022–5–4
फरवरी-मार्च 2023—13–12
जुलाई 2023–5–2
-16वीं विधानसभा में बैठकों की स्थिति
दिसंबर, 2023–4– 4
फरवरी 2024–9–6
जुलाई 2024–14–5

पहले बजट में दिखा मोहन का मैनेजमेंट
इस मानसून सत्र में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का पहला बजट कैसा होगा? जैसा माना जा रहा था, वैसा ही। न कोई बड़ा ऐलान, न कोई नई योजना। न ही छोटी लेकिन महत्वपूर्ण बातों को नजर अंदाज किया। सरकार ने यह मैसेज भी दिया है कि लोकलुभावन योजनाओं की बजाय इन्फ्रास्ट्रक्चर पर फोकस रहेगा। वजह भी साफ है- निकट भविष्य में कोई चुनावी मजबूरी नहीं है। हां,धर्म पर खास ध्यान देते हुए सरकार ने अपना संवेदनशील चेहरा दिखाने का प्रयास जरूर किया है। एक घोषणा पर गौर कीजिए – सरकारी अस्पतालों में उपचार के दौरान मृत्यु होने पर पार्थिव देह को घर तक सम्मानजनक ढंग से पहुंचाने के लिए शांति वाहन सेवा शुरू की जाएगी। सरकार का सबसे ज्यादा फोकस इन्फ्रास्ट्रक्चर पर रहा। बजट का सबसे ज्यादा 15 फीसदी हिस्सा इसी पर खर्च होगा। सरकार मानती है कि इन्फ्रास्ट्रक्चर के एक्सप्रेस वे पर ही प्रदेश के डेवलपमेंट की गाड़ी स्पीड से चल सकती है। हालांकि इस सेक्टर में किसी नए प्रोजेक्ट का ऐलान बजट में नहीं हुआ, लेकिन चुनाव पहले ही केंद्र व राज्य की साझेदारी से प्रदेश में एक्सप्रेस वे नेटवर्क के विस्तार पर काम शुरू हो गया था। कुल 6 एक्सप्रेस वे अगले पांच सालों में तैयार होना है। इनके दोनों ओर औद्योगिक कॉरिडोर बनेंगे। इन्हीं से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार का रास्ता निकलेगा। पुलिस महकमे के अलावा टीचर्स की नई नियुक्ति का जिक्र कर बेरोजगार युवाओं की कुछ उम्मीदें जगाई हैं। इसके अलावा सरकार ने प्रतियोगी परीक्षाओं की फीस में राहत देने की घोषणा भी की है। हालांकि, सरकार की मंशा साफ है कि युवा सिर्फ सरकारी नौकरी पर ही ध्यान न दें। अपना काम-धंधा शुरू करने की तैयारी करें, सरकार कर्ज दिलाने के लिए तैयार है। डॉ. मोहन यादव सरकार का पहला बजट पिछली शिवराज सरकार से भले ही 16 फीसदी ज्यादा है, लेकिन मोहन सरकार ने शिवराज की कई योजनाओं को आगे नहीं बढ़ाया है। साथ ही पिछले बजट में जो घोषणाएं थी उनका इस बजट में कोई जिक्र भी नहीं है। मसलन शिवराज सरकार ने अपने आखिरी बजट में एक लाख सरकारी नौकरी, 12वीं क्लास फस्र्ट डिविजन से पास करने वाली छात्राओं को ई-स्कूटी देने जैसी कई योजनाओं को शामिल किया था। इससे उलट इस सरकार का फोकस मोदी की चार जातियों महिला, किसान, युवा व गरीब पर रहा है। यही वजह है कि कुल बजट का 33 फीसदी पैसा महिलाओं पर खर्च किया जाएगा। शिवराज सरकार ने प्रदेश की आधी आबादी के लिए 1.02 लाख करोड़ रुपए बजट में रखे थे। इसकी तुलना में डा. मोहन सरकार ने 19 हजार करोड़ से ज्यादा खर्च करेगी। दूसरी तरफ लाड़ली बहना योजना का पैसा न बढ़ाकर फ्री बीज योजना की राशि पर फिलहाल ब्रेक लगाया है। डॉ. मोहन यादव सरकार का पहला बजट पिछली शिवराज सरकार से भले ही 16 फीसदी ज्यादा है, लेकिन मोहन सरकार ने शिवराज की कई योजनाओं को आगे नहीं बढ़ाया है। साथ ही पिछले बजट में जो घोषणाएं थी उनका इस बजट में कोई जिक्र भी नहीं है। मसलन शिवराज सरकार ने अपने आखिरी बजट में एक लाख सरकारी नौकरी, 12वीं क्लास फस्र्ट डिवीजन से पास करने वाली छात्राओं को ई-स्कूटी देने जैसी कई योजनाओं को शामिल किया था। इससे उलट इस सरकार का फोकस मोदी की चार जातियां महिला, किसान, युवा व गरीब पर रहा है। यही वजह है कि कुल बजट का 33 फीसदी पैसा महिलाओं पर खर्च किया जाएगा। शिवराज सरकार ने प्रदेश की आधी आबादी के लिए 1.02 लाख करोड़ रुपए बजट में रखे थे। इसकी तुलना में डॉ. मोहन सरकार ने 19 हजार करोड़ से ज्यादा खर्च करेगी। दूसरी तरफ लाड़ली बहना योजना का पैसा न बढ़ाकर फ्री बीज योजना की राशि बढ़ाने पर फिलहाल ब्रेक लगाया है। शिवराज सरकार का आखिरी बजट चुनावी साल में आया था, इसलिए बड़े वोट बैंक को साधने के लिए घोषणाएं की गई थी। मोहन सरकार ने इनमें से कई योजनाओं को बंद नहीं किया बल्कि फोकस धर्म और संस्कृति के क्षेत्र में बढ़ाया है।

पढि़ए शिवराज सरकार से कितना अलग है मोहन सरकार का बजट
डॉ. मोहन सरकार ने धर्म-संस्कृति और पर्यटन के क्षेत्र में शिवराज सरकार की तुलना में अधिक फोकस किया है। शिवराज सरकार ने 2023-23 के बजट में सलकनपुर में श्री देवी महालोक, सागर में संत रविदास स्मारक, ओरछा में रामराजा लोक और चित्रकूट में दिव्य वनवासी राम लोक को डेवलप करने के लिए 358 करोड़ रुपए रखे थे, लेकिन मोहन सरकार ने इस मद में राशि बढ़ाकर 700 करोड़ कर दी है। संस्कृति का कुल बजट भी पिछली सरकार से 385 करोड़ ज्यादा है। बजट में शिवराज की सीखो-कमाओ योजना का जिक्र नहीं है। इस योजना में 12वीं, डिप्लोमा और ग्रेजुएट युवाओं को इंटर्नशीप का प्रावधान किया गया था। सरकार ने युवाओं को योग्यता के आधार पर स्टाइपेंड देने का भी ऐलान किया था। इसकी बजाय मोहन सरकार ने 22 नए आईटीआई खोलने का फैसला किया है। इसके तहत देवास, धार और छिंदवाड़ा को ग्रीन स्किलिंग आईटीआई में विकसित कर सोलर टेक्नीशियन एवं इलेक्ट्रिक व्हीकल मैकेनिक पाठ्यक्रम शुरू किए जाएंगे। मोहन सरकार ने शिवराज सरकार की सीएम राइज स्कूल योजना को जस का तस रखा है। इस साल 150 सीएम राईज स्कूलों के नए भवन में स्कूल संचालित होंगे। इसी तरह पीएमश्री योजना के तहत 730 स्कूलों को चिह्नित किया गया है। जिनमें शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के साथ संसाधनों की कमी को पूरा किया जाएगा। इन दोनों योजनाओं पर अगले एक साल में 3,507 करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे। प्रधानमंत्री कॉलेज ऑफ एक्सीलेंस में 2 हजार नए पद बनाए जाएंगे। शिक्षा को लेकर इस बजट में 41 हजार 124 करोड़ का प्रावधान किया है जो पिछले साल के बजट 39 हजार 457 करोड़ से 1 हजार 667 करोड़ ज्यादा है। डॉ. मोहन सरकार ने पिछली सरकार की तुलना में इस साल किसानों को फसल लोन देने के लिए 1 हजार 490 करोड़ ज्यादा राशि का प्रावधान बजट में किया है। शिवराज सरकार ने 2023-24 में 19 हजार 946 करोड़ राशि किसानों को लोन के रूप में दी थी। अब डॉ. मोहन सरकार ने इस राशि को बढ़ाकर 23 हजार करोड़ कर दिया है। गौसंवर्धन के बजट में 76त्न की वृद्धि की है। पिछले बजट में यह राशि 335 करोड़ थी। इसे अब बढ़ाकर 590 करोड़ कर दिया गया है। शिवराज सरकार की तरह डॉ. मोहन सरकार का भी फोकस महिलाओं पर ज्यादा है। इस बार महिलाओं से जुड़ी योजनाओं पर सरकार 19 हजार करोड़ रुपए ज्यादा खर्च करेगी। लाड़ली बहना योजना का बजट ही 8 हजार से बढ़ा कर 18 हजार करोड़ से ज्यादा का किया गया है। इसके अलावा प्रधानमंत्री जनजाति आदिवासी न्याय महा अभियान( पीएम जनमन) के तहत आंगनवाडिय़ों के लिए 150 करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे।

तोमर ने पक्षपात का दाग धोया
करीब दो दशक के दौरान मप्र विधानसभा के सत्रों का आकलन करें तो हम पाते हैं कि विपक्ष विधानसभा अध्यक्ष पर सत्तापक्ष के लिए काम करने का आरोप लगाता रहा है। लेकिन 16वीं विधानसभा के अभी तक के दो सत्रों में सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों ही विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र्र सिंह तोमर की कार्यप्रणाली से पूरी तरह खुश हैं। नरेंद्र सिंह तोमर उन नेताओं में से नहीं हैं, जो किसी के इशारे पर काम करते हैं। उनका अपना व्यक्तित्व है और वे पूरी मर्यादा के साथ काम करने के लिए जाने जाते हैं। 16वीं विधानसभा के अध्यक्ष के रूप में पदभार ग्रहण करने के दौरान भी उन्होंने स्पष्ट कर दिया था कि उन पर किसी का दबाव नहीं चलेगा। और न ही वे किसी से कोई भेदभाव करेंगे। इसका नजारा पहले सत्र में सभी ने देखा। गौरतलब है कि मप्र विधानसभा अध्यक्ष के लिए जब राज्य और केंद्र सरकार में असरदार किरदार निभा चुके देश के वरिष्ठतम नेताओं में शुमार नरेंद्र सिंह तोमर का नाम तय किया गया था, तब ही यह तस्वीर साफ थी कि अब विधानसभा में परिणामदायी नवाचार आकार लेंगे। 8 फरवरी 2024 को बजट सत्र में प्रश्न और अल्प सूचना प्रश्न की कंडिका में किया गया बदलाव विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर की प्रभावी कार्यशैली का ही परिचायक है। अब विधानसभा सदस्यों को विधानसभा का कार्यकाल समाप्त होने के बाद भी लंबित प्रश्नों का उत्तर मिलेगा। इससे सत्तापक्ष और विपक्ष, जीतने और हारने वाले सभी सदस्यों को यह संतुष्टि रहेगी कि उनके सवालों का जवाब मिलने पर लोकहित की उनकी मंशा पूरी हो सकेगी। विधानसभा की प्रश्न एवं अल्प सूचना प्रश्न में हुआ यह बदलाव लोकहितकारी साबित होगा।
मप्र विधानसभा के अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर ने महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए प्रश्न एवं अल्प सूचना प्रश्न की कंडिका में बदलाव किया है। अब विधानसभा के विघटन के बाद भी लंबित प्रश्नों के जवाब सरकार द्वारा संबंधित सदस्य को प्रदान किए जाएंगे। पहले जहां विधानसभा का कार्यकाल समाप्त होने पर पूर्व के सत्रों के लंबित प्रश्नों के अपूर्ण उत्तर नहीं दिए जाते थे और इससे लोकहित के कई विषयों पर कार्यवाही नहीं हो पाती थी। किंतु अब नए संशोधन से लंबित प्रश्नों के उत्तर विधानसभा कार्यकाल समाप्त होने के बाद भी दिया जाएगा और विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर का यह महत्वपूर्ण निर्णय मील का पत्थर साबित होगा। विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर ने 20 दिसंबर 2023 को अध्यक्ष पद पर निर्वाचन के बाद इस संबंध में घोषणा की थी। 8 फरवरी 2024 को विधानसभा अध्यक्ष द्वारा यह निर्णय लिया गया है कि विधानसभा का कार्यकाल समाप्त होने पर प्रश्न-संदर्भ समिति के समक्ष लंबित प्रकरणों को शून्य अथवा व्यपगत एवं समाप्त नहीं किया जाएगा। अब विधानसभा के विघटन के पूर्व सत्र तक लंबित प्रश्नों के अपूर्ण उत्तरों का परीक्षण किया जाएगा। इस संबंध में परीक्षण कर प्रश्न एवं संदर्भ समिति द्वारा कार्यवाही की जाएगी तथा समिति द्वारा अनुशंसा सहित प्रतिवेदन प्रस्तुत किया जाएगा। इसके लिए अध्यक्ष के स्थाई आदेश के अध्याय 3 प्रश्न एवं अल्प सूचना प्रश्न की कंडिका 13(क) के पश्चात संशोधन द्वारा अंत: स्थापित नवीन कंडिका 13(ख) को विलोपित कर दिया गया है। यह आदेश पूर्ववर्ती चतुर्दश एवं पंचदश विधानसभा के सभी लंबित प्रश्नों पर लागू किया जाएगा। उल्लेखनीय है कि इस संबंध में पंद्रहवीं विधानसभा में फरवरी 2023 तक ऐसे प्रकरणों की संख्या 805 है। पूर्व नियमों के अनुसार ये स्वत: व्यपगत हो गए थे, किंतु अब नियम में संशोधन होने के पश्चात् व्यपगत नहीं होंगे एवं इस संबंध में परीक्षण करके प्रश्न एवं संदर्भ समिति द्वारा कार्यवाही करके प्रतिवेदन प्रस्तुत किया जाएगा। विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर द्वारा लिया गया यह फैसला विधानसभा के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाएगा। इससे अफसरों के सवाल का जवाब टालने की प्रवृत्ति पर अंकुश लगेगा। तो यह बहाना भी नहीं चलेगा कि जानकारी एकत्र की जा रही है। या फिर अफसर विधानसभा का कार्यकाल पूरा होने पर चिंतामुक्त नहीं हो पाएंगे कि अब सवाल अतीत का हिस्सा बन गए हैं, जिनका जवाब कभी नहीं देना पड़ेगा। इससे विधानसभा सदस्यों की गरिमा बढ़ेगी और वह खुद को ज्यादा सशक्त महसूस करेंगे। और बात केवल इस एक लोकहितकारी फैसले पर खत्म होने वाली नहीं है। वहीं 1 जुलाई से शुरू हुए मानसून सत्र के पांचों दिवस उन्होंने जिस तरह सदन का संचालन किया उससे भाजपा और कांग्रेस दोनों के विधायक संतुष्ट नजर आए। इस तरह तोमर ने विधानसभा अध्यक्ष पर लगने वाले पक्षपात के दाग को धो डाला है।

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