अनुपयोगी संपत्ति बेच 1,000 करोड़ जुटाएगी सरकार

सरकारी संपत्तियां
  • मप्र लोक परिसम्पत्ति प्रबंधन विभाग ने चिन्हित की 300 सरकारी सम्पत्तियां
  • अब तक 100 करोड़ की सरकारी सम्पत्तियां बिकी

मप्र में हजारों सरकारी संपत्तियां ऐसी हैं, जो अनुपयोगी पड़ी हुई हैं और उनमें से कई अतिक्रमणकारियों के कब्जे में है। इन संपत्तियों की पहचान कर उन्हें उचित दाम पर बेचकर सरकार राजस्व जुटाने की कवायद में जुटी हुई है। प्रदेश में अभी तक करीब 300 अनुपयोगी सरकारी संपत्तियों की पहचान हो चुकी है। सरकार इन्हें बेचकर 1,000 करोड़ रुपए जुटाएगी। अभी तक 100 करोड़ रुपए की संपत्तियां बेची जा चुकी हैं। विधानसभा में भी सरकार ने इसकी जानकारी दी है।

विनोद कुमार उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम
भोपाल (डीएनएन)।
देश के हृदय प्रदेश मप्र की सरकारी संपत्तियां देश के कई राज्यों के साथ ही प्रदेश के कोने-कोने में अनुपयोगी पड़ी हुई हैं। इन संपत्तियों को चिन्हित करने और उन्हें उचित मूल्य पर बेचने के लिए सरकार ने मध्यप्रदेश लोक परिसम्पत्ति प्रबंधन विभाग का गठन कुछ समय किया था। इस विभाग के जरिए सरकारी जमीनों को चिन्हित कर उनकी नीलामी की जा रही है। प्रदेशभर में लगभग 300 सरकारी सम्पत्तियों को बेचकर एक हजार करोड़ रुपए हासिल करने का लक्ष्य रखा गया है। अभी तक 16 सम्पत्तियां बिकी है, जिनसे लगभग 100 करोड़ रुपए शासन ने अर्जित कर लिए।
शिवराज सरकार ने भोपाल सहित प्रदेशभर में पड़ी सरकारी जमीनों की नीलाम की प्रक्रिया शुरू करवाई है, जिसमें तमाम विभागों की जमीनों को शामिल किया गया है और उसके लिए अलग से मध्यप्रदेश लोक परिसम्पत्ति प्रबंधन विभाग का भी गठन किया गया है। अभी पिछले दिनों ही राजस्व विभाग की इंदौर के पिपल्याहाना स्थित दो हजार वर्गमीटर की जमीन को भी नीलाम करने का निर्णय लिया गया। खसरा नं. 471/1/2 और 471/2 पिपल्याहाना जमीन पार्ट-1 को नीलाम किया जा रहा है, जिसके लिए 21 जनवरी अंतिम तिथि तय की गई है और इस जमीन का आरक्षित मूल्य शासन ने 4 करोड़ 22 लाख रुपए तय किया है। वहीं दूसरी तरफ शासन ने लगभग ऐसी 300 सरकारी सम्पत्तियों को बेचने की योजना बनाई है।

सैकड़ों संपत्तियों पर अवैध कब्जे
दरअसल तमाम विभागों के पास अनुपयोगी जमीनें पड़ी हैं, जिन पर अवैध कब्जे भी हो जाते हैं। झुग्गी झोपड़ी, ठेले, गुमटी से लेकर नेताओं के दबाव में भी ये जमीनें अवैध कब्जे का शिकार होती है। मध्यप्रदेश सडक़ परिवहन, जिसे कि पहले रोडवेज के नाम से जाना जाता था, उसकी भी इंदौर सहित प्रदेशभर में बेशकीमती सम्पत्तियां हैं, उन्हें भी इसी तरह नीलाम किया जाएगा। शासन ने 52 विभागों क सम्पत्तियों की सूची तैयार की है, जिन्हें बेचकर एक हजार करोड़ रुपए तक हासिल करने का लक्ष्य रखा गया है। सालों पहले रोडवेज बंद हो गया और उसकी बसें भी नीलाम हो गई और अब जो जमीनें बची हैं उन्हें भी बेचा जाएगा। इसी तरह मिलों की जमीनों को भी इसी योजना में शामिल कर नीलाम करेंगे। अभी कलेक्टर को रोडवेज की जमीन नीलाम करवाने की व्यवस्था करने के निर्देश दिए गए हैं। मालवा मिल – पाटनीपुरा क्षेत्र में रोडवेज की लगभग 3 लाख स्क्वेयर फीट जमीन मौजूद है। चूंकि यह जमीन बड़ी है और एक साथ बिकने में दिक्कत आएगी। लिहाजा इसे 5 भागों में बांटकर बेचा जाएगा। 40-50 हजार स्क्वेयर फीट के 5 भूखंड तैयार कर ये जमीन नीलामी के जरिए बिकेगी, जिसके लिए ऑनलाइन ही टेंडर आमंत्रित किए जाएंगे। एडीएम पवन जैन के मुताबिक इस जमीन का सीमांकन भी कराया जा चुका है और पहुंच मार्ग 60 फीट चौड़े रहेंगे। जो अतिक्रमण हैं उन्हें हटाया जाएगा और अन्य निर्माणों का अधिग्रहण भी किया जा सकता है। तहसीलदार, पटवारी सहित अन्य राजस्व अमला इस तरह की जमीनों की नीलामी की प्रक्रिया सुनिश्चित करने में जुटा है। इंदौर में कई अन्य सम्पत्तियों को भी इसी तरह बेचा जाएगा।
विधानसभा में राजस्व मंत्री गोविंद राजपूत ने कांग्रेस विधायक आरिफ अकील के सवाल के लिखित जवाब में जानकारी दी है कि मप्र के भोपाल, इंदौर, जबलपुर और नर्मदापुरम संभागों में शासकीय, खाली पड़ी अनुपयोगी जमीन तथा सम्पत्ति को बेचकर सरकार ने 48 करोड़ 92 लाख रुपए जुटाए है। वहीं, लगभग डेढ़ सौ करोड़ रुपए की सम्पत्ति और चिन्हित की गई है जिसे सरकार बेचेगी। अकील ने पूछा था कि सरकार ने इन चारों संभागों में शासकीय भूमि, सम्पत्ति खाली और अनुपयोगी मानकर कितनी सम्पत्ति बेचने के लिए चिन्हित की है। इस पर राजस्व मंत्री गोविंद राजपूत ने बताया कि भोपाल संभाग में मंत्रालय गृह निर्माण समिति सनखेड़ी भोपाल की एक करोड़ 49 लाख, सोयाबीन प्रसंस्करण प्लांट पचामा जिला सीहोर स्थित औद्योगिक सम्पत्ति का स्क्रैप प्लांट और मशनरी 4 करोड़ 80 लाख, ब्यावरा बस डिपो राजगढ़ की सम्पत्ति 8 करोड़ 15 लाख, और सेंट्रल प्रेस बैरागढ ़भोपाल की सम्पत्ति 19 करोड़ 93 लाख रुपए में बेचने के लिए चिन्हित की गई है। इसी तरह इंदौर संभाग में प्लाट नंबर 151 बी स्कीम नंबर 59, अमितेश नगर आईडीए इंदौर में तीन करोड़ 52 लाख, संभागीय कर्मशाला मल्हार गंज इंदौर 25 करोड़ 51 लाख, तलावली चांदा इंदौर की सम्पत्ति 163 करोड़ 32 लाख, केन्द्रीय कर्मशाला महू 5 करोड़ 12 लाख, पिपल्याहाना इंदौर 10 करोड़ 2 लाख,मोती तबेला इंदौर की सम्पत्ति 6 करोड़ 31 लाख रुपए में बेचने के लिए चिन्हित की है। इसके अलावा जबलपुर संभाग में भारत कॉलोनी जबलपुर में सवा छह करोड़, संभागीय कार्यालय जबलपुर में 15 करोड़ 5 लाख, अंबेडकर चौक बालाघाट में 3 करोड़ 8 लाख, गायत्री नगर कटनी में 26 करोड़ 18 लाख, अमरवाड़ा बस डिपो दिंदवाड़ा 6 करोड़ 59 लाख, नरसिंहपुर बस डिपो 12 करोड़ 71 लाख और नर्मदापुरम संभाग में लोक निर्माण विभाग का इटारसी का गेस्ट हाउस 24 करोड़ 2 लाख रुपए में बेचने के लिए चिन्हित की है। वहीं चिन्हित की गई अनुपयोगी सम्पत्ति में से सोयाबीन प्रसंस्करण प्लांट पचामा की प्लांट और मशनरी 7 करोड़ 58 लाख, आईडीए इंदौर में प्लांट नंबर 151 स्कीम नंबर 59 अमितेश नगर की सम्पत्ति 7 करोड़ 67 लाख, इटारसी में पीडब्ल्यूडी का विश्रामगृह 31 करोड़ 61 लाख रुपए और मंत्रालय गृह निर्माण सहकारी समिति की सनखेड़ी भोपाल स्थित जमीन दो करोड़ 6 लाख रुपए में उच्चतम बोली के आधार पर बेची गई है।

अनुपयोगी संपत्तियों की बन रही सूची
मप्र में फैली राज्य शासन की ऐसी संपत्तियां जो मृतप्राय हैं और जिनका कोई उपयोग नहीं हो पा रहा है, सरकार उनको बेचने की तैयारी कर रही है। शासन का मानना है कि इन संपत्तियों पर अवैध कब्जे और अतिक्रमण हो रहे हैं। ऐसे में इन संपत्तियों का बेहतर प्रबंधन करना जरूरी है। इसी के लिए सरकार ने हाल ही में लोक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग बनाया है। विभाग प्रदेशभर की अनुपयोगी सरकारी संपत्तियों को सूचीबद्ध कर रहा है। अभी तक करीब 300 से अधिक संपत्तियों को चिन्हित किया गया है, जिन्हें बेचना है। दरअसल, सत्ता में आने के बाद से ही खजाना खाली होने के चलते आर्थिक संकट से जूझ रही प्रदेश की शिवराज सरकार लगातार आय के साधन को बढ़ाने में जुटी हुई है। राजस्व में बढ़ोत्तरी के लिए आए दिन बड़े-बड़े फैसले लिए जा रहे हैं। इसी कड़ी में अब सरकार प्रदेश भर में मौजूद सरकारी संपत्तियों को बेच रही है।
गौरतलब है कि प्रदेश सरकार की कहां, कितनी संपत्ति है, उसका क्या व्यावसायिक या अन्य उपयोग किया जा सकता है। इसका प्रबंधन करने के लिए सरकार ने एक अलग लोक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग बनाया है। यह विभाग प्रदेशभर में सरकारी संपत्तियों की सूची तैयार कर रहा है। विभाग संपत्ति के रखरखाव के साथ उसके औचित्य का निर्धारण भी करेगा। संपत्ति के बारे में नीति और गाइडलाइन तैयार करेगा। सरकार को इस संपत्ति के बारे में राय देगा कि उसे बेचना उचित है या नहीं। उसका किस तरह से व्यावसायिक उपयोग किया जा सकता है। जमीनों के मॉनीटाइजेशन के लिए विकल्प ढूंढ़ेगा, जिससे सरकार को अतिरिक्त आय प्राप्त हो सके। इसके लिए वह विभागों से विचार-विमर्श और समन्वय से काम करेगा। पीपीपी प्रोजेक्ट में यह अन्य विभागों या एजेंसियों को सलाह भी देगा।

प्रदेश के बाहर की संपत्तियां भी बिकेंगी
प्रदेश में तकरीबन सभी विभागों के पास अचल संपत्तियां हैं। लोक निर्माण विभाग के पास जो रेस्ट हाउस हैं, उनमें निर्माण तो एक या डेढ़ हजार वर्गफीट पर है लेकिन ढाई से सात एकड़ तक जमीन खाली पड़ी हुई है। साथ ही वो अचल संपत्ति, जिसका उपयोग नहीं हो रहा है, उनके निराकरण की समयबद्ध कार्ययोजना बनाने को कहा गया है। ऐसी सभी संपत्तियों का उपयोग अब राज्य हित में वित्तीय संसाधन जुटाने के लिए किया जाएगा। सरकार ने लोक निर्माण और सडक़ परिवहन निगम की कुछ संपत्तियां नीलाम कर दी गई हैं और कुछ करने की तैयारी शुरू कर दी है। सूत्रों का कहना है कि प्रदेश में वर्तमान सरकार ने सरकारी संपत्तियां बेचने की सबसे बड़ी योजना शुरू की है। इसके तहत बस डिपो, रेस्ट हाउस, मकान, खाली भूखंड, कारखाने, ऑफिस, बिल्डिंग, रेशम केंद्र, सिल्क केंद्र आदि बेचे जा रहे हैं। फिलहाल प्रदेशभर में संपत्तियों को सूचीबद्ध किया गया है। इन संपत्तियों को लोक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग की वेबसाइट पर प्रदर्शित किया गया है। विभागीय अधिकारियों का कहना है कि इनमें से कई संपत्तियों की बिक्री के लिए टेंडर जारी किए जा चुके हैं। कुछ संपत्तियों की बोली भी शुरू हो गई है।
मप्र के बाहर शासकीय परिसंपत्तियों से आय बढ़ाने के लिए सरकार उनका नए सिरे से उपयोग करेगी। इसके लिए नगरीय विकास एवं आवास विभाग ने पुनर्घनत्वीकरण नीति 2016 में बदलाव का मसौदा तैयार किया है। इसके तहत मप्र के स्वामित्व वाली वे संपत्तियां जो अन्य राज्यों में है और अविवादित हैं, उन्हें नीति में शामिल किया जाएगा। वहीं, लोक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग के माध्यम से विभिन्न विभागों की अनुपयोगी परिसंपत्तियों को नीलाम करने कार्रवाई शुरू कर दी गई है। शहरी क्षेत्रों में स्थित शासकीय भवन और परिसरों के नए सिरे से उपयोग के लिए पुनर्घनत्वीकरण नीति 2016 में लागू की गई थी। इसका दायरा सीमित था लेकिन अब इसके विस्तार की जरूरत महसूस की जा रही है। इसे देखते हुए नगरीय विकास एवं आवास विभाग ने नीति में संशोधन का मसौदा तैयार किया है। सूत्रों के मुताबिक निगम, मंडल, प्राधिकरण और नगरीय निकायों के भवन या परिसर भूमि का नए सिरे से उपयोग किया जा सकेगा। प्रदेश के बाहर स्थिति अविवादित और अनुपयोग संपत्ति भी नीति के दायरे में आएगी। प्रदेश की उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र सहित अन्य राज्यों में संपत्तियां हैं। पुनर्घनत्वीकरण के अलावा उन संपत्तियों को नीलाम करने की प्रक्रिया भी चल रही है, जो अनुपयोगी हैं। इसके लिए अब लोक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग बनाया गया है। सभी विभागों ने अपनी परिसंपत्तियों की जानकारी इस विभाग के पोर्टल पर दर्ज की हैं। विभाग द्वारा की जा रही कार्रवाई की लगातार समीक्षा मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस कर रहे हैं। नगरीय विकास एवं आवास विभाग के अधिकारियों का कहना है कि राजस्व, वित्त, लोक निर्माण सहित अन्य विभागों का अभिमत लिया जा रहा है। मप्र राज्य परिवहन निगम की कई संपत्तियां गुजरात, उत्तर प्रदेश, राजस्थान व अन्य राज्यों में भी हैं। उनमें से कई सम्पत्तियों की हालत यह है कि कहीं तो दबंगों ने इन पर कब्जा कर लिया है तो कहीं स्थानीय सरकार ने। महाराष्ट्र के नागपुर में भी मप्र राज्य परिवहन निगम का एक सम्पत्ति थी, जिस पर महाराष्ट्र सरकार ने गरीबों के आवास बना दिए हैं।

घाटे में डूबे निगम-मंडलों की संपत्तियां भी बिकेंगी
सूत्रों का कहना है कि सरकार निगम-मंडलों की अनुपयोगी संपत्तियों को भी बेचने की तैयारी कर रही है। जानकारी के अनुसार प्रदेश में संचालित निगम मंडल 50,00,00,00,000 रूपए के घाटे में चल रहे हैं। आज प्रदेश के अधिकांश निगम-मंडल राजनीतिक नियुक्तियों के लिए ही जाने जाते हैं। विभाग में काम हो या न हो अध्यक्षों और उपाध्यक्षों पर हर माह लाखों रूपए स्वाहा किए जाते हैं। निगम-मंडलों की स्थापना के समय से ही ऐसा होता आया है जिसका परिणाम है कि वर्तमान समय में प्रदेश में संचालित 23 निगम मंडलों में से मात्र 2 ही निगम-मंडल ऐसे हैं जो अपनी स्थापना से लेकर आज तक लाभ में चल रहे हैं। शेष 21 निगमों में से कुछ निगम पिछले पांच सालों में अच्छी स्थिति में आ पाए हैं तो कुछ निगम ऐसे भी हैं जो स्थापना से लेकर आज तक सफेद हाथी बने हुए हैं। आज वर्तमान परिदृश्य में कई निगमों के हालात इतने बदतर हैं कि अब उन्हें बंद करने के अतिरिक्त और कोई चारा सरकार के पास नहीं है। ऐसे में अगर इन निगम-मंडलों में किसी तजुर्बेकार प्रशासनिक व्यक्ति के अनुभवों का सहारा लिया जाता तो इनमें सुधार की स्थिति बन सकती थी।
उल्लेखनीय है कि निगम-मंडलों की पंरपरा प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने सरकारी योजनाओं को प्रभावी बनाने के लिए की थी। मंशा यह थी कि अर्धसरकारी उपक्रमों के जरिए जनता को योजनाओं का प्रभावी लाभ दिलाया जा सके, लेकिन वर्तमान में इसका ढर्रा ही बदल गया और राजनीतिक रसूख के चलते निगम-मंडल की शाख पर बट्टा लग गया। इसके चलते ही निगम-मंडल बदहाल स्थिति में पहुंच गए हैं। प्रदेश में सोशलिस्टिक पैटर्न ऑफ सोसायटी के आधार पर निगम-मंडलों की स्थापना की गई थी। इनकी स्थापना के पीछे मूल उद्देश्य यह था कि राज्य में सुव्यवस्था, विकास, रोजगार और आम लोगों को सुख सुविधाएं मिले। लेकिन निगम-मंडल अपने मूल उद्देश्य से भटक गए हैं। निगम-मंडलों का बुनियादी आर्थिक ढांचा गड़बड़ा गया है। कर्मचारियों की मानें तो निगम-मंडलों के आर्थिक हालात लगातार खराब हो रहे हैं। पूंजी निवेश के कारण सरकार निजीकरण को बढ़ावा दे रही है। इससे निगम-मंडलों का राजस्व थम रहा और उनमें तालाबंदी की नौबत बन रही है। सडक़ परिवहन, गंदी बस्ती निर्माण मंडल, लेदर डेव्हलपमेंट, चर्म उद्योग, राज्य उद्योग एवं वस्त्र निगम सहित कई निगम मंडल बंद हो गए हैं। कई बंद होने की कगार पर पहुंच रहे हैं। कारण इनमें कर्मचारियों की कमी है, वहीं जो अमला कार्यरत है, उसे महंगाई के इस दौर में शासकीय कर्मचारियों की भांति छठा वेतनमान सहित अन्य प्रासंगिक सुविधा नहीं मिल पा रही है।

घाटे की राह पर मंडल
एक ओर जहां हमारे नेता निगम-मंडलों की लालबत्तियों का सुख भोगने के लिये हर संभव कोशिश कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ आपको जानकर हैरानी होगी कि प्रदेश के ज्यादातर निगम-मंडल गलत नीतियों और लगातार बढ़ रहे घाटे के कारण बदहाली की स्थिति में हैं। पिछले कई सालों में सरकार कई निगमों और मंडलों को बंद कर चुकी है, तो वहीं कई निगम-मंडल बंद होने की कगार पर हैं। इससे कर्मचारियों के सामने रोजी-रोटी का संकट पैदा होने वाला है। आंकड़ों की बात करें तो प्रदेश में निगम-मंडलों पर 709893.86 की लोन पूंजी है। पहले निगमों में 2,51,210 कर्मचारी काम कर रहे थे लेकिन लगातार छटनी और निगमों के बंद होने से अब इनकी संख्या आधी रह गई है, जबकि कर्ज तीन गुना बढ़ गया है। कर्मचारियों की तीस फीसदी से ज्यादा छटनी के बाद भी प्रदेश में निगमों का कुल घाटा 50 अरब तक पंहुच गया है। सूत्रों के मुताबिक निगमों की दुर्दशा का सबसे बड़ा कारण निजीकरण और प्रायवेट सेक्टर को लाभ पंहुचना है। उदाहरण के तौर पर निजी बस मालिकों को लाभ पहुंचाने के लिए प्रदेश के सडक़ परिवहन निगम को बंद किया गया और अब इसी की तर्ज पर निजी वेयर हाउस संचालकों को लाभ पंहुचाने के लिए वेयरहाउसिंग निगम को कमजोर किया जा रहा है, जिससे आने वाले कुछ सालों में यह निगम भी बंद होने की कगार पर पंहुच जाएगा। नौकरशाही की गलत नीतियों का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि प्रदेश के 32 निगम मंडल घाटे में चल रहे हैं, जिनमें से घाटे के चलते कुछ को बंद भी कर दिया गया है। यह घाटा हर साल बढ़ता जा रहा है।
सरकार की उपेक्षा के कारण अभी तक करीब 50 अरब का घाटा निगम-मंडलों को हुआ है। इसके पीछे एक वजह अधिकारियों की गलत नीतियां भी रही है। तिलहन संघ प्रदेश में सोयाबीन संग्रहण के लिए अग्रणी संस्था थी, जो अफसरशाही के स्वार्थो के चलते बंद हो गई है। इसी प्रकार दुग्ध संघ में टोकन से दूध निकालने की जो मशीन लगाई गई है, इससे भोपाल शहर को ही 20 लाख का घाटा हुआ है। जबकि प्रदेश में संचालित संघ 80 करोड़ 62 लाख के घाटे में आ गये हैं। आधिकारिक स्तर पर बन रहीं गलत नीतियां और हर स्तर पर निजीकरण को दिए जा रहे बढ़ावे के कारण निगम-मंडलों की हालत दिन पर दिन खराब होती जा रही है। राज्य के निगम मंडल अब धीरे-धीरे बंद होने की कगार पर पहुंच रहे है। कर्मचारियों की पीड़ा है कि पिछले 20 वर्षो से सरकार ने निगम-मंडलों में कोई भर्ती नहीं की है। इन निगम मंडलों में अधिकांश पद खाली है। इन पदों को भरने की किसी को चिंता नहीं है। यहां तक कि वित्त विभाग भी आपत्तियां लगाकर पद की मंजूरी नहीं दे रहा है। निगम मंडल के अधिकारियों को आशंका है कि अगर यही हाल रहा तो कुछ सालों में ज्यादातर लाभ वाले निगम मंडल खाली हो जाएंगे। जानकारी के अनुसार प्रदेश में निगम-मंडलों में 20 वर्ष से नई नियुक्तियां नहीं हुई है। इन उपक्रमों के प्रबंध संचालक समय-समय पर वित्त विभाग को नई नियुक्तियों के प्रस्ताव भेज चुके है। तब भी राज्य सरकार की तरफ से नियुक्तियां की अनुमति नहीं मिल रही है। इस वजह से कामकाज पर दिन प्रतिदिन असर पड़ रहा है। यहां तक कि आरक्षित पदों की भी भर्ती टाली जा रही है। वन विकास निगम प्रबंधन करीब दस वर्षो से लगातार पदों की नियुक्तियों हेतु पत्र व्यवहार कर रहा है तब भी नियुक्तियों की अनुमति नहीं मिल रही है। इस निगम में 600 पद रिक्त हैं। इन पदों के रिक्त होने से वृक्षारोपण का कार्य प्रभावित हो रहा है साथ ही जंगलों की रक्षा करने वाले रेंजरों का भी अकाल है। यही हाल नागरिक आपूर्ति निगम का है जो कि हर साल लाखों मीट्रिक टन गेहूं खरीदी का लक्ष्य तय करता है पर निगम में अधिकारियों की बेहद कमी है। जानकारी के अनुसार, गृह निर्माण मंडल-700, खनिज निगम-100, पाठ्य पुस्तक निगम-100, पर्यटन निगम-125, लघु उघोग निगम- 150, बीज एवं फार्म विकास निगम-100 पद खाली हैं। अधिकारियों का भी कहना है कि अरसे से पद रिक्त है। समय-समय पर राज्य शासन को नई नियुक्तियां करने के प्रस्ताव भेजे गए है। इन पदों की नियुक्तियों की अनुमति जल्द से जल्द मिलना चाहिए। निगम मंडलों के हालात जैसे-जैसे बिगड़ते जा रहे हैं वैसे-वैसे कर्मचारियों की फजीहत होती जा रही है। हालात यह हैं कि निगम मंडल कर्मचारियों के ऊपर निगम बंद होने की तलवार हमेशा लटकती रहती है। पता नहीं कब कौन सा निगम बंद हो जाए। हाल ही में कुछ ऐसा ही माहौल राज्य सडक़ परिवहन निगम का बना हुआ है। पता नहीं कब उसमें ताले लग जाएं। प्रदेश के 23 निगमों में से मात्र 6 निगम ही ऐसे हैं जिन्होंने अपने कर्मचारियों को छटवां वेतनमान दिया है। इनमें मध्यप्रदेश स्टेट सिविल सप्लाईज कारपोरेशन, मध्यप्रदेश पुलिस हाउसिंग कारपोरेशन, मध्यप्रदेश पर्यटन विकास निगम, मध्यप्रदेश वेयर हाउसिंग एण्ड लॉजिस्टिक्स कारपोरेशन शामिल हैं। कई निगम ऐसे भी हैं जहां अभी चौथा वेतनमान ही चल रहा है।

Related Articles