भोपाल/विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। मंहगी रेत जहां आम आदमी के सपने पर भारी पड़ रही है तो वहीं इससे प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना भी प्रभावित हो रही है। यही वजह है कि इस योजना के तहत हितग्राहियों को रेत के लिए अपनी जेब ढीली करनी पड़ रही है। यह हालात तब हैं, जबकि सरकार द्वारा योजना के हितग्राहियों को मुफ्त में रेत मुहैया कराने के लिए अलग से छह सौ रुपए की राशि तय की गई है। दरअसल पक्के मकान बनाने में कम से कम दो डंपर रेत का उपयोग होता है। जिसकी कीमत कई गुना अधिक होती है। अब ऐसे में एक आवास के लिए रेत के लिए 600 रुपए मिलने से स्थिति ऊंट के मुंह में जीरे के समान बनी हुई है। इसकी वजह है अधिकांश जगहों पर ग्रामीणों को 50 से 70 किमी दूरदराज से रेत लानी पड़ रही है, जिसके कारण प्रति ट्राली तीन हजार रुपए तक अधिक भुगतान करना पड़ रहा है। उधर, इस मामले में रेत ठेकेदारों की अपनी मजबूरी है। रेत ठेकेदारों का कहना है कि वह रेत सस्ती कैसे दें , जब उन्हें रॉयल्टी में छूट नहीं दी जा रही है। उल्लेखनीय है कि योजना के तहत ग्रामीण विकास ने हितग्राहियों को सस्ती रेत मुहैया कराने के लिए 600 रुपए प्रति ट्रैक्टर-ट्राली देने के लिए 7 फरवरी को आदेश दिए थे। इस आदेश में हितग्राहियों को 25 किमी दूरी से रेत लाने के लिए छूट प्रदान की गई है, लेकिन हजारों गांव ऐसे हैं, जिनके इतनी दूरी तक कोई रेत खदान ही नहीं है, जिसकी वजह से उन्हें 50 से 70 किमी तक की दूरी से रेत लानी पड़ती है। दूरी अधिक होने की वजह से उन्हें भाड़ा अधिक देना पड़ रहा है, जिसकी वजह से छह सौ रुपए की रेत उन्हें 2 से 3 हजार रुपए तक में पड़ रही है। इसकी वजह से आवास की लागत बढ़ जाती है। इसकी वजह से हितग्राही बेहद परेशान हैं।
हो रही है परेशानी
बालाघाट के ग्राम लेंडझरी, टेकाड़ी, चीचगांव, सालई, पनभिहरी, मानपुर, दादिया, अमोली, खारी, बम्हनी, छिंदलई, पांढरवानी, अतरी, सिहोरा, पथरसाही, कंजई, रानीकोठार, रामपुरी, खुरपुड़ी, टेकडी के लोगों को ट्रैक्टर-ट्राली से गांव से 40- 50 किमी दूर वैनगंगा नदी से रेत लानी पड़ रही है। जिसके लिए उन्हें 2 से 3 हजार रुपए ज्यादा का भुगतान करना पड़ रहा है। सबसे ज्यादा खराब स्थिति भाजपा विधायक एवं पूर्व मंत्री गौरीशंकर बिसेन के क्षेत्र परसवाड़ा की है।
17/02/2022
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