प्रदेश में सालाना करोड़ों खर्च होने के बाद भी सोन चिरैया फुर्र

सोन चिरैया

-15 साल से अभयारण्य में नहीं हुआ सोन चिरैया का दीदार
-जैसलमेर से अंडे लाकर बसाने की योजना पर राजस्थान ने फेरा पानी

भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। करीब 40 साल पहले बने ग्वालियर के घाटीगांव स्थित सोन चिरैया अभयारण्य में सोन चिरैया को बसाने के लिए करोड़ों रुपए स्वाहा हो चुके हैं, लेकिन अभयारण्य में 15 साल से सोन चिरैया का किसी ने दीदार नहीं किया है। उसके बाद भी हर साल करोड़ों रूपए संरक्षण के नाम पर खर्च किए जा रहे हैं। यही नहीं अभयारण्य में 2 साल पहले फिर से सोन चिरैया की बसाहट की कवायद शुरू की गई थी। इसके लिए जैसलमेर से सोन चिरैया के अंडे लाकर उनकी हेचिंग कराई जानी थी, लेकिन अब राजस्थान ने अंडे देने से मना कर दिया है। गौरतलब है कि अभयारण्य से सोन चिरैया पूरी तरह गायब हो गई है। हालांकि वन विभाग इसके विलुप्त हो जाने की बात नहीं स्वीकार रहा है। दो साल पहले दस साल में 50 करोड़ खर्च कर-सोनचिरैया को बसाने की योजना थी। इसके तहत राजस्थान के जैसलमेर से इसके अंडे लाने थे, लेकिन वहां से मना कर दिया गया है। राजस्थान अब सोनचिरैया के अंडों को दूसरे राज्यों को देने के बजाय अपने राज्य में ही संरक्षित करने कोटा में बसाने की तैयारी कर रहा है।
मप्र सहित अन्य राज्यों में भी खतरे में है यह: सोनचिरैया यानी ग्रेट इंडियन बस्टर्ड को प्रकृति के संरक्षण की अंतरराष्ट्रीय संस्था आईयूसीएन ने विलुप्त प्राय: पक्षियों की लाल सूची में रखा है। इसीलिए अब इस पक्षी को बचाने के लिए बड़े पैमाने पर प्रयास किए जा रहे हैं। गुजरात में यह 15 थीं, लेकिन अब वहां सिर्फ 3 बची हैं। इसी तरह कर्नाटक और महाराष्ट्र में भी एक-एक ही शेष है।
कोटा भेजे जाएंगे अंडे, फिर गुजरात को, मप्र अभी नहीं: जैसलमेर के सोनचिरैया अभयारण्य से जुड़े पक्षी विशेषज्ञ राधेश्याम पैमानी बताते हैं कि देश में सबसे अधिक संख्या में यह पक्षी राजस्थान में ही है। यहां इसकी संख्या करीब सौ है। मौजूदा स्थिति में इस पक्षी को कोटा में बसाने की कवायद की जा रही है। राजस्थान का यह राज्य पक्षी है। इसको अब कोटा में कैप्टिव ब्रीडिंग और हैचिंग के जरिए बसाने के प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन मध्यप्रदेश को अभी इसे देने का कोई प्रस्ताव सामने नहीं आया है।
15 साल में सौनचिरैया तो नहीं दिखी, पत्थर माफिया का राज: पत्थर माफिया के लिए अवैध उत्खनन का सुरक्षित क्षेत्र बन चुके सोनचिरैया अभयारण्य में आखिरी बार यह चिड़िया 2007 में दिखाई देने का दावा किया गया था, इसके चार साल बाद यहां उसके अंडे मिलने की बात सामने आई थी, लेकिन सोनचिरैया कहीं नजर नहीं आई। इसे दोबारा बसाने की योजना को अभी तक धरातल पर नहीं उतारा जा सका। यहां न तो सोन चिरैया के अंडे ही आ सके हैं और न ही उनको बसाने की कोई कवायद हुई है। हालत यह है कि सोन चिरैया का पुनर्वास करने के लिए कूनो से लाई गई घास भी गायब हो गई है।
संरक्षण के नाम पर हर माह 10 लाख खर्च
हैरत की बात यह है कि सोन चिरैया नजर नहीं आती पर मप्र में हर वर्ष करीब 10 लाख रुपए उसके संरक्षण के नाम पर खर्च हो जाते हैं। सोनचिरैया यानी ग्रेट इंडियन बस्टर्ड को प्रकृति के संरक्षण की अंतरराष्ट्रीय संस्था आईयूसीएन ने विलुप्त प्राय पक्षियों की लाल सूची में रखा है। वहीं पक्षी विशेषज्ञों की मानें तो ग्वालियर के सोन चिरैया अभयारण्य में ही यह 12 साल से नजर नहीं आई है। 2017 की गणना में मध्यप्रदेश में इसे नहीं पाया गया था। गुजरात में यह 15 थीं, लेकिन अब सिर्फ 3 बची है। इसी तरह कर्नाटक और महाराष्ट्र में भी एक-एक ही शेष है। जैसलमेर के सोनचिरैया अभयारण्य से जुड़े पक्षी विशेषज्ञ राधेश्याम पैमानी बताते हैं कि देश में सबसे अधिक संख्या में यह पक्षी राजस्थान में ही है। यहां इसकी संख्या करीब सौ है। राजस्थान का यह राज्य पक्षी है। इसे अब कोटा में कैप्टिव ब्रीडिंग और हैचिंग के जरिए बसाने के प्रयास किए जा रहे हैं।
सोनचिरैया बसाने की ये है जमीनी हकीकत
तिघरा क्षेत्र सोन चिरैया क्षेत्र में आवास पुनर्वास के लिए चारागाह प्लांटेश विकसित किए गए थे। इसकी फैंसिंग की गई थी और कूनो से विशेष घास लाने की योजना भी बनाई गई थी। यह घास लगाने के लिए साथ ही 50 से 100 हेक्टेयर में सात चारागाह विकसित करने की योजना तैयार की गई थी। इस योजना के माध्यम से प्लांटेशन करके प्राकृतिक चारागाह तैयार किए जाने थे। सोन चिरैया के लिए जिस तरह का चारा जैसलमेर में उगता है, उसे तिघरा मैं भी उगाने की तैयारी की गई थी। लेकिन यह सब फाइलों मे ही सिमट कर रह गया और अभी तक न तो चारागाह विकसित हो पाए हैं, न ही जमीन को अतिक्रमण से बचाने की कोशिश की जा रही है।

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