कोरोनाकाल में गरीबों को बांटा गया जानवरों को खिलाने वाला चावल

कोरोनाकाल

केंद्र ने रोका मप्र के 225 करोड़

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। कोरोनाकाल में गरीबों को मुफ्त अनाज देने के नाम पर उनको जानवरों को खिलाने वाला घटिया किस्म का चावल बांटने का सनसनीखेज मामला सामने आने के बाद केंद्र सरकार ने इसे गंभीरता से लिया है और पोल्ट्री ग्रेड का चावल अपग्रेड करने के मामले में मानकों का पालन न होने पर केंद्र ने राज्य के 225 करोड़ रुपए रोक दिए हैं। केंद्रीय खाद्य मंत्रालय ने इसकी गुणवत्ता सुधारने और इसके दस्तावेज प्रस्तुत करने के लिए कहा था, जो नहीं दिए गए।  इससे यह राशि रोक दी गई है।
दरअसल, कोविड के दो साल में जानवरों को खिलाने का चावल गरीबों को बांटे जाने का मामला उजागर हुआ था। केंद्र की टीम ने बालाघाट एवं मंडला जिले वेयर हाउस एवं राशन की दुकानों से 32 सेंपल लिए। इसकी जांच ग्रेन एनालिसिस लेबोरेटरी (सीजीएएल) में करवाई तो पाया गया कि यह चावल बकरी, घोड़े और भेड़ के खाने लायक था। उसके बाद चावल को इंसानों के खाने योग्य बनाने के बाद ही वितरित किए जाने की अनुमति दी गई थी। बाद में इस मामले में सुधार किया गया और 1600 करोड़ रुपए राज्य को केंद्र से मिल गए। लेकिन, आगे दस्तावेज प्रस्तुत न करने पर 225 करोड़ रुपए रोके गए हैं।
जांच में सामने आई स्थिति
 घटिया चावल बांटे जाने की शिकायतों के बाद केंद्रीय उपभोक्ता मंत्रालय के डिप्टी कमिश्नर की अगुवाई वाली टीम ने बालाघाट और मंडला जिले में गोदामों और राइस मिल्स का निरीक्षण कर 32 सैंपल लिए गए, जिनकी जांच दिल्ली के कृषि भवन की ग्रेन अनालिसिस प्रयोगशाला में हुई।
जांच में ये सैंपल अनफिट और फीड कैटेगरी के पाए गए। केंद्रीय मंत्रालय की रिपोर्ट कहती है कि जो चावल गोदामों से पीडीएस के जरिए बांटा गया, वह जानवरों और कुक्कुट को खिलाने लायक भर है। मंत्रालय ने जिस चावल को जानवरों के खाने लायक बताया है उसको बालाघाट जिले में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिए गरीबों के बीच बांटा जा रहा है। सफेद चावल का काला कारनामा-बालाघाट जिला जो मध्य प्रदेश ही नहीं, बल्कि देश भर में चावल की खास किस्मों, जायके और खुशबू के लिए खास पहचान रखता है।
यही वजह है कि यहां के चावल की भारी डिमांड रहती है। बालाघाट बड़ा धान उत्पादक जिला है, और इस वर्ष तकरीबन 40 लाख क्विंटल धान की खरीदी विपणन संघ ने की है। जिले में अनुबंध के तहत राइस मिलर्स को 30 लाख क्विंटल धान चावल की मिलिंग के लिए दी गई, जिसका 67 फीसदी इन राइस मिलर्स को वापस सरकारी गोदामों में जमा करना पड़ता था। लेकिन अधिकारियों और राइस मिलर्स की सांठगांठ के लिए मिलिंग से पहले ही धान को दूसरे राज्यों में बेचने और बिहार-यूपी जैसे राज्यों से घटिया चावल मंगवाकर सरकारी गोदाम में जमा करने का काला कारनामा सामने आया है।
नहीं किया मापदंडों को पूरा
सरकार धान से चावल बनाए जाने के लिए मिलर्स को देती है। उनके द्वारा धान से चावल निकालकर वेयर हाउस कॉर्पोरेशन के गोदाम और वहां से राशन की दुकानों को भेजा जाना था। यह बात सामने आई कि मिलर्स ने धान से निकला हुआ चावल कहीं बेच दिया और खाद्य नागरिक आपूर्ति निगम को पोल्ट्री ग्रेड का चावल वापस किया। यही चावल राशन की दुकानों से कोविड काल में वितरित किया जा रहा था। मिलर्स द्वारा धान से तैयार चावल एफएक्यू मानक के हिसाब से होना था। एफएक्यू यानी 100 किलो धान से 67 किलो चावल निकलता है जो औसत माना गया है। 33 फीसदी कतरन रहती है। कतरन युक्त चावल को मिलर्स अपग्रेड कर वितरित करते हैं।

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