नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने गुरुवार को कहा कि राज्य स्तर पर कुछ नौकरशाहों के पास राजनेताओं की तुलना में अधिक शक्ति है। उन्होंने आत्मनिरीक्षण और उनकी काउंसलिंग करने का आह्वान किया ताकि वे लोक सेवा की मूलभूत भावना के अनुरूप काम करें। सिविल सेवा के अधिकारियों को संबोधित करते हुए धनखड़ ने कहा कि देश के कुछ हिस्सों में राजनीतिक आकाओं की मिलीभगत, संघीय ढांचे पर दबाव और पारदर्शिता एवं जवाबदेही को नुकसान पहुंचाने के कारण ‘भारत के मजबूत ढांचे’ को कमजोर किया जा रहा है।
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने 16वें लोक सेवा दिवस के मौके पर दो दिवसीय समारोह के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि राज्य स्तर पर कुछ नौकरशाह राजनेताओं के लिए वास्तविक चुनौती बन रहे हैं। उनके पास अधिक शक्ति है जिससे कोई भी राजनेता ईर्ष्या कर सकता है। इस मामले में आत्मनिरीक्षण और उनकी काउंसलिंग करने की आवश्यकता है ताकि लोक सेवा की मूलभूत भावना के साथ काम हो और दशकों से अर्जित प्रतिष्ठा का ध्यान रखा जाए। पश्चिम बंगाल के राज्यपाल के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान राज्य की ममता बनर्जी सरकार के साथ लगातार गतिरोध रखने वाले धनखड़ ने कहा कि केंद्र और राज्यों के बीच सौहार्द के साथ मिलकर काम करना संवैधानिक अनिवार्यता है और लोक सेवक इसमें अहम भूमिका निभाता है।
उन्होंने कहा कि इन मुद्दों को ज्यादा खींचने के बजाय इनके समाधान की जरूरत है। उन्होंने कहा कि ईमानदारी के साथ अखिल भारतीय सेवा (आचरण) नियम, 1968 एवं संबंधित कानूनी व्यवस्था का पालन करना वैकल्पिक नहीं है। धनखड़ ने नियमों में ऐसे ही एक प्रावधान का उल्लेख करते हुए कहा कि अपने आला अधिकारी से कोई मौखिक निर्देश प्राप्त करने वाले लोक सेवक के लिए इसकी जल्द से जल्द लिखित में पुष्टि मांगना अनिवार्य है। धनखड़ ने कहा कि कुछ मामलों में इसका उल्लंघन देखा गया है।
उन्होंने कहा, मौखिक निर्देशों से शासन चलाना दुर्भाग्य से शासन का स्वीकार्य तरीका बन गया है और यह तभी रुक सकता है जब आपकी शक्तिशाली बिरादारी से या तो संघ के माध्यम से या अन्य किसी तरीके से काउंसलिंग और मार्गदर्शन हो। उपराष्ट्रपति ने कहा, यह संवैधानिक अनिवार्यता है कि केंद्र और राज्यों के प्रशासन में एकरूपता होनी चाहिए ताकि संघवाद सहयोगात्मक संघवाद में विकसित हो सके जैसा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कल्पना की थी। उन्होंने कहा, मुद्दों का सुगम तरीके से समाधान करना आवश्यक है ताकि लोक सेवा का प्रभाव और प्रतिष्ठा कम नहीं हो।
धनखड़ ने कहा कि नौकरशाही स्वाभाविक रूप से विधायिका, न्यायपालिका और राजनीतिक कार्यपालिका के हस्तक्षेप से ग्रस्त है। उन्होंने कहा, इन संस्थानों से सौहार्द के साथ काम करने की अपेक्षा की जाती है। उनमें टकराव की अपेक्षा नहीं होती। वे शिकायती रुख नहीं अपना सकते। उन्हें सहयोगी रूप में रहना होगा … इसके लिए हम सभी को काम करना चाहिए। यदि हमारे लोकतंत्र को फलते-फूलते और बनाए रखना है तो अधिकारों के विभाजन के सिद्धांत का पालन करना होगा।
उन्होंने कहा कि ‘राष्ट्र सदैव प्रथम’ लोक सेवकों के लिए हमेशा मार्गदर्शक सिद्धांत रहा है। वर्ष 2018 में भ्रष्टाचार-रोधी अधिनियम में संशोधन करते हुए धारा 17ए को शामिल करना यह सुनिश्चित करने के लिए सही दिशा में उठाया गया कदम था कि लोक सेवक अपने कर्तव्यों का निर्वहन ठीक से कर सकें। उन्होंने अपने लगभग 48 मिनट के भाषण में कहा कि ‘विकसित भारत’ का सपना पूरा करने में लोक सेवाओं की अहम भूमिका है। धनखड़ ने कठिन परिश्रम के जरिये विकास कार्यों को आगे बढ़ाने के लिए नौकरशाही की सराहना भी की। उन्होंने कहा, हमारे लोक सेवा ढांचे को समाज के सभी वर्गों के प्रतिनिधि मिल रहे हैं। राष्ट्र सदैव प्रथम, हमारा मार्गदर्शक सिद्धांत होना चाहिए।