नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अंधविश्वास और जादू-टोना से जुड़ी एक याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया। दरअसल, याचिका में केंद्र और राज्य सरकारों को अंधविश्वास, जादू-टोना और संबंधित प्रथाओं को समाप्त करने के उद्देश्य से उपाय अपनाने के निर्देश देने की मांग की गई थी। अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दी गई याचिका में अंधविश्वास और जादू-टोना के खिलाफ सख्त कानूनों की आवश्यकता पर तर्क दिया गया था, ताकि समुदाय को नकारात्मक रूप से प्रभावित करने वाले अवैज्ञानिक कृत्यों का मुकाबला किया जा सके और धोखेबाज पाखंडियों द्वारा शोषण को रोका जा सके।
प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की तीन सदस्यीय पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि अंधविश्वास को खत्म करने का समाधान न्यायिक आदेशों के बजाय शिक्षा में निहित है। पीठ ने कहा कि हम वैज्ञानिक सोच विकसित करने और अंधविश्वास को खत्म करने के लिए कदम उठाने के लिए रिट कैसे जारी कर सकते हैं। संविधान के संस्थापकों ने यह सब राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों में शामिल किया था। सीजेआई ने कहा कि यह शिक्षा के बारे में भी है और धारणा यह है कि आप जितना अधिक शिक्षित होंगे, आपका रुझान इन पर नहीं होगा। लेकिन अदालत वैज्ञानिक सोच बढ़ाने का निर्देश कैसे दे सकती है? सीजेआई ने कहा कि संविधान में राज्यों को अंधविश्वास मिटाने और वैज्ञानिक सोच विकसित करने का निर्देश है।
डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि ऐसी हजारों चीजें हैं, जो बच्चों को पाठ्यक्रम में सीखनी चाहिए। आप परिवार, दोस्तों आदि के जरिए बहुत कुछ सीखते हैं। संसद हस्तक्षेप कर सकती है और व्यापक हितधारक परामर्श के बाद वैज्ञानिक स्वभाव के लिए एक कानून बना सकती है, लेकिन हम इसमें हस्तक्षेप के लिए तैयार नहीं है। पीठ द्वारा इस मामले पर विचार करने से इनकार करने के बाद याचिकाकर्ता ने याचिका वापस ले ली। सुप्रीम कोर्ट ने शंभू सीमा पर प्रदर्शन कर रहे किसानों से उनकी मांगों का समाधान निकालने के लिए एक समिति के गठन के लिए हरियाणा और पंजाब दोनों से एक समान नाम सुझाने को कहा। अदालत का कहना है कि अंबाला के पास शंभू बॉर्डर पर यथास्थिति बनाए रखने का उसका पहले का आदेश जारी रहेगा। बता दें, यहां किसान 13 फरवरी से डेरा डाले हुए हैं।