खत्म हो जातिगत भेदभाव: डीएमके

डीएमके

नई दिल्ली। द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) ने बुधवार को कहा कि उसने समान नागरिक संहिता के खिलाफ अपना विरोध-पत्र लॉ कमीशन को सौंप दिया। इसमें पार्टी ने केंद्र से प्रस्तावित संहिता को लागू नहीं करने की सिफारिश करने का आग्रह किया है। डीएमके ने कानून पैनल को सौंपे अपने पत्र में कहा कि यूसीसी विभाजनकारी है और यह शांति और सद्भाव को बिगाड़ देगा। यह लोगों के हित में नहीं हैं। पार्टी ने कानून पैनल को बताया कि भारत की सुंदरता हमेशा इसकी विविधता में रही है। ऐसे में यूसीसी जैसे विभाजनकारी कानून तमिलनाडु में धार्मिक समूहों के बीच शांति और सद्भाव को बिगाड़ देंगे। यह जातीय या धार्मिक समूहों के बीच संघर्ष पैदा कर सकता है और इससे मणिपुर जैसी भयानक हिंसा हो सकती है, जिसे केंद्र और राज्य सरकारें नियंत्रित नहीं कर सकती हैं।

द्रविड़ियन पार्टी ने केंद्र सरकार को सुझाव दिया है कि उसको सबसे पहले मंदिरों में सभी जातियों के पुजारियों की नियुक्ति और जातिगत भेदभाव को खत्म करना चाहिए। उसने कहा कि एक राष्ट्र, एक भाषा और एक संस्कृति के प्रति भाजपा का ‘जुनून’ अब एक नागरिक संहिता में बदल रहा है। द्रविड़ मुनेत्र कड़गम का कहना है कि यूसीसी सभी संप्रदायों के लोगों के अधिकारों पर व्यापक प्रभाव डालेगा। इससे कानून-व्यवस्था और शांति पर विनाशकारी प्रभाव पड़ेगा। इतना ही नहीं यह राज्यों की विधायी शक्तियों में हस्तक्षेप करने की अनुमति भी देगा। शादी- विवाह और तलाक पर केंद्र और राज्य दोनों के पास कानून बनाने की शक्ति है और कानून बनाने के लिए राज्यों की शक्ति को छीनना असंवैधानिक है और फेडरल सिस्टम के सिद्धांतों के खिलाफ है।

डीएमके ने यूसीसी का कड़ा विरोध जताते हुए कहा कि समान नागरिक संहिता भारत के संविधान के अनुच्छेद 25 के खिलाफ है, जो किसी भी धर्म का पालन करने और प्रचार करने की इजाजत देता है। इसके अलावा यह अनुच्छेद 29 के तहत अल्पसंख्यकों को दिए गए अधिकारों के विपरीत है। डीएमके अनुच्छेद 29(1)  के तहत अल्पसंख्यकों की संस्कृति को संवैधानिक संरक्षण की ओर इशारा किया और कहा कि अगर केंद्र का इरादा महिलाओं और बच्चों को समान अधिकार देना है, तो इसमें संशोधन हो सकता है।

पार्टी ने कहा कि व्यक्तिगत कानूनों में यूसीसी लागू करने का कोई स्पष्ट उद्देश्य नहीं है। यह न केवल अल्पसंख्यक धर्मों बल्कि बहुसंख्यक धर्मों के भीतर मौजूद अल्पसंख्यक समुदायों का अनोखापन खत्म कर देगा। उदाहरण के लिए हिंदू धर्म को मानने वाले अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों की शादी, तलाक और उत्तराधिकार से संबंधित अलग-अलग परंपराएं और रीति-रिवाज हैं। इन जनजातियों को अचानक कानून द्वारा सदियों पुरानी परंपरा और रीति-रिवाज को छोड़कर यूसीसी का पालन करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है।

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