गृहमंत्री अमित शाह ने कानूनों में स्पष्टता की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि न्यायपालिका तभी हस्तक्षेप कर सकती है, जब कानून बनाने के लिए जिम्मेदार लोग अस्पष्ट क्षेत्रों को छोड़ दें। केंद्रीय गृह मंत्री गुजरात विधानसभा सचिवालय के अधिकारियों के लिए आयोजित एक दिवसीय ‘विधान प्रारूपण प्रशिक्षण कार्यशाला’ के हिस्से के रूप में गुजरात विधानसभा को संबोधित कर रहे थे। इस दौरान अमित शाह ने सदन को संबोधित करते हुए कहा, मुझे पता है कि मैं जो कुछ भी बोलने जा रहा हूं, उससे विवाद पैदा होगा, लेकिन मैं आपको बताना चाहता हूं कि न्यायपालिका तभी हस्तक्षेप करेगी, जब आप कानून बनाने में किसी अस्पष्ट क्षेत्र को छोड़ देंगे। कानून में जितनी स्पष्टता होगी, अदालतों का हस्तक्षेप उतना ही कम होगा। इस दौरान इस कार्यक्रम में विधायक, सांसद और पूर्व विधायक और स्पीकर मौजूद थे।
केंद्र सरकार की तरफ से अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के कदम का हवाला देते हुए उन्होंने कहा, जब अनुच्छेद का मसौदा तैयार किया गया था, तो यह स्पष्ट रूप से लिखा गया था कि यह संविधान का एक अस्थायी प्रावधान है, जिसे संसद में साधारण बहुमत से पारित किए जाने वाले संशोधन के माध्यम से हटाया जा सकता है। गृह मंत्री ने कहा, अगर यह लिखा होता कि यह अस्थायी के बजाय एक संवैधानिक प्रावधान है, तो हमें मतदान के दौरान साधारण बहुमत के बजाय दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती। इस प्रकार, अधिक स्पष्टता से न्यायिक हस्तक्षेप कम होता है। अगस्त 2019 में, केंद्र ने संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू और कश्मीर को दिए गए विशेष दर्जे को रद्द कर दिया। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे अस्थायी प्रावधान बताते हुए निरस्तीकरण को बरकरार रखा। शाह ने दावा किया कि विधानों का खराब मसौदा मुख्य कारण है कि आज विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच अंतर धुंधला हो रहा है। उन्होंने कहा, हमारा संविधान विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका की भूमिकाओं के बारे में बहुत स्पष्ट है। यह कहता है कि सरकार नीतियां बनाएगी और विधायिका उन नीतियों के अनुसार कानून पारित करेगी। न्यायपालिका कानूनों को परिभाषित करेगी और कार्यपालिका उन्हें लागू करेगी। लेकिन आज इन तीनों के बीच की रेखाएं कानूनों के खराब मसौदे के कारण धुंधली हो गई हैं।
शाह ने कहा कि कानून बनाने की कला धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही है और उन्होंने कहा कि प्रत्येक विधानसभा को अपने कर्मचारियों के लिए इस तरह की कार्यशालाएं आयोजित करनी चाहिए ताकि उनका मसौदा तैयार करने का कौशल बढ़े। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि इस प्रक्रिया में शामिल अधिकारियों को यह मार्गदर्शन दिया जाना चाहिए कि अधिनियम में क्या शामिल किया जाए और कौन से प्रावधान उस अधिनियम के नियमों का हिस्सा बनने चाहिए। शाह ने कहा कि डॉ. बी.आर. अंबेडकर के नेतृत्व में तैयार और संपादित भारत का संविधान विधायी प्रारूपण के मामले में पूरी दुनिया में सबसे आदर्श उदाहरण है। उन्होंने कहा, उस समय संविधान सभा में 72 बैरिस्टर थे…उनका लगभग 14 प्रतिशत समय मौलिक अधिकारों पर चर्चा करने में व्यतीत होता था। इस तरह की गहन चर्चाओं के बाद हमारा संविधान तैयार हुआ। और आज, कुछ गैर सरकारी संगठन हमें मौलिक अधिकारों के मुद्दे पर सलाह देते हैं। उन्होंने कहा कि किसी भी अधिनियम का मसौदा तैयार करते समय राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य को ध्यान में रखा जाना चाहिए और आम आदमी को भी इसकी भाषा समझ में आनी चाहिए।