नई दिल्ली/ /बिच्छू डॉट कॉम। सुप्रीम कोर्ट ने बृहस्पतिवार को कहा कि हाईकोर्ट में तदर्थ (एडहॉक) जजों की नियुक्ति के लिए केंद्र की सुझाई गई प्रक्रिया ‘बहुत बोझिल’ है। इसके लिए एक सरल प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए ताकि उनकी नियुक्ति का वास्तविक उद्देश्य विफल न हो। जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एएस ओका और जस्टिस विक्रम नाथ की पीठ ने कहा कि अगर अनुच्छेद 224ए के तहत केंद्र की सुझाई ‘कठिन’ प्रक्रिया अपनाई जाती है तो कोई भी ऐसे हालात में काम नहीं करना चाहेगा। संविधान के बेहद कम इस्तेमाल हाेने वाला अनुच्छेद 224ए हाईकोर्ट में तदर्थ जज की नियुक्ति से जुड़ा है। इसके तहत किसी भी राज्य के हाईकार्ट के चीफ जस्टिस किसी भी समय, राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से, किसी भी व्यक्ति (जिसने उस राज्य के उस अदालत या किसी अन्य हाईकोर्ट के जज का पद ग्रहण किया हो) से हाईकोर्ट के जज के रूप में काम करने के लिए अनुरोध कर सकते हैं।
पीठ ने अटार्नी जनरल आर वेंकटरमणी और एक पक्ष का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दातार से केंद्र द्वारा सुझाए गए प्रक्रिया ज्ञापन (एमओपी) फिर से विचार करने और इसे सरल बनाने का प्रयास करने को कहा। जस्टिस कौल ने अटॉर्नी जनरल से प्रतिष्ठित वकीलों को तदर्थ जज के रूप में नियुक्त करने की संभावना तलाशने की सलाह दी, क्योंकि कई लोग इसे अपनी सामाजिक जिम्मेदारी के हिस्से के रूप में करना चाहेंगे। पीठ ने तर्क दिया कि तदर्थ जज आखिरकार, सेवानिवृत्त होते हैं। उनकी मंजूरी में महीनों नहीं बल्कि दिन लगने चाहिए, क्योंकि एक बार जब आप उन्हें छह महीने या एक साल के लिए जाने देंगे, तो वे वापस नहीं आएंगे। साथ ही हमें इस तथ्य को भी देखना होगा कि कुछ हाईकोर्ट में लंबित मामलों की संख्या बहुत अधिक है। तदर्थ जजों की सिफारिश करने के लिए 20 प्रतिशत से अधिक रिक्तियों का मानदंड विशिष्ट विषयों में मामलों की लंबितता को कम करने में मदद नहीं कर सकता है। आपको यह भूलना होगा कि आप जजों की नियुक्ति कर रहे हैं, ये तदर्थ जज हैं। एक बार चीफ जस्टिस नामों की सिफारिश कर दे तो नियुक्ति में कुछ ही दिनों में हो जानी चाहिए। लंबे समय तक इसे लंबित रखने से उद्देश्य विफल हो जाएगा।
एनजीओ ‘लोक प्रहरी’ की ओर से व्यक्तिगत रूप से पेश हुए याचिकाकर्ता एसएन शुक्ला ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के जजों की संख्या बढ़ाने की जरूरत है ताकि संविधान पीठ के मामलों को जल्द निपटाया जा सके। इस पर पीठ ने कहा, जजों की संख्या अब बढ़ाकर 34 कर दी गई है। अब आप कितने जज चाहते हैं? जहां तक संविधान पीठ का सवाल है, आप इस मुद्दे को हम पर छोड़ दें। एक महीने पहले संविधान पीठ के 54 मामले थे जिनमें से 25 को विभिन्न पीठों के समक्ष रखा गया है।