नई दिल्ली। इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) को लेकर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने कहा कि देश को इसकी जगह मतपत्रों की ओर वापस लौटना पड़ सकता है। एक इंटरव्यू के दौरान भट्टाचार्य ने शिक्षा के भगवाकरण और एग्जिट पोल से प्रेरित कथित शेयर बाजार ‘घोटाले’ पर भी चिंता जताई। उन्होंने कहा कि विपक्ष ने चुनावों में 100 फीसदी वीवीपीएटी गिनती की मांग की थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे ठुकरा दिया था।
वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपीएटी) एक स्वतंत्र वोट सत्यापन प्रणाली है, जो मतदाता को यह देखने की अनुमति देती है कि उसका वोट सही तरीके से डाला गया है या नहीं। वीवीपीएटी से एक पेपर स्लिप निकलती है जिसे मतदाता देख सकता है। इस पेपर स्लिप को सीलबंद लिफाफे में रखा जा सकता है और विवाद की स्थिति में खोला जा सकता है। हालांकि, ईवीएम पर दर्ज सभी मतों का वीवीपीएटी के साथ क्रॉस-सत्यापन नहीं किया जाता है। प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र से चुने गए पांच मतदान कंद्रों की पर्चियों का ईवीएम की गिनती से मिलान किया जाता है।
उन्होंने कहा, चुनाव आयोग भी इससे सहमत नहीं था। इसलिए मुझे लगता है कि अब शायद इस देश को मतपत्रों पर वापस जाना होगा। यह मेरी निजी भावना भी है। भट्टाचार्य ने कहा कि यह उनकी पार्टी का रुख है जिसे अन्य पार्टियों के बीच भी साझा किया गया है। लेकिन उन्होंने कहा कि वह देश में सभी दलों के बारे में आश्वस्त नहीं हैं।
उन्होंने कहा, इसका चुनाव परिणामों से कोई लेना-देना नहीं है। आमतौर पर भाजपा के लोग कहते हैं कि यह हारे हुए लोगों का तर्क है। हम जब भी चुनाव हारते हैं, उसके बाद ईवीएम के बारे में बात करते हैं। ऐसा नहीं है। आखिरकार, चुनाव पारदर्शिता और लोगों के भरोसे के बारे में है। उन्होंने कहा, इतने बड़े चुनावी अभ्यास करने का क्या मतलब है, जहां लोग वास्तव में इस पर पूरी तरह से भरोसा नहीं करते हैं? भाकपा (माले) लिबरेशन के नेता ने कहा कि (मतपत्रों से चुनाव कराने की) मांग बढ़ सकती है, क्योंकि चुनाव आयोग ठोस स्पष्टीकरण नहीं दे रहा है।