विदेशी भाषाओं को बढ़ावा देने के बजाय मातृभाषा का करें इस्तेमाल: मोहन भागवत

मोहन भागवत

भुवनेश्वर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने बुधवार को लोगों से आग्रह किया कि वे अंग्रेजी जैसी विदेशी भाषाओं को बढ़ावा देने के बजाय अपनी मातृभाषा में बातचीत करें और उसका सम्मान करें। भागवत यहां अखिल भारतीय साहित्य परिषद के एक कार्यक्रम में बोल रहे थे। इस दौरान उन्होंने कहा कि देश में लोगों ने अपनी मातृभाषा का इस्तेमाल करना बंद कर दिया है।

उन्होंने कहा, ‘यहां हमारे देश में मातृभाषा के इस्तेमाल को लेकर बहुत सारे मुद्दे हैं। हमने अपनी मातृभाषा का इस्तेमाल करना बंद कर दिया है। नतीजतन, हमें अपने ग्रंथों (पुस्तकों) के अर्थ को समझने के लिए अंग्रेजी शब्दकोशों का सहारा लेना पड़ता है।’ आरएसएस प्रमुख ने कहा, ‘आज हमने विभिन्न भारतीय भाषाओं के कई लेखकों को सम्मानित किया है। लेकिन, हमारी मातृभाषा को वास्तविक सम्मान तब मिलेगा, जब हम इसका इस्तेमाल करना शुरू कर दें।’

साहित्य के बारे में आरएसएस प्रमुख ने कहा कि इसे समाज के लाभ के लिए लिखा जाना चाहिए, न कि मनोरंजन या मानव जाति को किसी नुकसान के लिए। उन्होंने कहा,’किसी व्यक्ति को जिम्मेदार बनाने के लिए साहित्य लिखा जाना चाहिए।’ भागवत ने यह भी दावा किया कि प्राचीन काल में अन्य देशों में कोई धर्म नहीं था। यह भारत से चीन और जापान जैसे कुछ अन्य देशों में फैला। उन्होंने आरोप लगाया कि हाल की कुछ किताबों की सामग्री से ऐसा लगता है कि ‘आप हिंदू नहीं हैं’ और इस तरह के लेख समाज को ‘नकारात्मक’ दिशा में ले जाते हैं, जो ‘खतरनाक’ है।

बाद में एक बातचीत सत्र के दौरान  उन्होंने इंडिया पर ‘भारत’ की वकालत की। उन्होंने कहा, ‘भाषा कोई भी हो, नाम वही रहता है… हमारे भारत के साथ भी ऐसा ही है। इसलिए हर किसी को हमारे देश को ‘भारत’ कहना चाहिए।’ संघ प्रमुख ने कहा, किसी भी प्रयोजन को सफल बनाने के लिए पूरे समाज का हाथ लगता है। ऐसे में हर दृष्टि से आप परिषद का समर्थन करें। दुनिया में इन दिनों चल रही विषमता की तरफ इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि दुनिया की खुशी की चाभी भारत के पास है। सुख, समृद्धि और शांति से दुनिया को चलाने की ताकत भारत में है। हालांकि, इसके लिए भारत को खुद ही आगे बढ़कर दुनिया का नेतृत्व लेना होगा। हमें पूरे देश को जागना होगा और इस जागरण में साहित्य का बड़ा योगदान होगा, क्योंकि हमारा देश विविध भाषाओं वाला देश है और विविधता को जोड़ने का काम साहित्य परिषद कर रहा है।

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