निष्पक्ष-पारदर्शी रहेगी चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली: मेघवाल

अर्जुन राम मेघवाल

नई दिल्ली। राज्यसभा में चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति और सेवा शर्तों संबंधी विधेयक पर चर्चा का जवाब देते हुए कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने सदन को आश्वस्त किया कि चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली निष्पक्ष और पारदर्शी है और आगे भी बनी रहेगी। उन्होंने कहा, मोदी सरकार के कार्यकाल में निष्पक्षता और पारदर्शिता एक प्रतिबद्धता है। मेघवाल ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा, जब 1991 में कानून बना, तो चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए कोई प्रावधान क्यों नहीं किया गया। असल सवाल यह है कि गलती रही क्यों? कांग्रेस सांसद सुरजेवाला की टिप्पणी के संदर्भ में कानून मंत्री ने कहा कि वह आज पारदर्शिता, निष्पक्षता की बात कर रहे हैं, लेकिन नवीन चावला और एमएस गिल को कैसे नियुक्त किया गया था। भाजपा सांसद घनश्याम तिवाड़ी ने चर्चा के दौरान कहा कि पूर्व पीएम इंदिरा गांधी ने तो सचिव नवीन चावला को ही सीईसी बना दिया था।

चर्चा की शुरुआत करते हुए कांग्रेस के रणदीप सुरजेवाला ने आरोप लगाया कि लोकतंत्र का आधार निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव है, और यह विधेयक चुनाव आयोग को कमजोर करता है। चुनावी प्रक्रिया सरकारी हस्तक्षेप से बाहर होनी चाहिए। कार्यपालिका के हस्तक्षेप से नियुक्त चुनाव आयुक्त कैसे लोकतंत्र को संरक्षित कर सकेंगे। उनकी निष्पक्षता कैसे सिद्ध होगी।

मुख्य चुनाव आयुक्त/आयुक्त के वेतन के संबंध में खंड 10 में संशोधन किया है। आयुक्तों को अभी सुप्रीम कोर्ट के जजों के बराबर वेतन मिलता है, लेकिन केंद्र 10 अगस्त को जो विधेयक लाई, उसमें आयुक्तों का वेतन कैबिनेट सचिव के बराबर कर दिया गया। कैबिनेट सचिव का वेतन जजों के बराबर है, लेकिन भत्तों व अन्य सुविधाओं में खासा अंतर है। अगर यह लागू होता तो चुनाव आयुक्तों को मासिक रूप से कम पैसा मिलता। इसका विरोध होने पर सरकार ने संशोधन कर वेतन-भत्तों को पहले की तरह जजों के बराबर कर दिया। सेवा शर्तों से जुड़े खंड-15 में संशोधन के साथ खंड 15(ए) जोड़ा गया है, जो चुनाव आयुक्तों को कानूनी संरक्षण से जुड़ा है। खंड-15 में आयुक्तों के यात्रा भत्ते, चिकित्सा, एलटीसी व अन्य सुविधाओं को जिक्र है, जबकि 15 (ए) में कहा है कि चुनाव प्रक्रिया के दौरान मुख्य चुनाव आयुक्त या  चुनाव आयुक्त जो फैसले लेंगे, उसके खिलाफ प्राथमिकी नहीं हो सकेगी, न ही फैसलों को कोर्ट में चुनौती दी जा सकेगी।

चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति से संबंधित खंड में संशोधन किया  है, जिसमें आयुक्तों के सर्च पैनल का स्वरूप तय किया है। संशोधन के बाद अब आयुक्त की नियुक्ति से पहले देश के कानून मंत्री और भारत सरकार में सचिव स्तर के दो अधिकारी मिलकर पांच व्यक्तियों का पैनल तैयार करेंगे। इसी पैनल से अगला आयुक्त नियुक्त होगा। खंड 11 में मुख्य चुनाव आयुक्त व चुनाव आयुक्त हटाने की प्रक्रिया तय की है। मुख्य आयुक्त को सुप्रीम कोर्ट के जज की प्रक्रिया से ही हटाया जा सकेगा, जबकि चुनाव आयुक्त को मुख्य चुनाव आयुक्त की सिफारिश पर हटाया जा सकेगा।

Related Articles