नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार को कहा कि जेलों में भीड़ बहुत है। वहां रहने की स्थिति भयावह है। अदालतें ये सुनिश्चित करें कि जिन मामलों में कड़े कानून और कड़े प्रावधान लागू होते हैं, उन्हें जल्दी खत्म करें। शीर्ष अदालत ने कहा कि यदि मुकदमे समय पर खत्म नहीं होते, तो व्यक्ति पर जो अन्याय हुआ है, वह अथाह है। सुप्रीम कोर्ट जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस दीपांकर दत्ता की बेंच ने नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्सटेंस एक्ट के तहत एक व्यक्ति को जमानत पर रिहा करते हुए कहा। कारावास के और भी हानिकारक प्रभाव होते हैं। जहां अभियुक्त आर्थिक रूप से कमजोर हो जाता है। साथ ही व्यक्ति को आजीविका का तत्काल नुकसान और कई मामलों में परिवारों के बिखरने के साथ-साथ पारिवारिक बंधन भी टूट जाते हैं और समाज से अलगाव रहता है।
पीठ ने कहा कि अदालतों को इन पहलुओं के प्रति संवेदनशील होना चाहिए। अदालतों को सुनिश्चित करना चाहिए कि जिन मुकदमों में कड़े प्रावधान और कानून लागू होते हैं, वे तेजी से चलें और जल्दी खत्म हो जाएं। कोर्ट ने कहा कि जिन मामलों में जमानत देने की कड़ी शर्तें हैं, वह जनहित में आवश्यक हो सकते हैं। लेकिन अगर जांच जल्द खत्म नहीं होती तो उस व्यक्ति के साथ जो अन्याय हुआ है, वह अथाह है।
कोर्ट ने कहा कि जेलों में अत्यधिक भीड़भाड़ है। यहां रहने की स्थिति अक्सर भयावह होती है। संसद में केंद्रीय गृह मंत्रालय के अनुसार राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो ने बताया था कि साल 2021 तक 5,54,034 से अधिक कैदी जेल में बंद थे। देश में 4,25,069 की कुल क्षमता है। इनमें 1,22,852 कैदी दोषी थे। बाकि 4,27,165 कैदी विचारधीन हैं। शीर्ष अदालत ने व्यक्ति को जमानत पर रिहा करने का आदेश देते हुए कहा कि वह सात साल चार महीने से अधिक समय से हिरासत में है। मुकदमे की प्रगति कछुआ गति से चल रही है। क्योंकि, अब तक 30 गवाहों की जांच की गई है, जबकि 34 और की जांच की जानी है।