बिच्छू डॉट कॉम। दूसरी बार डीएमके के अध्यक्ष चुने जाने के एक दिन बाद ही मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने केंद्र सरकार पर निशाना साधा है। उन्होंने कहा है कि हिंदी को थोपकर सरकार को एक और भाषा युद्ध नहीं शुरू करना चाहिए। आधिकारिक भाषा को लेकर गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति द्वारा राष्ट्रपति को सौंपी गई रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया देते हुए उन्होंने यह बात कही। स्टालिन ने मीडिया रिपोर्ट्स के हवाले से कहा कि समिति ने प्रस्ताव रखा है कि सभी केंद्रीय संस्थानों में निर्देश के माध्यम के रूप में अंग्रेजी की जगह हिंदी को लागू किया जाए। एलएलएम, एम्स, केंद्रीय विश्वविद्यालय और केंद्रीय विद्यालयों में भी ऐसा ही करने का प्रस्ताव रखा गया है। उन्होंने कहा, क्या केवल हिंदी बोलने वाले लोग ही देश के नागरिक हैं और बाकी भाषा बोलने वाले लोग दूसरे दर्जे के हैं। उन्होंने कहा, लगातार हिंदी को थोपने का प्रयास किया जा रहा है जो कि संविधान के विरुद्ध है।
बता दें कि दूसरी बार एमके स्टालिन ने भाषा के मामले पर प्रतिक्रिया दी है। चेतावनी देने के अंदाज में एमके स्टालिन ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे हिंदी को अनिवार्य ना करें और देश की एकता को बनाकर रखें। संविधान की आठवीं सूची में 22 भाषाएं हैं औ उनमें तमिल भी है। इसलिए सभी भाषाओं को बराबर अहमियत मिलनी चाहिए। स्टालिन ने कहा, हमें सभी भाषाओं को केंद्र की आधिकारिक भाषा बनाने का प्रयास करना चाहिए। ऐसी स्थिति में क्या जरूरत पड़ गई कि हिंदू को देश की आधिकारिक भाषा बनाने का प्रस्ताव रखना पड़ा। अंग्रेजी को हटाकर केंद्र की परीक्षाओं में हिंदी को प्राथमिकता देने का प्रस्ताव क्यों रखा गया। यह संविधान के मूल सिद्धांत के विरुद्ध है। ऐसा करके दूसरी भाषाओं के साथ भेदभाव करने का प्रयास किया जा रहा है। आखिर संसद में ‘भारत माता की जय’ के नारे ही क्यों लगाए जाते हैं। उन्होंने कहा कि 1965 से ही डीएमके हिंदी को थोपने के खिलाफ संघर्ष कर रही है और हिंदू की तुलना में दूसरी भाषा बोलने वाले लोग देश में ज्यादा हैं।