बिच्छू डॉट कॉम। यूक्रेन पर हमले के बाद से पश्चिमी देशों ने रूस को सबक सिखाने के लिए उस पर कई कड़े प्रतिबंध लगाए हैं। अमेरिका, नाटो और यूरोपियन यूनियन के देशों ने रूस के खिलाफ कड़े आर्थिक प्रतिबंधों का ऐलान किया है। इस बीच चीन का एक फैसला रूस की इस आर्थिक संकट में बड़ी मदद कर सकता है। एक तरफ चीन ने रूस की ओर से यूक्रेन पर किए गए हमले को आक्रमण कहने से इनकार कर दिया है तो वहीं दूसरी तरफ गेहूं के आयात को भी मंजूरी दे दी है। चीन को गेहूं एक्सपोर्ट करने से रूस को बड़ी आर्थिक मदद मिलने की उम्मीद है। इससे वह यूरोप और अमेरिका के प्रतिबंधों की काट कर सकेगा। इसके अलावा बीजिंग ने बीते कुछ सालों में गैस और तेल की खरीद के मामले में रूस पर निर्भरता बढ़ा दी है। इससे भी उसे फायदा हो रहा है। 2014 में क्रीमिया पर अटैक के बाद से ही रूस तमाम तरह के पश्चिमी प्रतिबंधों का सामना करता रहा है, जिसके बाद से ही उसकी चीन को भेजे जाने वाले सामान पर निर्भरता बढ़ गई है। भारत के अलावा चीन ऐसा बड़ा देश है, जिसने अब तक रूस के यूक्रेन को लेकर फैसले की निंदा नहीं की है। यही नहीं इससे एक कदम और आगे बढ़ते हुए इस तनाव के लिए चीन ने नाटो देशों को ही जिम्मेदार ठहराया है।
चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता हुआ चुनयिंग ने कहा, ‘हमें अब भी उम्मीद है कि इस मसले से जुटे सभी पक्ष अब भी शांति का रास्ता बंद नहीं करेंगे। संवाद जारी रखेंगे ताकि युद्ध के हालातों को टाला जा सके।’ इसके अलावा यूक्रेन में रह रहे अपने नागरिकों को भी चीन ने वापस नहीं बुलाया है। उसने अपने नागरिकों से कहा कि वे अपने घरों के अंदर ही रहें और जरूरत पड़ने पर यात्रा करनी हो तो गाड़ी पर चीन का झंडा जरूर लगाएं। चीन ने साफ तौर पर अमेरिका पर इस तनाव के लिए ठीकरा फोड़ा है। चीन ने कहा कि अमेरिका की वैश्विक मामलों में दखलंदाजी और नाटो के विस्तार के चलते ऐसे हालात पैदा हुए हैं। चीन प्रवक्ता ने कहा, ‘तनाव को बढ़ाने की बजाय सभी पक्षों को युद्ध की आशंका को टालने के लिए काम करना चाहिए। शांति वार्ता के प्रयास जारी रखने चाहिए। जो लोग आज दूसरों की निंदा करने में जुटे हैं, उन्हें यह भी समझना चाहिए कि उन्होंने क्या किया है।’ हाल ही में विंटर ओलंपिक के दौरान रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने चीन की यात्रा की थी। बीते कुछ सालों में दोनों देशों के बीच कारोबार से लेकर अन्य मामलों में रिश्ते तेजी से बढ़े हैं। यही वजह है कि इस संकट के दौर में चीन को रूस का सबसे अहम सहयोगी माना जा रहा है।