ब्रासीलिया। भारत के बाद अब ब्राजील को जी-20 समूह की अध्यक्षता सौंपी गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को ब्राजील के राष्ट्रपति लुइज इनासियो लूला डी सिल्वा को जी-20 समूह की अध्यक्षता सौंप दी। अध्यक्षता मिलने के बाद सिल्वा ने कहा कि अगले साल जी-20 शिखर सम्मेलन की मेजबानी करना ब्राजील के लिए बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। साथ ही उन्होंने इस साल के सफल सम्मेलन के लिए भारत को बधाई दी। ब्राजील के राष्ट्रपति सिल्वा ने कहा कि मैं शिखर सम्मेलन को अच्छे ढंग से आयोजित करने के लिए भारत को बधाई देना चाहता हूं। हमें भारतीय लोगों से बहुत प्यार मिला है। अब हमारे पास जी-20 की मेजबानी करने का अवसर है। उन्होंने कहा कि हम बड़ी संख्या में कार्यक्रम आयोजित करने के लिए ब्राजील के कई शहरों का उपयोग करना चाहते हैं।
सिल्वा ने इस दौरान भारत में हुए जी-20 सम्मेलन में रूसी राष्ट्रपति और चीनी राष्ट्रपति के शामिल नहीं होने पर भी बात की। उन्होंने कहा कि मुझे इसका कारण नहीं पता कि व्लादिमीर पुतिन और शी जिनपिंग ने यहां भाग क्यों नहीं लिया, लेकिन मैं उन्हें आमंत्रित करूंगा। उन्होंने कहा कि मुझे उम्मीद है कि वे ब्राजील आएंगे और शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे।
ब्राजील के राष्ट्रपति ने आशा जताई कि जब वह शिखर सम्मेलन शुरू करेंगे, तो युद्ध समाप्त हो चुका होगा और सब सामान्य स्थिति में वापस आ जाएंगे। सिल्वा ने आगे कहा कि हम शिखर सम्मेलन के दौरान असमानता के मुद्दे को मुख्य रूप से रखेंगे। उन्होंने कहा कि इसके साथ ही एक अन्य मुद्दा जिस पर हम चर्चा करने जा रहे हैं वह है ऊर्जा परिवर्तन। स्वच्छ ऊर्जा के उत्पादन में ब्राजील में असाधारण क्षमता है। उन्होंने कहा कि ब्राजील में होने वाले जी-20 शिखर सम्मेलन में बहुपक्षीय संस्थानों के सुधार पर चर्चा करेंगे। साथ ही संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता पर भी बात करेंगे।
गौरतलब है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को ब्राजील के राष्ट्रपति लुइज इनासियो लूला डी सिल्वा को जी-20 समूह की अध्यक्षता सौंप दी। इस दौरान उन्होंने सिल्वा को पारंपरिक गैवल (एक प्रकार का हथौड़ा) सौंपा था। वहीं, मौके पर प्रधानमंत्री मोदी ने नई वैश्विक संरचना में दुनिया की नई हकीकत को प्रतिबिंबित करने का आह्वान किया और संयुक्त राष्ट्र जैसे वैश्विक निकायों में सुधार की मांग की। उन्होंने कहा था कि दुनिया बदल रही है। ऐसे में दुनिया के बड़े और जिम्मेदार संस्थानों को भी बदलने की जरूरत है। यूएनएससी में अभी भी उतने ही सदस्य हैं, जितने इसकी स्थापना के समय में थे। इसका विस्तार होना चाहिए, यानी स्थायी देशों की संख्या बढ़नी चाहिए।