चर्चा में: लता दीदी, वह वाक्या जब रफी साहब से ठन गयी और बोली अब तुम्हारे साथ कभी नहीं गाउंगी…

लता  दीदी

मुंबई /बिच्छू डॉट कॉम।  लता दीदी 92 की हो गयी हैं लेकिन भारत की इस सुर कोकिला का आज भी हर कोई दीवाना है….. हाल ही में लता जी कोविड पॉजिटिव हो गयी हैं और उनके लिए दुआओं का  दौर जारी है…… हम आपको लता जी से जुड़े एक वाक्ये से रूबरू करवाने जा रहे हैं जब रफी साहब से उनका झगड़ा हो गया था और दोनों ने एक दूसरे के साथ कभी न गाने का फैसला कर लिया था। लता मंगेशकर पर समय-समय पर कई तरह के इल्जाम लगते रहे. एक बार उनका झगड़ा भारत के सबसे मृदुभाषी और सज्जन गायक महान मोहम्मद रफी साहब से हो गया था. किस्सा यूं था कि 60 का दशक आते आते लता का रुतबा बहुत बढ़ गया था. हर संगीतकार ये चाहता था कि लता उनके साथ गाना गाये।  सच भी था क्योंकि वो जिस भी फिल्म में जिस भी संगीत निर्देशक के साथ गातीं वो फिल्म हिट हो जाती या संगीत हिट हो जाता. इस समय तक संगीत कंपनियां संगीतकारों को रॉयल्टी देने का काम शुरू कर चुकी थीं. विदेश की तर्ज पर संगीतकार हर साल हजारों रुपये की रॉयल्टी कमाते थे और गायकों को एक पैसा भी नसीब नहीं होता था। लता मंगेशकर ने इस बात की मुहिम छेड़ दी कि यदि संगीतकारों को रॉयल्टी मिलेगी तो गायकों को भी रॉयल्टी मिलना ही चाहिए. इस बात का संगीत कंपनियों और संगीतकारों ने काफी विरोध किया. लता के साथ थे किशोर कुमार, मुकेश साहब, मन्ना डे, तलत महमूद जैसे कई दिग्गज कलाकार. लता ने इस सिलसिले में मोहम्मद रफी साहब से भी बात की क्योंकि वह अग्रणी पुरुष पार्श्व गायक थे. रफी साहब पैसों के मामले में फकीर किस्म के आदमी थे. उन्हें कला सेवा से मतलब था. उनका सोचना था कि जब गायक ने गाना गा दिया और प्रोड्यूसर ने उनका मेहनताना दे दिया तो उनका गाने पर कोई हक नहीं बचता. ऐसे ही विचार थे लता की बहन आशा के भी थे. इस मामले को लेकर गायकों की एक बड़ी मीटिंग हुई. बहस होने लगी तो बड़े ही सरल स्वभाव के रफी साहब भी गुस्से में आ गए और उन्होंने कहा कि वो आज के बाद लता के साथ गाना नहीं जाएंगे।  लता का गुस्सा तेज था उन्होंने कहा आप क्या नहीं गाएंगे, आज से मैं ही आपके साथ कोई गाना नहीं गाऊंगी. इसके बाद लता ने सभी संगीतकारों को फोन करके रफी के साथ कोई डुएट रखने के लिए साफ मना कर दिया, यहां तक कि ये भी कह दिया कि अगर वो रफी से गाना गवाएंगे तो वो उनके साथ कभी काम नहीं करेंगी। रफी साहब भी नाराज थे तो उन्होंने भी इस मामले को सुलझाने की कोई पहल नहीं की. वो नई गायिकाओं के साथ गाने लगे. 1963 से 1967, यानी 4 साल तक लता और रफी ने एक भी गाना साथ नहीं गाया. लता दी के मुताबिक, संगीतकार जयकिशन के कहने पर रफी साहब ने एक चिट्ठी लिख कर लता से माफी मांग कर मामला खत्म करने के लिए कहा. फिर 1967 में संगीतकार एसडी बर्मन के लिए एक संगीत समारोह आयोजित किया गया था. दादा बर्मन ने दोनों को एक साथ गाने के लिए स्टेज पर भेजा. उस साल रिलीज हुई दादा बर्मन की सुपरहिट फिल्म ज्वेल थीफ के सुपरहिट गाने श्दिल पुकारे आ रे आ रेश् गाते हुए दोनों ने एंट्री ली और इस तरह खत्म हुई ये रॉयल्टी की लड़ाई के साथ लता और रफी की लड़ाई. वैसे, अब गायकों और लिरिक्स राइटर दोनों को रॉयल्टी मिलती है। 

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