नयी दिल्ली/बिच्छू डॉट कॉम। अपने जमाने की मशहूर अभिनेत्री रीना रॉय अपना जन्मदिन मना रही हैं……. फिल्मों में बेहद सफल रहने वाली रीना प्यार और शादी दोनों में असफल साबित हुई हैं लेकिन उन्हें इसका गम नहीं है गम है तो बस इस बात का काश उनकी वह ख्वाहिश पूरी हो जाती…… आखिर क्या थी रीना रॉय की ख्वाहिश जिसका उन्हें आज तक मलाल है…. आईए आपको उन्हीं के शब्दों में बताते हैं।
रीना रॉय के माता-पिता सादिक अली और शारदा राय ने उन्हें अभिनय घुट्टी में पिलाया। दोनों हिंदी सिनेमा के हाशिये पर रहे कलाकार थे। और, फिर एक दौर ऐसा भी आया जब रीना रॉय हिंदी सिनेमा की सबसे महंगी अभिनेत्री बनीं। 70 और 80 के दशक की दमकती सुपरस्टार रीना रॉय ने ये एक्सक्लूसिव बातचीत अपने जन्मदिन की पूर्व संध्या पर की।
आपने बहुत कम उम्र में अभिनय शुरू कर दिया, क्या वाकई ‘जरूरत’ ही आपकी पहली फिल्म है?
निर्माता निर्देशक बी आर इशारा की फिल्म नई दुनिया नए लोग मेरी पहली फिल्म थी। हां, रिलीज पहले हुई श्जरूरतश्। श्नई दुनिया नए लोगश् में जब मैंने एक छोटी सी स्कूल गर्ल का किरदार किया तब मैं 13 साल की थी। यह फिल्म निर्माताओं के आपसी झगड़े की वजह से रिलीज नहीं हो पाई। इसके छह महीने बाद जब बी आर इशारा श्जरूरतश् बनाने जा रहे थे तो उसमें भी पहली पसंद रेहाना सुल्तान ही थीं लेकिन श्चेतनाश् के बाद रेहाना बहुत व्यस्त हो गई थी तो मुझे ये मौका मिला। यह फिल्म 1972 में रिलीज हुई थी।
50 साल हो गए आपको मनोरंजन जगत में काम करते हुए लेकिन आपकी राह कामयाबी की तरफ मोड़ देने वाली फिल्में ‘जैसे को तैसा’ और ‘नागिन’ को लोग अब तक नहीं भूले…
जैसे को तैसा 1973 में रिलीज हुई। इसके हीरो जितेन्द्र बहुत ही मेहनती और समय के पाबंद इंसान रहे हैं। लोग अब फिटनेस के चक्कर में खाने पीने पर इतना ध्यान देते हैं, वह 50 साल पहले हमें समझाया करते थे कि मीठा मत खाओ, रोटी चावल मत खाओ, सिर्फ प्रोटीन वाली चीजें और सलाद खाओ। खूब वर्जिश करो। मैं तो थी 15 साल की तो मुझे उनकी बातें समझ ही नहीं आती थीं लेकिन मैंने कभी जितेंद्र को रोटी, चावल खाते नहीं देखा। रही बात ‘नागिन’ की तो उस दौर में राजकुमार कोहली ही ऐसे निर्देशक थे जो इतने सारे सितारों को एक साथ इकट्ठा कर सकते थे। इस काम में उनकी पत्नी निशि की भी बहुत मेहनत शामिल थी। नागिन के बाद मैंने उनके साथ जानी दुश्मन और राजतिलक भी कीं। कोहली साब के बाद मनमोहन देसाई ही ऐसा कर पाए।
कोई ख्वाहिश जो अधूरी रह गयी हो…..?
हां, इतने दिनों हिंदी सिनेमा में काम करने के दौरान एक अरमान हमेशा रहा और वह था दिलीप कुमार के साथ काम करने का। बस यही अरमान पूरा नहीं हो पाया। ऐसा नहीं कि उनके साथ काम करने के प्रस्ताव नहीं आए। कई ऐसी फिल्मों को लेकर बातें चलीं जिसमें दिलीप साब लीड रोल कर रहे थे, लेकिन बस किसी न किसी वजह से संयोग बन नहीं पाया।
और, फिर आई ‘कालीचरण’! शत्रुघ्न सिन्हा के साथ तो आपकी जोड़ी खूब जमी?
फिल्म ‘कालीचरण’ के निर्देशक सुभाष घई के साथ मैं उनकी हीरोइन के तौर पर एक फिल्म गुमराह कर चुकी थी। उसमें वह अभिनेता थे। उनके साथ एक अलग ही रिश्ता था मेरा। फिर जब वह निर्देशक बने तो उनकी फिल्म कालीचरण और ‘विश्वनाथ’ में मैंने काम किया। शत्रुघ्न सिन्हा के साथ मैंने बहुत सारी फिल्में की और सारी फिल्मों को बहुत पसंद किया गया। तो ये तो सच है कि उनके साथ मेरी जोड़ी खूब जमी। पहली बार वह कालीचरण में मेरे ही हीरो बनकर आए और इसी फिल्म से उनका दौर बदला। नहीं तो पहले तो वह फिल्मों में विलेन के ही किरदार निभाते थे। मेरी फिल्म मिलाप में भी वह विलेन थे लेकिन कालीचरण हिट हुई तो उनके लिए नए रास्ते खुल गए।
हम जितेंद्र की बात कर रहे थे तो आप उनकी खाने को लेकर सख्ती की बातें बता रही थीं लेकिन संजीव कुमार तो बिल्कुल अलग रहे होंगे?
संजीव कुमार को खाने का बहुत शौक था। वह बोलते थे कि जो मन में आए सब खाओ। जब सेट पर आते थे तो सेट का पूरा वातावरण ही बदल जाता था। वह बहुत ही मजाकिया इंसान थे। सेट पर जब वह काम करते थे तो उनके चुटकुले शुरू ही रहते थे। ऐसे चुटकुले सुनाते थे कि पूरी टीम हंस हंस कर पागल हो जाती थी।
बिग बी के साथ कैसे एक्सपीरिएंस रहा…….?
बच्चन साहब के साथ अंधा कानून और नसीब की भी तमाम यादें हैं। वह समय के बहुत पाबंद शुरू से रहे हैं। उनके साथ जब शूटिंग होती थी तो सुबह चार बजे ही आंख खुल जाती थी। बच्चन साहब के आने से पांच मिनट पहले ही शूटिंग पर पहुंच जाना हमारा लक्ष्य रहता था। खाने के मामले में वह कुछ नहीं कहते थे। उनका अपना खाना भी घर से ही आता था।
राजेश खन्ना के साथ काम करके कैसा लगा?
हां, मैं फिल्मों में आने से पहले राजेश खन्ना की बहुत बड़ी फैन थी। फिल्मों में आई तो बस एक ही तमन्ना थी कि उनके साथ काम करने का मौका मिले। ऊपर वाले ने मेरी वह मुराद भी पूरी कर दी। उनके साथ शूटिंग के सारे लम्हे यादगार रहे हैं। जितेंद्र, राजेश खन्ना के अलावा फिल्म धर्म कांटा में राजकुमार भी थे। वह जैसे परदे पर दिखते थे। असल जिंदगी में भी उनका वैसा ही बादशाहों वाला अंदाज रहता था। वह इकलौते ऐसे अभिनेता रहे जिनके सामने मेरी बोलती बंद हो जाती थी। उस फिल्म का मेरा गाना ये गोटेदार लहंगा बहुत ही मशहूर हुआ था।
कौन था मनपसंद निर्देशक और किस गाने से आपको नया अंदाज मिला…?
‘..आखिर टूट जाता है’! ये गाने अब भी कहीं न कहीं बजते मिल जाते हैं। कानों में इनकी धुन पड़ती है तो बहुत अच्छा लगता है। मैं अपने आप को बहुत भाग्यशाली मानती हूं कि मुझे अर्पण और आशा में जे ओम प्रकाश जैसे निर्देशक के साथ काम करने का मौका मिला। उनकी फिल्में महिला प्रधान फिल्में होती थीं इसलिए इन फिल्मों में मेरे किरदार भी बहुत दमदार होते थे और उन फिल्मों ने कारोबार भी बहुत शानदार।
बॉलीवुड में सादगी वाला हीरो कौन था…..?
धरमजी (धर्मेंद्र) से मैंने सादगी सीखी। वह बहुत ही प्यारे और साधारण इंसान हैं। संयुक्त परिवार में रहने की बातें मैंने रामानंद सागर साहब के परिवार में देखीं। उनका पूरा परिवार साथ काम करता था। एक ही इमारत के अलग अलग तलों पर सारे लोग रहते थे। सागर परिवार उन दिनों सुबह का नाश्ता, दोपहर और रात्रि का भोजन एक साथ ही करता था। इस आपसी प्रेम और एकता के चलते ही वह ‘रामायण’ जैसा धारावाहिक बना पाए।