- नगीन बारकिया
क्या होगा, कैसे बनेंगे इनके मृत्यु प्रमाणपत्र…।
इन दिनों मप्र सरकार के सांख्यिकी विभाग के रजिस्ट्रार का एक आदेश चर्चा में बना हुआ है जिसमें कहा गया है कि विभाग की ओर से जारी किए जाने वाले मृत्यु प्रमाणपत्र पर मौत का कारण नहीं लिखा जाएगा। इसका कारण उन्होंने यह बताया है कि मौत का कारण डॉक्टर ही बता सकता है इसलिए विभाग कारण नहीं लिख सकता। यदि विभाग का तर्क मान लिया जाए तो उन कोरोना से मारे गए लोगों का क्या होगा जिनके प्रमाणपत्र नहीं बन पाएंगे। इसके साथ ही कई समस्याएं उठ खडी होंगी। कहने को तो सरकार ने कई घोषणाएँ कोरोना पीड़ितों के लिए कर दी हैं लेकिन उसका लाभ वास्तविक हितग्राही तक कैसे पहुंचेगा। बात साफ है कि जब तक मृत्यु का कारण कोरोना नहीं होगा तब तक वह साधारण मृतक ही माना जाएगा जिसे कोई सुविधाएँ नहीं हैं। ऐसे हजारों लोग हैं जिनका दाह संस्कार कैसे हुआ यह उनके परिवार वाले ही जानते हैं, उनके पास न तो अपने परिजन की मौत का प्रमाण है न किसी श्मशान घाट का पत्र है। आज ही तमिलनाडु से एक खबर आई है कि एक अस्पताल की मर्च्युरी में कोरोना मरीजों के शवों का ढेर लगा है और अस्पताल ने कह दिया है कि परिजन अपने लोगों की लाश पहचाने और ले जाएं। ऐसी घटनाएं देश में कई जगह पर हो रही हैं। इसमें पीड़ितों को दोहरा नुकसान हो रहा है, वे अपने परिजन को तो खो ही रहे हैं साथ नॉमिनी को मिलने वाली राहत से भी वंचित हो रहे हैं। उनका क्या होगा जो घरों में ही मर गए, खेत-खलिहान में मर गए, अस्पताल तक पहुंचे लेकिन वहां जगह न मिलने के कारण अस्पताल के बाहर ही मर गए.. आखिर उनकी मौत का प्रमाण कौन और कहां से लाएगा। इस पर भी अगर विभाग मौत का कारण लिखने से इनकार कर दे तो आखिर उन पीड़ितों और उनके लिए होने वाली घोषणाओं का क्या मतलब रह जाएगा। इससे भी बढ़कर आपदा को अवसर बनाने वाले रिश्वतखोर और कमीशनबाजों की चांदी हो जाएगी, वे जिसे चाहें उसे कोरोना पीड़ित घोषित करा देंगे और लाभ दिला देंगे। जिस तरह भोपाल में गैस पीड़ितों ने भुगता वैसे ही अब कोरोना पीड़ितो को न भुगतना पड़ जाए। इसलिए सरकार को अपने आदेशों को जारी करते समय शुरू से ही यह ध्यान रखना होगा कि उसमें कोई ऐसा छेद न रह जाए जो बाद में झरना बन जाए।
राहुल अभी तक भी फॉलो कर रहे थे अहमद पटेल को
पिछले दिनों में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के ट्विटर पर फॉलोअर की संख्या में लगातार कमी आती देखी गई जिसके कारण उनका ट्विटर अकाउंट अचानक सुर्खियों में आ गया। मंगलवार सुबह राहुल गांधी 281 लोगों को फॉलो कर रहे थे। इसके बाद शाम को यह संख्या और कम हो गई। बुधवार शाम यह तादाद घटकर 219 रह गई। हालांकि बाद में पता चला कि राहुल के इस अकाउंट को रिफ्रेश किया जा रहा है और लोगों को अनफॉलो किया जा रहा है। बताया गया है कि इन लोगों को फिर से फालो कर लिया जाएगा। लेकिन इस दौरान यह भी पता लगा कि राहुल अभी तक अहमद पटेल, तरुण गोगोई तथा राजीव सातव जैसे उन नेताओं को फॉलो कर रहे थे जिनका निधन हो चुका है। फॉलो करने वालों में उनके दफ्तर के कर्मचारी भी थे। बताया जा रहा है कि जल्दी ही अकाउंट को रिफ्रेश कर सबको फॉलो कर लिया जाएगा।
क्या फिर 5 अगस्त का इंतजार किया जाए..।
संसद के गलियारों में आजकल 5 अगस्त की बड़ी चर्चाएं हैं। इसका कारण यह है कि कोरोना संकट की दूसरी लहर के बीच मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल के दो साल पूरे कर लिए हैं। सरकार ने अपने इस दूसरे कार्यकाल की धमाकेदार शुरुआत 5 अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर से धारा 370 को खत्म करके की है। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने राम मंदिर बनाने का रास्ता भी साफ कर दिया। राम मंदिर की नींव भी ठीक उसी दिन ( 5 अगस्त, 2020) रखी गई जिस दिन जम्मू-कश्मीर से धारा 370 को खत्म करने का कानून संसद के पटल पर रखा गया था। ऐसे में अब सबकी नजरें समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड की ओर मुड़ गई हैं और 5 अगस्त तथा मानसून सत्र भी दूर नहीं है। यह भारतीय जनता पार्टी के तीन सबसे प्रमुख मुद्दों में से एक है, जिसे वो अपने दूसरे कार्यकाल में किसी भी तरह लागू करना चाहती है। हालाकि यह जरूर है कि कोरोना संकट भाजपा और केंद्र सरकार की राह का सबसे बड़ा रोड़ा बन गया है। लेकिन कोरोना का असर फिलहाल कम हो चला है और संभावना यही लगती है कि मानसून सत्र मे सरकार इसको पारित कराने की पूरी कोशिश करेगी। देखना दिलचस्प होगा कि सरकार कैसे इसका फ्लोर मैनेजमेंट करती है।