- प्रभु त्रिवेदी
मित्रो ! कल की शाम आध्यात्मिक ऊर्जा से परिपूर्ण होने की शाम थी। स्थान था हमारे अनन्य श्री संदीप राशिनकरजी का ” आपले वाचनालय ” का ऐतिहासिक सभागार। अवसर था अनुज श्री ओम द्विवेदी को सुनने का। वे एक पत्रकार, अभिनेता, लेखक और कवि भी हैं लेकिन इस बार उनका एक अलग स्वरूप समाज के समक्ष आया और वह है पदयात्री का। उन्होंने पिछले चार- पांच माह में लगभग 3600 किलोमीटर की पदयात्रा की है। पहले माँ नर्मदा की पदयात्रा और उसी से उर्जस्वित होकर उत्तराखण्ड की पदयात्रा। ये चारों धाम उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग और चमोली जिलों में स्थित हैं, जिन्हें बद्री-केदार और गंगोत्री-यमनोत्री के नाम से जाना जाता है। पदयात्रा से लौटने के बाद ओमजी हमारे समक्ष एक तपस्वी और संत की मुद्रा में उपस्थित हुए। उन्हें सुनना एक अलौकिक उर्जा से भर जाना है। उनके यात्रा-संस्मरण अर्न्तमन को द्रवित कर देते हैं। नर्मदा का शूलपाणी क्षेत्र और हिमालय के गिरिश्रंगों की हरीतिमा का वर्णन जीवंत हो उठता है। उनकी वाणी निष्ठुर हृदयी व्यक्ति को भी उस असीम शक्ति के प्रति नतमस्त कर देती है। आँखें छलछला आती हैं, मन गदगद हो उठता है। भाषा पर उनका अधिकार है और एक घण्टे से अधिक समय तक उन्होंने सतत बाँधे रखा। उनका निस्पृह भाव हर किसी को अपनी ओर खींचता है उन्हें प्रणाम करने को मन करता है। मुझे अपना एक दोहा स्मरण हो रहा है :-
“यही सार संसार का, यही ग्रन्थ का ज्ञान।।
जीवन-यात्रा में रखें, कम से कम सामान।।