बा खबर असरदार/दमदारी पर फिदा सरकार

दमदारी

हरीश फतेहचंदानी

दमदारी पर फिदा सरकार
प्रदेश की प्रशासनिक वीथिका में इन दिनों 2009 बैच  के  आईएएस अफसर इलैया राजा टी की खूब चर्चा हो रही है। इसकी वजह यह है कि साहब को मालवा क्षेत्र के इंदौर जैसे जिले का कलेक्टर बनाया गया है, जहां चुनौतियां ही चुनौतियां होती हैं। साहब को इस जिले के तासीर के बार में तनिक भी पता नहीं है। ऐसे में जिले की जिम्मेदारी मिलना साहब के लिए चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि यह जिला सरकार की नजरों में रहता है। सूत्रों को कहना है की साहब की यहां पदस्थापना से पहले कई अफसरों के साथ उन्हें कसौटी पर कसा गया, फिर जिम्मेदारी दी गई। बताया जाता है कि जिस दमदारी से साहब ने ग्वालियर-चंबल अंचल के एक जिले में माफिया और बदमाशों पर नकेल कसी थी, सरकार तभी से उन पर फिदा थी। वे शासन और प्रशासन के मुखिया की व्यक्तिगत पसंद पहले से ही बने हुए हैं। जिला पंचायत सीईओ राजगढ़, मंडला एसडीओ, सिवनी में अपर कलेक्टर के बाद उन्होंने तीन जिलों में कलेक्टरी भी की है और उनके किए गए प्रयोग जनता ने काफी पसंद किए। इसलिए सरकार ने उनकी दमदारी को देखते हुए उन्हें इस जिले की कमान सौंपी है।

लास्ट बॉल पर सिक्सर
मालवांचल के सबसे संपन्न जिले में करीब 2 साल सात महीने कलेक्टर रहे 2009 बैच के  आईएएस  मनीष सिंह ने  जाते-जाते गृह निर्माण संस्था के सदस्यों को न्याय दिलाने के लिए चल रहे मैच में आखरी बॉल पर सिक्सर मारकर भू-माफिया को बाउंड्री पार कर दिया है। सीलिंग एक्ट में छूट लेकर जमीन खरीदने वाली 180 संस्थाओं को लेकर एक बड़ा आदेश जारी कर दिया गया है। अब संस्था बिना कलेक्टर की अनुमति के जमीन की खरीद-फरोख्त नहीं कर सकती हैं। वहीं, जिन संस्थाओं ने शर्तों का उल्लंघन किया, उनकी जमीन सरकारी हो जाएगी। साहब के इस कदम से जहां हजारों सदस्यों में खुशी की लहर है, वहीं माफिया के होश उड़े हुए हैं। गौरतलब है की साहब जब तक जिले में कलेक्टर के रूप में पदस्थ रहे माफिया के बड़े-बड़े साम्राज्यों को उखाड़ फेंका गया। सरकार ने जैसे ही साहब को राजधानी में बड़ी जिम्मेदारी दी माफिया खुशी से फूले नहीं समाए। लेकिन उन्हें क्या मालूम की साहब सबकी अवैध गतिविधियों पर नियमों का  पहरा  बैठा गए हैं।

सबसे बड़ा सम्मान
एक व्यक्ति के लिए कलेक्टर बन जाना अपने आप में बड़ा सम्मान होता है। लेकिन गतदिनों 2013 बैच के आईएएस अधिकारी  शिवम वर्मा को  गत दिनों एक वृद्ध महिला ने  कलेक्ट्रेट पहुंच कर जब माला पहनायी और मिठाई खिलाई तो उनकी आंखें भर आईं। साहब के मुंह से बरबस निकला की यह मेरी जिंदगी का सबसे बड़ा सम्मान है। दरअसल, ग्वालियर-चंबल अंचल के आदिवासी जिले में साहब जब से कलेक्टर बन कर गए हैं, वे जनहितैषी कार्यों के कारण जनता में काफी लोकप्रिय हो गए हैं। साहब की लोकप्रियता से प्रभावित होकर एक वृद्ध महिला ने 27 सितंबर को जनसुनवाई के दौरान आवेदन देकर बताया था कि न्यायालय के माध्यम से उनको 29 अगस्त 1996 में अपने पति के पुश्तैनी मकान में बंटवारे में हिस्सा मिला लेकिन, उन्हें कब्जा नहीं मिल रहा है। इस कारण वह किराए के मकान में रह रही है। इस मामले को साहब ने गंभीरता से लिया और 4 नवंबर को महिला को कब्जा दिला दिया। अपने पति के पुश्तैनी मकान में कब्जा मिलने से वे प्रसन्न हो उठीं और भावुक होकर बुजुर्ग महिला ने कलेक्ट्रेट में पहुंचकर कलेक्टर को धन्यवाद के साथ ही  आशीर्वाद दिया।

छोटे साहब की पदस्थापना चर्चा में
राजधानी की राजनीतिक और प्रशासनिक वीथिका में इन दिनों एक छोटे साहब के रसूख की खूब चर्चा हो रही है। इसकी वजह यह है की तमाम विवादों में रहने के बाद भी साहब को हाल ही में जोन एक के एक थाने का टीआई बना दिया गया है। वैसे तो साहब अपनी ईमानदारी के ढोल पीटते रहते हैं, लेकिन उनके कैरियर के शुरूआती दिनों में ही उन पर भ्रष्टाचार का ऐसा दाग लगा कि उससे धोने के लिए साहब को कोर्ट का दरवाजा तक खटखटाना पड़ा। उसके बाद से साहब अपने आप को बेदाग बताकर जमकर माल कूट रहे हैं। अगर कहीं बाधा आती है तो वे प्रदेश के एक पूर्व मुख्यमंत्री को अपना साढ़ू बताकर उससे पार पा लेते हैं। अभी तक पूर्व मुख्यमंत्री से रिश्तेदारी जोड़कर अपना हित साधते आ रहे साहब को जैसे ही राजधानी के एक बड़े और शहर के प्रवेश द्वार वाले थाने की कमान मिली है उनके खिलाफ शिकायतें पुलिस मुख्यालय पहुंचने लगी हैं। यहां बता दें की भ्रष्टाचार में फंसे ईमानदार साहब के सभी साथी डीएसपी बन गए हैं, लेकिन इनका प्रमोशन रूका हुआ है। वहीं साहब अपने जुगाड़ से राजधानी में पांच साल से अधिक समय से जमे हुए हैं।

प्रमोशन की चिंता
प्रदेश के वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों को प्रमोशन की चिंता सताने लगी है। एडीजी रैंक के अफसरों को मनचाही पदोन्नति चाहिए, इसलिए लेटर का सहारा लिया जा रहा है। गौरतलब है कि जब भी बात अपने पर आती है, तो अपनों से बड़ों को जरूर याद किया जाता है। कुछ ऐसा ही हाल इस समय मप्र के अफसरों का है। दरअसल मप्र के एडीजी रैंक के कुछ अफसरों ने प्रमोशन को लेकर मुख्यमंत्री, गृह मंत्री और प्रमुख सचिव को पत्र लिखा है। इस पत्र में अफसरों ने डीजी के अस्थाई पद दिए जाने की मांग शिवराज सरकार से की है। इसके साथ ही दूसरे राज्यों में मिल चुके डीजी वेतनमान वाले बैच का हवाला भी दिया है। इस तरह प्रोमोशन के लिए एडीजी स्तर के अधिकारियों को पत्र लिखने पड़ रहे है। जिससे उन्हें अस्थाई पद मिल सके। रिटायरमेंट से पहले मनचाही पोस्टिंग हो सके। खैर अब दिलचस्प बात यह होगी कि क्या पत्र लिखने के बाद भी अधिकारियों की मांग को माना जाता है या नहीं ।

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