- अवधेश बजाज कहिन
यह अपनी तरह की विरली रिले रेस है । यूं तो इसा प्रतियोगिता में एक ही टीम के एक से अधिक प्रतिभागी होते हैं। अपनी-अपनी बारी के हिसाब से ट्रैक में दौड़ते हैं। मिल-जुल कर काम करने वाली टीम जीत जाती है। लेकिन शिवराज सिंह चौहान का हिसाब अलग है। गोया की वह एक रिले रेस में अकेले ही दौड़ रहे हैं। वह भी किसी अनुशासित टीम की शक्ल में। शिवराज के चौथे कार्यकाल के तीन साल को केवल इस अवधि में सीमित नहीं किया जाना चाहिए। क्योंकि यह वह दौड़ है, जिसमें मुख्यमंत्री वर्ष 2005 से मिले अनुभवों की बैटन थामे हुए बगैर थामे तेजी से आगे बढ़ते जा रहे हैं। तब ही तो ऐसा हुआ कि लाड़ली लक्ष्मी योजना अब लाड़ली बहना वाले स्वरूप में और परिपक्व की जा चुकी है और शिवराज के पूर्ववर्ती कार्यकाल में मुख्यमंत्री निवास सहित अन्य स्थानों पर आयोजित ढेर पंचायतों में उठे विषयों के आधार पर अनगिनत विकास योजनाएं और कार्यक्रम राज्य में लागू कर दिए गए हैं। यदि शिवराज ने बतौर मुख्यमंत्री राज्य के चप्पे-चप्पे तक स-शरीर अपनी उपस्थिति दर्ज की है तो अब हुआ यह भी है कि विकास यात्राओं के माध्यम से पूरी सरकार प्रदेश के कोने-कोने तक भेजी गयी है। फिर बात मुख्यमंत्री पद वाले तजुर्बों को आगे ले जाने मात्र की नहीं है। जिस नौजवान शिवराज ने जैत में गरीब बेटियों की शादी का बीड़ा उठाया था, उसी ने आगे जाकर मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना के रूप में अपने इसी अभियान को और व्यापक रूप दिया। यदि लड़कपन में शिवराज ने जैत के किसानों को अत्याचार के विरुद्ध एकजुट करने की कोशिश की थी तो, उन्होंने ही अब राज्य के किसानों को मुख्यमंत्री किसान कल्याण योजना के तहत आर्थिक रूप से और मजबूत बनाने का काम भी कर दिखाया है।
शिवराज की सबसे बड़ी खूबी यह कि वह मुख्यमंत्री पद के आभामंडल को एक झटके में कोने में रखने में कभी भी संकोच नहीं करते। चौथे कार्यकाल के आरंभ में उन्होंने मध्यप्रदेश को अपना मंदिर और जनता को भगवान बताया था, खुद को सेवक कहा। और अब देखिए। किसी भी जनसभा में वह मंच की परिधि का अतिक्रमण कर लोगों के समीप जाकर वैसा संवाद करते हैं, जिसमें किसी राजनीतिक भाषण को तलाशना मुश्किल हो जाता है। क्योंकि यह आत्मीय अंदाज, अपनों से अपनी बात, जैसा मामला बन चुका है। स्पष्ट है कि सांसद के रूप में ‘पांव-पांव वाले भैया ने अब मुख्यमंत्री के तौर पर प्रदेश की आम जनता के हृदय द्वार तक अपने कदमों को पहुंचा दिया है।
निश्चित ही शिवराज की इस दौड़ में वर्ष 2018 के अंत में पंद्रह महीने की बाधा आयी थी। लेकिन शिवराज रुके तो तब भी नहीं। ‘टाइगर अभी जिंदा है वाला कथन उस पूरे समय में कभी भी खोखला नहीं दिखा। बल्कि तब भी शिवराज ने जिस तरह प्रदेश से अपने सरोकार को जीवित रखा, उसे देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि उस वक्फे में राज्य की जनता ने शिवराज के रूप में ‘अभूतपूर्व भूतपूर्व मुख्यमंत्री’ को अपने बीच पाया। यही वजह रही कि 28 सीटों के विधानसभा उप चुनाव में राज्य की जनता ने एक बार फिर शिवराज पर ही भरोसा जताया और उनके पक्ष में जनादेश दिया।
राज्य का विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहा है। भाजपा वह पार्टी है, जो सदैव इलेक्शन मोड में रहती है और चौहान वह भाजपाई हैं, जो पार्टी की इस भावना से भी एक कदम आगे इलेक्शन के हर मोड़ का रुख अपनी तरफ मोड़ लेने की क्षमता से परिपूरित हो चुके हैं। इसकी मूल वजह यह कि चौहान ने शासक की बजाय सेवक वाले भाव को ही सदैव प्रधानता दी है। पार्टी के लिए अनुशासन उनके भीतर साफ दिखता है। शिवराज का कोई भी कार्यकाल निरापद नहीं रहा। राजनीति में ऐसा होना बहुत स्वाभाविक है, लेकिन चौहान की विशेषता है कि उन्होंने ‘घर’ और ‘बाहर’ दोनों ही जगहों के विरोधियों को ‘ठिकाने लगाने’ वाली नीतियों से खुद को हमेशा बचाए रखा है। सियासत के फिसलन से भरे इस ट्रैक पर शिवराज की रिले रेस इसलिए भी सफल है कि उन्होंने अपनी नेकनीयत, ठोस इरादों और निर्विवाद छवि की दम पर फिसलन वाली तमाम गुंजाइशों को हाशिये पर धकेल दिया है।