फिल्मों पर लेखन के नए रत्न हैं रत्नाकर

  • अवधेश बजाज
रत्नाकर

पत्रकारिता में तीस साल से अधिक समय बिताने के बाद मेरे शिष्य रत्नाकर त्रिपाठी इन दिनों फिल्मों से जुड़े लेखन में जिस लोकप्रियता के साथ सक्रिय हुए हैं, वह सुखद अनुभूति है। मीडिया और सोशल मीडिया पर फिल्म समीक्षा सहित अभिनय जगत से जुड़ी प्रतिभाओं पर रत्नाकर वर्तमान में लगातार उत्कृष्ट किस्म का शोधपूर्ण लेखन कर रहे हैं। मैं अपने अनुभव के आधार पर कह सकता हूं कि जयप्रकाश चौकसे, श्रीराम ताम्रकार तथा ‘बीबीसी’ के संबोधन से प्रसिद्द बृजभूषण चतुर्वेदी के बाद बीते कुछ समय से रत्नाकर को फिल्म जगत से जुड़े लेखन के लिए सर्वाधिक पढ़ा जाने लगा है। रत्नाकर इस विषय में अपनी जानकारी, अनुभव तथा ज्ञान को जिस खूबसूरती के साथ लयबद्ध तरीके से लिखते हैं, वह उनकी विशिष्ट पहचान बनता जा रहा है। फिल्मों पर आधारित विशिष्ट लेखन की लुप्त होती परंपरा को रत्नाकर त्रिपाठी ने नया जीवन देने की कोशिश को निरंतरता प्रदान है।
रत्नाकर के लेखन की एक गौरतलब बात यह भी है कि वह नयी पीढ़ी को सितारों की दुनिया के उन लोगों से रूबरू करवा रहे हैं, जो अपने समय में फिल्मों का आधार स्तंभ थे और दुर्भाग्य से अब उनके संबंध में विश्लेषणात्मक जानकारी की उपलब्धता का अभाव नजर आने लगा है। ऐसे चेहरों पर केंद्रित रत्नाकर के आलेख ब्लैक एंड व्हाइट सिनेमा के भी उन रंगीन पक्षों को दर्शकों की वर्तमान आबादी तक पहुंचा रहे हैं, जिन चेहरों का इस उद्योग के विकास की आरंभिक प्रक्रिया में बहुत अधिक योगदान रहा है। सत्यजीत रे से लेकर व्ही शांताराम, गुरुदत्त, मृणाल सेन, राज कपूर तथा शशि कपूर आदि दिग्गजों के फिल्म निर्माण के कौशल को त्रिपाठी ने बहुत बारीकी के साथ किन्तु पूरे सहज तरीके से लेखन का विषय बनाया है। उन्होंने दिलीप कुमार, सुरैया, नरगिस, नूतन, उमा देवी (टुनटुन) के साथ-साथ ओम पुरी, शबाना आजमी, सदाशिव अमरापुरकर एवं अन्य प्रतिष्ठित अदाकारों पर भी अपनी कलम के हुनर का असर दिखाया है। एक हास्य अभिनेत्री के तौर पर ही पहचानी गयी टुनटुन को उनके ही गाए एक गीत के जरिये रत्नाकर ने जिस तरह विशिष्ट छवि पहचान की, उसे पढ़ना विशिष्ट किस्म की अनुभूति प्रदान करता है।
रत्नाकर को पढ़ते समय इस बात की राहत भी महसूस होती है कि वह सार्थक सिनेमा की विलुप्त कर दी गयी परंपरा को पुन: वही गौरव प्रदान करने के आग्रह को भी कायम रखे हुए हैं। साथ ही यह भी एक अलग-सी बात है कि वह अपने उद्धरणों में न सिर्फ क्षेत्रीय, बल्कि विदेशी फिल्मों का भी प्रयोग सफल तरीके से करते हैं।
रत्नाकर का अर्थ समुद्र होता है और त्रिपाठी सचमुच कहानी, कविता, गजल, व्यंग्य तथा सम-सामयिक विषयों पर लेखन की किसी सुखद लहर वाले व्यक्तित्व के धनी हैं। अब यही कुशलता फिल्मों पर उनके लिखे में भी साफ देखी जा सकती है। मैं शुभकामनाएं देता हूं कि रत्नाकर के लेखन की यह गति एवं प्रगति निरंतर कायम रहे और उनके प्रशंसकों की संख्या में भी लगातार इजाफा होता रहे।

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