- दिनेश निगम त्यागी
दिग्विजय ने साध दिए ‘एक तीर से कई निशाने’….
कांग्रेस के लिए कमजोर विधानसभा सीटों के दौरे पर निकले वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह दो-तरफा काम कर रहे हैं। एक, नेताओं को एकजुट कर उनमें जोश भर रहे हैं और दो, भाजपा नेताओं की दुखती रग पर हाथ रख उनकी बेचैनी बढ़ा रहे हैं। हाल के सागर जिले के दौरे के दौरान दिग्विजय का एक बयान ‘एक तीर से कई निशाने’ साधने वाला था। उन्होंने कहा कि भाजपा में सात नेता मुख्यमंत्री बनने के लिए सूट सिला कर बैठे हैं लेकिन चुनाव बाद शपथ कमलनाथ ही लेंगे। पहला, बयान के जरिए दिग्विजय ने उजागर किया कि भाजपा में कांग्रेस से ज्यादा गुटबाजी है। दूसरा, उन्होंने मैसेज दिया कि कांग्रेस में मुख्यमंत्री पद के लिए इकलौता नाम कमलनाथ का है। और तीसरा, सात नेताओं में केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का नाम न लेकर उनकी भाजपा में हैसियत बताई। दिग्विजय ने संकेत दिया कि सिंधिया केंद्र में मंत्री हैं लेकिन मुख्यमंत्री पद की रेस से बाहर हैं। उनका बयान भाजपा नेताओं को बेचैन करने वाला था, इसलिए भाजपा के लगभग हर नेता ने उन पर हमला बोला। खुरई में दिग्विजय ने यह कह कर कांग्रेस कार्यकर्ताओं का डर दूर करने की कोशिश की कि मैं कमलनाथ से कहूंगा कि दो बड़े सम्मेलन खुरई और दतिया में करें और प्रदेश भर से कांग्रेस कार्यकर्ताओं को बुलाकर एकजुटता प्रदर्शित करें।
अखिलेश ने अरुण के लिए खोल रखे दरवाजे….!
उप्र के पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय मुलायम सिंह यादव एवं मप्र के पूर्व उप मुख्यमंत्री स्व सुभाष यादव के संबंध जगजाहिर रहे हैं। कभी मुलायम चाहते थे कि सुभाष मप्र में सपा को संभालें। वे स्वयं नहीं गए लेकिन गौरी यादव का नाम उन्होंने ही सुझाया था। अब दोनों नेताओं के बेटे विरासत संभाल रहे हैं। चुनावी साल में यदि मुलायम के बेटे अखिलेश यादव मप्र आकर सुभाष के बेटों अरुण यादव एवं सचिन यादव से मिलते हैं। उनके गांव जाते हैं, आत्मीय स्वागत होता है और वे सुभाष यादव के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं तो कयासों का दौर स्वाभाविक है। हालांकि अरुण की अखिलेश से यह पहली मुलाकात नहीं है। पहले भी अखिलेश भोपाल में अरुण से उनके घर जाकर मिल चुके हैं। इससे कई संकेत मिलते हैं। एक, अखिलेश से मुलाकात के कारण अरुण को ताकत मिलती है। वे प्रदेश में यादवों के एक छत्र नेता के तौर पर उभरते हैं। मुस्लिमों का झुकाव भी उनकी ओर हो सकता है। दूसरा, कांग्रेस में अरुण की ज्यादा उपेक्षा होती है तो उनके लिए सपा का दरवाजा हमेशा खुला है। वैसे भी अखिलेश का यह दौरा चुनावों को ध्यान में रखकर ही हुआ। उन्होंने अंबेडकर जयंती पर महू में भीम आर्मी के चंद्रशेखर के साथ रैली कर अपने लिए संभावनाएं टटोली हैं। मप्र में वे तीसरा मोर्चा बनाने की कोशिश में हैं।
नारायण की राह में कांटे, ‘सिर मुड़ाते ही पड़े ओले’….
अलग राजनीतिक दल बनाने के बाद भाजपा के विधायक नारायण त्रिपाठी विंध्य अंचल में कोई करिश्मा कर पाते हैं या नहीं, यह बाद की बात है। फिलहाल उन पर ‘सिर मुड़ाते ही ओले’ पड़ते दिख रहे हैं। उन्होंने जैसे ही अलग ‘विंध्य जनता पार्टी’ के नाम से दल बनाने की घोषणा की, एक दिन बाद ही उनकी कार का एक्सीडेंट हो गया। कार चकनाचूर हो गई, हालांकि वे और उनका ड्राइवर बाल-बाल बच गए। दूसरा, मैहर में वे बागेश्वर धाम के धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की कथा कराने की तैयारी कर रहे थे। इससे पहले वे धीरेंद्र शास्त्री की अनुमति ले चुके थे। अचानक विदिशा में कथा कर रहे शास्त्री जी ने मैहर की कथा रद्द कर दी। इसे लेकर राजनीतिक बवाल शुरू हुआ तो शास्त्री जी ने सफाई दी कि उन्होंने कथा रद्द नहीं की, उसकी तिथि आगे बढ़ाई है। नई तारीख भी विधानसभा चुनाव के बाद जनवरी की दी है। तब यह कथा कराकर नारायण त्रिपाठी क्या करेंगे? किसी प्रमुख राजनीतिक दल में भी नारायण की साख नहीं बची। चुनाव के समय ऐन वक्त पर धोखा देने के कारण कांग्रेस नेता अजय सिंह उन्हें पार्टी में लेने के खिलाफ हैं। भाजपा भी अब उनकी राह का कांटा बन रही है। कांग्रेस के कुछ नेता उनके लिए दरवाजे खुले होने की बात कह रहे हैं, लेकिन लगता है नए दल के साथ ही उन्हें खुद को साबित करना होगा।
राजनेताओं के हाथ में खेलते बाबा-कथावाचक….!
जब से अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर आंदोलन चला तब से साधु, संत, बाबा, कथावाचक राजनीति में प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं। मध्य प्रदेश में इस साल विधानसभा चुनाव प्रस्तावित हैं। यहां भी बाबाओं – कथावाचकों को लेकर राजनीति गरमा रही है। बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्री, सीहोर के कथावाचक पंडित प्रदीप मिश्रा और पंडोखर सरकार खास चर्चा में हैं। बागेश्वर धाम के शास्त्री पहले कांग्रेस विधायक आलोक चतुर्वेदी के सबसे ज्यादा नजदीक थे। कहते थे कि वे किसी दल में नहीं हैं। उनकी दर पर सभी दलों के नेता पहुंचते थे लेकिन अचानक उन्होंने मैहर विधायक नारायण त्रिपाठी की कथा को रद्द कर दिया। आरोप है कि ऐसा उन्होंने भाजपा सरकार के इशारे पर किया क्योंकि नारायण ने भाजपा से बगावत कर अलग दल बना लिया है। इस पर नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता डॉ गोविंद सिंह का बयान आ गया कि धीरेंद्र शास्त्री भाजपा का प्रचार कर रहे हैं ,जबकि पंडोखर सरकार ऐसे नहीं हैं। इन्हें कांग्रेस समर्थक माना जा रहा है। पंडित मिश्रा भी कहते हैं कि वे किसी दल के नहीं हैं लेकिन , खड़े भाजपा के पाले में नजर आते हैं। सवाल ये है कि क्या बाबाओं को राजनेता दलों में विभाजित कर रहे हैं या ये खुद ही महत्वाकांक्षा के चलते दलों में बंट गए हैं।