कवितायन…/हम जब नंगे होते हैं….

  • मुकेश आर पाण्डेय

हम जब नंगे होते हैं….
यूं जब जब दंगे होते हैं । सब के सब नंगे होते हैं ।।
व्यवस्था गंजे सर जैसी हर हाथ में कंघे होते हैं ।
नंगे कब भूखे होते हैं ! भूखे कब नंगे होते हैं !
नंगाई एक रस्म हुई यूं . हम जब तब नंगे होते हैं ।
सत्ता के रस का पान करें क्या अजब पतंगे होते हैं !
निर्दोषों की पीड़ा देखो इनके कब पंगे होते हैं !
मत ढूंढों पत्थर की गलती जब हाथ लफंगे होते हैं ।
अच्छे दिन ऐसे होते हैं ! अच्छे दिन चंगे होते हैं ।
मतलब से वो घर घर घूमें अवसर भिखमंगे होते हैं ।
हमसे शव श्रेष्ठ शहीदों के जिनके कफन तिरंगे होते हैं।

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