इस छटपटाहट को शक्ति के साथ आगे बढ़ाइए शिवराज जी…

  • अवधेश बजाज कहिन
शिवराज सिंह चौहान

शिवराज सिंह चौहान जी! विज्ञान में ये बिल्कुल ही संभव नहीं है कि कोई किसी विशेष रॉकेट के लिए तैयार किए गए लांच पेड पर अपना रॉकेट लगाकर उसका प्रक्षेपण कर दे। किन्तु राजनीति विज्ञान में यह पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने कर दिखाया है। मुझे आपके कहे पर कोई अविश्वास नहीं है, किन्तु उस ‘करे’ को भी मैं नकार नहीं पा रहा हूं, जो पंजाब में कर दिखाया गया है और जैसा किये जाने की कमी मध्यप्रदेश में भी शिद्दत से महसूस की जा रही है। कम से कम आपकी चौथी पारी में मुझे लगा कि ‘गाड़ देंगे’ वाला आपका एक्सप्रेशन काफी हद तक वास्तविक था। अब भी मैं इस बात को मानता हूँ, लेकिन इसे जानूंगा कब? ये अकेले मेरा नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश का सवाल है। उधर भगवंत मान ने एक भ्रष्टाचारी को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया और इधर इस बात की अंतहीन प्रतीक्षा हो रही है कि नाबालिग बच्चियों के साथ अनाचार करने वालों को फांसी पर लटका देने वाला आपका कानून आज तक क्यों एक अदद मामले में भी व्यवहार रूप से साकार होने के लिए अधर में लटक रहा है। आपका  बुलडोजर यकीनन कई गुरूर भरे चेहरों के निर्माण जमीन में मिला दे रहा है, लेकिन आपके ही आस पास मधुमक्खी का छत्ता निर्मित कर रहे गलत चेहरों को हम भला कब जमींदोज होता देख पाएंगे?  वो चेहरे जो आपके जनता के प्रति जनता वाली सरकार के प्रभावी दिखते चेहरे को अप्रभावी कर देने पर आमादा हैं।
शिवराज जी! झूठ मैंने कभी सहा नहीं और कहा  नहीं और सच से मैं अलग रहा नहीं। निश्चित ही आपके कहे और किये के बीच  लगातार पनपती गाजर घास या अमरबेल के सत्ता-जनित ‘जेनुइन कारणों’ को हम समझ सकते हैं। इसलिए यह बात भी गले के नीचे उतारी जा सकती है कि आप मान जैसे नहीं हो पा रहे, किन्तु कम से कम वो अपमान तो इस प्रदेश का होने से रोक लीजिए, जो आपके हीरोइक और बेलगाम नौकरशाह करने पर आमादा हैं। शिवराज जी! आपने जिनकी मुश्कें कसने का तय किया है, वो आपके ‘अगल-बगल’ की कृपा से अपने सियासी रुसूख वाले भविष्य को तय करने का इंतजाम करने पर अनाचारी तरीके से आमादा हैं। इस बात को कृपया समझिए कि आपका सामना उन गैंडे को भी मात कर देने वाली खाल वालों से है, जो आश्चर्यजनक रूप से आपकी ‘सपरिवार’ नाक के नीचे ही आपके मंसूबों की नाक काट  देने का काम धड़ल्ले से कर रहे हैं। ऐसे लोगों की खाल के भीतर चेतावनी नहीं, बल्कि हंटर उतारा जाना सबसे बड़ी आवश्यकता बन गया है।
निरंकुशता की बालूशाही सूत कर खाती इतनी आततायी नौकरशाही मैंने तो पहले कभी नहीं देखी। इस मीठेपन का एक अजब साइड इफेक्ट है। वह इस मिठास में सरापा डूबे लोगों को आनंद दे रहा है और इससे उपजे मधुमेह का असर आपकी पूरी सरकार पर हो रहा है। कहीं भी चले जाएं, एक ही स्वर है, ‘शिवराज जी तो यह कहकर गए थे, लेकिन जिनके सामने उन्होंने ऐसा कहा, वो फिर कभी पलट कर आये ही नहीं।’ आपकी ऐसी घोषणाओं के प्रत्युत्तर में न पलटने वाले ऐसे लोगों पर आपका पलटवार बहुत बड़ी आवश्यकता बन चुका है। स्वाभाविक रूप से आपको यह कहकर भ्रम में रखने की कोशिश की जा सकती है कि ऐसी निंदा गलत है, किन्तु सच क्या है, यह आपसे भी नहीं छिपा होगा। वरना किसी अफसर के माध्यम से आपको यह चेतावनी सरकार और प्रशासन के स्तर तक प्रसारित नहीं करना पड़ती कि ‘ हर किसी की गतिविधि पर मेरी नजर रहती है।’ मैं मानता हूं कि व्यवस्था में  अव्यवस्थाओं का घालमेल कुछ इस तरह किया जा चुका है कि उसके चक्रव्यूह में अब किसी  अभिमन्यु का प्रवेश भी निरापद नहीं रह गया है। मैं यह भी जानता हूं कि चौथी पारी में आपका पारा जिस तरह रह-रहकर बढ़ता जा रहा है, वह इस बात का पुख्ता संकेत है कि आप अपने तंत्र को  धृतराष्ट्र की सभा में तब्दील न होने देने की छटपटाहट से भरे हुए हैं। आपको यह छटपटाहट पूरी शक्ति के साथ आगे बढ़ाना होगी। जब आप किसी अफसर से कहते हैं कि वह यहां-वहां न देखे (बगलें न झांके) तब स्वयं आपके लिए भी यह अनिवार्य हो जाता है कि अपने अगल-बगल में झांककर यह देखें कि किस तरह आपकी विराट छवि की आड़ में कुछ, बल्कि काफी कुछ गलत भी संचालित किया जा रहा है। कई मंत्री उन गतिविधियों में साफ लिप्त हैं, जो आपकी छवि को कलंकित करने लगे हैं। जो आपके विकास वाले कन्सेप्ट को विनाश का स्वरूप प्रदान करने की प्रलयंकारी क्षमता लेकर आगे बढ़ रहे हैं। इन सब पर लगाम लगाइये। ऐसा इसलिए कह रहा हूं कि आपके भीतर ऐसा करने की पूरी क्षमता तथा इच्छाशक्ति आज भी मौजूद है। उसका क्षरण नहीं हुआ है। हम लिख सकते हैं। कह सकते हैं। बता सकते हैं, लेकिन उसके आगे जो होना जरूरी है, वह तो आपके ही हाथ में है। और मुझे  पूर्ण विश्वास है कि टाइगर आज भी जीवित है तथा उसके हाथ बंधे नहीं हुए हैं।

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