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स्क्रीन शॉट लगाने से बचती हूं, लेकिन ये जरूरी था

लंबे समय से देख रही हूं”फेमिनिस्ट” कई लोगों के लिये उपहास का विषय है। ये “फेमिनिज्म/फेमिनिस्ट” शब्द को गाली के लहजे में इस्तेमाल करते हैं। जाहिर है इसमें महिलाएं भी शामिल हैं। मैं हमेशा से कहती आई हूँ कि पितृसत्ता जेंडर आधारित नहीं है। महिलाएं इसकी विक्टिम होने के साथ बहुत मजबूत वाहक भी हैं। सामाजिक पारिवारिक कंडीशनिंग ही ऐसी है कि कई बार स्त्री भी पितृसत्ता को ही जीवन की सबसे बेहतर प्रणाली मान बैठती है।
यहां “फेमिनिज्म” का मजाक बनाने वाले तमाम लोगों से कहना है कि एक बार सोचकर देखें..अगर विश्व भर में नारीवादी आंदोलन न हुए होते तो आज स्त्री किस स्थिति में होती। वो छोटी से लेकर बड़ी उड़ान जो स्त्री के हिस्से आई है..शायद नहीं होती। पढ़ना, वोट डालना, गर्भनिरोधक इस्तेमाल करने, गर्भपात कराने, गाड़ी चलाने, घरेलू हिंसा से बचाव, नौकरी करने से लेकर तमाम अधिकार पुरुष के ताले में बंद होते।
मजाक बनाना, गाली के लहजे में अनादर करना आसान है। मुझे खुद कई बार इसका सामना करना पड़ता है। “फेमिनिस्ट” पर तो अब जाने क्या क्या लेबल चस्पा कर दिये गए हैं। जो उनसे बात नहीं कर पाते, बहस में टिक  नहीं सकते, विमर्श में प्रत्युत्तर नहीं दे पाते..उपहास पर उतर आते हैं। अफसोस होता है, कितना आसान है उनके लिये स्त्री को Categories कर देना, मजाक बना देना..बजाय कि एक बार उस नजरिए को समझने की कोशिश करते तो शायद तकलीफों  का मजाक नहीं उड़ा पाते।
फेमिनिस्ट स्त्री एक पीढ़ी लिखी, अपने अधिकारों के प्रति जागृत, समझवान, विबेकशील, इस असंतुलित संसार में अपने लिये जगह बनाने की कोशिश करती स्त्री है। वो आपके हिस्से का कुछ भी नहीं छीन रही है। न उसे आपकी दुनिया में डाका डालना है। उसे केवल अपनी दुनिया चाहिए जो उसका हक है।
इसलिये आप चाहे उसे जितना शराब पीने वाली, छोटे कपड़े पहनने वाली, घर तोड़ने वाली, अति महत्वाकांक्षी करार दें…हम अपने छोटे छोटे और हर बड़े अधिकार के लिये संघर्ष करते रहेंगे। आप साथ दें तो स्वागत, अन्यथा तब तक तो हम आपके मनोरंजन के लिये एक चुटकुला हैं ही। कभी कभी कुछ चुटकुले इतिहास में दर्ज होते हैं।

  • श्रुति कुशवाह

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