बिहाइंड द कर्टन/इंदौर का नाम बदलने की चर्चा पर लगा विराम

  • प्रणव बजाज
इंदौर

इंदौर का नाम बदलने की चर्चा पर लगा विराम
ह बीबगंज रेलवे स्टेशन और मिंटो हॉल का नाम बदलते ही प्रदेश में कई स्थानों के नाम बदलने की मांग उठने लगी है, ऐसे में प्रदेश के सबसे बड़े महानगर इंदौर के नाम बदलने की चर्चा भी आम होने लगी थी, जिस पर अब जाकर विराम लगा है। यह विराम भी तब लग सका है , जब स्थानीय सासंद शंकर लालवानी को और इसके बाद पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को इस मामले में आगे आना पड़ा है। इस अफवाह को विराम देने के लिए बीते बीते रोज कैलाश विजयवर्गीय ने इंदौर के नामकरण के पीछे की वजह बताई है। उनका कहना है कि इंदौर का नाम इंद्रेश्वर महादेव के नाम पर रखा गया था और इसका नाम बदलने की जरूरत नहीं है। यदि नाम बदलने के बारे में यहां के जनप्रतिनिधि निर्णय लेते हैं तो ही इस पर विचार किया जाएगा। अभी इस मामले में कुछ भी कहना जल्दबाजी होगा। इसके पहले  सांसद शंकर लालवानी भी इंदौर का नाम बदलने की बात को अफवाह बता चुके हैं।

नहीं हार रहे हैं हिम्मत
प्रदेश के पुलिस मुखिया का कार्यकाल भले ही अगले साल समाप्त हो रहा है, लेकिन यह पद दावेदारों की वजह से अभी से चर्चा में बना हुआ है। इस बीच नए मुखिया का नाम सरकार स्तर पर तय कर लिया गया है। इसके बाद भी इस पद की चाहत रखने वाले अफसर अभी हिम्मत नहीं हार रहे हैं, बल्कि वे जोड़तोड़ में लगे हुए हैं। सरकार इस पद के लिए नियमानुसार वरिष्ठता के आधार पर तीन नामों का पैनल भी तैयार कर चुकी है, जिसे अब केन्द्र सरकार के पास भेजा जाना है। इसके बाद भी दावेदार अपनी जुगाड़ तुगाड़ में लगे हुए हैं। दावेदारों में शुमार एक-दो अफसर तो अपने राजनीतिक संबंधों को खंगालने में भी लगे हुए हैं, तो एक अफसर ने तो यहां तक कहना शुरू कर दिया है कि अगर उन्हें डीजी बनने का मौका नहीं मिलता है तो उनके पास सेवानिवृत्ति का विकल्प खुला है, तो एक अन्य दावेदार फिलहाल इस कोशिश में हैं कि किसी भी तरह उनका नाम पैनल में शामिल हो जाए। यह बात अलग है कि यह वे अफसर हैं जो गाहे बगाहे विवादों की वजह से चर्चा में आ जाते हैं।

बढ़ते अपराधियों से जेल महकमा भी परेशान
आबादी बढ़ने के साथ ही अपराधियों की संख्या में भी इजाफा हुआ, लेकिन उनकी तुलना में न तो जेलों की व्यवस्था की गई और न ही जेल विभाग में अमला ही बढ़ाया गया है, लिहाजा प्रदेश की जेलों में क्षमता से अधिक कैदी रखे जाने की मजबूरी बन गई है। अब जेल डीजी अरविंद कुमार भी इन हालातों को लेकर चिंतित हैं। उनका कहना है कि प्रदेश में अभी कैदी रखने की क्षमता 39 हजार 500 की है, जबकि करीब 48 हजार कैदी प्रदेश की जेलों में इन बंद हैं। वे कहते हैं कि इस समस्या से निपटने के लिए अब कई कारागारों का निर्माण करा रहे हैं। इसमें ग्वालियर को ही देखें तो वहां  पर 2600 बंदी की क्षमता है, लेकिन बंद 3450 हैं। वह तो जेल पुराने जमाने की है और काफी खुली है इसलिए बंदियों को पर्याप्त जगह मिल जाती है।

कोरोना के खतरे से इत्तेफाक नहीं रखते मोहन यादव
दक्षिण अफ्रीकी देशों में कोरोना के नये वेरिएंट पाये जाने और कई देशों में एक बार फिर कहर ढा रही इस बीमारी को लेकर सूबे के उच्च शिक्षा मंत्री मोहन यादव इत्तेफाक नहीं रखते हैं। देश के कई राज्यों में भी कॉलेज खुलने के बाद में लगातार छात्र कोरोना पॉजिटिव हो रहे हैं। इसमें वे छात्र भी शामिल हैं, जिन्हें वैक्सीन की दोनों डोज लग चुकी हैं। ऐसे मध्यप्रदेश भी इस खतरे से अछूता नहीं दिखता है। इसके बाद भी मंत्री जी इस खतरे को काल्पनिक बता रहे हैं। वे कहते हैं प्रदेश में वैक्सीनेशन अच्छा हो चुका है, ऐसे में यह सभी बातें काल्पनिक हैं। इसके अलावा वे कहते हैं वे भगवान से भी कामना कर रहे हैं कि प्रदेश में अब कोरोना की लहर न आए। उनका यह कहना तब है जबकि, तीसरी लहर के खतरे के चलते प्रदेश सरकार लगातार कोरोना गाइडलाइन फॉलो करने की बात कर रही है। लेकिन जब उनसे पूछा गया कि अगर ऐसा होता है तो फिर, तो इसके जवाब में वे कहते हैं कि अगर ऐसा कुछ जब होगा तो स्थिति देखकर निर्णय लिया जाएगा।

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