बा खबर असरदार/समन्वय नहीं बना पा रहे साहब

  •  हरीश फतेह चंदानी
आईएएस अधिकारी

समन्वय नहीं बना पा रहे साहब
2011 बैच के आईएएस अधिकारी को जब से महाकौशल के बड़े जिले का कलेक्टर बनाया गया है, तब से लेकर अभी तक हर कोई चिंतित है। दरअसल, प्रशासनिक गलियारों में इन दिनों बड़े साहब के काम करने के तरीकों को लेकर हर कोई चिंतित दिख रहा है, हालांकि जैसे-जैसे समय बीत रहा है कई लोग इस चिंता से निकलकर निश्चिंतता की ओर बढ़ रहे हैं। अब चर्चा नए स्तर पर हो रही है। चर्चा इस बार साहब के नए होने को लेकर हो रही है। इन दिनों प्रशासनिक गलियारों में चर्चा है कि बड़े साहब अभी आए हैं और उनके लिए शहर के नाम नए हैं। इन्हें समझने से लेकर अपना करने तक में अभी वक्त लगेगा। इधर कई तो चर्चा को इस निष्कर्ष तक ले आए हैं कि साहब भले ही नए हैं, लेकिन उन्हें काम करने का पुराना अनुभव है और तो और वे इस शहर में रहकर भी पहले काम कर चुके हैं, इसलिए उन्हें काम करने और समझने में ज्यादा समय नहीं लगेगा। अब चिंता तो उन प्रशासनिक साहबों की है, जो बमुश्किल से पुराने साहब के साथ आठ माह तक मेहनत कर समन्वय बना पाए थे।

साहब तैयार करेंगे ब्यूरोक्रेट्स
चंबल अंचल के  बड़े जिले  ग्वालियर की कलेक्टरी संभाल रहे 2010 बैच के आईएएस अधिकारी कौशलेन्द्र विक्रम सिंह अब एक नया नवाचार करने जा रहे हैं। दरअसल, साहब ने कुछ अधिकारियों के साथ मिलकर योजना बनाई है कि जिले में सिविल सर्विसेस में जाने के इच्छुक युवाओं के लिए फ्री कोचिंग दी जाए। फ्री कोचिंग में छात्र-छात्राओं को प्रतिदिन 2 घंटे पढ़ाया जाएगा। इस फ्री कोचिंग में अपना रजिस्ट्रेशन कराने के लिए बड़ी संख्या में युवाओं ने रजिस्ट्रेशन कराया है। कलेक्टर की पहल और आदर्श परिवार एवं आधुनिक नालंदा के सहयोग से सिविल सेवा की तैयारी कर रहे छात्र छात्राओं के लिए  नि:शुल्क कोचिंग क्लासेज इसी माह से शुहोंगी। क्लासेस सुबह 8 बजे से 10 बजे तक लगेंगी। जो स्टूडेंट्स सिविल सर्विसेस की तैयारी कर रहे हैं और प्रिप्रेशन में कहीं कठिनाई महसूस करते हैं तो जिला प्रशासन की ये नि:शुल्क कोचिंग उनके लिए बहुत फायदेमंद साबित हो सकती है।

लखपति दैवेभो
वन विभाग में इन दिनों मालवा के एक जिले में पदस्थ एक दैनिक वेतनभोगी कर्मचारी की कारों की चर्चा जोरों पर है।  इन चर्चाओं की शुरूआत उस शिकायती आवेदन से हुई, जो विभाग के ही वनरक्षक ने दैवेभो कम्प्यूटर आॅपरेटर के खिलाफ दिया है। इसमें आॅपरेटर की शिकायत एसपी से की गई थी। इसमें बताया कि ऑपरेटर ने 13.74 लाख रुपए का लोन लेकर कार खरीदी और इसकी जानकारी वनरक्षक तक को लगने नहीं दी। जब वनरक्षक खुद के लिए जब लोन लेने के लिए बैंक पहुंचा तो उसे इस बात की भनक लगी। अब इस शिकायती आवेदन के बाद अंदरखाने चर्चा शुरू हो गई है कि बगैर आर्थिक संपन्नता के इस आॅपरेटर ने 8 हजार रुपए की तनख्वाह में आठ साल की नौकरी में 80 लाख से अधिक की संपत्ति और लाखों रुपए की महंगी कारों का शौक कैसे पूरा किया है। बताया जा रहा है कि यह दैवेभो जहां पदस्थ है वहां ,वन विभाग में इसकी मर्जी के बगैर कोई शुभ-लाभ का गणित संभव नहीं हो पाता है। इस वजह से यह विभाग का बड़ा कामकाजी व्यक्ति है। इसका फायदा उठाकर ऑपरेटर ने बेहिसाब संपत्ति जुटाने का प्रयास किया है, जो अब सब की नजरों में आ चुकी है।  इससे बचने के लिए आॅपरेटर ने लोन भी ले रखे हैं, लेकिन यह भी नाकाफी ही साबित हो रहे हैं।

कलेक्टर की विनम्रता
प्रदेश के आदिवासी बहुल एक छोटे से जिले डिंडौरी के कलेक्टर विकास मिश्रा  साहब की सदाशयता और विनम्रता इन दिनों प्रदेश की प्रशासनिक वीथिका में चर्चा का विषय बनी हुई है। इसकी वजह यह है कि गत दिनों साहब छत्तीसगढ़ की सीमा से लगे एक जनपद पंचायत क्षेत्र के गांव पहुंचे। यहां उन्होंने लोगों की समस्याएं सुनी। फिर कलेक्टर एक पोषक ग्राम भी पहुंचे तो बैगा आदिवासी महिलाएं कलेक्टर का स्वागत करने आई। कलेक्टर ने उनके पैर छुए और कहा कि आप अपनी समस्याएं बताएं। कलेक्टर साहब की इस विनम्रता को देखकर वहां मौजूद हर कोई भाव विहवल हो गया। वहीं महिलाओं ने कलेक्टर साहब को घेर लिया। महिलाओं की शालीनता को देखते हुए साहब वहीं जमीन पर बैठ गए और उनकी समस्याएं सुनीं।  महिलाओं ने शिकायत की कि उन्हें बैगा विकास अभिकरण द्वारा दी जाने वाली एक हजार रुपए की अनुदान राशि नहीं मिल रही है। कलेक्टर ने तत्काल जनपद पंचायत सीईओ को कैंप लगाकर समस्या का निराकरण करने के निर्देश दिए। कलेक्टर ने ग्रामीणों को पेसा एक्ट के बारे में विस्तार से जानकारी दी।

तिकड़ी ने पकड़ी पगडंडी
अगर प्रशासन संवेदनशील हो तो वह रातों-रात जनता की आंखों का नूर बन जाता है। ऐसा ही प्रशासन इन दिनों निमाड़ के एक जिले में देखने को मिला। दरअसल, जिले के वन क्षेत्र में पिछले कुछ दिनों से बाहरी अतिक्रमणकारियों की मौजूदगी के चलते ग्रामीण दहशत के साए में जी रहे थे। यह बात जैसे ही जिले की महिला कलेक्टर तक पहुंची, उन्होंने एसपी और डीएफओ को साथ लिया और पगडंडी पकड़कर जंगल की राह पकड़ ली।  मौके की नजाकत को देखते हुए एसपी ने करीब पांच सौ वन और पुलिसकर्मियों को साथ ले लिया। जंगल में अतिक्रमणकारियों के रात बिताने के अवशेष तो मिले, लेकिन एक भी अतिक्रमणकारी नजर नहीं आया। बताया जाता है कि पुलिस प्रशासन के आने की खबर सुनते ही अतिक्रमणकारी जंगल छोड़कर चले गए।  प्रशासन की इस सक्रियता से वन क्षेत्र में रहने वाले ग्रामीणों के मन में विश्वास जगा है कि उनका कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता।

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