बा खबर असरदार/मैडम की साड़ी विभाग पर भारी

  • हरीश फतेह चंदानी
विभाग

मैडम की साड़ी विभाग पर भारी
मप्र की एक महिला आईएएस अधिकारी की साड़ी का शौक एक विभाग पर भारी पड़ रहा  है। दरअसल, मैडम का अतीत धार्मिक और सांस्कृतिक पक्षों से जुड़ा हुआ है।  इसलिए मैडम को साड़ी खरीदना और पहनना खूब भाता है। अपने इसी शौक में 1992 बैच की उक्त महिला आईएएस अधिकारी इस कदर फंस गईं कि उन्हें विभाग से चलता तक कर दिया गया।  दरअसल, मैडम जिस विभाग में थीं ,उस विभाग में रहते हुए उन्होंने 25 लाख रुपए की साड़िय़ां खरीद डालीं और बिल विभाग के मत्थे मढ़ दिया। अब विभाग के अधिकारी-कर्मचारी परेशान हैं कि इतनी बड़ी रकम का भुगतान कैसे किया जाए।  या तो यह रकम अधिकारियों-कर्मचारियों को अपनी जेब से चुकानी होगी, या फिर इसकी भरपाई सरकारी खजाने से करनी होगी। अब मैडम की साड़िय़ों का यह किस्सा प्रदेश की प्रशासनिक वीथिका में चर्चा का विषय बना हुआ है। गौरतलब है कि मैडम जिस भी विभाग में रही है, वहां उनसे कोई न कोई विवाद जुड़ा ही रहा है।

शिकायत ने भिजवाया जेल
अपनी धार्मिकता के लिए ख्यात बुंदेलखंड के एक जिले के कलेक्टर साहब इन दिनों अपने सख्त रुख के लिए चर्चा का विषय बने हुए हैं। बताया जाता है कि 2011 बैच के प्रमोटी आईएएस अधिकारी ने जबसे जिले की कमान संभाली है, उन्हें सरकार के कद्दावर मंत्री का भरपूर समर्थन मिल रहा है। इसलिए साहब का रुख भी बदल गया है। गत दिनों साहब के पास एक शिकायत पहुंची कि एक किसान बार-बार सीएम हेल्पलाईन में शिकायत कर अफसरों को परेशान कर रहा है।  फिर क्या था साहब ने उक्त किसान की कुंडली मंगवाई। जिसमें यह बात सामने आई कि उक्त किसान शिकायतें करने का आदी है। उसने सीएम हेल्पलाइन में एक ही मोबाइल नंबर से 70 से अधिक शिकायतें की हैं।  फिर क्या था साहब ने उक्त किसान को सबक सिखाने के लिए धारा 151 के तहत जेल भेज दिया है। अब जिले में यह बात आग की तरह फैली और सीएम हेल्पलाइन पर शिकायत करने वालों की संख्या सीमित हो गई है।

कलेक्टर की छापेमारी
2012 बैच के एक प्रमोटी आईएएस रातों-रात सुर्खियों में आ गए हैं। प्रदेश की राजनीतिक और प्रशासनिक वीथिका में उनकी खूब चर्चा हो रही है।  वजह यह है कि मालवा क्षेत्र के एक जिले की कलेक्टरी संभाल रहे साहब ने गत दिनों नगर एवं ग्राम निवेश (टीएनसीपी) कार्यालय पर प्रशासनिक टीम के साथ छापा मारा। कार्यालय में पड़ी अस्त-व्यस्त फाइलों को देख कलेक्टर ने विभागीय अधिकारियों को फटकार लगाई। करीब सवा घंटे तक कलेक्टर साहब ने कार्यालय में अलग-अलग स्थानों पर पड़ी फाइलों को टटोला। कलेक्टर ने एक-एक फाइलों को देखने के लिए आलमारियों को भी स्वयं खोली। कलेक्टर अपने साथ 4 बस्तों में 50 से अधिक फाइलें लेकर गए हैं। सूत्रों के अनुसार कलेक्टर साहब को टीएनसीपी कार्यालय की काफी समय से शिकायतें मिल रही थी। कलेक्टर अपने साथ एक सूची भी बना कर साथ लाए थे। बताया जाता है, इन फाइलों में बड़े घोटालों के राज छिपे हुए हैं।

आखिर क्या है घालमेल?
प्रदेश की अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए सरकार ने अनुपयोगी सरकारी जमीनों को बेचने का सिलसिला शुरू कर दिया है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार अभी तक करीब 6 हजार करोड़ की जमीनें बेंच दी गई हैं। वहीं प्रदेशभर में ऐसी जमीनों को चिन्हित कर सूचीबद्ध किया जा रहा है। इस बीच इस पूरी प्रक्रिया में भ्रष्टाचार की बू आने लगी है। यह बू आम आदमी को भले ही न आए, लेकिन शासन के मुखिया को आने लगी है। वे यह सोचने लगे हैं कि आखिरकार इस व्यवस्था में भ्रष्टाचार की गुंजाइश कैसे है। उधर, प्रदेश की प्रशासनिक वीथिका में इसको लेकर तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। कानाफूसी तो यह हो रही है कि सरकार की बिकने वाली जमीनों के प्रबंधन का जिम्मा जिस नवगठित विभाग को दिया गया है, उसमें बैठे अधिकारी ही भ्रष्टाचार का घालमेल कर रहे हैं। दरअसल, जिन जमीनों को बेचा जा रहा है, उनकी दरें कलेक्टर गाइडलाइन से कम हो रही हैं।  इसको लेकर कई मामले अदालत में चले गए हैं। ऐसे में सवाल उठने लगा है कि आखिरकार जमीनों की बिक्री में घालमेल क्या है? कौन इस धंधे में मलाई खा रहा है।

अफसरों को भा रहे कैंप ऑफिस
संतुलित विकास के लिए सरकार ने राजधानी के अलावा प्रदेश के प्रमुख शहरों में कुछ विभागों के मुख्यालय खोल रखे हैं। ग्वालियर-चंबल अंचल के एक बड़े जिले में आबकारी मुख्यालय, परिवहन मुख्यालय, सीएजी दफ्तर, लैंड रिकार्ड मुख्यालय और राजस्व मंडल का मुख्यालय खोला गया था। वर्षों तक इन विभागों की कमान संभालने वाले अधिकारी मुख्यालय को गुलजार करते रहे। यहीं से पूरे प्रदेश के लिए दिशा-निर्देश जारी किए जाते थे। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से ये मुख्यालय सिर्फ नाम के रह गये हैं, क्योंकि मुखिया तो यहां बैठते नहीं। दरअसल, इन विभागों के मुखिया को मुख्यालय की बजाय कैंप ऑफिस पसंद आ रहे हैं। इसकी वजह यह है कि ये कैंप ऑफिस राजधानी में खुले हुए हैं और अधिकतर मुखियाओं को भोपाल का मोह नहीं छूटता। बीच में तो अंचल के जनप्रतिनिधियों ने मुख्यमंत्री से मांग कर दी थी कि सारे कैंप आफिस बंद किए जाएं, क्योंकि इससे मुख्यालय की परिकल्पना ही बदल गई है।  एक-एक फाइल पर साहब के साइन कराने के लिए विशेष दूत सरकारी धन के खर्चे पर हर दिन भोपाल जाता है।

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