- हरीश फतेह चंदानी
शिव प्रकाश की डायरी
प्रदेश की राजनीतिक वीथिका में इन दिनों एक डायरी खासी चर्चा में है। यह डायरी किसी ऐरे-गैरे की नहीं बल्कि भाजपा के राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री शिव प्रकाश की है। सूत्र बताते हैं कि शिवप्रकाश जब भी मप्र आते हैं डायरी अपने साथ लाते हैं। बताया जाता है कि इस डायरी में सत्ता और संगठन के तमाम नेताओं की कुंडली है। दरअसल, जब राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री पहली बार भोपाल आए थे तो उन्होंने कई दिनों तक पहचान छुपाकर भाजपा कार्यालय की गतिविधियों पर नजर रखी। कभी वे संगठन महामंत्री के कक्ष में बैठकर तो कभी कार्यालय के प्रांगण में घूमकर नेताओं की कुंडली तैयार की। उसके बाद उन्होंने अपने शागिर्दों को सक्रिय किया। इन शागिर्दों ने उन्हें एक-एक मंत्री और पदाधिकारी की गतिविधियों की जानकारी दी। जिसको उन्होंने अपनी डायरी में अंकित कर लिया है। बताया जाता है कि जब भी वे भोपाल आते हैं, हर बार एक रिपोर्ट तैयार करते हैं। यह रिपोर्ट के कागजात भी इसी डायरी में रहते हैं। सूत्रों का कहना है कि आने वाले दिनों में सत्ता और संगठन में जो भी फेरबदल होंगे, उसमें इस डायरी का बड़ा महत्व रहेगा।
न घाट के रहे… न घर के
उपरोक्त लाइनें पढ़कर आपको आश्चर्य हो रहा होगा, लेकिन इसमें आश्चर्य होने की कोई बात नहीं है, क्योंकि राज्य पुलिस सेवा के एक अधिकारी के साथ ऐसा ही हुआ है। पहले साहब की नौकरी पर खतरा मंडराया, उसके बाद पत्नी ने घर से निकाल दिया। हैरानी की बात तो यह है कि साहब को घर से निकालने वाली पत्नी कोई ऐसी-वैसी नहीं हैं, बल्कि वे 2011 बैच की आईपीएस अधिकारी हैं। मैडम वर्तमान में एक आदिवासी जिले की कमान संभाल रही हैं। हमेशा अपने साथी अफसरों के साथ विवादों में रहने वाली मैडम इस बार अपने पति को घर से निकालकर चर्चा में हैं। बताया जाता है कि मैडम के पति के जब दिन अच्छे थे तो घर ही नहीं बाहर भी उनकी पूछ-परख खूब होती थी। आलम यह था कि साहब को घर पर भी खूब मान-सम्मान मिलता था। साहब की पत्नी आईपीएस है। लेकिन उन्होंने कभी भी पति के सेवा-सत्कार में कोई कमी नहीं रखी। साहब के दिन अच्छे चल रहे थे कि अचानक एक मामले में साहब की जांच शुरू हुई। उसके बाद उन्हें सस्पेंड कर दिया गया। यहीं से साहब के दुर्दिन शुरू हो गए। अपने कार्यालय में सबके चहेते रहे साहब को घर बैठा दिया गया। साहब मन मसोसकर घर बैठे ही थे कि वे पत्नी को भी नागवार गुजरने लगे। साहब पर अपना लाड़-प्यार छिड़कने वाली पत्नी को कुछ दिनों बाद साहब खटकने लगे। यही नहीं अब तो मैडम ने साहब को घर से भी निकाल दिया है। अब साहब की स्थिति ऐसी हो गई है कि वे न तो घाट के रहे और न घर के।
जाना था मथुरा… पहुंच गए दिल्ली
आपने ये मशहूर गाना तो सुना ही होगा कि… जाना था जापान पहुंच गए चीन समझ गए ना ऐसा ही कुछ पिछले दिनों एक माननीय मंत्रीजी के साथ घटित हुआ। दरअसल, मंत्रीजी भोपाल से अचानक यह कहकर निकले कि वे मथुरा जा रहे हैं, लेकिन शुभचिंतकों ने जब पड़ताल की तो पता चला कि वे दिल्ली में हैं। फिर क्या था, सबने इसकी खोज-खबर लेनी शुरू कर दी। तब जाकर यह बात सामने आई कि असल में मंत्रीजी को दिल्ली तलब किया गया था, लेकिन वे अपनों को मथुरा बताकर गए थे। बताया जाता है कि मंत्रीजी के खिलाफ इतनी शिकायतें पहुंची हैं कि उससे आजीज आकर संगठन मंत्री ने उन्हें दिल्ली तलब किया था। वहां जब मंत्रीजी के सामने उनके पाप का पुलिंदा खोला गया तो मंत्रीजी भौचक्के हो गए। सूत्रों का कहना है कि मंत्रीजी को इस बात का अहसास नहीं था कि कोई उनकी एक-एक करतूत पर नजर रखे हुए है। बताया जाता है कि संगठन मंत्री के सामने पहले तो मंत्रीजी ना नुकुर करते रहे, लेकिन जब आरोपों के प्रमाण भी उनके सामने रखे गए तो वे बगले झांकने लगे। उन्होंने संगठन मंत्री को आश्वासन दिया है कि आइंदा वे ऐसा काम नहीं करेंगे, जिससे सरकार और पार्टी की छवि धूमिल हो।
…और पास हो गई मंत्रीजी की सूची
विगत दिनों प्रदेश में निर्माण कार्य करने वाले विभाग की कमान संभालने वाले मंत्रीजी का रौद्र रूप अफसरों पर इस तरह छाया कि उन्होंने माननीय द्वारा दी गई तबादला सूची को जस का तस जारी कर दिया। बता दें कि जिस मंत्रीजी की बात यहां हो रही है, वे प्रदेश की राजनीति में काफी दमदारी रखते हैं। लेकिन वे अपनी दमदारी का दम नहीं भरते हैं। शायद यही वजह है कि विगत दिनों मंत्रीजी ने जब अपने विभाग के कुछ अफसरों के तबादले की सूची तैयार करके सीएमओ भेजी तो उसे अफसरों ने हल्के में ले लिया। सूत्र बताते हैं कि उस सूची पर विचार-विमर्श करने के लिए प्रशासनिक मुखिया ने मंत्रीजी के विभाग के प्रमुख सचिव को बुलाया और एक-एक नाम पर चर्चा की। उसमें से कुछ नामों को सूची से बाहर कर दिया गया। जिसमें से एक नाम मंत्रीजी के चहेते अफसर का था। फिर क्या था, मंत्रीजी ने आव देखा न ताव और धड़धड़ाते हुए सीएमओ पहुंच गए। उन्होंने अपना रौद्र रूप दिखाते हुए कहा कि आप लोगों को जो भी मनमानी करनी है कर लो, मैं कुछ नहीं बोलने जाऊंगा। लेकिन इसके परिणाम घातक हो सकते हैं। मंत्रीजी यही नहीं रुके और जमकर खरी-खोटी सुना डाली। बताया जाता है कि मंत्रीजी की यह बात जैसे ही सत्ता और संगठन के सर्वोच्च के पास पहुंची, उन्होंने बिना झिझक निर्देश दे दिया कि वे जैसा चाहते हैं, वैसा ही कर दो। फिर क्या था, मंत्रीजी की सूची जस की तस जारी कर दी गई।
ये हैं प्रशासनिक विश्वकर्मा
प्रदेश की प्रशासनिक वीथिका में इन दिनों एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी का मान-सम्मान तेजी से बढ़ा है। आलम यह है कि साहब को अब प्रशासनिक विश्वकर्मा कहा जाने लगा है। 1988 बैच के ये आईपीएस अधिकारी कायदे-कानून के जानकार हैं। विगत दिनों प्रदेश के 2 बड़े शहरों में जो पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू की गई है, उसका पूरा खाका इन्हीं ने तैयार किया है। उन्होंने इस प्रणाली में कुछ ऐसे प्रावधान किए हैं, जिससे यह देश की सबसे अच्छी पुलिस कमिश्नर प्रणाली मानी जा रही है। विगत दिनों सीएम ने जब पीएम के सामने इसका प्रेजेंटेशन किया तो उन्होंने भी इसकी सराहना की। सूत्र बताते हैं कि साहब के कानून निर्माण की योग्यता को देखते हुए पुलिस महकमे के लोग अब इन्हें प्रशासनिक विश्वकर्मा कहने लगे हैं। आलम यह है कि साहब के पास कमिश्नर प्रणाली वाले दोनों शहरों के अफसर कानून की बारीकियां सीखने भी पहुंच रहे हैं। उधर, सूत्रों का कहना है कि आगामी विधानसभा सत्र में प्रदेश सरकार जो गैंगस्टर विरोधी विधेयक तथा पब्लिक सेफ्टी बिल लाने जा रही है, उसको भी अंतिम रूप प्रशासनिक विश्वकर्मा ही देंगे।