- हरीश फतेह चंदानी
दब गया घोटाला
विंध्य क्षेत्र का एक जिला इन दिनों प्रशासनिक वीथिका में चर्चा का विषय बना हुआ है। इसकी वजह है, यहां के कलेक्टर और पूर्व एसपी के बीच हुआ विवाद। जिले की कलेक्टर 2013 बैच की दबंग आईएएस अधिकारी हैं तो एसपी थे 2015 बैच के आईपीएस अधिकारी। नया खून होने के कारण दोनों अधिकारियों में खींचतान शुरू हो गई थी। इसी बीच जिले के नगरीय निकाय में 14 करोड़ का एक बड़ा भ्रष्टाचार सामने आया। इस मामले में जिस अधिकारी का नाम सामने आया उसे कलेक्टर ने हटा दिया। यह बात एसपी साहब को नागवार गुजरी और उन्होंने इसकी शिकायत भ्रष्टाचार वाले विभाग के प्रमुख सचिव से कर दी। फिर क्या था, कलेक्टर मैडम ने इसे अपना अपमान मान लिया और अधिकारियों, कर्मचारियों को लामबंद कर एसपी साहब के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। यह मोर्चाबंदी इतनी मजबूत हुई कि एसपी साहब को अपने पद से हाथ धोना पड़ गया। उधर, 14 करोड़ का भ्रष्टाचार भी इस लड़ाई में दब गया।
समर्पण देख हतप्रभ हुए साहब
अक्सर माना जाता है कि शासकीय अधिकारी-कर्मचारी लापरवाह होते हैं। लेकिन मालवा क्षेत्र के सबसे बड़े जिले के कलेक्टोरेट में एक पूर्व शासकीय अधिकारी का समर्पण देख नवागत कलेक्टर साहब हतप्रभ रह गए। दरअसल, जबसे 2009 बैच के आईएएस अधिकारी को उस जिले की कमान मिली है, उन्होंने व्यवस्था सुधार के लिए अभियान शुरू कर दिया है। इसी सिलसिले में गत दिनों जब वे कलेक्टोरेट के हेल्प डेस्क का निरीक्षण करने पहुंचे तो वहां एक पूर्व नायब तहसीलदार बैठे हुए थे, जो आजकल वकालत करते हैं। कलेक्टर साहब को देख पूर्व नायब तहसीलदार बोल पड़े कि जी बताएं, क्या समस्या है? ये सुनकर कलेक्टर मुस्कुरा दिए। साहब के साथ चल रहे अधिकारियों ने बताया कि ये पूर्व नायब तहसीलदार हैं और यहां फ्री आॅफ चार्ज में लोगों की मदद करते हैं। एक अधिकारी का समर्पण देखकर साहब खुश भी हुए और हतप्रभ भी हुए कि ऐसा भी हो सकता है।
बड़े साहब को साधने की कवायद
प्रदेश की संस्कारधानी में जबसे 2011 बैच के आईएएस अधिकारी कलेक्टर बने हैं, उनको साधने के लिए अधिकारी जुट गए हैं। इसकी वजह यह है कि हाल ही में जिला प्रशासन की कमान संभालने वाले बड़े साहब के आते ही उन्होंने अपनी कार्य और भाषा शैली से सभी को परिचित करवा दिया है। दिखावे से ज्यादा, काम करने पर यकीन रखने वाले इन साहब का रूख जानने में इन दिनों पूरा महकमा लगा हुआ है। हर किसी में यह उत्सुकता है कि बड़े साहब को क्या पसंद है और क्या नहीं। इसके लिए कईयों ने तो उनके पुराने शहर से जुड़े पुराने मित्रों से संपर्क साधा है, ताकि साहब के रूख का कुछ पता लगा सकें। इसमें कईयों को सफलता मिली भी है तो कई मायूस होकर वापस अपने काम में जुट गए हैं। इधर प्रशासन में दूसरी और तीसरी लाइन के अधिकारियों में कई ऐसे हैं, जो साहब का रूख जानने की बजाए अपना काम बेहतर करने में जुटे हैं, ताकि उनका काम न बिगड़े। अब देखते हैं कि इसमें उन्हें कितना सफलता मिलती है और कितनी असफलता।
बिरयानी का कर्ज
देश-प्रदेश में पुलिस को लेकर तरह-तरह की बातें की जाती हैं, लेकिन कुछ पुलिस वाले ऐसे भी होते हैं, जो किसी का एहसान भूलते नहीं हैं। ऐसे ही अफसरों में 2014 बैच के एक आईपीएस अधिकारी की चर्चा खूब हो रही है। वजह यह है कि साहब के पास राजधानी के एक प्रसिद्ध नॉनवेज होटल से बिरयानी जाती है। एक दिन अचानक नगर निगम के दस्ते ने उस होटल पर छापामार कार्रवाई की और सामान के साथ अधकच्ची बिरयानी और चिकन भी जब्त कर लिया। रसूखदारों के इस ठिकाने पर हुई छापेमारी की कहानी आग की तरह शहरभर में फैल गई। कई लोगों ने नगर निगम के अधिकारियों को फोन करके कार्रवाई रोकने को कहा। जब बात नहीं बनी तो होटल संचालक ने आईपीएस अधिकारी को फोन लगाया और परेशानी बताई। बताया जाता है कि तब तक निगम वाले सारा सामान लेकर चले गए थे। व्यवसायी के फोन के बाद साहब ने निगम वालों को फोन लगाया और बिना देर किए सारा सामान वापस करा दिया। इस घटना के बाद कहा जा रहा है कि साहब ने बिरयानी का कर्ज उतार दिया।
अक्ल के पीछे लट्ठ लिए फिरना…
यह कहावत आपने कई बार सुनी होगी- अक्ल के पीछे लट्ठ लिए फिरना। यह कहावत वर्तमान समय में प्रदेश के सबसे कमाऊ विभाग को लेकर सार्थक हो रही है। दरअसल, प्रदेश शासन को हर माह करोड़ों रुपए का राजस्व दिलाने वाले विभाग के पास स्वयं का कार्यालय तक नहीं है। अगस्त 2016 यानी कि बीते सवा छह साल से किराए के भवन में इसका संचालन हो रहा है। ये स्थिति तब है जब कार्यालय के लिए जगह आवंटित की जा चुकी है। लेकिन भवन निर्माण का मामला अटका हुआ है। भवन के निर्माण में देरी से शासन को अब तक 5.24 करोड़ रुपए किराए के रुप में भरने पड़े। शुरूआती समय में किराया 5.85 लाख रुपए और संधारण का शुल्क 73 हजार रुपए प्रतिमाह था। जो वर्तमान में बढ़कर क्रमश: 6.73 लाख और 86 हजार रुपए हो गया है। यानी कि हर माह किराए और संधारण के एवज में विभाग को 7.59 लाख रुपए खर्च करने पड़ रहे हैं। लोगों को समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर ऐसी क्या वजह है कि सरकार सबसे कमाऊ विभाग के लिए एक कार्यालय नहीं बना पा रही है।