- हरीश फतेह चंदानी/बिच्छू डॉट कॉम।
बिल्ली के भाग्य से छींका टूटा
आपने छींका टूटते भले ही न देखा हो लेकिन बिल्ली के भाग्य से छींका टूटा वाली कहावत तो जरूर सुनी और पढ़ी होगी। प्रदेश में 1988 बैच के एक आईपीएस अधिकारी राजीव टंडन के लिए यह कहावत पूरी तरह सटीक बैठ रही है। दरअसल, प्रदेश पुलिस के मुखिया अगले माह की 4 तारीख को सेवानिवृत्त होने वाले हैं। उनकी जगह नया मुखिया बनने के लिए 1987 बैच के दो आईपीएस अधिकारी प्रमुख दावेदार बने हुए थे। लेकिन नियमानुसार इनकी फाइल तीन माह पहले यूपीएससी को नहीं भेजी गई। ऐसे में इनके भाग्य का फैसला अटक गया है। बड़े साहब के रिटायरमेंट के बाद उनकी जगह किसी अन्य अधिकारी को पदस्थ करना अनिवार्य है। सूत्रों के अनुसार ऐसे में 1988 बैच के एक आईपीएस अधिकारी का नाम आगे आया है। बताया जाता है कि उक्त अधिकारी ने पुलिस मुखिया बनने की सारी तैयारियां भी कर ली हैं।
लॉबिंग में फंसी दूसरे एसीपी की नियुक्ति
राजधानी में पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू किए लगभग तीन महीने का वक्त गुजर गया है, लेकिन व्यवस्था में अभी भी धार नजर नहीं आ रही है। जब इसकी पड़ताल की गई तो यह तथ्य सामने आया कि अभी तक पुलिस आयुक्त प्रणाली के अनरूप पूरा कैडर ही तैनात नहीं हो पाया है। सबसे हैरानी की बात यह है कि अभी तक शहर में दूसरे एडिशनल पुलिस कमिश्नर की ही नियुक्ति नहीं हो पाई है। पुलिस आयुक्त प्रणाली के तहत शहर में दो एसीपी होने चाहिए। एक एसीपी 2007 बैच के आईपीएस अधिकारी को तो बना दिया गया है, लेकिन दूसरे एसीपी का पद खाली है। सूत्रों का कहना है कि इस पद पर नियुक्ति इसलिए अटकी हुई है कि तीन बैच के आईपीएस अधिकारी लॉबिंग कर रहे हैं। सबसे बड़ा दावेदार 2005 बैच की महिला आईपीएस अधिकारी रूचिवर्द्धन मिश्रा को माना जा रहा है। लेकिन 2006 और 2007 बैच के आईपीएस भी लॉबिग में जुटे हुए हैं। कई स्तरों पर हो रही लॉबिंग के कारण महिला आईपीएस की नियुक्ति का मामला आगे नहीं बढ़ पा रहा है।
साइकिल वाले का खौफ
प्रदेश की प्रशासनिक वीथिका में 2013 बैच के आईएएस अफसर संदीप जीआर साइकिल वाले साहब के नाम से चर्चा में हैं। वर्तमान समय में बुंदलेखंड के एक जिले में कलेक्टरी कर रहे ये साहब अपने कामों के साथ ही अलग अंदाज को लेकर चर्चा में हैं। दरअसल, साहब एक आम आदमी की तरह साइकिल पर सवार होकर बिना सुरक्षाकर्मी और स्टाफ के निकल पड़ते हैं। इस कारण उन्हें कोई पहचान नहीं पाता है। मगर जहां पहुंचते हैं, वहां हड़कंप मच जाता है। क्योंकि पूरी स्थिति का वे एक आम आदमी की तरह निरीक्षण करते हैं, उसके बाद बताते हैं कि मैं कलेक्टर हूं। साहब की इस अदा से जहां जनता खुश है, वहीं सरकारी अधिकारियों, कर्मचारियों में खौफ। आम यह है कि अब जिला मुख्यालय पर सरकारी दफ्तर सुबह से ही आबाद हो जाते हैं। गौरतलब है कि बेंगलुरु (कर्नाटक) के मूल निवासी ये आईएएस अफसर जहां भी पदस्थ रहे हैं, वहां उन्होंने अपनी अलग ही छाप छोड़ी है।
कुंडली ने बढ़ाई चिंता
प्रदेश में सत्तारूढ़ पार्टी के विधायक इन दिनों खासे परेशान दिख रहे हैं। जब इसकी खोज-खबर की गई तो पता चला कि पार्टी अपने विधायकों के काम का सर्वे करवाने जा रही है। सूत्रों का कहना है कि सर्वे के आधार पर ही विधायकों को आगामी विधानसभा चुनाव में टिकट दिया जाएगा। बस यही खबर विधायकों की परेशानी का सबब बना हुआ है। विधायकों का कहना है कि इस बार तो उन्हें काम करने का मौका ही नहीं मिला है। 15 माह विपक्ष में रहे, उसके बाद कोरोना संक्रमण के कारण घर में कैद रहे। ऐसे में विकास कार्य कराने का मौका ही नहीं मिला। उधर, संगठन के एक पदाधिकारी का कहना है कि सर्वे में विधायकों के कामों का आंकलन, उनका आम लोगों और कार्यकर्ताओं से व्यवहार, जनता में उनकी छवि, सरकार की योजनाओं का कितना फायदा लोगों को दिलाया तथा संगठन में उनकी क्या भूमिका रही है, जैसे बिंदु शामिल किए गए हैं। इसलिए कोई बहाना चलने वाला नहीं।
जाते-जाते साहब जमा गए गोटी
बिरसिंहपुर स्थित संजय गांधी ताप गृह में अनियमिता को लेकर सख्ती की गई। कंपनी प्रबंधन ने ताप गृह के मुखिया मुख्य अभियंता हेमंत संकुले को किसी तरह सुरक्षित करने के लिए उनकी जिम्मेदारी बदल दी। साहब के कुर्सी छोड़ने से पहले मातहतों के दायित्व भी बदल दिए गए। कार्यभार छोड़ने के आखिरी दिन साहब ने गड़बड़ी वाले चिन्हित क्षेत्र बायलर ट्यूब और टर्बाइन में सालों से काम करने वाले कर्मियों को इधर-उधर कर दिया। उनके इस बदलाव की अंदरूनी वजह नए साहब से गोलमाल को छिपाना था। इधर साहब को भी अंतिम वक्त हुए बदलाव की खबर पहुंच चुकी है। बता दें कि संजय गांधी ताप गृह की अनियमितता से जुड़ी कार्रवाई करने वाली टीम में नए साहब भी एक सदस्य थे। इनकी रिपोर्ट पर प्रमुख सचिव ऊर्जा की तरफ से यह परिवर्तन किया था। इसी वजह से संजय गांधी ताप गृह के पुराने मुखिया को उनके आने से अधिक डर सता रहा है।