- हरीश फतेह चंदानी
एक फटकार का कमाल
कभी-कभी फटकार नया इतिहास रच देती है। ऐसा ही इतिहास निमाड़ के एक जिले ने रच डाला है। दरअसल, सीएम हेल्पलाइन रैंकिंग में जिला पिछले तीन माह से फिसड्डी बना हुआ था। लेकिन इस माह वेटेज के आधार पर लंबी छंलाग लगाते हुए सीधे टॉप 10 में आ गया है। इसकी पड़ताल की गई तो यह तथ्य सामने आया कि जिले की कमान संभालने वाले 2012 बैच के आईएएस अधिकारी की फटकार का यह असर है। दरअसल, महीना दर महीना जब सीएम हेल्पलाइन रैंकिंग में जिले की स्थिति खराब होती गई तो साहब आपे से बाहर आ गए। उन्होंने आनन-फानन में अफसरों की बैठक बुलाई और जमकर फटकार लगाई कि जो भी विभाग सीएम हेल्पलाइन की शिकायतों के निराकरण में भर्राशाही दिखाएगा उस विभाग के अफसरों पर गाज गिराई जाएगी। फिर क्या था साहब की फटकार ने कमाल दिखाया और जिला फिसड्डी से सीधे टॉप-10 में शामिल हो गया। साहब के इस कमाल को राज्य मंत्रालय में भी सराहना मिल रही है। वहीं अन्य जिलों के कलेक्टरों ने भी साहब के नक्शे कदम पर चलना शुरू कर दिया है।
प्रतिमा के चक्कर में अटका उद्घाटन
कई बार किसी की जिद इस कदर भारी पड़ जाती है कि बड़े से बड़ा मामला अधर में लटक जाता है। ऐसी ही जिद के शिकार इस समय 1999 बैच के एक आईएएस अधिकारी हुए हैं। दरअसल, दक्षिण भारत के मूल निवासी ये साहब इस समय एक ऐसे विभाग की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं, जो विभाग सामाजिक समरसता और न्याय के लिए काम करता है। साहब के विभाग का कार्यालय राजधानी के एक उपनगर में बनकर तैयार है। साहब यहां पर एक प्रतिमा लगाना चाहते हैं। यह प्रतिमा एक धर्म विशेष की पहचान कराती है। सूत्रों का कहना है कि साहब की मंशा थी कि उनके सपने को मुख्यमंत्री साकार करें, लेकिन उन्होंने इस भवन का उद्घाटन करने से मना कर दिया है। बताया जाता है कि सरकार की मंशा है कि इस सरकारी भवन में ऐसी कोई प्रतिमा न लगाई जाए जो विवाद का विषय बन जाए। उधर, साहब हैं कि हर हाल में उक्त प्रतिमा को स्थापित करने पर तुले हुए हैं। साहब की इस अति महत्वाकांक्षा का असर यह हुआ है कि बनकर तैयार हुआ भवन अभी तक उद्घाटन की राह ताक रहा है। उधर, भवन बनाने वाली एजेंसी की परेशानी और बढ़ गई है।
खुद भोपाल चला जाऊं…
महाकौशल के एक जिले के कलेक्टर अपने कड़क रूख और नरम दिल के लिए जाने जाते हैं। साहब का कड़क रूख माफिया और अपराधियों के खिलाफ कई बार देखा जा चुका है। वहीं वे हमेशा आमजन और छोटे कर्मचारियों के लिए नरमी बरतते रहते हैं। लेकिन गत दिनों साहब का नरम दिल इस कदर गरम हो गया कि वे आगबबूला हो गए और उनसे मिलने आई आशा कार्यकर्ताओं पर बरस पड़े। दरअसल, आशा कार्यकर्ताओं को बीते छह महीने से मानदेय नहीं मिला है। इसी को लेकर कलेक्टर से उन्होंने मुलाकात की। इस दौरान कलेक्टर जब उनको समझाने का प्रयास कर रहे थे तो वो मानदेय जल्द से जल्द दिलाने की रट लगाई रहीं। इस पर कलेक्टर ने उनसे कह दिया कि प्रयास तो कर रहा हूं, अब क्या करूं, खुद भोपाल चला जाऊं। किसी को उम्मीद नहीं थी कि साहब इस कदर गुस्सा हो जाएंगे। लेकिन साहब करें भी तो क्या करें। एक तो पंचायत और निकाय चुनाव का बोझ और ऊपर से आशा कार्यकर्ताओं की जिद ने उन्हें कड़ा रूख अपनाने को मजबूर कर दिया।
पलायन की तैयारी में साहब
लगभग ढाई साल से नगर निगम में अधिकारियों की सरकार चल रही है। अब निकाय चुनाव का बिगुल बज गया है। प्रचार भी जोरों पर है। करीब 20 दिन बाद नगर सरकार का गठन हो जाएगा। ऐसे में मनमुताबिक काम करने वाले नगर निगम के कारिंदे अब चिंता में पड़ गए हैं कि महापौर समेत एक-दो नहीं पूरे 85 पार्षद नगर निगम में तकरीबन रोजाना दस्तक देंगे। वर्षों से बंद या ठप पड़े विकास के कार्यों को पूरा कराने के लिए पूरा जोर लगाएंगे। ऐसे में उनकी पोल खुल जाएगी। सूत्र बताते हैं कि इसको देखते हुए निगम के बड़े साहब ने पलायन की तैयारी शुरू कर दी है। उन्हें उम्मीद है कि आचार संहिता हटते ही किसी जिले की कमान मिल जाएगी। वहीं नगर निगम के अधिकारियों को चिंता इस बात की नहीं है कि काम यकायक बढ़ेगा, चिंता यह है कि पर्याप्त बजट के अभाव से निगम जूझ रहा है। ऐसे में सभी निर्वाचित जनप्रतिनिधियों के मन की कर पाना कैसे संभव होगा। वहीं निगम के कुछ विभाग ऐसे भी हैं, जिनके कर्मियों और साहबों के पेन के ढक्कन तक ढाई साल से नहीं खुले हैं।
मंत्रीजी के कब्जे में हाट
विंध्य क्षेत्र से आने वाले एक मंत्रीजी अपनी सरकार और विभाग के लिए परेशानी का सबब बने हुए हैं। दरअसल, मंत्रीजी ने प्रदेश की ग्रामीण और आदिवासी शिल्पियों को मंच देने वाले हाट पर ही कब्जा जमा लिया है। मंत्रीजी के इस कदम से ग्रामीण और आदिवासी इलाकों के लाभार्थी परेशान हैं। इनकी कला को बाजार देने के लिए जिस स्थान में दुकानें दी गई हैं, वहां मंत्रीजी का दफ्तर चल रहा है। दरअसल, सरकारी बंगला नहीं मिलने की दशा में शुरूआत में मंत्रीजी ने यहां अस्थाई बैठक का इंतजाम किया था। लेकिन बंगला मिलने के बाद भी बैठक और कब्जा बदस्तूर जारी है। हालांकि विभाग के ही मंत्री के इस्तेमाल की वजह से इसे वैधानिक रुप से कब्जा नहीं कहा जा सकता है। मुसीबत उस दफ्तर की है, जो पहले मंत्रीजी की बैठक स्थल से चलता था। यह दफ्तर लाभार्थियों की दुकानों में शिफ्ट किया गया। इससे कई दुकानें अब दफ्तर बन चुकी है और लाभार्थियों को फायदा नहीं मिल पा रहा है। विभाग के अधिकारियों ने मंत्रीजी को यह बता दिया है कि अगर जल्द ही उन्होंने वहां से बोरिया-बिस्तर नहीं बदला तो विवाद बढ़ सकता है।