- नगीन बारकिया

वैक्सीन के सटीक नतीजे, मौत का खतरा मात्र 2 फीसदी
कोरोना के खिलाफ जंग में इंसान की जीत होती हुई दिखाई दे रही है। उसके द्वारा ईजाद किए गए टीके के असर को लेकर अब सटीक नतीजे सामने आने लगे हैं। पीजीआई चंड़ीगढ़ के एक अध्ययन में दावा किया गया है कि टीके की दोनों खुराक ले चुके लोगों में मृत्यु का खतरा 98 फीसदी कम हुआ यानि खतरा केवल दो फीसदी ही रह गया है जबकि एक खुराक ले चुके लोगों में यह 92 फीसदी कम हुआ यानि खतरा मात्र 8 फीसदी ही रह गया है। शोधकर्ताओं के इस अध्ययन का ब्योरा नीति आयोग के सदस्य डॉ. वीके पॉल ने शुक्रवार को पेश किया। उन्होंने कहा कि यह अध्ययन वास्तविक आंकड़ों पर है। इसे पंजाब पुलिस के जवानों पर किया गया है। अध्ययन के अनुसार, पंजाब पुलिस के 4868 जवानों ने टीके की एक भी खुराक नहीं ली थी। इनमें से 15 की मृत्यु हो गई। यानी प्रति हजार पर मृत्यु 3.08 दर्ज की गई। जबकि 35856 पुलिसकर्मियों ने टीके की एक खुराक ली थी, जिनमें से 9 की मृत्यु हुई। यह दर प्रति एक हजार कर्मियों पर 0.25 रही। पंजाब पुलिस के 42720 कर्मियों ने टीके की दोनों खुराक लगा ली थी, जिनमें से दो लोगों की मृत्यु हुई। प्रति एक हजार पर यह दर 0.05 दर्ज की गई है।
भारत में जल्द ही आ जाएगी सिंगल डोज वैक्सीन
कोरोना से राहत दिलाने हेतु वैक्सीन उपलब्ध कराने के भारत के प्रयास फलीभूत हो रहे हैं। नतीजा यह है कि जल्द ही भारत के पास अब जल्द ही सिंगल डोज वैक्सीन उपलब्ध हो जाएगी। नीति आयोग ने शुक्रवार को इस बात की पुष्टि की है जिसके अनुसार भारत अमेरिकी फार्मा दिग्गज जॉनसन एंड जॉनसन के साथ उसकी सिंगल डोज वाली वैक्सीन के लिए बातचीत कर रहा है, जिसका नाम जानसेन है। आयोग के अनुसार हम जॉनसन एंड जॉनसन के साथ उनकी सिंगल-डोज वैक्सीन के बारे में बातचीत कर रहे हैं। योजना के मुताबिक इस वैक्सीन का उत्पादन हैदराबाद में भी किया जाएगा। जॉनसन एंड जॉनसन ने गुरुवार देर रात कहा कि उसके वैक्सीन ने डेल्टा संस्करण और अन्य उभरते वैरिएंट्स के खिलाफ मजबूत असर दिखाया और संक्रमण के खिलाफ अधिक व्यापक रूप से टिकाऊ सुरक्षा प्रदान की।
उत्तराखंड में 114 दिन में ही बदल गए मुख्यमंत्री
ऐसा नहीं है कि सिर्फ कांग्रेस शासित राज्यों में ही अस्थिरता तथा बगावत की बयार बहती दिखाई दे रही हो, भाजपा भी इस मामले में पीछे नहीं है। हम बात कर रहे हैं भाजपा शासित राज्य उत्तराखंड की जहां मात्र 114 दिन में ही सरकार हिल गई और मुख्यमंत्री तीरथसिंह रावत को विधानसभा में प्रवेश किए बगैर ही बाहर हो जाना पड़ा। यह भी एक रिकॉर्ड है। इसी कारण देहरादून में आज नया नेता चुनने हेतु कवायद हो रही है। उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री रावत विधानसभा के सदस्य भी नहीं हैं। ऐसे में मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के छह महीने के अंदर ही उन्हें सदन की सदस्यता हर हाल में लेनी थी। नियमानुसार सरकार के एक साल के कम कार्यकाल की स्थिति में उपचुनाव नहीं किया जा सकता है। ऐसे में तीरथ सिंह रावत का नौ सितंबर के बाद मुख्यमंत्री पद पर बने रहना मुश्किल होता। हालांकि उत्तराखंड में विधायकों के निधन के बाद दो विधानसभा सीटें रिक्त चल रही हैं, लेकिन भाजपा सरकार का कार्यकाल मार्च 2022 में खत्म हो रहा है। वहीं दूसरी ओर, सल्ट उपचुनाव के परिणाम विपरीत रहने से सीएम का मामला कमजोर हो गया था। इसलिए सीएम ने शुक्रवार शाम को अपने पद से इस्तीफा दे दिया। उत्तराखंड का अगला मुख्यमंत्री कौन होगा इसका फैसला आज शनिवार को विधानमंडल की बैठक में होगा। सूत्रों की मानें तो भाजपा हाईकमान इस बार मौजूदा विधायकों के बीच में से ही किसी विधायक को मुख्यमंत्री पद की कमान सौंपने के मूड में है।
हरियाणा कांग्रेस में हुड्डा समर्थकों ने ताकत दिखाई
कांग्रेस की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। राजस्थान, पंजाब, छत्तीसगढ़ के बाद अब हरियाणा में भी कांग्रेस पार्टी में बगावत के सुर सुनाई देने लगे हैं। वहां 19 कांग्रेस विधायकों ने राज्य में नेतृत्व परिवर्तन की मांग की है। इन सभी विधायकों ने दिल्ली पहुंचकर कांग्रेस के हरियाणा प्रभारी विवेक बंसल से इस बारे में मुलाकात की है। इस मीटिंग में शामिल रहे एक कांग्रेस विधायक के मुताबिक सभी 19 विधायक पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा को प्रदेश अध्यक्ष की भूमिका में देखना चाहते हैं। वहीं इस मीटिंग में यह बात भी रखी गई है कि हरियाणा में पिछले आठ साल से पार्टी के पास जिलाध्यक्ष तक नहीं है। गौरतलब है कि कांग्रेस पार्टी हरियाणा में 2014 से सत्ता से दूर है। फिलहाल उसके पास यहां कुल 31 विधायक हैं। हालांकि मीटिंग के बाद बंसल ने दिल्ली में कहा कि कोरोना के चलते लंबे समय से विधायकों से मुलाकात नहीं हुई थी। ऐसे में राज्य के राजनीतिक हालात के बारे में फीडबैक लेने के लिए विधायकों को बुलाया गया था।