- हरीश फतेहचंदानी
रॉबिनहुड कलेक्टर
2012 बैच के आईएएस नरेंद्र सूर्यवंशी का एक वीडियो इन दिनों तेजी से सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है, जिसमें वो एक भू-माफिया को हड़काते हुए नजर आ रहे हैं। वैसे शांत और सरल स्वभाव के मालिक ये साहब अपनी सादगी के लिए पहचाने जाते हैं। लेकिन वर्तमान में निमाड़ क्षेत्र के रतलाम जिले के कलेक्टर इन साहब का रॉबिनहुड अंदाज चर्चा का केंद्र बना हुआ है। दरअसल, साहब को शिकायत मिली थी कि जिले का एक हिस्ट्रीशीटर बदमाश दूसरों की जमीन पर अवैध कब्जा कर रहा है और लोग उससे जब मिलने गए तो डराने-धमकाने लगा। इसके बाद कलेक्टर अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंचे और भू-माफिया को फटकार लगाते हुए अवैध कब्जा हटाकर मालिकों को कब्जा दिलाया। इस कार्रवाई में कलेक्टर पूरी तरह से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की तरह दिखे। गुंडे को सख्त लफ्जों में कहा कि अगर किसी को धमकाया तो सारी गुंडागर्दी भुला दूंगा तुम्हारी। किसी को चमकाना मत, नहीं तो नेस्तनाबूद कर दूंगा।
आखिर ऊंट आया पहाड़ के नीचे
2011 बैच के एक आईएएस पर गत दिनों अदालत ने फटकार लगाते हुए 5 हजार रुपए का जुर्माना लगाया तो उनके मातहत फूले नहीं समा रहे हैं। उनका कहना है कि जैसी करनी, वैसी भरनी पड़ती है। आखिरकार ऊंट पहाड़ के नीचे आ ही गया है। जिस अधिकारी की यहां बात हो रही है वे महाकौशल के एक बड़े जिले के कलेक्टर हैं। साहब ने जब से जिले की कलेक्टरी संभाली है, वहां के अधिकारी-कर्मचारी उनसे परेशान हैं। इसकी वजह यह है कि साहब थोड़ी सी गलती पर भी उनकी सार्वजनिक फजीहत कर देते हैं। अब साहब के साथ ऐसा कुछ घटा है कि उनके मातहत खुश हैं। दरअसल मामला 2019 का है। जिले में परीक्षा के समय फ्लाइंग स्क्वायड ने नकल प्रकरण बनाया था। इसमें दो शिक्षिकाओं को आरोपी बनाया गया था। एक की एक साल के लिए वेतन वृद्धि रोकने का दंड दिया गया, जबकि दूसरी को केवल निंदा प्रस्ताव देकर बरी कर दिया। अब इस मामले में कोर्ट ने वर्तमान कलेक्टर को फटकार लगाई है और कलेक्टर अपनी जेब से जुर्माने की जमा करने को कहा है।
ये सादगी सबको भायी
मिर्जा गालिब का यह शेर तो आपने सुना ही होगा-इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा, लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं। ऐसी ही सादगी के लिए 2013 बैच के आईएएस प्रियंका मिश्रा जाने जाते हैं। वर्तमान में ये साहब मालवा के धार जिले के कलेक्टर हैं। साहब की खासियत है कि वे अपनी सादगी से सभी की समस्याएं दूर करने की कोशिश करते हैं। गत दिनों उन्होंने संवेदनशीलता और सादगी का ऐसा परिचय दिया जो सभी को भायी। दरअसल दिव्यांगजन अपनी 16 सूत्रीय मांगों को लेकर 1 किलोमीटर पदयात्रा निकालकर कलेक्ट्रेट पहुंचा था। लेकिन यहां जन सुनवाई का समय समाप्त हो चुका था। कलेक्ट्रेट अपनी कार में बैठकर रवाना हो रहे थे ,लेकिन जैसे ही उन्होंने कलेक्टर कार्यालय के बाहर दिव्यांग बल के लोगों को देखा तुरंत कार से नीचे उतर कर उनके पास जमीन पर बैठ गए। उन्होंने उनकी सारी समस्याएं सुनी और मुख्यमंत्री से पूरा करवाने का आश्वासन दिया। साहब की इस सादगी ने दिव्यांगों के चेहरे पर संतुष्टि का भाव ला दिया।
साहब खा रहे बच्चों का खाना
शीर्षक पढ़कर हैरान होने की जरूरत नहीं है। क्योंकि जिस साहब की बात हो रही है वे कोई ऐरे गैरे नहीं बल्कि महाकौशल के खनिज संपदा से भरे कटनी के कलेक्टर हैं। साहब 2014 बैच के आईएएस अधिकारी अवि प्रसाद हैं। दरअसल, साहब के पास लगातार शिकायत पहुंच रही थी कि जिले में मध्यान्ह भोजन की गुणवत्ता ठीक नहीं है। फिर क्या था, साहब के निर्देश पर जिला पंचायत सीईओ ने मध्यान्ह भोजन सप्लाई करने वाली संस्था को पहले तो नोटिस भेजकर जवाब मांगा। वहीं अब मध्याह्न भोजन की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए कलेक्टर हर दिन एक टिफिन मध्याह्न भोजन समिति से कलेक्ट्रेट मंगवाते हैं। टिफिन में वहीं भोजन होता है, जो भोजन स्कूल में बच्चों को भेजा जाता है। कलेक्टर को भेजा गया मध्याह्न भोजन स्वयं कलेक्टर चखते हैं। ताकि भोजन की गुणवत्ता बनी रही। बताया जाता है कि साहब का यह फार्मूला कामयाब हो गया है और अब बच्चों को अच्छा भोजन भी मिलने लगा है।
साहब ने तले पकौड़े
कहते हैं कि सफलता की ऊंचाइयों को छूते ही न सिर्फ आदमी का रंग-ढंग बदल जाता है, बल्कि उसके हृदय में धड़कता कोमल दिल भी कठोर हो जाता है। लेकिन ग्वालियर-चंबल अंचल के मुरैना जिले के जिपं सीईओ इच्छित गढ़पाले के ऊपर यह जुमला फिट नहीं बैठता है। इसका नजारा उस दिन देखने को मिला जब जिला मुख्यालय पर पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए हेरिटेज वॉक का कार्यक्रम रखा गया था, जिसमें जिले के अधिकारियों ने स्कूली बच्चों को साथ लेकर ऐतिहासिक पर्यटन स्थलों का भ्रमण किया। इस दौरान बच्चों को तेज भूख भी लग रही थी। सीईओ बच्चों की भूख को भांप गए और वह तुरंत रसोइयों के पास पहुंचे। यहां पर दो लोग बच्चों के लिए नाश्ता तैयार कर रहे थे। लोगों की कमी होने से नाश्ता तैयार करने में समय लग रहा था। यह देखकर वह खुद रसोइए के साथ बैठकर पकोड़े तलने लगे। सीईओ को पकौड़े तलते हुए देख उनके साथ गए अन्य अधिकारी भी नाश्ता बनवाने में रसोइयों की मदद करने लगे। सीईओ के हाथ के तले पकौड़े बच्चों ने बड़े ही चाव से खाए।