दाम अधिक फिर भी कमाई में फिसड्डी साबित हो रहा है प्रदेश

दाम अधिक

भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। मध्यप्रदेश ऐसा राज्य है जहां पर अपने पड़ोसी राज्यों की तुलना में मयकदों को शौक पूरा करने के लिए अधिक दाम चुकाने होते हैं, लेकिन हद तो यह है कि इसके बाद भी कमाई नहीं हो पा रही है। शराब से कमाई के मामलों में वे राज्य प्रदेश पर जरुर भारी पड़ रहे हैं, जहां पर शराब की कीमत कम है। इसकी बड़ी वजह है पड़ौसी राज्यों में कम कीमत में शराब मिलने से उसकी प्रदेश में तस्करी होना। इसकी वजह से प्रदेश की कम और पड़ौसी राज्यों की शराब अधिक बिक रही है। इसकी वजह है प्रदेश में लागू शराब नीति। यह नीति कांग्रेस की कमलनाथ सरकार में बनाकर लागू की गई थी, जिसकी वजह से मप्र में शराब सिंडिकेट खड़ा हो गया । यह ंसिंडीकेट तो खूब कमाई कर रहा है , लेकिन सरकार का खजाना नहीं भर पा रहा है। सिंडिकेट ने शराब के दाम महंगे कर रखे हैं, जिसकी वजह से अवैध रुप से मिलने वाली सस्ती शराब की खपत बढ़ गई है। अगर पड़ौसी राज्यों की बात की जाए तो उनमें मप्र की तुलना में न केवल शराब सस्ती है बल्कि दुकानें भी अधिक हैं। इनमें भी कुछ दुकानें तो प्रदेश की सीमा से सटे इलाकों में हैं। इन्ही दुकानों से मप्र में तस्करी कर शराब लाई जाती है। तमाम सुझावों  के बाद अब सरकार द्वारा इस मामले में मंथन किया जा रहा है। माना जा रहा है कि सरकार अब नई शराब नीति में इन बातों को ध्यान में रखकर ही प्रावधान करने की तैयारी कर रही है।  नई नीति में इसी कारण एमआरपी घटाने की तैयारी है, ताकि ड्यूटी घटने से पड़ोसी राज्यों की तुलना में शराब की कीमत संतुलन में आ सके। पड़ोसी राज्यों में शराब सस्ती होने के कारण वहां से यहां अवैध तरीके से बिक्री होती है, तो साथ ही यहां के खरीदार भी पड़ोसी राज्यों के जिलों से खरीदारी करते हैं। इसका नुकसान सरकार के राजस्व को होता है। इसी कारण नई नीति में ड्यूटी घटाकर अवैध शराब की रोकथाम के प्रयास हैं। नई नीति का ड्राफ्ट तैयार है, जिसे जल्द कैबिनेट से मंजूरी के बाद लागू किया जाएगा।
कमाई में भी पीछे प्रदेश
मध्यप्रदेश महंगी शराब होने के बावजूद पड़ोसी राज्यों से शराब की कमाई के मामले में पीछे हैं। मध्यप्रदेश में औसतन सालभर में दस से ग्यारह हजार करोड़ रुपए औसत का राजस्व मिलता है। वहीं उत्तरप्रदेश सें 27 हजार 700 करोड़ सालाना का राजस्व है। वहीं राजस्थान में करीब नौ हजार 600 करोड़ और महाराष्ट्र में साढ़े पंद्रह हजार करोड़ से ज्यादा का राजस्व है। इस मामले में सिर्फ पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ का राजस्व मध्यप्रदेश से कम है। छत्तीसगढ का राजस्व औसत पांच हजार करोड़ सालाना है।
40 फीसदी तक अधिक हैं दाम
अगर पड़ौसी राज्यों की तुलना की जाए तो मप्र में जिस 180 एमएल प्लेन देसी शराब के लिए 75 रुपए लिए जाते हैं वहीं उत्तरप्रदेश व राजस्थान में 49 रुपए में मिलती है। इसी तरह से विदेशी शराब की 750 एमएल की ऑफिसर्स च्वाइस, बैगपाइपर बोतल की मप्र में कीमत 700 रुपए है तो उप्र में उसकी 455, राजस्थान में 520 और महाराष्ट्र में 440 है। इसी तरह अगर रॉयल स्टैग-रॉयल चैलेंज की बात की जाए तो मप्र में वह 1070 में तो राजस्थान व उप्र में 720 रुपए में मिलती है, जबकि महाराष्ट्र में उसकी कीमत 670 रुपए है। एमसी डोवेल-इम्पीरियल ब्लू मप्र में 960 में मिलती है जबकि राजस्थान में 640, उप्र में 600 और महाराष्ट्र में 590 रुपए में मिल जाती है।

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