मिलावटखोरों के खिलाफ अभियान में ही मिलावट

मिलावटखोरों
  • जुर्माने से चल रहा काम…एफआईआर के लिए महीनों का इंतजार…

    भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम।
    मप्र में मिलावटखोरी के खिलाफ शुरू किया गया शुद्ध के लिए युद्ध अभियान कागजी शोभा बनकर रह गया है। आलम यह है कि मिलावटखोरों के खिलाफ छापामार कार्रवाई करने के बाद भी विभाग हाथ पर हाथ धरे बैठा रहता है। इसकी वजह है उसे एफआईआर करने के लिए सैम्पल रिपोर्ट महीनों तक नहीं मिलती है। दरअसल, मिलावटखोरों के खिलाफ विभिन्न सरकारी विभाग लामबंद हैं। किसी भी विभाग को यदि मिलावट खोरी या नकली सामान बेचने की सूचना मिलती है, तो तत्काल प्रभाव से विभिन्न विभाग अन्य विभागों के माध्यम से संबंधित मिलावटखोरों पर छापामार कार्रवाई को अंजाम देते हैं। हालत यह है कि ज्यादातर मामलों में जुर्माने से ही काम चलाना पड़ रहा है। जिन मामलों में एफआईआर हुई है, उन पर कार्रवाई के लिए सैम्पल रिपोर्ट का महीनों इंतजार करना पड़ता है। अभी सैकड़ों मामलों की रिपोर्ट ही नहीं आई है। इस कारण मिलावटखोर आराम से घूम रहे हैं।  
    सख्त सजा का प्रावधान सिर्फ कागजों पर
    सुप्रीम कोर्ट के निर्देश और नकली रेमडेसिवीर इंजेक्शन के मामले सामने आने के बाद प्रदेश सरकार ने कानून में संशोधन कर मिलावटखोरी को गैर जमानती और संज्ञेय अपराध मानते हुए गंभीर मामलों में आजीवन  कारावास की सजा का प्रावधान किया, लेकिन वास्तविकता में यह सिर्फ कागजों तक सिमटता दिख रहा है। प्रदेश में नमूनों की जांच के लिए एक अधिकृत लैब भोपाल है। 1 सितंबर से 31 अक्टूबर तक दो महीने में इंदौर के विभिन्न थानों में पुलिस ने 13 एफआईआर कर सैम्पल जांच के लिए भेजे हैं।  ये कार्रवाई उन पर हुई है, जिनकी शिकायत मिली थी। मामले में आईपीसी की धारा 420, 272, 273 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है। अब जब तक इनकी सैम्पल रिपोर्ट नहीं आ जाती, तब तक पुलिस आगे कार्रवाई नहीं कर सकती।
    रिपोर्ट के बाद तय होती है सजा
    वहीं, भोपाल लैब से रिपोर्ट आने के बाद विभिन्न तरह से सजा का प्रावधान भी है। यदि भोपाल लैब से किसी सैंपल की पॉजिटिव रिपोर्ट आती है, तो उस पूरे मामले में संबंधित व्यक्ति का मामला एडीएम कोर्ट में चलता है। जहां पर पांच लाख तक का जुर्माना संबंधित व्यक्ति पर लगाया जाता है। इसी तरह से यदि किसी व्यक्ति के सैंपल में अनयूजेबल या मानव जीवन के लिए खतरनाक से संबंधित रिपोर्ट आती है, तो उससे संबंधित मामले की सुनवाई सीजीएम कोर्ट में चलती है, जहां पर 10 साल तक की सजा का प्रावधान है।

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