भोपाल/हरीश फतेह चंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश की शिव सरकार खजाने की माली हालत खराब होने का बहाना बनाकर भले ही राजनैतिक नियुक्तियां नहीं कर रही है, लेकिन इसके बाद भी प्रदेश में पूर्व नौकरशाहों का पुनर्वास तेजी से जारी है। इसकी वजह से पार्टी के नेता जहां निराश हैं, वहीं कार्यकर्ताओं में भी अपनी ही सरकार को लेकर आक्रोश पैदा होने लगा है। हालात यह हैं कि प्रदेश में मौका मिलते ही पूर्व नौकरशाहों की नियुक्ति कर दी जाती है। इन नौकरशाहों के पुनर्वास का मासिक खर्च नेताओं से अधिक होता है। इसकी वजह है उनके लिए सुख सुविधाओं के लिए तय प्रावधान हैं। प्रदेश में बीते साल मार्च में हुए ऐतिहासिक राजनीतिक उलटफेर के बाद सत्ता में लौटी भाजपा सरकार में तभी से सियासी नियुक्तियों का मामला लगातार टाला जा रहा है। इस बीच कई बार सत्ता व संगठन के नेताओं के बीच कई दौर में इन नियुक्तियों को लेकर मंथन का दौर भी चला, लेकिन निगम-मंडलों से लेकर दीन दयाल अंत्योदय समितियों तक में किसी की भी नियुक्तियां अब तक शुरू नहीं हो सकीं। इसके अलावा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी कई बार मंथन कर चुके हैं। इसके उलट पूर्व ब्यूरोक्रेट्स की तैनाती के मामलों में कोई कोताही नहीं बरती जाती है। जैसे ही उनके लिए तय कोई पद रिक्त होता है तत्काल सरकार व शासन सक्रिय हो जाता है। यही वजह है कि मप्र वाणिज्यिक कर अपीलीय बोर्ड, मध्यप्रदेश भू-संपदा विनियामक प्राधिकरण (रेरा), अटल बिहारी वाजपेयी सुशासन संस्थान, भूमि सुधार आयोग, मप्र जन अभियान परिषद, सिया और नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण तक में पूर्व नौकरशाहों की नियुक्तियां की जा चुकी हैं। इसी तरह की अन्य संस्थाओं में भी पूर्व नौकरशाहों की नियुक्तियों की प्रक्रिया चल रही है। मध्यप्रदेश खाद्य आयोग में अध्यक्ष/सदस्य और राज्य सूचना आयोग में 3 सदस्यों के रिक्त पदों को भरने की प्रक्रिया भी शुरू की जा चुकी है। इन सभी में पूर्व ब्यूरोक्रेट्स की नियुक्ति की जानी हैं। प्रदेश के सामान्य प्रशासन विभाग ने सूचना आयोग से रिक्त सदस्यों की जानकारी मांगी थी जिसमें बताया गया कि राजकुमार माथुर, सुरेंद्र सिंह और हाल ही में गोपाल कृष्णमूर्ति का कार्यकाल पूरा हो चुका है। इस तरह चीफ सेक्रेटरी के समकक्ष वाले इन रिक्त पदों पर 3 सदस्यों के रूप में पूर्व ब्यूरोक्रेट्स अपनी नियुक्ति के लिए सक्रिय हो चुके हैं। इसके उलट बीते डेढ़ साल से निगम-मंडल और प्राधिकरणों में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष के खाली पदों पर राजनीतिक नियुक्तियों का मामला आगे नहीं बढ़ पा रहा है। इन पदों पर नियुक्तियों के लिए पार्टी में एक अनार सौ बीमार वाली स्थिति बन चुकी है। इसके लिए नेताओं का दबाव लगातार बढ़ने के बाद भी सत्ता व संगठन कोई फैसला नहीं ले पा रहा है।
इन नियुक्तियों का बीते साल सियासी उथल-पुथल के दौरान कांग्रेस छोड़कर भाजपाई बनकर शिव सरकार बनवाने वाले नेता और भाजपा के कई दिग्गजों को इंतजार बना हुआ है। उल्लेखनीय है कि इन पदों पर नियुक्तियों को लेकर पिछले दिनों भाजपा प्रभारी और राष्ट्रीय संगठन मंत्री स्तर के पदाधिकारी तक पार्टी की बैठक में टिप्पणी कर चुके हैं। अब प्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए दो साल से कम का समय रह गया है ऐसे में दावेदारों में बेचैनी बढ़ रही है। इसकी वजह है अगर नियुक्ति में देरी होती रही तो उन्हें बहुत छोटा कार्यकाल ही काम करने के लिए मिल पाएगा। अपवाद स्वरुप जरुर कुछ पदों पर नेताओं की नियुक्तियां की गई हैं, वह भी सरकार की मजबूरी के तहत की गईं हैं। उल्लेखनीय है कि अभी प्रदेश में करीब डेढ़ दर्जन निगम मंडलों में राजनैतिक पदों पर नियुक्तियां न होने से वे खाली चल रहे हैं।
घोषणा पर अमल नहीं
प्रदेश में कार्यकर्ताओं को सत्ता में भागीदारी का अनुभव कराने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने लगभग पांच माह पहले सरकारी दीनदयाल अंत्योदय समितियों के गठन की घोषणा की थी। तब कहा गया था कि इनका गठन नगरीय निकाय और त्रिस्तरीय पंचायत के पहले कर दिया जाएगा। लेकिन इस घोषणा पर भी अब तक कोई अमल नहीं हुआ है। शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में गठित होने वाली इन समितियों के सदस्यों का दायित्व होगा कि वह हितग्राहियों की पहचान कर उन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ दिलवाने व योजनाओं के क्रियान्वयन में गड़बड़ी रोकने के लिए मॉनिटरिंग करना। यह समितियां ग्राम पंचायत, ब्लॉक, जिला, नगर निगम, नगर पालिका, नगर पंचायत और प्रदेश स्तर तक गठित होनी हैं। इनमें ग्राम पंचायत स्तरीय समितियों में 5-5, नगर पंचायत में 7-7, ब्लॉक एवं नगर पालिका स्तर की समितियों में 11-11 सदस्य, नगर निगमों में 21, जिला स्तरीय समितियों में 25 और राज्य स्तरीय अंत्योदय समिति में 51 सदस्य नियुक्ति किए जाना हैं।
मंत्रियों पर काम का बोझ
विभिन्न निगम मंडलों के अध्यक्ष पदों पर राजनैतिक नियुक्तियां न होने की वजह से उनका कार्यभार मंत्रियों के पास है। इसकी वजह से उनके पास काम का बोझ बड़ा हुआ है। मंत्री विभागीय कामकाज और राजनैतिक कामकाज की वजह से निगम मंडलों पर अधिक ध्यान नहीं दे पाते हैं, जिसकी वजह से नौकरशाही इनमें हावी बनी हुई है। उधर , इनमें अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और अन्य सदस्यों को मिलने वाली सुख सुविधाओं का उपभोग नौकरशाहों व मंत्रियों द्वारा किया जा रहा है।
नहीं लिया सबक
2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की हार की सबसे बड़ी वजह उसके कार्यकर्ताओं की नाराजगी ही रही थी। इसकी वजह से भाजपा के कई दिग्गज मंत्रियों तक को हार का सामना करना पड़ा था , जिसकी वजह से कांग्रेस की सरकार बन गई थी। कार्यकर्ताओं की नाराजगी की वजह थी सरकार में उन्हें महत्व नहीं मिलना। इसी प्रकार की नाराजगी फिर से दिखाई देने लगी है। इसके बाद भी सरकार व संगठन इससे अब तक सबक लेने को तैयार नहीं दिख रहा है।
इनको किया जा चुका है नियुक्त
अटल बिहारी वाजपेयी सुशासन एवं नीति विश्लेषण संस्थान (एआईजीजीपीए) में उपाध्यक्ष के पद पर प्रो. सचिन चतुर्वेदी की नियुक्ति की जा चुकी है। उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया गया है, उनकी नियुक्ति के लिए महानिदेशक का पद समाप्त कर यह पद सृजित किया गया है। संचालक मंडल के चेयरमैन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान हैं। इसी तरह से वाणिज्यिक कर अपील बोर्ड में पूर्व आईएएस जयदीप गोविंद को पांच साल के लिए अध्यक्ष बनाया गया है। उधर, रेरा में पूर्व आईएएस एपी श्रीवास्तव को अध्यक्ष पद पर नियुक्ति दी गई है, जबकि जन अभियान परिषद में पूर्व आईएएस बीआर नायडू, नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण में विनोद सेमवाल और अजातशत्रु, सिया में अरुण भट्ट, भूमि सुधार आयोग में श्रीकांत पांडे की नियुक्ति की जा चुकी है।
16/12/2021
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