शिव ‘राज’ का दिखेगा असली विकास

शिवराज सिंह चौहान
  • पंचायत चुनाव का घमासान
  • किसानों, मजदूरों और ग्रामीणों के बीच सबसे लोकप्रिय नेता हैं शिवराज

मप्र में सर्वांगीण विकास के कारण देश में सबसे लोकप्रिय मुख्यमंत्री के रूप में ख्यात शिवराज सिंह चौहान का असली विकास अब पूरी दुनिया देखगी। क्योंकि प्रदेश में त्रि-स्तरीय पंचायत चुनाव का घमासान शुरू हो गया है। अपने 15 साल के कार्यकाल में शिवराज ने किसानों, मजदूरों और ग्रामीणों के लिए सबसे अधिक काम किया है। अब उस काम का इनाम मिलने का समय आ गया है।

प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम
भोपाल (डीएनएन)।
प्रदेश में पंचायत चुनाव भले ही गैर दलीय आधार पर होते हैं लेकिन इसमें राजनीतिक पार्टियों की हिस्सेदारी पूरी रहती है। इसलिए करीब 7 साल बाद होने वाले पंचायत चुनाव भाजपा और कांग्रेस के लिए लिटमस टेस्ट की तरह हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के किसानों, मजदूरों और ग्रामीणों के बीच सबसे लोकप्रिय नेता होने के कारण भाजपा काफी आशान्वित है। पार्टी का उम्मीद है कि 2014 की अपेक्षा इस बार के चुनाव में भाजपा समर्थित और अधिक नेता पंचायतों में जीत का परचम लहराएंगे।
गौरतलब है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ग्रामीण क्षेत्रों के सर्वांगीण विकास के लिए विभिन्न योजनाओं के माध्यम से एक नई इबारत लिखी जा रही है। स्वास्थ्य, शिक्षा, आवास, सडक़, रोजगार के साथ स्वच्छता के क्षेत्र में भी विशेष प्रयास किए गए हैं। अब सरकार का फोकस ग्रामीण रोजगार पर है। सरकार के इन प्रयासों से मप्र के गांव आज आत्मनिर्भर बनने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। ऐसे में पंचायत चुनावों के दौरान गांवों के विकास को भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के लोग देख सकेंगे।

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6 करोड़ आबादी पर फोकस
मप्र में गांवों की संख्या 51,527 है। ये गांव प्रदेश के 52 जिलोंं के अंतर्गत आते हैं। अनुमानित आंकड़ों के अनुसार 6 करोड़ से भी अधिक आबादी प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में ही निवास करती हैं। पंचायत चुनावों में यही आबादी पंच, सरपंच का चुनाव करेगी। पंचायत चुनाव के माध्यम से तीन लाख 92 हजार 921 प्रतिनिधियों का चुनाव होगा। विधानसभा चुनाव से पहले होने वाले इन महत्वपूर्ण चुनाव को लेकर भाजपा और कांग्रेस ने तैयारी प्रारंभ कर दी है। इसलिए भाजपा का पूरा फोकस इस आबादी पर है। दरअसल, 2023 में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। इसलिए ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली 6 करोड़ आबादी का समर्थन किसी भी पार्टी के लिए सबसे महत्वपूर्ण है। इसलिए भाजपा ने ग्रामीण क्षेत्रों पर पूरा फोकस कर दिया है।
गौरतलब है कि प्रदेश में इस बार ग्राम, जनपद और जिला पंचायतों का कार्यकाल 5 के बजाय 7 का हो गया। इसी कारण सरपंचों सहित अन्य पदाधिकारियों का कार्यकाल 5 के बजाय 7 साल का हो गया। 7 साल बाद चुनाव होने जा रहे हैं, लेकिन वह भी वर्ष 2014 के समय के पुराने आरक्षण के आधार पर। ऐसे में कई ग्राम पंचायतों में आरक्षित वर्ग के उम्मीदवारों की ही दावेदारी कायम रहेगी। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने भी संगठन को सक्रिय कर दिया है। वरिष्ठ पदाधिकारियों को जिम्मेदारी भी सौंपी जा रही है। उधर, आदिवासी क्षेत्रों में जय आदिवासी युवा शक्ति संगठन (जयस) भी चुनाव की तैयारियों में जुटा है।

विकास के दम पर भाजपा मैदान में
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के अब तक के कार्यकाल की विशेषता रही है कि उन्होंने प्रदेश में सर्वांगीण विकास किया है, लेकिन सर्वाधिक फोकस गांवों पर रहा है। उन्होंने केंद्र सरकार की योजनाओं सहित राज्य सरकार की विकास एवं हितग्राही मूलक योजनाओं को प्रभावी रूप से लागू कर ग्राम विकास की अवधारणा को साकार किया है। इसी के दम पर भाजपा मैदान में सक्रिय होगी। गौरतलब है कि कारोना काल में ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार उपलब्ध कराने में मनरेगा ने बहुत महत्पूर्ण भूमिका निभाई है। कोविड काल में 18 लाख से अधिक नवीन जॉबकार्ड जारी किए गए। कोविड काल में 34 करोड़ से अधिक मानव दिवसों का सृजन हुआ, जो योजना के प्रारंभ से अभी तक का सर्वाधिक है। इस वित्तीय वर्ष में माह सितम्बर तक 76 लाख से अधिक ग्रामीणों को रोजगार उपलब्ध कराया जाकर 19 करोड़ से अधिक मानव दिवस का सृजन हुआ है। इस अवधि में करीब सवा 2 लाख सामुदायिक एवं हितग्राही मूलक कार्य पूर्ण किए गए और 12 लाख 80 हजार से अधिक कार्य अभी प्रगतिरत हैं। मध्यप्रदेश में इस वित्तीय वर्ष में लगभग 20 लाख अनुसूचित जाति एवं जनजाति परिवारों को साढ़े 8 करोड़ से अधिक मानव दिवस का रोजगार उपलब्ध कराया गया है। अनुसूचित जनजाति के परिवारों को मनरेगा से रोजगार उपलब्ध कराने में मध्यप्रदेश पूरे देश में अग्रणी स्थान पर है।
वहीं राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन में प्रदेश के 52 जिलों के 45 हजार 135 ग्रामों में सघन रूप से कार्य किया जा रहा है। अब तक 3 लाख 36 हजार से ज्यादा समूहों का गठन कर लगभग 38 लाख 31 हजार परिवारों को जोड़ा जा चुका है। साथ ही 282 करोड़ रूपए रिवाल्विंग फंड, 765 करोड़ रूपए सामुदायिक निवेश निधि तथा बैंक ऋण के रूप में 2121 करोड़ रूपए का वितरण किया गया है। कृषि एवं पशुपालन गतिविधियों से 13 लाख 37 हजार परिवारों को तथा गैर कृषि आधारित गतिविधियों से 5 लाख 5 हजार परिवार जुड़े हुए हैं। मिशन के माध्यम से लगभग 53 हजार ग्रामीण युवाओं को रोजगारोन्मुखी प्रशिक्षण तथा 2 लाख 86 हजार युवाओं को स्व-रोजगार प्रशिक्षण दिलाया गया है। ग्रामीण युवाओं को रोजगार मेलों से भी रोजगार के अवसर उपलब्ध कराए गए हैं। मुख्यमंत्री ग्रामीण पथ विक्रेता योजना में भी 2 लाख 4 हजार से ज्यादा ग्रामीणों को स्व-रोजगार शुरू करने के लिए ब्याज रहित ऋण वितरण किया गया है। पंचायत चुनावों में इसका असर दिखेगा।

दिखेगी स्वच्छता और सडक़ों का विकास
पंचायत चुनाव में शिवराज के विकास की तस्वीर के हर पहलू देखने को मिलेंगे। मप्र में किस तरह शहरों के साथ ही गांवों में स्वच्छता ने क्रांतिकारी रूप लिया है इसकी झलक देखने को मिलेगी। स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण के दूसरे चरण में एक लाख 12 हजार 613 व्यक्तिगत पारिवारिक शौचालय और 1,990 सामुदायिक स्वच्छता परिसरों का निर्माण किया गया। ठोस अपशिष्ट प्रबंधन में 1,930 ग्रामों में घर-घर कचरा संग्रहण कार्य और 15 हजार 445 सामुदायिक कम्पोस्टिंग के कार्य पूर्ण किए गए। तरल अपशिष्ट प्रबंधन के अंतर्गत 20 हजार 684 सामुदायिक सोक पिट तथा 83 हजार 512 घरेलू सोक पिट के निर्माण पूर्ण किए गए। गोवर्धन परियोजना में 7 बायो गैस संयंत्र स्थापित किए गए हैं। द्वितीय चरण में 172 गौशालाओं में बायो गैस संयंत्र स्थापना का प्रस्ताव है। इस वर्ष अभी तक 591 ग्रामों को ओडीएफ प्लस घोषित किया जा चुका है। वर्तमान में मिशन के विभिन्न घटक की प्रगति में मध्यप्रदेश स्वच्छता में उत्कृष्ट राज्यों में सम्मिलित है। वहीं प्रधानमंत्री आवास योजना में मप्र देश में आवास निर्माण में प्रतिशत के आधार पर बड़े राज्यों में द्वितीय एवं संख्या के आधार पर तृतीय स्थान पर है। अब तक 21 लाख 9 लाख आवास पूर्ण कराए जा चुके हैं। इस वित्तीय वर्ष में लगभग 4 लाख 45 हजार आवास निर्माण का लक्ष्य है।
मप्र में शहरी क्षेत्र की सडक़ें ही नहीं बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी सडक़ों का जाल बिछा है। प्रधानमंत्री ग्राम सडक़ योजना के क्रियान्वयन में निर्धारित भौतिक लक्ष्यों के विरूद्ध लंबाई के मान से प्रदेश विगत 3 वर्षों में उच्चतम 7 राज्यों की सूची में सम्मिलित रहा है। साथ ही गुणवत्ता के संदर्भ में विगत 3 वर्षो में प्रथम स्थान पर है। योजना के प्रथम चरण के प्रांरभ से सितम्बर 2021 तक 72 हजार 874 किमी लंबाई (99.8 प्रतिशत) की 18 हजार 884 ग्रामीण सडक़ों का कार्य पूर्ण कर 17 हजार 503 बसाहटों (99.8 प्रतिशत) को संपर्कता प्रदान की गई। योजना के दूसरे चरण में सितम्बर 2021 तक 4870 किमी लंबाई की 357 ग्रामीण सडक़ों का कार्य 3124 करोड़ रूपए की लागत से पूर्ण किया गया है। इसके अतिरिक्त पहले और दूसरे चरण में 765 पुलों का कार्य पूर्ण किया जा चुका है। योजना के तीसरे चरण में भारत सरकार से प्रदेश को 12 हजार 362 किमी मार्गों का आवंटन प्राप्त हुआ है। वर्ष 2019-20 से आज तक 4 चरण में 11 हजार 390 किमी के 986 मार्गों एवं 340 वृहद पुलों के लिए 7962 करोड़ 44 लाख रूपये की स्वीकृतियां प्राप्त हुईं। अभी 986 किमी लंबाई के 93 मार्गों के प्रस्ताव स्वीकृति के लिए भारत सरकार के समक्ष विचाराधीन है। अब तक 2108 करोड़ 57 लाख की लागत से 3992 किमी लंबाई के 75 मार्गों एवं 32 वृहद पुलों का कार्य पूर्ण हो गया है और शेष का कार्य प्रगति पर है।

ग्रामीण विकास भाजपा के साथ
मप्र आज बीमारू राज्य की श्रेणी से निकलकर विकास के पथ पर सरपट दौड़ रहा है, इसके पीछे ग्रामीण विकास का महत्वपूर्ण योगदान है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने गांवों के विकास पर सबसे अधिक फोकस किया है। इससे प्रदेश में गांवों की स्थिति अब तेजी से सुधर रही है। ग्रामीण इलाकों में विकास के नए सोपान गढ़े जा रहे हैं। प्रदेश को कई योजनाओं में देश में प्रथम स्थान मिलने से इसकी पुष्टि होती है। ग्राम सभाओं में भागीदारी, पंचायतों के सशक्तीकरण, सामूहिक विकास में समुदाय का समावेशन, सामुदायिक निगरानी, सहभागिता, सामुदायिक स्वामित्व जैसे मुद्दों के साथ ग्रामीण अधोसंरचना विकास, मूलभूत सुविधाएं, आवागमन, सामाजिक-आर्थिक सशक्तीकरण, आत्म-निर्भरता, रोजगार-स्व-रोजगार, नवीन तकनीकियों की ग्राम स्तर तक पहुंच, विशेषकर शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छता और आजीविका क्षेत्र में प्रतिबद्धता से काम किए जा रहे हैं। इन तमाम प्रयासों से गांवों की तस्वीर बदलती दिख रही है। भाजपा को उम्मीद है कि प्रदेश के गांवों में जो विकास हुआ है उसके कारण जनता उसके साथ है। इसी आधार पर पार्टी पंचायत चुनाव के रास्ते मिशन 2023 के लिए अपना जनाधार मजबूत करेगी।
गौरतलब हैं कि ग्रामीण क्षेत्र में उन्नत कृषि, पशुपालन में बुनियादी सुविधाएं, सिंचाई, भंडारण, वृहद् बाजारों को गांव से जोडऩे के लिए भी उल्लेखनीय जतन किए गए हैं। वैज्ञानिक ढंग से विकास की प्रक्रिया का अनुसरण किए जाने से परंपरागत आय के संसाधनों पर निर्भरता कम होने के फलस्वरूप सकारात्मक परिवर्तन आना शुरू हुए हैं। सूक्ष्म उद्यमशीलता को बढ़ावा, फलदार वृक्षारोपण, व्यावसायिक सब्जी एवं दुग्ध उत्पादन में बढ़त होने से कृषकों की आय में बढ़ोतरी हो रही है। इससे गांवों की समृद्धि के द्वार खुलते जा रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्र में हो रहे सामाजिक व्यवहार परिवर्तन, विकास के प्रति सामाजिक लामबंदी, विभाग की प्रतिबद्धता, ग्रामीणों में विकास की ललक एवं जज्बे को देखकर कहा जा सकता है कि ग्रामीण परिवेश तेजी से बदल रहा है। प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्र में अधिकांश परिवारों की आजीविका कृषि पर आधारित है इसलिए कम लागत में अधिक उपज के लिए उन्नत कृषि पद्धति अपनाने, नवीन तकनीकी का प्रयोग, उन्नत बीज प्रयोग, जैविक खाद, जैविक कीटनाशक के उपयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है। इससे मुख्यमंत्री शिवराज की लोकप्रियता बढ़ी है। जिसको पंचायत चुनाव में भाजपा भुनाने की तैयारी कर रही है।

अबकी बार 52 का टारगेट
पंचायत चुनाव में भले ही पार्टी से टिकट नहीं मिलता है, लेकिन इसमें लड़ती पार्टी का ही कार्यकर्ता है, वहीं दूसरी ओर केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में आ जाने के कारण कांग्रेस पार्टी वैसे ही सिमट चुकी है। ऐसे में पंचायत चुनाव में भाजपा को पहले से अधिक सीटें मिलने की उम्मीद है। पंचायत चुनाव भले ही सबसे छोटा चुनाव होता है, लेकिन लोग इसे प्रतिष्ठा का प्रतीक मान लेते हैं। पिछले पंचायत चुनाव में भाजपा समर्थित नेताओं का पंच, सरपंच और जिला पंचायतों में दबदबा देखने को मिला था। 2014-15 के पंचायत चुनाव में प्रदेशभर की 52 जिला पंचायतों में से लगभग 48 जिला पंचायतों में भाजपा का परचम लहराया था। इस बार पार्टी का फोकस सभी 53 जिला पंचायतों को जीतने पर है। पंचायतों के चुनाव तीन चरणों में आगामी 6 और 28 जनवरी तथा 16 फरवरी को कराए जा रहे हैं। जिला और जनपद अध्यक्ष के अप्रत्यक्ष प्रणाली से चुने जाने के लिए राज्य निर्वाचन आयोग ने इस बार बड़ा बदलाव किया है। इसमें अब जिला और जनपद पंचायतों के सदस्यों का चुनाव परिणाम घोषित होने के 15 दिन के भीतर जिला और जनपद में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को चुनना होगा। यह व्यवस्था इसलिए की गई है कि अध्यक्ष और उपाध्यक्षों के चुनाव में अनावश्यक विलंब न हो।
वर्ष 2014 में जिला और जनपद के अध्यक्षों का चुनाव करने के लिए 1 महीने का समय तय था, लेकिन उस दौरान खासतौर पर राजनीतिक दलों को प्रतिष्ठा का प्रश्न बने जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में अनियमितताएं सामने आई थी। इसमें खासतौर पर चुने हुए सदस्यों की खरीद-फरोख्त ज्यादा हुई थी। इस स्थिति को देखते हुए चुनाव पूरी पारदर्शिता से हों इसलिए राज्य निर्वाचन आयोग ने यह बदलाव किया है। प्रदेश में पंचायतों के चुनाव तीन चरणों में आगामी 6 और 28 जनवरी तथा 16 फरवरी को कराए जा रहे हैं। इसमें 52 जिला पंचायत के 859 सदस्य, 313 जनपद के 6727 सदस्यों, 22581 सरपंच और 22581 ग्राम पंचायतों के 3,62,754 सदस्यों के चुनाव होना है। इस प्रक्रिया में जनपद और जिला पंचायत सदस्यों के चुनाव नतीजे 22 और 23 फरवरी को आ जाएंगे।

भाजपा-कांग्रेस के लिए लिटमस टेस्ट
प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव तीन चरण में होने हैं। पंचायत चुनाव के माध्यम से तीन लाख 92 हजार 921 प्रतिनिधियों का चुनाव होगा। विधानसभा चुनाव से पहले होने वाले इन महत्वपूर्ण चुनाव को लेकर भाजपा और कांग्रेस ने तैयारी प्रारंभ कर दी है। मप्र में होने वाला त्रि-स्तरीय पंचायत चुनाव को भाजपा और कांग्रेस के लिए लिटमस टेस्ट माना जा रहा है। ऐसा इसलिए की इन चुनावों से दोनों पार्टियों की मैदानी पकड़ और वोट बैंक का आकलन हो पाएगा। इसलिए पंचायत चुनावों को भाजपा-कांग्रेेस के लिए अग्रिपरीक्षा माना जा रहा है। इसलिए दोनों पार्टियों ने अपने-अपने समर्थकों के लिए मोर्चा संभालने की तैयारी शुरू कर दी है। दरअसल, दो साल के भीतर विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने सभी जिला अध्यक्ष और जिला प्रभारियों को आपसी समन्वय बनाकर पंचायत चुनाव में पूरे दमखम के साथ उतरने के निर्देश दिए हैं। वहीं, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सभी मंत्रियों को प्रभार के जिलों में चुनाव की तैयारियों के लिए कह चुके हैं। इससे पंचायत चुनाव की महता समझी जा सकती है। भाजपा संगठन ने वरिष्ठ पदाधिकारियों को सक्रिय करने का निर्णय किया है। प्रदेश भाजपा के प्रवक्ता यशपाल सिंह सिसोदिया ने बताया कि चुनाव कोई भी हो, पार्टी हमेशा तैयार रहती है। मतदान केंद्र स्तर तक हमारी टीम है जो हमेशा सक्रिय रहती है। जयस ने आदिवासी क्षेत्रों में अपना जनाधार बढ़ाने के लिए पंचायत चुनाव में हिस्सेदारी करने का निर्णय लिया है। संगठन अपने कार्यकर्ताओं को पंच से लेकर जिला पंचायत सदस्य तक का चुनाव लड़ाएगा।
कांग्रेस ने तय किया है कि गांव से लेकर जिला स्तर तक आपसी सहमति और समन्वय बनाकर चुनाव लड़ा जाएगा। खासतौर पर जनपद और जिला पंचायत के सदस्य के लिए प्रत्याशी का चयन जिला प्रभारी व स्थानीय विधायक, पूर्व विधायक, जिला और ब्लाक कांग्रेस के पदाधिकारियों के साथ मिलकर तय करेंगे। कांग्रेस ने जिला स्तर पर निर्देश दिए हैं कि सभी में समन्वय रहे। उम्मीदवारी को लेकर सामने आ रहे नामों में जिताउ का ही चयन करें। प्रयास हो कि पार्टी के लोग एक दूसरे के मुकाबले न खड़े हों। तय किया गया है कि इस मामले में प्रदेश स्तर से दखल नहीं दिया जाएगा, यदि जिले स्तर पर कोई दिक्कत आती है तो प्रदेश स्तर से मामले का निपटारा किया जाएगा। कांग्रेस को भरोसा है कि आमजन कांग्रेस पार्टी के साथ है। वर्ष 2018 के चुनाव में लोगों ने कांग्रेस को वोट दिया था, लेकिन भाजपा ने उनके विधायकों को तोडक़र खरीद-फरोख्त कर अपनी सरकार बना ली। प्रदेश की जनता समझदार है। भाजपा सरकार में हर वर्ग परेशान है। किसानों को फसल के उचित दाम नहीं मिल रहे हैं, कर्ज में डूबे किसान आत्महत्या को मजबूर हैं। बेरोजगारी लगातार बढ़ रही है, महंगाई चरम पर है, उद्योग धंधे चौपट है, लेकिन सरकार को इसकी चिंता नहीं है। पार्टी का उम्मीद है कि पंचायत चुनाव में उन्हें इसका लाभ होगा। पंचायत चुनाव में जयस के मैदान में आने से भाजपा और कांग्रेस का गणित गड़बड़ाने के आसार हैं। जयस का आदिवासी इलाकों में खासा वर्चस्व है। पिछले पंचायत चुनाव में भी जयस के उम्मीदवार खड़े थे। इसमें धार, झाबुआ, अलीराजपुर, बड़वानी इत्यादि जिले प्रमुख रहे। जयस के संरक्षक डॉ. हीरा अलावा का कहना है कि जयस को पिछले चुनाव में खासी सफलता मिली थी। जयस के 150 से अधिक सरपंच का चुनाव जीते थे। इस बार और अधिक पंचायतों में उम्मीदवार खड़े किए जाएंगे। उन्होंने कहा कि चूंकि यह चुनाव दल के आधार पर नहीं होते इसलिए पार्टी से ज्यादा क्षेत्र के जिताऊ व्यक्ति को महत्व मिलता है।

परिवारवाद के खिलाफ पार्टी की लाइन बरकरार
पंचायत चुनाव भले ही राजनीतिक दलों का अखाड़ा न हो, पर समर्थकों की जीत हार से दलों के दमखम का पता तो चल ही जाता है, वहीं दिग्गज नेताओं और क्षत्रपों की व्यक्तिगत स्तर पर जमावट भी रंग दिखाती है। प्रदेश में होने वाले पंचायत चुनाव इस लिहाज से भाजपा के लिए अग्निपरीक्षा साबित होंगे। वजह है परिवारवाद के खिलाफ लकीर को इन चुनावों तक खींचना। लोकसभा और विधानसभा के उपचुनाव की तर्ज पर पार्टी पंचायत चुनाव पर भी नजर रखेगी कि किसी भी परिवार के सदस्य को जिला और जनपद पंचायत में उपकृत करने की कोशिश न की जाए, बल्कि प्राथमिकता कार्यकर्ताओं को मौका देने की रहेगी। दरअसल, अब तक जिला या जनपद पंचायत पर पार्टी के क्षत्रपों का ही कब्जा रहा है। मंत्री-विधायक या कद्दावर नेता अपनी बहू-बेटी या रिश्तेदार को इन पदों पर बिठाते रहे हैं। ऐसे में जमीनी कार्यकर्ताओं के लिए मौका नहीं बचता है, साथ ही किसी एक नेता के मजबूत होने से पार्टी में स्थानीय स्तर पर असंतुलन की स्थिति भी बनती रही है। पिछले कुछ वर्षों में पार्टी ने परिवारवाद से किनारा करते हुए सांसद, विधायक, मंत्री, महापौर सहित अन्य जनप्रतिनिधियों के परिवार वालों को मौका देने में काफी हद तक परहेज किया है। कुछ चुनींदा नेताओं के बेटे-बेटियों को ही मौका मिल सका है, जिन्होंने पहले से जमीनी स्तर पर मजबूत तैयारी कर रखी थी। कांग्रेस पर वंशवाद के आरोप लगाते हुए पार्टी संदेश देना चाहती है कि भाजपा में सिर्फ समर्पित कार्यकर्ताओं को ही सम्मान और मौका मिलता है।
पिछले साल प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के बाद नवंबर में विधानसभा के 28 सीटों के उपचुनाव और बीते दिनों खंडवा लोकसभा सहित तीन विधानसभा सीटों पर भी उपचुनाव में पार्टी ने वंशवाद से खुद को दूर रखा। इसके नतीजे भी आशा के अनुरूप आए। पार्टी मानती है कि कार्यकर्ताओं में उत्साह है, वहीं नेताओं के बच्चे भी अपने स्तर पर मेहनत कर रहे हैं। सूत्र बताते हैं कि पंचायत चुनाव में परिवारवाद को नकारे जाने से प्रदेश के 313 जनपद पंचायत और 52 जिला पंचायतों में नए चेहरे दिखाई पडऩे की संभावना अधिक है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि इस फैसले को लेकर समन्वय समिति गठित की जाएगी, जो स्थानीय दिग्गज नेताओं और क्षत्रपों से बात करेगी। सूत्र अनुशासन का दावा करते हुए कहते हैं कि पार्टी लाइन से कोई भी नेता कभी असहमत नहीं होता, इसलिए परिवारवाद को पीछे छोडक़र आगे बढऩे के लिए सभी साथ है। प्रदेश भाजपा प्रवक्ता रजनीश अग्रवाल कहते हैं कि पंचायत चुनाव को लेकर पार्टी का प्रदेश नेतृत्व समग्र विचार कर रहा है। संचालन समिति, समन्वय समिति के माध्यम से प्रदेश अध्यक्ष आवश्यक दिशा निर्देश देंगे। भाजपा में जो तय होता, उसी को हर कार्यकर्ता चाहे वह मंत्री, विधायक-सांसद या पदाधिकारी हो, सभी स्वीकार करते हैं। भाजपा के लिए गए निर्णय पर विजय सुनिश्चित है।

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