10 नर्मदा परियोजनाओं के लिए शिव सरकार लेगी 12500 करोड़ का नया कर्ज

 परियोजना

भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। मध्य प्रदेश सरकार विभिन्न वित्तीय संस्थाओं से नर्मदा की दस परियोजनाओं के लिए करीब 12500 करोड़ का नया कर्ज लेने की तैयारी कर रही है। यह वे परियोजनाएं हैं, जिनके समय पर पूरा नहीं होने की वजह से मप्र को अपने हिस्से के पानी को गंवाना पड़ सकता है। सरकार की लेटलतीफी की वजह से यह परियोजनाएं अब तक शुरू ही हो सकी हैं, जबकि इनसे 2024 तक पानी लिए जाने का लक्ष्य है। अब इन परियोजनाओं के लिए आधा दर्जन वित्त संस्थाओं से कर्ज लेने की तैयारी की जा रही है। इन संस्थाओं में शामिल नाबार्ड से करीब चार हजार करोड़, बैंक आफ महाराष्टÑ से डेढ़ हजार करोड़, भारतीय स्टेट बैंक, पंजाब नेशनल बैंक एवं अन्य वित्तीय संस्थाओं से करीब सात हजार करोड़ रुपये का कर्ज लेने की तैयारी की जा रही है। इसके लिए सरकार की ओर से पहले दौर की चर्चा की जा चुकी है। इस चर्चा में इन संस्थाओं द्वारा कर्ज देने के लिए उनकी प्रारंभिक सहमति भी मिल चुकी है। दरअसल प्रदेश की जीवनदायनी नदी नर्मदा के जल बंटवारे को लेकर मप्र के अलावा गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान के बीच वर्ष 2024 में पुनर्विचार होना है। इसके लिए जरूरी है कि मप्र अपने हिस्से के 3.7 एमएएफ पानी का उपयोग कर ले, नहीं तो उसके हिस्से के पानी की कटौती कर उसे अन्य राज्यों को दे दिया जाएगा। हालांकि जिस गति से मप्र में काम हो रहा है उससे समय रहते पूरा उपयोग हो पाना नामुमकिन ही लगा रहा है। दरअसल सरकार गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रही है। इसकी वजह से कुछ परियोजनाएं आधी-अधूरी हैं तो बजट के अभाव में 10 परियोजनाएं शुरू ही नहीं हो पाई हैं। यही नहीं हालात यह हैं कि दो एमएएफ पानी लेने के प्रोजेक्ट के टेंडर ही नहीं हो पाए हैं। करीब एक दर्जन प्रोजेक्ट का काम लगभग 70 फीसदी अधूरा है। भुगतान के अभाव में ठेकेदारों द्वारा काम बेहद धीमी गति से किया जा रहा है। नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण ने पैसों के अभाव में आठ बड़े प्रोजेक्ट के लिए टेंडर रोक रखा है। इन प्रोजेक्ट की लागत करीब 27 हजार करोड़ के आसपास मानी जा रही है। इसकी वजह है टेंडर जारी होने पर 150 करोड़ रुपए तत्काल लगेंगे। इन प्राजेक्ट को पूरा होने में चार से पांच साल लग सकते हैं, क्योंकि वन पर्यावरण सहित तमाम तरह की अनुमतियां लेनी होंगी। इन प्रोजेक्ट के पूरे होने पर प्रदेश में करीब पांच लाख हेक्टेयर में सिंचाई होगी। हालत यह है कि ठेकेदारों को हर माह 800 करोड़ की जगह महज 300 करोड़ का ही भुगतान हो पा रहा है। फिलहाल नर्मदाघाटी विकास विभाग का बजट ही 3500 करोड़ है।

इन परियोजनाओं पर होना है काम शुरू
सभी परियोजनाओं से नर्मदा नदी से लगभग 25 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि सिंचित होना है। इसमें 13 लाख हेक्टेयर सिंचाई के लिए जल संसाधन विभाग के जरिए विभिन्न प्रोजेक्ट पर काम किया जा रहा है। जल संसाधन विभाग के भी कई निर्माण कार्य काफी पीछे चल रहे हैं। वहीं कई परियोजनाएं शुरू नहीं हो पाई हैं। इनमें चिकी वोरास बैराज नरसिंहपुर, शंकर पेंच जिक नरसिंहपुर, छिंदवाड़ा, दूधी परियोजना नरसिंहपुर, अपर नर्मदा परियोजना डिंडौरी, हाडिया बैराज हरदा, राघवपुर बहुउद्देश्यीय डिंडौरी, बसानिया मंडला, होशंगाबाद बैराज होशंगाबाद, कुक्षी परियोजना धार और सांवेर उद्वहन इंदौर। मप्र 2024 तक 18.25 एमएएफ पानी नहीं ले पाता है तो बाकी पानी गुजरात के कोटे में चला जाएगा। इसके बाद मप्र नर्मदा से कोई भी परियोजना लॉन्च कर पानी नहीं ले सकेगा। नर्मदा जल विवाद न्यायाधिकरण ने पानी का बंटवारा कर मध्य प्रदेश के अलावा गुजरात को 9 एमएएफ, महाराष्ट्र को 0.50 एमएएफ और राजस्थान को 0.25 एमएएफ पानी देने का निर्णय किया है।

यह हैं हालात
दरअसल, इसके लिए प्रस्तावित 21 सिंचाई परियोजनाओं में से एक भी पूरी नहीं हुई है। इनमें से 10 परियोजनाओं को पिछले साल (वर्ष 2020) में मंजूरी दी गई थी, पर अब तक इनके टेंडर तक जारी नहीं हुए हैं। जबकि पहले से निर्माणाधीन 11 परियोजनाओं का निर्माण कार्य सरकार की माली हालत खराब होने के कारण अटका हुआ है। इसी तरह बीते पांच साल में 21 परियोजनाओं की घोषणा की गई। जिनमें से एक भी चालू नहीं हो पाई है।

किस राज्य के हिस्से में कितना पानी
नर्मदा जल विवाद अभिकरण ने वर्ष 1979 में चारों राज्यों के बीच नर्मदा के पानी का बंटवारा किया था। तब मध्य प्रदेश के हिस्से में 18.25 एमएएफ, गुजरात के नौ एमएएफ, महाराष्ट्र के 0.25 एमएएफ और राजस्थान के हिस्से में 0.50 एमएएफ पानी आया था। मध्य प्रदेश इसमें से वर्तमान में 14.55 एमएएफ पानी का उपयोग कर पा रहा है। यानी 3.7 एमएएफ पानी का उपयोग नहीं हो रहा है।

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