- जबलपुर में 17 सितंबर के आयोजन पर लगी सभी की निगाहें
भोपाल/अपूर्व चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। ओबीसी वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण के मामले में श्रेय लेने की होड़ को लेकर भाजपा व कांग्रेस के बीच जारी जंग अभी समाप्त भी नहीं हुई है कि अब आदिवासियों को लेकर उनके बीच नया मोर्चा खुल गया है। इस मामले में अब कांग्रेस व भाजपा ने एक बार फिर से आमने -सामने आने की पूरी तैयारी कर ली है। दोनों दलों के बीच सियासी लड़ाई की वजह से अब प्रदेश के आदिवासी वर्ग के भी दो धड़ों में बंटता जा रहा है। यह सियासी विवाद आदिवासी दिवस पर अवकाश को लेकर शुरू हुआ था, जो अब आदिवासियों के नायकों तक आ पहुंचा है। इसके लिए दोनों ही दलों ने आपस में नायकों का भी चयन अपने-अपने हिसाब से कर लिया है। इन नायकों के बहाने यह दोनो ही सियासी दल अब इस वर्ग को लुभाने के लिए दोनों दलों ने अपने-अपने दांव पेंच चलना शुरू कर दिए हैं। दरअसल इनके बहाने भाजपा व कांग्रेस अपने आपको आदिवासियों का सबसे बड़ा हितैषी साबित करने के प्रयासों में लगे हुए हैं। ओबीसी के बाद आदिवासियों को लेकर इस लड़ाई के पीछे की वजह फिलहाल चार उपचुनाव है। इनमें एक लोकसभा व तीन विधानसभा क्षेत्रों में कुछ समय बाद ही उपचुनाव संभावित हैं। इनमें शामिल खंडवा लोकसभा क्षेत्र में आदिवासी व पिछड़ा वर्ग के मतदाताओं की संख्या अच्छी खासी है, जबकि तीन विधानसभा क्षेत्रों में से दो जोबट और रैगांव आदिवासी बहुल हैं। उपचुनाव के अलावा यह सियासी लड़ाई दो साल बाद प्रदेश में होने वाले आम विधानसभा चुनाव की तैयारियों को लेकर हो रही है। आदिवासियों पर विवाद की शुरूआत तो बीते माह 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस पर ही हो गई थी। इसकी वजह थी कांग्रेस सरकार के समय घोषित की गई आदिवासी दिवस की छुट्टी को मौजूदा भाजपा सरकार द्वारा ऐच्छिक अवकाश में बदलना। इस मामले में जब कांग्रेस ने आक्रमक रुख अपनाया तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आदिवासी दिवस की जगह 9 नवंबर को बिरसा मुंडा की जयंती पर जनजाति गौरव दिवस मनाने का ऐलान कर मामले को ठंडा कर दिया था।
सदन में अवकाश को लेकर कांग्रेस दिखाया था रौद्र रूप
बीते माह आदिवासी दिवस से पहले कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष कमलनाथ ने आदिवासी दिवस पर छुट्टी दिए की घोषणा के लिए शिव सरकार पर बड़ा दवाब बनाया था। इस पर सरकार तैयार नहीं हुई तो कांग्रेस ने इस मामले को विधानसभा में उठाते हुए सरकार पर आदिवासी विरोधी होने के न केवल आरोप लगाए, बल्कि काले एप्रिन पहनकर सदन में प्रदर्शन भी किया। कांग्रेस के रुख को देखते हुए मुख्यमंत्री ने आदिवासी दिवस मनाने की नई तारीख घोषित कर दी थी। इसके बाद भी कांग्रेस इस मामले में भाजपा को लगातार आदिवासी विरोधी साबित करने में लगी हुई है।
यह है प्रमुख वजह: दरअसल प्रदेश में इस वर्ग के लिए 47 सीटें आरक्षित हैं। वैसे तो प्रदेश में आदिवासी वर्ग का साथ कांग्रेस को मिलता रहा है , लेकिन बीते कुछ सालों से वह भाजपा की ओर हो गया है। 2013 के चुनाव में भाजपा ने आदिवासी वर्ग को अपने साथ कर लिया था , लेकिन बीते चुनाव के समय एक बार फिर से यह वर्ग कांगे्रेस के साथ खड़ा हो गया। इस वर्ग का अपने लिए आरक्षित सीटों के अलावा करीब 50 से अधिक सीटों पर भी व्यापक असर है। इसी वजह से दोनों ही दल उन्हें साथ लाने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं। यही वजह रही की डेढ़ दशक बाद कांगे्रेस की सत्ता में वापसी होने पर नाथ सरकार द्वारा उनसे संबधित याजेनाओं पर फोकस करना शुरू कर दिया था।
कांग्रेस व भाजपा होगें आमने -सामने
जबलपुर में आदिवासी नायक शंकर शाह और रघुनाथ शाह के बलिदान दिवस को लेकर आयोजित किए जा रहे कार्यक्रम में जहां मुख्यमंत्री के अलावा केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी शामिल हो रहे हैं , तो वहीं कांगे्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय ने भी इस कार्यक्रम में शामिल होने की घोषणा कर प्रदेश का सियासी पारा बढ़ा दिया है। इस वर्ग को साधने के मामले में मुख्यमंत्री द्वारा 15 नवंबर को बिरसा मुंडा की जयंती को जनजाति गौरव दिवस मनाने और शासकीय छुट्टी होने का ऐलान कर कांग्रेस पर मनोवैज्ञानिक रुप से बढ़त बना ली है।
कांग्रेस की जारी है आदिवासी अधिकार यात्रा
कांग्रेस भी आदिवासियों के मामले में पीछे नहीं रहना चाहती है, खासकर उपचुनावों होने तक वह इस मामले को जारी रखना चाहती है। यही वजह है कि कांग्रेस ने भी आदिवासियों को जोड़ने के लिए आदिवासी अधिकार यात्रा निकालना शुरू कर दिया है। इस यात्रा की शुरूआत कमलनाथ द्वारा निमाड़ के बड़वानी में टंट्या मामा भील के स्थान से की है। इसके उलट अब भाजपा महाकौशल अंचल के क्रांतिकारी शंकर शाह और रघुनाथ शाह के नाम पर बड़ा कार्यक्रम कर रही है। यानी बीजेपी और कांग्रेस ने अपने-अपने आदिवासी बांट लिए हैं। कांग्रेस नेताओं के भाषणों में भीमा नायक जैसे आदिवासी क्रांतिवीरों के नाम पहले, तो बीजेपी नेताओं को भाषण में बिरसा मुंडा और शंकर शाह, जैसे आदिवासी क्रांतिवीरों के नाम पहले आते हैं। फिलहाल इस सियासी लड़ाई का फायदा किसे मिलता है यह तो 2023 के चुनाव के पहले जोबट और रैगांव के मतदाताओं के रुख से साफ हो जाएगा।
15/09/2021
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