भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। मध्यप्रदेश पुलिस द्वारा शुरू की गई ई-एफआईआर के बाद अब पारदर्शिता के लिए ऑनलाइन विवेचना की तैयारी की जा रही है। इसके लिए एक नया एप तैयार करवाया जा रहा है। जिसका उपयोग ऑनलाइन विवेचना में किया जाएगा। फिलहाल इस काम का जिम्मा पुलिस मुख्यालय द्वारा एससीआरबी की टीम को सौंपा गया है। यह टीम इस मामले में लगातार तकनीकी विशेषज्ञों से सलाह-मशवरा कर रही है। सब कुछ ठीक-ठाक रहा, तो ऑनलाइन विवेचना की प्रक्रिया भी जल्दी शुरू हो सकती है।
ऐप तैयार होने के बाद इसके उपयोग को लेकर मैदानी अमले को प्रशिक्षित किया जाएगा। फिलहाल इसे प्रायोगिक रूप से लागू किया जाएगा। अगर इसके बेहतर परिणाम आते हैं तो फिर उसे पूरी तरह से लागू कर दिया जाएगा। फिलहाल प्रदेश में अभी कुछ दिनों पहले ई- एफआईआर की जो सुविधा शुरू की है, वह भी प्रयोग के तौर पर ही लागू है। ई-एफआईआर के तहत अभी वाहन और छोटी चोरियों के प्रकरण ही दर्ज करने की सुविधा है। इस ई- एफआईआर के बाद भी उनके मामलों की विवेचना मैनुअली ही होती है। यही वजह है कि अब पुलिस महकमा ऑनलाइन एफआईआर के साथ विवेचना भी ऑनलाइन करने की तैयारी में लगा हुआ है। विभाग पूरी तरह से ऑनलाइन प्लेटफार्म का उपयोग करना चाहता है।
यही वजह है कि विभाग ने इसके बाद अदालत में चालान भी ऑनलाइन पेश करने की योजना बना रखी है। आला पुलिस अफसरों को मानना है कि जब पूरी तरह इस ऑनलाइन एफआईआर को लागू कर दिया जाएगा तो उसके बाद से पुलिस पर लगने वाले तमाम आरोपों से मुक्ति मिल जाएगी। इसमें खासतौर पर वह आरोप शामिल है जिसमें कहा जाता है कि चोरी अधिक की हुई , लेकिन पुलिस ने उसे कम दर्ज किया है। इस नई व्यवस्था में तो फरियादी को खुद ही अपने सामान की कीमत ऑनलाइन लिखना होगी। आॅनलाइन विवेचना शुरू करने से मौका नक्शा और जब्ती पत्रक से लेकर जांच की पूरी प्रक्रिया आॅनलाइन ही होगी। इसके साथ ही पुलिस को उन आरोपों से भी मुक्ति मिल जाएगी जिनमें कहा जाता है कि उसके द्वारा सबूतों के साथ छेड़छाड़ कर उन्हें नष्ट कर दिया गया है या फिर अदालत में सारे सबूत पेश नहीं किए गए हैं। आॅनलाइन व्यवस्था में एक बार जो दस्तावेज रिकार्ड में दर्ज हो जाएंगे, उन्हें हटा पाना पुलिस के लिए भी नामुमकिन हो जाएगा। अभी पुलिस पर दबाव में आकर जांच को प्रभावित करने के आरोप भी लगते रहते हैं। इससे भी मुक्ति मिल जाएगी।
12 साल पहले शुरू हुई थी कवायद
ऑनलाइन एफआईआर, विवेचना और चालान पेश करने की प्रक्रिया 2008 में भी शुरू की जा चुकी है। उस समय केंद्र ने इसके लिए सीसीटीएनएस प्रोजेक्ट लागू किया था। जिसे प्रदेश में भी पूरे जोर-शोर से लागू करने का दावा किया गया था। उसके बाद यह पूरा प्रोजेक्ट ठंडे वस्ते में चला गया। हालांकि अब अफसरों का तर्क है कि उसकी तुलना में अब की टेक्नोलॉजी अधिक अच्छी है। उस समय इस प्रोजेक्ट को लागू होने में करीब ढाई साल का समय लगा था, लेकिन तब मैदानी अमले ने उसमें कोई रुचि ही नहीं ली। इसकी प्रमुख वजह थी प्रशिक्षित अमले की बेहद कमी होना। इसकी वजह से अमले को प्रशिक्षण भी दिलाया गया , लेकिन उसका भी कोई फायदा नहीं हुआ। इसके बाद अब जो अमला भर्ती हुआ है, वह पहले की तुलना में तकनीकी तौर पर अधिक दक्ष है।
12/09/2021
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